लखनऊ के सिविल अस्पताल के बर्न वार्ड में बुरी तरह झुलसे जगेंद्र सिंह बार-बार सिर्फ एक ही सवाल पूछते हैं, ‘उन्होंने मुझे जलाया क्यों? अगर मंत्री और उनके गुंडों को मुझसे कोई दुश्मनी ही थी तो मुझ पर केरोसीन डालने कि बजाय मुझे पीट लेते!’ जगेंद्र 60 प्रतिशत तक जल चुके थे और ये अच्छी तरह समझ चुके थे कि उनका बचना मुश्किल है. उस भीषण पीड़ा को लगभग आठ दिन तक सहने के बाद जगेंद्र ने 8 जून को दम तोड़ दिया.
इसके साथ ही वे देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य की बेईमान प्रशासनिक व्यवस्था का एक और शिकार बन गए, वो राज्य जहां कई बार एक माफिया डॉन और राजनेता में फर्क कर पाना मुश्किल होता है. वह राज्य जहां प्रशासन की गल चुकी व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाने की सजा मौत है, जैसा जगेंद्र सिंह के साथ हुआ. जगेंद्र को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में उनके परिवार वालों के सामने जिंदा जला दिया गया था. इस दुष्कृत्य का आरोप राज्य के एक मंत्री राममूर्ति वर्मा और उनके आदमियों पर है. गौरतलब है कि मंत्री ‘जी’ फरार हैं और एक हफ्ते के अंदर आजम खान की भैंसों को ढूंढ लेने वाली ‘सजग’ उत्तर प्रदेश पुलिस वर्मा को पकड़ पाने में असमर्थ है.
आईटीआई में ट्रेनिंग लेने के बाद जगेंद्र ने कुछ समय निजी फर्मों में काम किया, कुछ दिनों बाद पत्रकारिता ने उनका ध्यान आकर्षित किया और वो कलम की ताकत को जानने लगे. थोड़े समय कुछ संस्थानों के साथ काम करने के बाद उन्होंने फ्रीलांस (स्वतंत्र रूप से) काम करने की ठानी क्योंकि किसी भी संस्थान के अधीन काम करने में कई खबरों पर अनुचित रूप से कैंची चलानी पड़ती है या अपने असल विचारों को दबाकर संस्थान के अनुरूप लिखना पड़ता है.
कुछ समय बाद जगेंद्र ने ‘शाहजहांपुर समाचार’ के नाम से एक फेसबुक पेज शुरू किया. जल्द ही ये पेज स्थानीय खबरों और खुलासों का महत्वपूर्ण स्रोत बन गया. उन्हें अपराध और राजनीति से जुड़ी रिपोर्टिंग में खासी दिलचस्पी थी और इसी के चलते वो भ्रष्टाचार के एक बड़े केस तक पहुंचे जिसके सिरे लखनऊ में बैठे मंत्री राममूर्ति वर्मा से जुड़ते थे. जगेंद्र ने इस बारे में अपने फेसबुक पेज पर वर्मा पर आरोप लगाया कि उन्होंने बहुत बड़े भूखंड का गैरकानूनी रूप से अधिग्रहण कर के उस पर खनन कर के ढेर सारा पैसा कमाया है. उन्होंने वर्मा पर बलात्कार का भी आरोप लगाया था. चूंकि जगेंद्र के पेज की अच्छी पहुंच थी, इसलिए ये बातें फैलने में देर नहीं लगीं.
जगेंद्र के परिजनों के अनुसार, 1 जून को इंस्पेक्टर श्री प्रकाश राय के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों का एक दल मंत्री वर्मा के बाहुबलियों के साथ उनके घर पहुंचा. गाली-गलौज और धमकियों के बाद उन्होंने जगेंद्र को आग लगा दी. इस बीच बेबस परिजन चिल्लाते रहे, पड़ोसियों से मदद की गुहार लगाते रहे.
