हाल के कुछ वर्षों में भारतीय लड़कियों की लंबाई घटने पर मेडिकल साइंस ने ग़ौर किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय लड़कियों की लंबाई औसत रूप से 0.63 सेंटीमीटर कम हो चुकी है। भारत में ज़्यादातर नाटी लड़कियों की औसत लंबाई 4.25 फुट तक होती थी; लेकिन अब ज़्यादातर नाटी लड़कियों की औसत लंबाई 3.75 फुट तक पहुँच चुकी है। भारत में लड़कियों की औसत लंबाई का कम होना एक चिन्ताजनक संकेत है, क्योंकि इससे उनकी कोख से पैदा होने वाले बच्चों की लंबाई घटेगी और इसी आने वाले 100 साल में सभी की औसत लंबाई तक़रीबन चार इंच कम हो जाएगी। पिछले 15 वर्षों में किये गये सभी सर्वे-रिपोर्ट्स के मुताबिक, लड़कियों के अलावा लड़के भी दिनोंदिन नाटेपन (डिसऑर्डर) के शिकार होते जा रहे हैं।
डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, कमज़ोर और गरीब तबके की लड़कियों और लड़कों की लंबाई कम हो रही है, जिसकी वजह कुपोषण, चिन्ता और कम भोजन का मिलना है। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि अमीर घरों से आने वाली लड़कियों की औसत लंबाई 0.23 सेमी बढ़ी है। लेकिन ज़्यादातर लड़कियों की लंबाई कम होने के जो कारण मिले हैं, उनमें गलत खानपान, डिब्बाबंद पेय और खाने-पीने की चीज़ों में मिलावट प्रमुख हैं। इसके अलावा, तनाव, देर रात तक जगना, चिढ़चिढ़ापन, मोबाइल की लत, नशा और कम उम्र में शारीरिक रिश्ते बनाने के चलते भी लड़कियों और लड़कों की शारीरिक क्षमता और लंबाई पर बुरा असर पड़ रहा है। वैज्ञानिक ये किसी व्यक्ति की लंबाई कम रहने के पीछे सबसे बड़ा कारण पोषण की कमी मानते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि जिन लड़कियों को पीरिएड्स शुरू हो जाते हैं, उनकी लंबाई इसके बाद कम ही बढ़ती है। उनका कहना है कि पीरिएड्स शुरू होने के बाद 90 प्रतिशत लड़कियों की लंबाई क़रीब 2 इंच से 5 इंच तक ही बढ़ती है। लेकिन कुछ शोध और पुराने अध्ययन बताते हैं कि ऐसा नहीं है, क्योंकि लड़कियों को पीरिएड्स 11-12 साल की उम्र से 14 साल तक की उम्र में होने ही लगते हैं। इसके बावजूद उनकी लंबाई तक़रीबन आधा से एक फुट तक बढ़ जाती है। लड़कियों की लंबाई कम होने के पीछे की जो वजहें ऊपर बतायी गयी हैं, वे ही इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं।
जनरल फिजिशियन डॉक्टर मनीष का कहना है कि किसी भी इंसान की लंबाई उसके जीन, पैरेंट्स, पालन-पोषण, हवा, पानी, खान-पान, बीमारियों और उसके जीने के तौर-तरीक़ों पर निर्भर करती है। इनमें से कोई एक कारण भी लंबाई कम रहने का कारण हो सकता है। उदाहरण के लिए एक बच्चे का जीवन हर तरह से सही है; लेकिन अगर उसे कोई बीमारी है, जिसका उसे और उसके माँ-बाप को पता नहीं है, तो भी उस बच्चे की लंबाई कम हो सकती है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुधा का कहना है कि आजकल जन्मने वाले ज़्यादातर बच्चों को माँ का दूध बहुत कम मिलता है या नहीं मिलता है। यह सबसे पहला कारण है किसी बच्चे की लंबाई कम होने का, क्योंकि उस समय न सिर्फ़ बच्चे के शरीर का तेज़ी से विकास होता है, बल्कि उसके शरीर में बिटामिन, कैल्सियम और दूसरे पोषक तत्त्वों की पूर्ति करने की बहुत ज़रूरत पड़ती है, जिसके लिए सबसे अच्छा बच्चे की माँ का दूध ही हो सकता है।
