कांग्रेस पार्टी ने अपनी विचारधारा को बहुत पहले छोड़ दिया

खालिद सलीम

मुसलमान कांग्रेस पार्टी से दूर होते चले गए, इसके बावजूद के हिंदुस्तान का विभाजन मजहब की बुनियाद पर हुआ था और मिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहब की बुनियाद पर हासिल किया था फिर भी हिंदुस्तान में डॉ भीमराव अंबेडकर ने जो कानून बनाया वह मजहब के नाम पर नहीं बना बल्कि उसकी बुनियाद सेकुलरिज्म पर रखी और हिंदुस्तान के हर नागरिक को बराबरी का दर्जा दिया आजादी के बाद कई दहाईयों तक कांग्रेस ही हिंदुस्तान के सत्ता पर काबिज रही नेहरू पटेल मौलाना अबुल कलाम आजाद रफी अहमद किदवई शास्त्री जी जैसे महान लीडरों की वे कांग्रेस जिसने हिंदुस्तान को आजाद कराया था आहिस्ता आहिस्ता सेकुलरिज्म के अपने विचारों से दूर होती चली गई वह अपने उन उसूलों पर क्राइम नहीं रह सकी जिन उसूलों को उसके महान लीडरों ने इसकी बुनियाद का पत्थर बना दिया था ,
मुसलमान का मानना है कि बाबरी मस्जिद का विवाद कांग्रेस की देन है 1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर जो मूर्तियां रखी गई थी वहीं से कांग्रेस के सेकुलरिज्म पर सवालिया निशान लग गया था फिर आहिस्ता आहिस्ता वे ताकते जो हिंदुस्तान में मुसलमान को बर्दाश्त करने के लिए किसी भी तरह तैयार नहीं थी और जो पाकिस्तान के बनने में हिंदतानी मुसलमान पर इल्जाम लगाती आ रही है उनको ताकत मिलती चली गई मुसलमान यह समझते हैं कि हिंदुत्व को बढ़ाने में कांग्रेस का सबसे बड़ा हाथ है इसके सबूत में मुसलमानो का दावा है की 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद को ताकत के जोर पर ढा दिया गया और नरसिम्हा राव की कांग्रेस हुकूमत ने बाबरी मस्जिद को ढाई जाने मेंआ हम रूल अदा किया है मुसलमानौ का यह इल्जाम गलत भी नहीं है एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी ने अपनी उस विचारधारा को जो नेहरू पटेल मौलाना अब्ल कलाम आजाद रफी अहमद और शास्त्री जी जैसे महान लीडरों ने बहुत मेहनत से बनाई थी और जिस पर यह सब लोग डटे हुए थे कांग्रेस पार्टी ने आहिस्ता आहिस्ता अपनी उस विचारधारा से पीछा छुड़ा लिया और कांग्रेस पार्टी को यह लगने लगा कि अगर वह उन्ही उसूलों पर और उन्ही विचारों पर चलती रही तो वह हिंदुओं की हिमायत से महरूम हो जाएगी हालांकि यह बात बिल्कुल गलत है आज भी हिंदुस्तान में हिंदुओं की 80% आबादी सेकुलरिज्म पर यकीन रखती है हिंदुओं और मुसलमान और यहां की दूसरी अल्पसंख्यकों के साथ हिंदुओं के अपने जो तालुकात हौ वह बहुत ही बिरादराना और भाईचारे के ताल्लुकात हैं हिंदुस्तान का जो कानून है हिंदुओं की बहु संख्यक इस कानून पर अमल कर रही है और इस पर यकीन भी रखती है लेकिन कांग्रेस के लीडरों को न जाने किस तरह और कब यह पता लगा कि अगर वह नरम हिंदुत्व की पॉलिसी पर नहीं चलेगे तो सत्ता से दूर हो जाएगै सेक्युलरिज्म से दूरी इंदिरा गांधी ने शुरू की थी उनके बाद राजीव गांधी सेकुलरिज्म से दूर होते चले गए उन्होंने कितने ही ऐसे काम किय जो मुसलमानो और सेकुलरिज्म के खिलाफ थे उसके बाद नरसिंह राऊ आए और उन्होंने बहुत सारी ऐसी नीतियो को अपनाया जिनकी वजह से अंदाजा होने लगा कि अब वह कांग्रेस अपनी उस विचारधारा से बहुत पीछे हटती चली जा रही है जिसकी बुनियाद गांधी जी ने नेहरू जी ने पटेल जी ने मौलाना अब्ल कलाम आजाद ने और ऐसे ही दूसरे महान लीडरों ने रखी थी और जिनका मानना था कि हिंदुस्तान एक ऐसा गुलदस्ता है जहां पर तरह-तरह के फूल है और यह फूल सब खिलकर अपनी अपनी खुशबू बखैर रहे हैं और हिंदुस्तान को महका रहे हैं