जगेंद्र को उसके घर पर ही अधमरी हालत में छोड़कर पुलिस ने अपने रिकॉर्ड में ये दर्ज किया कि उसे गिरफ्तार करने के लिए किए गए छापे में उसने खुद को आग लगा ली. सोशल मीडिया पर मुद्दा उठने, जगेंद्र के मरने से पहले दिए गए बयान का वीडियो वायरल होने और जगेंद्र के बेटे के बयान कि मंत्री वर्मा के कहने पर ही उसके पिता को जलाया गया, के सामने आने के बाद ही शाहजहांपुर के पुवायां पुलिस थाने में मंत्री राममूर्ति वर्मा और पुलिस वालों को मिलाकर कुल पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.
हालांकि अगर समाजवादी पार्टी के राज में हुए पिछले वाकयों को देखें तो ये शुरुआत से ही साफ हो गया था कि वर्मा को बचाने की हरसंभव कोशिश की जाएगी. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव, राममूर्ति वर्मा के बचाव में आ चुके हैं. वर्मा पर लगे आरोपों पर क्या कदम उठाया जाएगा, ये सवाल पूछने पर शिवपाल कहते हैं, ‘ऐसा कई बार पहले भी हो चुका है कि मंत्रियों पर आरोप लगे हैं पर कभी कुछ साबित नहीं हो पाया है.’ शिवपाल यादव राज्य सरकार में लोक निर्माण विभाग मंत्री हैं और इस बात से साफ इंकार करते हैं कि जब तक मामले की जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक वर्मा को मंत्री पद से नहीं हटाया जाएगा. उन्होंने ये भी कहा कि वर्मा की कुर्सी अभी सुरक्षित है. शिवपाल यादव अपनी ऊटपटांग बयानबाजी के लिए भी जाने जाते हैं. ये वही नेता हैं जिन्होंने कुख्यात ‘निठारी कांड’ को ‘छोटा और सामान्य’ बताया था. ये संवेदनहीनता पार्टी के डीएनए में घुली लगती है. एक और कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव भी वर्मा के पक्ष में हैं, ‘कुछ घटनाएं कुदरत और किस्मत के हाथ में ही होती हैं और आप किस्मत से तो नहीं लड़ सकते.’ राममूर्ति वर्मा के साथ पूरे प्रशासन के दृढ़ता से खड़े होने के कारण स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे, ऐसे में जब तक राज्य सरकार कोई कदम नहीं उठाती, मृतक के परिजनों के पास सिर्फ अनिश्चितकालीन धरने पर बैठने का विकल्प बचा था. ये सिर्फ सोशल मीडिया था जो खुलकर जगेंद्र के परिजनों के साथ खड़ा था और इसी के चलते राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया मेंे ये मुद्दा उठाया गया.
‘तहलका’ को मिली जानकारी के अनुसार, जब ये सब चल रहा था, राममूर्ति वर्मा की गिरफ्तारी की मांग की जा रही थी और पुलिस द्वारा उन्हें फरार घोषित कर दिया गया था, वो और उनके सहायक शाहजहांपुर के निकट ही समाजवादी पार्टी के एक और नेता के फार्महाउस पर जश्न मना रहे थे.
इस मुद्दे पर राज्य सरकार ने गहरी चुप्पी साधी हुई थी पर सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका के आधार पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इस मामले की सीबीआई जांच कराने के लिए नोटिस जारी किया है. इसके बाद ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मृतक के परिजनों से मिले और उन्हें अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल खत्म करने के लिए कहा. राज्य सरकार ने मुआवजे के बतौर जगेंद्र के परिवार को तीस लाख रुपये और दो परिजनों को नौकरी देने की भी बात कही है. आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसे माहौल में समाजवादी पार्टी के निचले स्तर तक के नेता और उनके साथी लगातार अपराधों से जुड़े हुए हैं क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हें इनकी सजा नहीं मिलेगी. पार्टी के नेतृत्व पर नजर डालें तो तस्वीर और साफ होती है. पहला चेहरा विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह का है जो राज्य में माध्यमिक शिक्षा मंत्री हैं पर जब वो बोलना शुरू करते हैं तब किसी भी बच्चे को उनके पास से भी नहीं गुजरना चाहिए. पंडित सिंह गाली-गलौज भरी भद्दी भाषा का ऐसा मुजाहिरा करते हैं कि ‘शिक्षा मंत्री’ की ही शिक्षा पर संदेह होने लगता है. पंडित सिंह और विवादों का पुराना नाता है. उनके खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें लापरवाही से मौत, हमला करवाना और रैश ड्राइविंग प्रमुख हैं. अक्टूबर 2012 में उन्हें मंत्रालय से हटा दिया गया था क्योंकि उन्होंने गोंडा के चीफ मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) को अपहृत करके मारा-पीटा था. सीएमओ का अपराध यह था कि उसने कुछ नियुक्तियों के मामले में मंत्री ‘जी’ का फरमान मानने से मना कर दिया था.
