रूस ने यूक्रेन के खिलाफ भारतीयों को जबरन युद्ध में झोंका!
इंट्रो- जब किसी देश में कोई आपदा आती है या दो देशों में युद्ध होता है, तो वहां हजारों-लाखों की संख्या में विदेशी नागरिक फंस जाते हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध में ऐसे लाखों मामले सामने आए। लेकिन इन फंसे हुए विदेशियों, खासतौर पर भारतीयों को युद्ध में धकेलने का काम रूस ने बड़े पैमाने पर किया। वीजा और सुरक्षित नौकरियों के लालच में रुस पहुंचे ये भारतीय युवा खुद को रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ अग्रिम मोर्चों पर लड़ने के लिए भेजे गये, और शायद अब भी भेजे जा रहे हैं। तहलका रिपोर्टर के संपर्क में आने वालों के अनुसार, भारतीय युवाओं को जबरन झूठे वादों में फंसाकर रूस की ओर से यूक्रेन से लड़ने के लिए युद्ध में धकेला गया। इस बार इसी को लेकर तहलका ने अपनी गहन पड़ताल वाली यह स्टोरी की है। तहलका एसआईटी की खास रिपोर्ट :-

‘एक विदेशी नागरिक, जो कि रूसी नहीं था, यूक्रेन-रूस युद्ध से भागने की कोशिश कर रहा था। पहले रूसी सेना के अधिकारियों ने उसके हाथ में गोली मारी, फिर पैर में गोली मार दी। जब वह दर्द से चिल्लाने लगा, तो उन्होंने उसके सिर में गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। यह घटना मेरे अपार्टमेंट में घटी थी, जहां मैं रहता था और मैं इस हत्या का प्रत्यक्षदर्शी था। चूंकि युद्ध क्षेत्र में बिजली नहीं थी, इसलिए मुझे रोशनी के लिए टॉर्च पकड़ने को कहा गया था। इस घटना के बाद मैं इतना भयभीत हो गया था कि कई रातों तक सो नहीं सका और मैंने कभी भी रूसी सेना के अधिकारियों के साथ बहस नहीं की जब वे नशे में थे।’ -उत्तर प्रदेश के एक शहर के सिराज (बदला हुआ नाम) ने कहा, जो यूक्रेन के साथ युद्ध में रूसी सेना के लिए लड़ने के लिए धोखा दिए जाने के बाद भारत लौट आया था।

‘भारत के गुरुग्राम से प्रिंस नामक एक प्रशिक्षक, जो रूसी सेना को प्रशिक्षण दे रहे थे: रूस में हमसे मिले। उन्होंने चेतावनी दी कि वहां आकर हमने वास्तव में अपनी मृत्यु के वारंट पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि कोई अपनी इच्छा से रूस आ सकता है, लेकिन देश छोड़ना उसके हाथ में नहीं है। यह सुनकर मैं घबरा गया और रूस स्थित भारतीय दूतावास को फोन करना शुरू कर दिया।’ -सिराज ने तहलका के रिपोर्टर से कहा।
‘पूरे एक महीने तक हमारा एकमात्र भोजन चावल का सूप था, जो दिन में एक बार दिया जाता था; और कुछ नहीं। पीने के पानी पर भी राशनिंग की गई। हमें रूस-नियंत्रित यूक्रेनी शहर में रखा गया था, जो निर्जन था। इसलिए हमें जो भी परित्यक्त घर मिला, हम वहीं रहे।’ -सिराज ने आगे कहा।
‘मुझे एजेंटों ने धोखा दिया। उन्होंने मुझे बताया कि मैं रूस में डिलीवरी ब्वॉय के रूप में काम करूंगा। उन्होंने कभी भी यूक्रेन-रूस युद्ध क्षेत्र में लड़ाई का उल्लेख नहीं किया। उन्होंने मुझे दो लाख रूबल प्रति माह वेतन देने का वादा किया था। उन्होंने मुझे दिल्ली के भीकाजी कामा प्लेस में कार्यालय वाले एक अन्य एजेंट सुमित दहिया से संपर्क करने को कहा। सुमित एक रूसी महिला के साथ मुझे और 16-17 अन्य लोगों को भारत से रूस ले गया। जब मैं भारत लौटने की तैयारी कर रहा था, तो मैंने रूस के एक रेस्तरां में जितेंद्र सहरावत को देखा और मुझे धोखा देने के लिए उससे पूछताछ की।’ -सिराज ने जोड़ा।

