‘डीडीसीए की कार्यकारी समिति के चुनावों में इतना कपट है, जितना अफ्रीकी देशों के तानाशाहों ने नहीं किया होगा’

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मैं और नेशनल कैपिटल टेरिटरी क्रिकेट एसोसिएशन (एनसीटी) पिछले कई सालों से दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) में हो रही धोखाधड़ी की जांच कर रहे हैं. इस दौरान जिस बात ने हमें सबसे ज्यादा चौंकाया वो ये थी कि किस तरह बहुत आसानी से साल दर साल वही अधिकारी दफ्तरों में बने रहे. हम मैनेजमेंट और कुछ अफसरों (जो डीडीसीए की कार्यकारी समिति के चुनावों में गड़बड़ी के उद्देश्य से काम कर रहे थे) द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे थे पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ.

अभी पिछले दिनों मैंने जो सीडी जारी की है, उसमें साफ दिखाया गया है कि डीडीसीए की कार्यकारी समिति के ये चुनाव कितने हास्यास्पद हैं. इतना कपट तो शायद पाकिस्तान या अफ्रीकी देशों के तानाशाहों ने नहीं किया होगा! डीडीसीए कम्पनीज एक्ट, 1956 के सेक्शन 25 के तहत बनी एक लाइसेंसशुदा कंपनी है, जिसका मूल आधार लाइसेंस की सेवा शर्तें हैं, जिन्हें एक मेमोरेंडम के रूप में दर्ज किया गया है. डीडीसीए की समिति के इस मेमोरेंडम ऑफ आर्टिकल्स का अनुच्छेद 37 चुनावों में प्रॉक्सी वोटिंग को अनुमति देता है. यह कम्पनीज एक्ट, 1956 के सेक्शन 176 और कम्पनीज एक्ट, 2013 के सेक्शन 105 से मेल खाता है. यह अनुच्छेद कंपनी के किसी भी सदस्य को कंपनी की किसी मीटिंग में भाग लेने और वोट करने का अधिकार देता है, साथ ही उन्हें ये अधिकार भी मिलता है कि वे किसी भी अन्य व्यक्ति (भले ही वो कंपनी का सदस्य हो या न हो) को प्रॉक्सी के बतौर चुन सकते हैं. यह व्यक्ति उनकी जगह मीटिंग में भाग ले सकता है और वोट भी दे सकता है. यहां साफ कहा गया है कि अपनी ओर से प्रॉक्सी नियुक्त करने वाले व्यक्ति को नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति विशेष का नाम देते हुए उसे मीटिंग में भाग लेने और वोट करने के लिए अधिकृत करना होगा यानी एक प्रॉक्सी फॉर्म भरकर ये जानकारी एसोसिएशन में देनी होगी.

कम्पनीज एक्ट, 1956 में उल्लिखित इसी नियम का दुरुपयोग डीडीसीए में हुआ है. इस नियम, जिसे इसलिए बनाया गया था कि ज्यादा से ज्यादा सदस्य मीटिंग में भाग लेकर किसी भी प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में वोट कर सकें, का अनुचित उपयोग करके ही डीडीसीए के कुछ सदस्य लगभग 35 सालों से डीडीसीए में बने हुए हैं. कुछ सदस्यों ने एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य, जो फ्री पास या मुफ्त की चीजें बांटने के अनैतिक काम में संलिप्त थे, को लुभाकर कोरे प्रॉक्सी फॉर्म जारी करवाए. इन फॉर्म पर सिवाय उस सदस्य के दस्तखत के कोई भी जानकारी नहीं थी कि उस सदस्य ने किस व्यक्ति को प्रॉक्सी नियुक्त किया है.

इन प्रॉक्सी फॉर्म का दुरुपयोग तब हुआ जब खाली फॉर्म लेने के बाद उसमें प्रॉक्सी होल्डर का नाम भरकर उस सदस्य द्वारा फॉर्म जमा करवाया गया. उदाहरण से समझिए. 2011-12 में एग्जीक्यूटिव कमेटी के गठन के लिए हुए चुनावों के समय अपने नाम पर सीके खन्ना ने 864, एसपी बंसल ने 130, अरुण जेटली ने 164, राकेश बंसल ने 612, रवि जैन ने 213, विवेक गुप्ता ने 143, रविंदर मनचंदा ने 310, मंजीत सिंह ने 247, सुभाष शर्मा ने 109, एनके बत्रा ने 11, रजनीश अग्रवाल ने 102 और गंगा प्रसाद गुप्ता ने 210 प्रॉक्सी फॉर्म दायर किए थे. इन फॉर्म्स को देखने पर साफ पता चलता है कि हैंड राइटिंग, दस्तखत, प्रॉक्सी होल्डर के नाम का कॉलम और इन्हें जारी करने की तारीख कोई मेल नहीं खाते. साथ ही, सीके खन्ना द्वारा दायर किए 864 प्रॉक्सी फॉर्म पर प्रॉक्सी होल्डर में केवल उनका ही नाम लिखा है.