इन सबसे अनजान गोंडा के ही एक युवक आकाश अग्रवाल ने अपने फेसबुक अकाउंट पर स्थानीय अखबार में आई एक खबर साझा की, जिसमें लिखा था कि कैसे पुलिस वालों ने मंत्री पंडित सिंह की गाड़ी के शीशे से काली फिल्म उतारी. उस अखबार के पास जाने से आसान उन्हें आकाश को धमकाना लगा. उन्होंने आकाश के पिता की दुकान बंद करवाने के लिए पुलिस को भेजा, आकाश को फोन कर के गाली-गलौज की और धमकाया. यहां तक कि पुलिस आकाश के पिता को मंत्री ‘जी’ के पास लेकर गई जहां उन्हें कथित रूप से धमकाया गया कि उन्हें फर्जी आरोप में जेल भेजा जा सकता है और वो ‘मर के ही वहां से वापस आ पाएंगे’.
अगर राज्य में फैली अराजकता की स्थिति अब भी साफ न हुई हो तो राज्य के खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के मुद्दे पर नजर डालिए. हाल ही में हुई एक घटना में लखनऊ में एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल की पूरी टीम (ओबी वैन के ड्राइवर और इंजीनियर सहित) के साथ बेरहमी से, उनके चैनल के दफ्तर के ही सामने मारपीट की गई. क्यों? क्योंकि चैनल ने प्रजापति के काले-कारनामों की खबर दिखाने की जुर्रत की. लखनऊ की मीडिया के लगातार दबाव के बाद लखनऊ के गौतमपल्ली थाने में मामला तो दर्ज किया गया पर अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.
प्रजापति पहले ही कथित तौर पर अपने कार्यालय का दुरुपयोग करके सैकड़ों करोड़ की संपत्ति जमा करने के मामले में लोकायुक्त की जांच के घेरे में हैं. लोकायुक्त जस्टिस (रिटा.) एनके मेहरोत्रा ने पिछले साल दिसंबर में प्रजापति के खिलाफ जांच तब शुरू की, जब ओम शंकर द्विवेदी नाम के एक व्यक्ति ने प्रजापति और उनके रिश्तेदारों द्वारा गलत तरीकों से राज्य में हासिल की गई संपत्ति के बारे में 1,727 पृष्ठों की शिकायत याचिका दर्ज करवाई. उन पर अनिवार्य पर्यावरणीय मंजूरियों के बिना अपने सगे-संबंधियों को खनन लाइसेंस जारी करने का भी आरोप है. जैसे ही लोकायुक्त ने मंत्री के खिलाफ जांच और पूछताछ शुरू की, कथित रूप से उनके साथियों की खोली गई ये फर्जी कंपनियां बंद होने लगीं. शिकायत में उन पांच कंपनियों के भी नाम थे जिनमें प्रजापति की पत्नी और बेटा निदेशक थे.
दिलचस्प बात ये है कि आज लगभग 900 करोड़ की संपत्ति के मालिक प्रजापति 2002 में बीपीएल कार्ड होल्डर थे. 2012 में उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर का प्रमाण पत्र मिला है. इसी साल उन्होंने 1.13 करोड़ की पूंजी की घोषणा भी की थी. वर्तमान में वे लक्जरी गाड़ियों के एक बेड़े के मालिक हैं.