आजकल ज़्यादातर बच्चे ऊपरी दूध पीकर या डिब्बाबंद दूध का पाउडर पीकर बड़े होते हैं। इसके अलावा जब वो कुछ फूड खाने लायक होते हैं, तो उन्हें नेचुरल खान-पान न देकर अधिकांश माँएँ मल्टीविटामिन्स के नाम पर बाज़ार में मिलने वाले डिब्बाबंद फूड खिलाती हैं और अब तो नैक्स्ट लेवल का काम वो ये करने लगी हैं कि उन्हें फास्टफूड, डिब्बाबंद फूड, कोल्ड ड्रिंक्स और दूसरे पेय पकड़ा देती हैं, जिसका उनके शारीरिक विकास पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। कई डॉक्टर ही कमीशन के चक्कर में उन्हें डिब्बाबंद फूड देने की सलाह दे डालते हैं, जबकि एक डॉक्टर को चाहिए कि वो बच्चे के सही पालन-पोषण की सलाह उसके माता-पिता को दे। जो माँएँ अपने नवजात शिशुओं को दूध पिलाने से परहेज़ करती हैं, वे उन्हें शारीरिक रूप से कमज़ोर करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती हैं।
हैरानी की बात ये है कि लड़कियों की लंबाई में अचानक कमी की चिन्ता ज़्यादातर माँ-बाप को नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, महज 12 प्रतिशत माँ-बाप को ही उनकी बेटियों की कम लंबाई को लेकर चिन्तित देखा गया है, और उसके पीछे भी ज़्यादातर माँ-बाप की चिन्ता उनकी शादी को लेकर देखी गयी है। जबकि लड़कों की लंबाई कम होने की चिन्ता 46 प्रतिशत माँ-बाप में देखी गयी है। लड़कियों की लंबाई बढ़ने को लेकर ज़्यादातर लोगों में ये धारणा देखी गयी है कि लड़कियाँ तो वैसे भी लड़कों से छोटी ही होती हैं। भारत में 76.4 प्रतिशत शादीशुदा जोड़ों में पुरुषों की लंबाई महिलाओं की लंबाई से कम मिलती है। इसके अलावा 15.7 प्रतिशत जोड़ों की लंबाई तक़रीबन बराबर, जबकि 7.9 प्रतिशत जोड़ों में महिलाओं की लंबाई ज़्यादा देखी गयी है। हालाँकि भारत में राज्यों के हिसाब से लोगों की लंबाई का कम और ज़्यादा होना भी निर्भर करता है। अगर हम भारत की बात करें, तो सबसे ज़्यादा लंबी लड़कियाँ जम्मू-कश्मीर की होती हैं। इसके अलावा पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और केरल की लड़कियाँ भी लंबी होती हैं। यहाँ के पुरुष भी लंबे होते हैं।
कुछ सर्वे की रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के अन्य राज्यों के मुक़ाबले मणिपुर, असम, मेघालय, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, बिहार और झारखण्ड में महिलाओं और पुरुषों की औसत लंबाई कम है। भारत में ज़्यादातर राज्यों की लड़कियों की औसत लंबाई सामान्य है; लेकिन भारत के ज़्यादातर राज्यों में कुछ लड़कियाँ ज़्यादा लंबी, कुछ सामान्य, तो कुछ लड़कियाँ नाटी पायी जाती हैं।
नाटी लड़कियों की बात करें, तो इनकी ज़्यादातर संख्या मिली-जुली ही है, जो हर राज्य में मिल जाएँगी। लेकिन एक बात जो नयी सामने आ रही है, वो ये है कि पिछले एक दशक तक नाटी लड़कियों का सम्बन्ध कुपोषण, काम का दबाव और चिन्ताग्रस्त जीवन से ज़्यादा माना जाता है, अब उसमें फास्ट फूड, ख़ासकर चाइनीज फूड और नशा आदि की वजह से भी लड़कियों में नाटापन बढ़ रहा है। चिन्ता की बात ये है कि आज भारत के 30 प्रतिशत बच्चे ग्रोथ नाटेपन के शिकार हैं।
