पत्नी के भरण-पोषण में बेरोज़गारी का रोना

– पति बेरोज़गार हो, तो पत्नी को भरण-पोषण मिलेगा या नहीं ?

आशा गुटगुटिया

कल्याण चौधरी बनाम रीता चौधरी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण हमेशा मामले की तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है और विभिन्न कारणों के आधार पर ही न्यायालय भरण-पोषण के दावे को आकार देगी। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए महिला की भरण-पोषण की राशि को कम पाया और इसलिए इसे 2,500 से बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया। न्यायालय ने कहा- ‘ऐसा प्रतीत होता है कि वह पत्नी को दिये जाने वाले अंतरिम भरण-पोषण में किसी भी वृद्धि से बचने के लिए अपने वर्तमान रोज़गार को छिपा रहा है। पति द्वारा अतीत में किये गये भारी ख़र्च, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उसके त्याग-पत्र से पहले इंजीनियर के रूप में उसकी व्यावसायिक योग्यता, पत्नी को दिये जाने वाले भरण-पोषण की राशि को निर्धारित करने में मदद करते हैं। आज की स्थितियों में एक साधारण जीवन जीने के लिए 2,500 रुपये प्रति महीने बहुत कम है। एक मध्यम वर्गीय महिला के लिए 2,500 रुपये की मामूली राशि से पेट भर भोजन भी जुटा पाना लगभग असंभव है। भले ही पति के अब बेरोज़गार हो गया है पर एक कुशल, योग्य और सक्षम व्यक्ति होने के नाते अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए राशि का भुगतान करने के लिए ज़िम्मेदार है।’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धारा-125 सीआरपीसी के तहत पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश के ख़िलाफ़ पति द्वारा दी गयी अपील पर विचार कर रहा था, जिसके तहत पति को 2,500 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था।

महिला व्यक्तिगत रूप से पेश हुई, जबकि पति का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता ने किया। उसने राशि में पर्याप्त वृद्धि की माँग की, ताकि वह उसी स्थिति में रह सके, जिस स्थिति में वह अपने पति के साथ रहती थी। पति के वकील ने तर्क दिया कि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है।

आगे यह भी कहा गया कि पति ने न्यायालय के समक्ष अपने वेतन के बारे में अलग-अलग बयान दिये; लेकिन वह एक अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा था और उसके पास आय के अन्य स्रोत भी थे। उसकी मासिक आय 4,00,000 रुपये प्रति माह से अधिक थी। परिवार न्यायालय पति की आय के विवरण और तलाक़ के मुक़दमे में उसके द्वारा प्रस्तुत किये गये काग़ज़ात पर विचार करने में विफल रही। उसका यह भी कहना था कि उसका पति अन्य महिलाओं के साथ सम्बन्ध बनाने में रुचि रखता था और एक शानदार जीवन जी रहा था। उसने ख़ुद अपने ख़र्चों को विभिन्न मदों में दिखाया था, जो कि 12,000 रुपये प्रति माह से कम वेतन प्राप्त करे, उस व्यक्ति द्वारा वहन करना संभव नहीं है।

इसके विपरीत पति के वकील ने तर्क दिया कि मामले में पत्नी ने उसकी मासिक आय बहुत अधिक दिखायी है, जिसका कोई आधार नहीं है और पत्नी स्वयं एक उच्च शिक्षित महिला है, जो वर्ष 2017 में अपने स्वयं के आय के स्रोतों से 15,000 रुपये प्रति माह कमा रही थी, और सात वर्षों में उक्त राशि में वर्तमान में वृद्धि हुई होगी। उसने बिना किसी पर्याप्त कारण के पति के साथ रहने से इनकार कर दिया। इसलिए वह धारा-125 सीआरपीसी के प्रावधान (4) के अनुसार, किसी भी रखरखाव के लिए हक़दार नहीं थी। यह प्रस्तुत किया गया कि पति अब एक बेरोज़गार व्यक्ति है और इसलिए भी पत्नी को उतना भरण-पोषण देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है, जिस स्तर में वे विवाह के समय रह रहे थे।

(लेखिका वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)