महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा चुनावों के क़रीब आते ही हरियाणा में चौंकाने वाली हार के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में निराशाजनक प्रदर्शन ने कांग्रेस की भारत में स्थिति काफ़ी कमज़ोर कर दी है। लोकसभा चुनावों में उत्साहजनक प्रदर्शन के कुछ ही महीनों बाद कांग्रेस 08 अक्टूबर के चुनाव परिणाम के बाद अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन कर रही है। शिवसेना-यूबीटी (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), सीपीआई और आम आदमी पार्टी (आप) सहित कई सहयोगियों ने हालिया असफलताओं के मद्देनज़र कांग्रेस से अपने दृष्टिकोण पर विचार करने का आग्रह किया है।
महाराष्ट्र, जहाँ महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के भीतर सीट-बँटवारे की बातचीत तेज़ है; में शिवसेना-यूबीटी और शरद पवार की एनसीपी, दोनों पार्टियाँ बेहतर सौदे के लिए कांग्रेस की कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने की इच्छुक हैं। हालाँकि कांग्रेस लोकसभा में अपने बेहतर प्रदर्शन का दावा कर रही है, जिसमें उसने महाराष्ट्र में 17 सीटों पर चुनाव लड़े और उनमें से 13 सीटों पर जीत हासिल की; लेकिन वह इस जीत पर आत्म-संतुष्टि नहीं कर सकती। हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ साझेदारी के बजाय अकेले चुनाव लड़ने के उसके फ़ैसले का असर उलटा हुआ। आम आदमी पार्टी के 1.79 प्रतिशत वोट शेयर ने अंतत: भाजपा और कांग्रेस के बीच क़रीबी मुक़ाबले को प्रभावित किया। ऐसे में कांग्रेस-नेतृत्व को ड्राइंग बोर्ड पर लौटने के लिए अपने सहयोगियों के प्रति अधिक उदार रुख़ अपनाना होगा। झारखण्ड, जहाँ भाजपा गति पकड़ रही है; में कांग्रेस की बुद्धिमानी यही है कि वह झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सहायक पार्टी की भूमिका निभाए। इसी तरह महाराष्ट्र में उसे अपने हितों से ज़्यादा गठबंधन की ज़रूरतों को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण होगा।
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की निर्णायक जीत पाँच साल पुराने केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक नये अध्याय की प्रतीक है। एक दशक के बाद आख़िरकार मतदाता विधानसभा चुनाव में मतदान कर सके। उन्होंने खंडित जनादेश के बजाय स्थिरता का विकल्प चुना है। यह स्पष्ट बहुमत त्रिशंकु विधानसभा में संभावित राजनीतिक चालबाज़ियों की चिन्ताओं को दूर करने में मदद करेगा और उप राज्यपाल द्वारा पाँच विधायकों के नामांकन के आसपास के विवादों को हल करेगा। विजयी गठबंधन और केंद्र के लिए आगामी चुनौती बने सत्ता परिवर्तन को ज़िम्मेदारी प्रबंधित करने के साथ-साथ जनता में एक विश्वास क़ायम करना होगा; क्योंकि कोई भी टकराव वाला दृष्टिकोण मतदाताओं की इच्छाओं की उपेक्षा करेगा। इस क्षेत्र ने हिंसा, सांप्रदायिक तनाव और लंबे समय से चली आ रही अन्याय की भावना के आघात सहे हैं। वर्षों की राजनीतिक उदासीनता के बाद हालिया चुनाव ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनर्जीवित कर दिया है। नयी सरकार पर अब राजनीतिक अंदरूनी कलह से ध्यान हटाकर लोगों की वास्तविक ज़रूरतों को पूरा करने, उनके जीवन में सुधार लाने और उन्हें सशक्त बनाने की ज़िम्मेदारी है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने शुरुआत में प्रधानमंत्री की स्थिति को व्यापक पैमाने पर मज़बूत किया, भले ही इसमें राजनीतिक पूँजी ख़र्च हो गयी हो। भाजपा की हरियाणा में जीत राजनीतिक परिदृश्य में मोदी के स्थायी प्रभाव की एक महत्त्वपूर्ण याद दिलाती है, जो बढ़ती चुनौतियों के बीच उनके रौब को मज़बूत करती है। हरियाणा का फ़ैसला कांग्रेस के लिए आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है। विपक्षी नेता के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए राहुल गाँधी को पार्टी के आंतरिक विभाजनों को अधिक प्रभावी ढंग से सुलझाना होगा; क्योंकि मतदाता एकजुट नेतृत्व के लिए उनकी ओर देख रहे हैं। कांग्रेस को अपने पैर जमाने के लिए सामने आने वाली इन चुनौतियों के साथ अपनी रणनीतियों को फिर से तैयार करना होगा और आगामी चुनावों से पहले मतदाताओं की गंभीर चिन्ताओं को दूर करते हुए अपने सहयोगियों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ना होगा।