पुराने समय की एक कहावत है कि लड़कियाँ लता की तरह बढ़ती हैं। और यह बात सही भी है कि शुरुआती दौर में लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा तेज़ी से बढ़ती हैं; लेकिन हाल में सामने आये कुछ शोधों के मुताबिक, पीरिएड्स शुरू होने के समय से उनकी लंबाई बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इन शोध रिपोर्ट्स का मानना है कि अमूमन लड़कियों की लंबाई 14-15 साल की उम्र तक ज़्यादा बढ़ती है। उसके बाद उनकी लंबाई बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होने लगती है या रुक जाती है। वहीं लड़कों की लंबाई 18 से 20 साल तक भी बढ़ती है। लेकिन एक बात लड़कियों और लड़कों में कॉमन यह पायी गयी है कि दोनों की लंबाई 15 साल के बाद धीमी गति से बढ़ती है।
साल 2021 में साइंस जर्नल में प्रकाशित पीएलओएस वन नामक एक रिपोर्ट में भारत के लोगों की औसत लंबाई घटने दावा साल 2005 और साल 2015 में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आँकड़ों की तुलना के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि लड़कियों में जहाँ पीरिएड्स शुरू होने के बाद उनकी लंबाई बढ़नी कम हो जाती है या बिलकुल रुक जाती है, वहीं उनके अंगों का विकास होने लगता है। सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रिवेंशन के मुताबिक, भारत की 20 साल से ज़्यादा उम्र की लड़कियों, महिलाओं की औसत लंबाई लगभग 5.4 फुट है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दक्षिण देशों में लोगों की लंबाई बढ़ रही है और भारत के लोगों की लंबाई घट रही है, जो चिन्ता की बात है। अक्सर देखा जाता है कि बच्चों की लंबाई न बढ़ने पर जो लोग डॉक्टरों की सलाह लेते हैं, तो डॉक्टर बच्चों का इलाज कराने की सलाह देते हैं। वहीं वैज्ञानिकों के मुताबिक, किसी बच्चे की लंबाई उसके गर्भकाल से उसके माँ-बाप, ख़ासकर माँ के स्वास्थ्य, पोषण, पर्यावरण और प्रदूषण आदि के हिसाब से ही बढ़ती है। लेकिन किसी बच्चे की लंबाई कम रहने की सबसे बड़ी वजह माँ-बाप, ख़ासकर माँ का स्वास्थ्य, उनकी लंबाई और बच्चे के जन्म के बाद का पोषण ही है, क्योंकि देखा गया है कि एक ही जगह पर जन्म लेने वाले सभी बच्चे एक समान लंबाई के नहीं होते। इससे यह साफ़ होता है कि प्रदूषण और पर्यावरण किसी बच्चे की लंबाई पर बहुत ज़्यादा प्रभाव नहीं डालते, बल्कि इनके कारण बीमारियाँ ज़्यादा हो सकती हैं और लंबाई बढ़ने से रोकने में कोई बीमारी भी एक वजह होती है।
लंबाई बढ़ाने के बारे में पूछने पर डॉक्टर मनीष कहते हैं कि बच्चों का खान-पान सुधारने के अलावा उनके खाने-पीने के समय को भी ठीक करना होगा। इसके साथ ही उन्हें जंक फूड, बोतलबंद पेय, चाइनीज खान-पान और नशीली चीज़ों से दूर रखना बहुत ज़रूरी है। कुछ डॉक्टर नाटेपन को एक बीमारी मानते हैं। लेकिन डॉक्टर मनीष कहते हैं कि नाटापन एक समस्या है, जिसे निपटने के लिए सबसे पहले परिवार के बड़े लोगों, मुख्य रूप से माँ-बाप को आगे आना होगा।