उत्तर प्रदेश के एक और मंत्री जो गलत कारणों से ही चर्चाओं में हैं, वो हैं कैलाश चौरसिया. कैलाश मिर्जापुर से विधायक और राज्य सरकार में बेसिक शिक्षा और बाल विकास मंत्री हैं. चौरसिया पर एक असिस्टेंट रोड ट्रांसपोर्ट ऑफिसर (एआरटीओ) चुन्नीलाल को पीटने का आरोप है. चुन्नीलाल ने चौरसिया की अनुचित मांग को न मानने पर ये सजा पाई.
चुन्नीलाल ने मीडिया को बताया, ‘एक दोपहर मंत्री जी ने मुझे अपने दफ्तर बुलाया और मेरे दफ्तर के एक क्लर्क को जॉइनिंग संबंधी कागज देने से मना किया. मैंने उन्हें बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट का आदेश है और ऐसा करना बहुत जरूरी है वरना हम पर कोर्ट की अवमानना को लेकर कार्रवाई हो सकती है.’
उन्होंने आगे बताया कि इतना सुनते ही मंत्री उत्तेजित हो गए और उन्हेंे मारने- पीटने और गाली देने लगे. एआरटीओ ने कटरा पुलिस थाने में इसकी रिपोर्ट दर्ज करवानी चाही पर अब तक कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है. पुलिस का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई शिकायत नहीं मिली है. चौरसिया को इस साल मार्च में, मिर्जापुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 1995 में हुए एक डाकिए को धमकाने और दुर्व्यवहार के मामले में दोषी पाया था. हालांकि मई में जिला अदालत ने उन्हें इस मामले से बरी कर दिया.
समाजवादी पार्टी की ‘प्रतिष्ठा’ को और बढ़ाने वाला नाम राज्यसभा सांसद चंद्रपाल सिंह यादव का है. पिछले दिनों उनकी एक सरकारी अधिकारी को धमकाने वाली ऑडियो क्लिपिंग सामने आई है. मामला तहसीलदार गुलाब सिंह के अवैध खनन में लिप्त एक ट्रैक्टर को जब्त करने से शुरू हुआ. चंद्रपाल ने उन्हें फोन कर के दबाव बनाया कि ट्रैक्टर छोड़ दिया जाए पर जब गुलाब सिंह ने ऐसा करने से मना कर दिया तब चंद्रपाल ने उन्हें खतरनाक नतीजों का डर दिखाकर धमकाना शुरू कर दिया. ऑडियो रिकॉर्डिंग में गुलाब सिंह कहते हैं, ‘सर, मुझे माफ कीजिए पर ये लोग सरकार की साख खराब कर रहे हैं, ये हमारे लिए शर्म की बात है कि दिन के उजाले में ये सब हो रहा है.’ जिस पर सांसद जवाब देते हैं, ‘तो क्या तुम सरकार की साख बढ़ा रहे हो?’ बात आगे बढ़ती है तो सांसद कहते हैं, ‘हां, बहुत अच्छे! तुम आला दर्जे के चोर हो. अगर अभी पैसा मिल जाता तो तुम तुरंत ट्रैक्टर छोड़ देते.’ जब इस पर भी तहसीलदार नहीं माने तब सांसद ने अपना तुरूप का पत्ता फेंका, ‘मुझे तुम्हें जिंदगी भर का सबक सिखाने में बस 24 घंटे लगेंगे. मैं कह रहा हूं, इसका नतीजा बहुत बुरा होगा.’
शायद इस अधिकारी को खुद को भाग्यशाली मानना चाहिए कि इस तकरार के बाद भी सिर्फ उनका तबादला हुआ. उन्हें झांसी से कानपुर देहात भेज दिया गया. ये देश का कड़वा सच है कि एक ईमानदार अफसर के कमजोर पड़ते ही एक भ्रष्ट नेता को इस तरह के कारनामे करने के लिए प्रोत्साहन मिल जाता है.