त्रिपुरा भाजपा अध्यक्ष पद पर पेच, केंद्र-राज्य नेतृत्व में सहमति न बनने से चुनाव टला

अंजलि भाटिया 

नई दिल्ली ,28 जून- त्रिपुरा में भाजपा के नए राज्य अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर पार्टी के भीतर असहमति गहराती जा रही है। शुक्रवार को केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण द्वारा 29 जून 2025 को अध्यक्ष पद के चुनाव की अधिसूचना जारी की गई थी, जिससे संगठनात्मक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की उम्मीद बनी थी। लेकिन चंद घंटों में ही यह अधिसूचना वापस ले ली गई और चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, यह निर्णय राज्य नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व के बीच संभावित उम्मीदवार को लेकर सहमति नहीं बन पाने के कारण लिया गया है। मुख्यमंत्री माणिक साहा और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच इस मुद्दे पर मतभेद साफ नजर आ रहे हैं

केंद्र की ओर से भगवान दास का नाम प्रस्तावित किया गया था, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं और पार्टी व सरकार में कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। लेकिन मुख्यमंत्री साहा ने उनके नाम का विरोध करते हुए उन्हें स्वीकारने से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार, भगवान दास के एक करीबी रिश्तेदार पर गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं, जिससे उनकी छवि पर असर पड़ा है।

मुख्यमंत्री माणिक साहा की ओर से टिंकू रॉय और नबेंदु भट्टाचार्य के नाम आगे बढ़ाए गए हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व को ये नाम संगठनात्मक दृष्टि से उपयुक्त नहीं लग रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, मुख्यमंत्री इस पद को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय बना चुके हैं और अन्य विकल्पों को खारिज कर रहे हैं। उनके सुझाए गए नाम पार्टी की राज्य इकाई की मुख्यधारा से दूर माने जा रहे हैं।

सूत्रों की मानें तो माणिक साहा किसी तीसरे, समझौता उम्मीदवार के पक्ष में अंततः राजी हो सकते हैं। हालांकि, अब तक इस पर कोई औपचारिक सहमति नहीं बन पाई है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और त्रिपुरा भाजपा की पूर्व अध्यक्ष प्रतिमा भौमिक का नाम भी चर्चा में आया था, लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार, उनके कुछ पारिवारिक विवादों के चलते उन्हें गंभीर दावेदार नहीं माना जा रहा है।

पूर्व अध्यक्ष राजीब भट्टाचार्य के राज्यसभा भेजे जाने के बाद भाजपा के सामने नए अध्यक्ष की तलाश एक जटिल चुनौती बन गई है। 2018 में 25 वर्षों के वाम शासन को खत्म कर सत्ता में आई भाजपा के लिए त्रिपुरा पूर्वोत्तर में एक अहम रणनीतिक राज्य रहा है। लेकिन मौजूदा गतिरोध यह संकेत देता है कि राज्यों में नेतृत्व चयन को लेकर पार्टी के भीतर सामंजस्य बनाना अब पहले जितना आसान नहीं रह गया है।