भारत में ऐसी कई आपराधिक घटनाएं हुई हैं जिनके बाद कानूनों में बदलाव हुए या नए कानून बने. गोवा में उजागर हुआ बाल यौन शोषण रैकेट का मामला भी ऐसा ही था. 1991 में गोवा अचानक उस समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया जब पुलिस ने गुरुकुल नाम के एक अनाथाश्रम में छापा मारकर यहां रहने वाले बच्चों के यौन शोषण का मामला उजागर किया. इस अनाथाश्रम का संचालक जर्मन मूल का एक नागरिक फ्रेडी अल्बर्ट पीट्स था. पीट्स इस रैकेट का मुखिया था. इस प्रकरण के दुनियाभर में चर्चित होने की वजह यह थी कि इसके सातों मुख्य आरोपित विदेशी थे. ये लोग स्वीडन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड जैसे विकसित देशों से थे इसलिए सभी जगह इस मामले की चर्चा हुई. भारत में भी यह अपनी तरह का पहला मामला था. जांच आगे बढ़ने के साथ-साथ यह भी साफ हुआ की कुछ बच्चों को आरोपितों के साथ कई बार विदेश भेजा गया और कई दिनों तक उनका वहां शोषण किया गया. यह रैकेट 1989 से चल रहा था.
पीट्स को 1991 में गिरफ्तार किया गया और इसके एक साल बाद सभी आरोपितों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया गया. बाद में सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी गई. इस मामले की सुनवाई में सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि आरोपितों को कैसे उनके मूल देश से प्रत्यर्पित करवाया जाए. सीबीआई को इस मामले में पहली सफलता तब मिली जब ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने 1998 में इस अपराध में शामिल अपने नागरिकों को भारत सरकार को सौंप दिया. पीट्स के साथ इन दोनों को सजा सुनाई गई थी. इस मामले के बाकी आरोपित आज तक पकड़ में नहीं आ सके हैं. इनमें से एक रेमंड वेर्ली पिछले कुछ महीनों से चर्चा में है. ब्रिटेन के नागरिक वेर्ली ने वहां की अदालत में अपने प्रत्यर्पण के खिलाफ अपील की है जिस पर अभी अंतिम फैसला आना बाकी है.
इस घटना के बाद गोवा में बाल यौन शोषण के खिलाफ एक नया कानून- गोवा बाल अधिकार कानून- 2003 बनाया गया था. आज यह इस तरह के मामलों में सबसे आदर्श और सक्षम कानून माना जाता है.