राम की नगरी अयोध्या में अपराध बहुत कम है। चोरी की छोटी-मोटी घटनाओं को छोड़कर अपराध का प्रतिशत काफ़ी कम हो चुका है। ऐसा वहाँ के ज़्यादातर लोग और पुलिस वाले बताते हैं। और तो और इस पवित्र नगरी में वानरों की बड़ी आबादी है। वे भी उतने हिंसक नहीं हैं। हाँ, जब कोई उनके बच्चों से छेड़-ख़ानी करता है, तो वे हिंसक ज़रूर हो उठते हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ शहर की गलियों में जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे दिखायी देते हैं। ऐसा नहीं है कि वहाँ से कचरा उठाया नहीं जाता; लेकिन बहुत-से लोग गंदगी डालने से बाज़ नहीं आते। स्थानीय निवासी तंग हैं और विकास व सफ़ाई चाहते हैं।
भव्य राम मंदिर में साफ़-सफ़ाई और सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है। धमकियों से क्या कोई ख़तरा तो नहीं होता? यह सवाल सुनकर सुरक्षाकर्मी आश्चर्यजनक रूप से हँस देते हैं और वह आत्मविश्वास से भरे दिखायी देते हैं। मंदिर में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। साढ़े 300 एकड़ का क्षेत्र है। पैदल चलना बहुत मुश्किल लगता है। पैदल बहुत चलना पड़ता है, इसलिए छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर चलना मुश्किल कर देते हैं। इस रास्ते पर टाट अथवा मैट आदि बिछा दिया जाए, तो पैदल चलना सुुगम हो जाए। बच्चे और वृद्ध लोग इससे काफ़ी परेशान नज़र आये।
सुरक्षा कर्मियों के मुताबिक, लाखों लोग रोज़ रामलला के दर्शन को आ रहे हैं। 19 नवंबर की शाम तक कोई डेढ़ लाख लोगों ने दर्शन किये। साफ़-सफ़ाई बढ़िया है। कई तरह की व्यवस्था संतोषजनक है। अपराधियों पर निगरानी को लेकर एसपी ऑफिस की ओर से रामघाट पर तैनात सब इंस्पेक्टर रियाज़-उल-हक़ कहते हैं कि अयोध्या में क्राइम रेट काफ़ी कम है। इसका बड़ा कारण है शहर में जगह-जगह पुलिस मुस्तैद है। छोटी-छोटी घटनाओं को छोड़ दें, तो अपराध लगभग शून्य के बराबर है। राम की भूमि है, उसका भी असर है। ऐसा भी रियाज़ मानते हैं। दूसरी तरफ़ जैसे ही शहर की गलियों में प्रवेश करते हैं, गंदगी देखकर मन दु:खी होता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि गलियों में सुबह-शाम कचरा उठाया जाता है। ढेरों कचरा उठाते सफ़ाईकर्मी देखे भी गये। लोगों का कहना है कि मंदिर और आश्रम वाले लोग ज़्यादा सहयोग नहीं करते। वे खुले में कचरा फेंक देते हैं। अयोध्या पहुँचे बिहार के अवनीश और दिल्ली के प्रह्लाद ने भी इन कचरे के ढेरों को देखकर नाराज़गी ज़ाहिर की। उनका कहना है कि गंदगी को कोई भी पसंद नहीं करता। बड़ी बात है कि नगर निगम के अलावा यहाँ मंदिर-आश्रम ट्रस्ट वालों के पास पर्याप्त से भी अधिक फंड है। वे भी अच्छी व्यवस्था करवा सकते हैं।
अयोध्या के महापौर गिरीशपति त्रिपाठी से जब इस बारे में बात की गयी, तो उन्होंने बताया कि नगर निगम की तरफ़ से तय नियम से कचरा उठाया जाता है। मंदिरों और आश्रमों के लिए हमने डस्टबिनों की व्यवस्था की हुई है। उन्हें डस्टबिन दे रखे हैं। हमारी पूरी कोशिश है कि गलियों में गंदगी न रहे। ख़ास बात यह है कि महापौर माँ स्वयं भी एक मंदिर के महंत हैं।
हनुमत सदन के महंत अवध बिहारी शरण कहते हैं कि गलियों में कचरा इसलिए फेंक देते हैं, ताकि गलियों में घूमने वाले जानवर, जैसे- गायें, वानर आदि उस जूठन को खा सकें। क्योंकि विशेष तौर पर तो कौन उनको खाना बनाकर देने वाला है? क्या भारतीय संस्कृति में गंदगी ठीक है? क्या भगवान राम, राजा दशरथ और अन्य इसी तरह के माहौल में रहते थे महाराज? इन सवालों पर उन्होंने एकदम तीखी प्रतिक्रिया दी। ‘नहीं बिलकुल भी नहीं। गंदगी नहीं होनी चाहिए। इसके कई कारण है कि यहाँ जो लोग रह रहे हैं, उनको इसका महत्त्व पता नहीं है। वे सजग नहीं हैं। अयोध्या के आसपास निम्न सोच के लोग हैं। उनको इसकी चिन्ता नहीं है कि क्या करना है। पहले भी जैसे मेले होते थे, तो हम लोग ख़ुद सफ़ाई करते थे। अब टैंक और सीवर का सिस्टम आ गया है। खेत में जाने वाला आदमी नहीं जानता कि शहर में कैसे क्या करना है। हालाँकि पहले की अपेक्षा 75 फ़ीसदी सुधार हुआ है।’ वह कहते हैं- ‘जब तक विचार विकसित नहीं होगा, तब तक लोगों की ऐसी ही मनोवृत्ति रहेगी और गंदगी नहीं हट सकेगी।’
(ज़ीरो ग्राउंड रिपोर्ट)