‘मेरे पास ‘तहलका’ के साथ साझा करने के लिए कई विशेष बातें हैं, जो भारत में कोई नहीं जानता। भारतीय मीडिया केवल उन एजेंटों पर ध्यान केंद्रित करने में रुचि रखता है, जिन्होंने हमें धोखा दिया। वे यूक्रेन-रूस युद्ध क्षेत्र में हमारे द्वारा झेली गई अमानवीय परिस्थितियों के प्रति कोई चिन्ता नहीं दिखाते। पानी की कमी के कारण मैं सप्ताह में केवल एक बार ही नहा पाता था। वहां शायद ही कोई भोजन था। हमें केवल दिन के समय ही शौच जाने की अनुमति थी और तब भी सख्त सावधानियों के साथ। शाम 6 बजे के बाद ड्रोन हमलों के डर से हमें अनुमति नहीं दी गई।’ -दिल्ली के एक अन्य भारतीय जतिन आहूजा ने कहा, जिन्हें एजेंटों द्वारा धोखा दिया गया था और अक्टूबर, 2024 में भारत लौटने से पहले यूक्रेन के युद्धक्षेत्र में लड़ने के लिए रूस भेज दिया गया था।
‘मैंने रूसी पक्ष की ओर से लड़ते हुए 10-12 यूक्रेनी सैनिकों को मार डाला। चाहे यह दुर्घटनावश हुआ हो या अन्यथा, मुझे नहीं पता। युद्ध क्षेत्र में रहने के दौरान एक ड्रोन हमले में मुझ पर हमला हुआ, जिसके छर्रे के दो टुकड़े मेरे बाएं और दाएं पैर में घुस गए। एक को रूस में हटा दिया गया था और दूसरे को दो महीने बाद जब मैं भारत लौटा तो हटा दिया गया। रूसी कानून के अनुसार, ड्रोन हमले में पैर में चोट लगने पर 30 लाख रूबल की बीमा राशि मिलती है; लेकिन आज तक मुझे कुछ नहीं मिला।’ -जतिन ने तहलका रिपोर्टर को बताया।
‘एजेंटों ने यूक्रेन के खिलाफ रूसी पक्ष की ओर से लड़ रहे प्रत्येक भारतीय के नाम पर धोखाधड़ी से दो एटीएम कार्ड बना लिए। उन्होंने हमें बिना बताए हमारे बैंक खातों से पैसे निकाल लिए। किसी को 20 लाख, किसी को 14, तो किसी को 13 लाख का नुकसान हुआ। मैं अपना कार्ड ब्लॉक कराने में कामयाब रहा, इसलिए वे मेरे पैसे लेने में असफल रहे। रूस में एक सामान्य गोदाम की नौकरी, आकर्षक प्रोत्साहन और स्थायी निवास का झूठा वादा करके इन एजेंटों ने हमें रूसियों को बेच दिया और युद्ध में लड़ने के लिए मजबूर किया।’ -जतिन ने आगे कहा।
‘यूक्रेन-रूस युद्ध क्षेत्र की स्थितियां इतनी भयावह थीं कि कुछ पाकिस्तानी और अफगान नागरिक, जिन्हें मैं जानता था; पानी उपलब्ध न होने पर पीने के लिए बोतलों में अपना मूत्र भरकर रखते थे। मैंने एक पाकिस्तानी नागरिक को भूख से इतना हताश देखा कि वह पेड़ के पत्ते खा रहा था।’ -जतिन ने जोड़ा।
सरकार को कम से कम 126 भारतीयों के बारे में जानकारी है, जो यूक्रेन में युद्ध लड़ने के लिए रूसी सेना में शामिल हुए थे। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास को जिन 126 लोगों के बारे में सूचित किया गया है, उनमें से 96 अब तक भारत लौट आए हैं। शेष में से 12 संघर्ष में मारे गए हैं, जबकि 16 लापता बताए जा रहे हैं।
सिराज और जतिन उन 126 भारतीयों में शामिल हैं, जिन्हें युद्ध में लड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इनमें से अधिकांश लोग गरीब परिवारों से थे और एजेंटों द्वारा उन्हें धन और नौकरी का वादा करके फुसलाया गया था, कभी-कभी तो उन्हें रूसी सेना में सहायक के रूप में भी नौकरी दी जाती थी। इसके बजाय उन्हें सीधे युद्ध क्षेत्र में भेज दिया गया। कई लोगों ने बताया कि वे यूक्रेन के रूसी नियंत्रण वाले भागों में तैनात थे, जहां उन्हें बारूदी सुरंगों, ड्रोनों, मिसाइलों और स्नाइपर फायरिंग से निपटना पड़ता था, जबकि उन्हें कोई सैन्य प्रशिक्षण नहीं मिलता था। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने मानव तस्करी के आरोप में कई लोगों को गिरफ्तार किया है। जुलाई, 2024 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मास्को यात्रा के बाद, रूस ने अपनी सेना में लड़ रहे सभी भारतीयों की शीघ्र रिहाई का वादा किया था, जिसके दौरान उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समक्ष यह मुद्दा उठाया था। दोनों देशों के बीच पारंपरिक रूप से मधुर संबंध रहे हैं। तब से 96 लोगों को छुट्टी दे दी गई है और वे सुरक्षित भारत लौट आए हैं, जबकि लापता लोगों का पता लगाने के प्रयास जारी हैं। तहलका की एसआईटी ने कुछ ऐसे लोगों से उनके संघर्षों के बारे में बात की, जो वापस लौटने में कामयाब रहे।