‘सीडी में साफ दिखता है कि डीडीसीए की कार्यकारी समिति के ये चुनाव कितने हास्यास्पद हैं. इतना कपट तो अफ्रीकी देशों के तानाशाहों ने नहीं किया होगा’

इलेक्शन ऑफिसर के द्वारा इन सभी सदस्यों द्वारा दायर किए गए प्रॉक्सी फॉर्म की छानबीन में ये बात सामने आई कि कई बार एक व्यक्ति विशेष ने संबंधित डीडीसीए सदस्य के दस्तखत के बिना ही, कोरे प्रॉक्सी फॉर्म दायर किए गए थे. 2012 में ऐसे 3 बार हुआ, वहीं 2013 में ऐसी 6 घटनाएं सामने आईं.

एसपी बंसल (जो पिछले 25 सालों से महासचिव थे) के भाई राकेश बंसल ने उनके नाम पर 612 प्रॉक्सी फॉर्म जमा किए. जांच में सामने आया कि किसी भी सदस्य ने प्रॉक्सी होल्डर का नाम नहीं भरा था, बस खाली फॉर्म जमा कर दिए गए थे जिन पर संबद्ध सदस्य के इतर किसी और व्यक्ति ने राकेश बंसल का नाम भरा था. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि सभी 612 फॉर्म एक ही हैंड राइटिंग में हैं. यही समान तरीका सीके खन्ना, सुनील देव, स्नेह बंसल, मंजीत सिंह, विनोद गर्ग, रविंदर मनचंदा, गंगा प्रसाद गुप्ता और बाकियों ने भी अपनाया है. और तो और जमा किए गए 50 फीसदी से ज्यादा, लगभग 2,150 प्रॉक्सी फॉर्म केवल 5 सदस्यों स्नेह बंसल, राकेश बंसल, सीके खन्ना, सुनील देव और मंजीत सिंह द्वारा दायर किए गए थे. चुनावी प्रक्रिया का इससे बड़ा मजाक क्या होगा!

ये चुनाव भी, पिछले 35 सालों में हुए चुनावों की तरह भ्रष्टाचार की राह ही पर ही मुड़ा और डीडीसीए के चंद लोगों ने प्रॉक्सी सिस्टम का नाजायज फायदा उठाया. जब डीडीसीए के 99 प्रतिशत सदस्य दिल्ली के रहवासी हैं तो इस तरह लगातार प्रॉक्सी सिस्टम का अनुचित लाभ क्यों उठाया जा रहा है?

डीडीसीए में ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है जहां सदस्यों से जुड़ी जानकारी दर्ज होती हो, जिसे समय-समय पर अपडेट किया जाता हो, जहां उनका पता और वर्तमान स्थिति दर्ज हो कि वे जीवित भी हैं या नहीं. ऐसी अनभिज्ञता की स्थिति में, जो इलेक्शन ऑफिसर इन सभी प्रॉक्सी फॉर्म को जांचने के लिए अधिकृत है, वो इस जानकारी और समय से अपडेट किए गए दस्तखत के अभाव में ऐसा करने में असमर्थ है. इन तथ्यों को जांचना कि प्रॉक्सी फॉर्म क्या उसी सदस्य द्वारा जारी किया गया है, या वह सदस्य जीवित भी है या नहीं, या फिर उस फॉर्म पर किए गए हस्ताक्षर रिकॉर्ड में दर्ज हस्ताक्षर से मिलते हैं कि नहीं, असंभव नहीं है. अगर हस्ताक्षर रिकॉर्ड से नहीं मिलते हैं तो प्रॉक्सी फॉर्म खारिज हो जाता है.

हालांकि आश्चर्यजनक बात ये है कि साल 2012 और 2013 में किसी ने भी नहीं देखा कि फॉर्म पर नाम गलत लिखे थे और जानकारी में कोई साम्य नहीं है. उस पर वे चाहते हैं कि मैं डीडीसीए के अफसरों की इस बात को मानलूं की लगभग 25 से ज्यादा प्रॉक्सी सदस्य 85 साल से ज्यादा उम्र के हैं. ऐसा लगता है कि डीडीसीए में जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्स्पेक्टेंसी) राष्ट्रीय स्तर से कुछ ज्यादा ही है!

2012 में इलेक्शन ऑफिसर द्वारा जारी किया गया डाटा बताता है कि डीडीसीए में 24 सदस्यों के दस्तखत का कोई रिकॉर्ड ही मौजूद नहीं है. इससे ही प्रॉक्सी में बरती गई अनियमितताओं और उसके अवैध प्रयोग की बात साफ हो जाती है. ये भी पाया गया कि कई सदस्यों ने अपने पते की जगह डीडीसीए के कई अफसरों के ही पते दर्ज किए हुए थे. साथ ही ये भी साफ है कि ये सदस्य अपना वार्षिक सदस्यता शुल्क भरना भी बंद कर चुके हैं और इनकी ये सदस्यता उनकी जगह फीस भर के, उनके पते की जगह अपना पता भर के हथिया ली गई है.

लोढ़ा कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद इस प्रॉक्सी सिस्टम, जिसका राजनीतिज्ञों ने पूरा दुरुपयोग किया, का खत्म होना लगभग तय है. मैं पूरी निष्ठा से चाहता हूं कि हम जल्द ही ज्यादा से ज्यादा पेशेवर प्रबंधकों और क्रिकेटर्स को लाने में सफल हों ताकि राज्यों की क्रिकेट एसोसिएशन और बीसीसीआई का काम सुचारु रूप से चल पाएं.

(लेखक पूर्व क्रिकेटर और सांसद हैं)