– डायनामिक प्रोग्रामेबल फसाड लाइटिंग प्रोजेक्ट में टेंडर की शर्तों को दरकिनार करने से भ्रष्टाचार की आशंका, जवाब नहीं दे रहे अधिकारी
के.पी. मलिक
केंद्र सरकार के प्रमुख आयोजन स्थल भारत मंडपम में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में जब दुनिया भर के नेता एकत्र हुए थे, तो यह आयोजन देश के गौरव का प्रतीक बन गया था। लेकिन अब ऐसे भव्य आयोजनों के तहत लागू की गयी कई योजनाएँ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं। ताज़ा मामला आईटीपीओ कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में डायनामिक प्रोग्रामेबल फसाड लाइटिंग के टेंडर से जुड़ा है, जो आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के अधीन आता है। इस टेंडर में निर्धारित शर्तों को स्पष्ट रूप से नज़रअंदाज़ किया गया है।

टेंडर शर्तों की अनदेखी
इस परियोजना के लिए जारी टेंडर में साफ़तौर पर यह उल्लेख था कि केवल भारत सरकार और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (CPSUs) द्वारा जारी किये गये वर्क ऑर्डर ही पात्र और मान्य होंगे। लेकिन प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन के दौरान इन शर्तों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि मॉक-अप के दौरान ‘मेड इन चाइना’ लाइट्स का प्रयोग किया गया, जबकि टेंडर में यह स्पष्ट था कि मेक इन इंडिया के तहत भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता दी जाएगी। जिन कम्पनियों ने मेड इन इंडिया उत्पाद प्रस्तुत किये, उन्हें कम अंक देकर बाहर कर दिया गया, जबकि चाइनीज ब्रांड को सर्वोच्च अंक देकर विजेता घोषित किया गया था?

संगठित भ्रष्टाचार
यदि मेड इन इंडिया शर्त के बावजूद मेड इन चाइना को उच्चतम अंक मिले, तो क्या यह सुनियोजित भ्रष्टाचार और सार्वजनिक धन की बर्बादी नहीं है? सवाल यह भी उठता है कि भारत सरकार और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने अब तक कितने ऐसे फसाड लाइटिंग प्रोजेक्ट किये हैं? क्या इतने बड़े पैमाने पर लाइटिंग प्रोजेक्ट्स इनकी ज़िम्मेदारी में आते भी हैं? असल में इस तरह की फसाड लाइटिंग आमतौर पर बड़ी सिविल निर्माण परियोजनाओं का एक छोटा हिस्सा होती है, जबकि विभिन्न राज्य सरकारों ने स्वतंत्र रूप से ऐसी योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें केंद्र सरकार की वित्तीय सहायता शामिल रही है। फिर भी राज्य सरकारों द्वारा जारी वर्क ऑर्डर को अयोग्य घोषित कर दिया गया। जब डिजाइन और तकनीकी मानक पहले से तय थे, तो मॉक-अप क्यों किया?

टेंडर में पहले से ही बिल ऑफ क्वांटिटीज (बीओक्यू) निर्धारित किया गया था। फिर अंक आधारित मूल्यांकन प्रणाली (प्वाइंट सिस्टम) की क्या आवश्यकता थी? यदि सभी बिडर तकनीकी शर्तें पूरी कर रहे थे, तो मॉक-अप आयोजित करने का औचित्य क्या था? सामान्यत: यह प्रक्रिया तब अपनायी जाती है, जब बिडर को डिजाइन में लचीलापन दिया जाता है और मूल्यांकन क्वालिटी कम कॉस्ट बेस्ड सिलेक्शन (क्यूसीबीएस) के तहत किया जाता है। लेकिन यहाँ डिजाइन और तकनीकी विवरण पहले से तय थे, फिर भी मॉक-अप और अंक प्रणाली को लागू किया गया। यह दर्शाता है कि विभाग को ख़ुद अपनी लाइटिंग प्रभावों पर भरोसा नहीं था। फिर मेक इन इंडिया की शर्त को क्यों नज़रअंदाज किया गया? जब टेंडर में मेक इन इंडिया को एक मूलभूत शर्त के रूप में शामिल किया गया था, तो इसके बावजूद मेड इन चाइना उत्पादों को चयनित करना सीधे तौर पर उस नीति की अवहेलना है। क्या यह एक भ्रष्टाचार की संदेहास्पद स्थिति नहीं है? जब पहले से ही पूरी परियोजना की डिजाइन और मात्रा तय थी, बिडर को भी स्वयं कोई नया समाधान देने का अवसर नहीं था। ऐसे में अंक आधारित मूल्यांकन प्रणाली क्यों लागू की गयी?
अधिकारी ख़ामोश क्यों?
इन गंभीर आरोपों की पड़ताल के लिए रिपोर्टर ने आईटीपीओ के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर तथा कार्यकारी निदेशक प्रेम जीत लाल से ईमेल, व्हाट्सएप और फोन के माध्यम से संपर्क करने की कोशिश की। कई दिनों की कोशिशों के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, जिससे यह आशंका और गहराती है कि मामला पूरी तरह दबाने की कोशिश की जा रही है। यह स्पष्ट है कि यह टेंडर प्रक्रिया न केवल नीतिगत शर्तों की अवहेलना करती है, बल्कि मेक इन इंडिया, लोक-धन की सुरक्षा और भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता जैसी सरकार की घोषित नीतियों को भी चोट पहुँचाती है। चीन निर्मित लाइटों को सर्वोच्च अंक देना और उन्हें चयनित करना, जबकि भारतीय कंपनियों को किनारे करना सीधे तौर पर गहरे भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। अब सवाल यह है कि क्या इस पूरे मामले की निष्पक्ष जाँच कर कोई जवाबदेही तय की जाएगी?
(रिपोर्टर वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)