कांग्रेस पार्टी का अलमिया यह है कि वह अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहती है लेकिन उसके दोनों हाथ खाली है जैसा की शायर ने कहा था की ना खुद ही मिला ना विसाल ए सनम ना इधर के रहे ना उधर के रहे ,बाबरी मस्जिद के ढाई जाने के बाद मुसलमान उससे बहुत दूर होते चले गए और यूपी में जहां वह हमेशा सत्ता में रहती थी बाबरी मस्जिद के बाद सता उसके हाथ से ऐसा छिनि के उसकी यूपी में वापसी नहीं हो पाई है और ऐसे ही दूसरी स्टेट से उसको बेदखल होना पड़ा है कांग्रेस के ब्रांड लीडर राहुल गांधी पूरी कोशिश में है कि कांग्रेस के उसी दोर को वापस लाएं जब वह पूरे हिंदुस्तान पर हुकूमत करती थी इस काम के लिए राहुल गांधी बड़ी मेहनत कर रहे हैं मगर उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही है हालांकि वही,कांग्रेस में ऐसे मात्र ऐसे लीडर है जो मोदी जी और आर ऐसे ऐस के विचारों के खिलाफ डटकर बोलते हैं इनके अलावा कांग्रेस में कोई भी ऐसा लीडर नहीं है जो की बीजेपी के हिंदुत्व का मुकाबला करने की पोजीशन में हो अब सवाल यह पैदा होता है की क्या सिर्फ राहुल गांधी कांग्रेस की नैया को पर लगा सकते हैं और क्या वह मौजूदा हिंदुस्तान के हालात में जो फिर का प्रस्तुति और हिंदुत्व की सख्त विचारधारा आगे बढ़ रही है क्या राहुल गांधी उस विचारधारा का और बीजेपी की ताकत का मुकाबला करने के लिए अकेले काफी है और क्या वह हिंदुस्तान की अल्पसंख्यकों को यह यकीन दिला सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी उनके हितों का उनकी मान्यताओं का उनके मजहब का और उनके उन तमाम अधिकारों का पालन कर सकते हैं जो उनको हिंदुस्तान का कानून आता करता है हमें लगता है कि अकेले राहुल गांधी के यह बस की बात नहीं है क्योंकि हिंदुस्तान के जो मौजूदा हालात हैं और जिस तरह से यहां अल्पसंख्यकों को खासतौर से मुसलमान को टारगेट बनाया जा रहा है उसमें राहुल गांधी अकेले कुछ नहीं कर पाएंगे चाहे वह कितनी ही भारत जोड़ो यात्राएं कर लें कितने ही वह न्याय यात्राएं निकाल़ले जब तक पूरी कांग्रेस पार्टी अपनी उस विचारधारा को वापस नहीं लाती और खुलकर उन ताकतों का मुकाबला नहीं करती जो हिंदुस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोर्चा बंद है तब तक मुसलमान या दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कांग्रेस पार्टी के साथ नहीं आएंगे इसलिए कांग्रेस पार्टी को हमारा मशवरा है कि वह खुलकर सेक्युलरिज्म का दामन थाम ले और फिर अपनी उन विचार धाराओं को अपना ले जो उसकी बुनियाद में रखे गए थे दोनों हाथों में लड्डू रखने की पॉलिसी को खत्म कर दे ताकि हिंदुस्तान में फिर से सेकुलरिज्म और भाई चेहरे को बढ़ावा मिल सके