तहलका रिपोर्टर ने सबसे पहले सिराज से बात की, जिन्होंने बताया कि रूस से लौटने के एक साल बाद भी उन्होंने अपने माता-पिता को यह नहीं बताया है कि एजेंटों ने उनके साथ धोखा किया है। उन्होंने कहा कि वह उन्हें तनाव में नहीं डालना चाहते। इस कारण से उन्होंने हमसे इस रिपोर्ट में अपना वास्तविक नाम उजागर न करने का अनुरोध किया।
तहलका रिपोर्टर से हुई बातचीत में सिराज ने बताया है कि रूसी कमांडरों ने भगोड़ों को बिना किसी हिचकिचाहट के उन्हें गोली मार दी। सिराज एक भयावह घटना का वर्णन करते हैं, जब रूसी सेना में लड़ रहे एक विदेशी को युद्ध क्षेत्र से भागने के असफल प्रयास के बाद रूसी सैनिकों ने गोली मार दी थी। सिराज ने कहा कि वह प्रत्यक्षदर्शी हैं, क्योंकि हत्या उनके अपार्टमेंट में हुई थी। चूंकि युद्ध क्षेत्र में बिजली नहीं थी, इसलिए उन्हें रोशनी के लिए मशाल पकड़ने को कहा गया था। उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद उनमें इतना भय व्याप्त हो गया कि वे रातों को सो नहीं सके और तबसे जब भी रूसी सैनिक नशे में होते थे, वे उनसे बात करने से कतराने लगे।
सिराज : हेडक्वाटर्स में बताता हूं क्या-क्या होता था…उनका दिमाग खराब होते ही वो सीधे सर पर गोली मारते थे।
रिपोर्टर : किनका दिमाग खराब होते ही?
सिराज : जो रशियन आर्मी के बड़े लोग होते थे।
रिपोर्टर : किसको गोली मारते थे?
सिराज : जो भागते थे जंग छोड़ के, ..चाहे वो किसी भी देश का हो…उसके लिए मौत है।
रिपोर्टर : आपके सामने मारा किसी को?
सिराज : भाई मुझसे ही टॉर्च पकड़वाई थी एक बार तो।
रिपोर्टर : टॉर्च मतलब?
सिराज : लाइट के लिए, …क्योंकि बिजली तो वहां है नहीं। मुझे टॉर्च थमा दी, पिटाई चल रही थी किसी की। एक था कोई, …भागकर आया था पीछे से।
रिपोर्टर : बहार का था या रशियन?
सिराज : इंडियन नहीं था पर बहार का ही था…पहले उसके पैर में मारी गोली, …फिर हाथ में; …जब वो चिल्लाने लगा, तो उसके सर में मार दी। …भागते हुए पकड़ा गया था वो। आगे भी मौत है, तेरे पीछे भी मौत है; …कहाँ भागेगा बता! गोली तो वहां रोज़ चलती थी, लेकिन उस दिन उसके सर में सीधं गोली मार दी।
रिपोर्टर : आपसे कहा टॉर्च पकड़ लो
सिराज : मेरे फ्लैट में ही तो गोली मारी है।
रिपोर्टर : आप डर गए होंगे?
सिराज : भाई उस दिन के बाद मुझे नींद नहीं आई ठीक से..जब वो नशे में होते थे..मैं उनसे बात नहीं करता था। भाई पूरी पूरी बेल्ट होती थी गोलियाँ की, वो खाली कर देते थे।
रिपोर्टर : तो क्या आपने घर वालों को बताया होगा मेरे साथ धोखा हो गया?
सिराज : नहीं भाई, घर वालों को आज तक नहीं बताया।
रिपोर्टर : आज तक नहीं बताया कि आपके साथ धोखा हुआ?
सिराज : नहीं।
रिपोर्टर : क्यूं?
सिराज- मेरे घर वाले क्या करते? टेंशन में मारे जाते।
रिपोर्टर- उनको आज तक नहीं बताया आपके साथ धोखा हुआ?
सिराज : नहीं।
रिपोर्टर : फिर उन्होंने पूछा नहीं, वापस क्यों आ गए पांच महीने के बाद?
सिराज : इतना ध्यान नहीं देता कोई, …बता दिया कि कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया।
अब सिराज उस पल को याद करते हैं, जब उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। रूस-यूक्रेन सीमा पर, जहां सैन्य प्रशिक्षण शुरू हुआ, यह स्पष्ट हो गया कि अब वापसी संभव नहीं है। गुड़गांव का प्रिंस नाम का एक व्यक्ति रूसी सेना में प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा था। उसने तब एक बड़ा खुलासा करते हुए सिराज को बताया कि तुम अपने मृत्यु वारंट पर हस्ताक्षर करने के बाद यहां आए हो। सिराज ने बताया कि उसी क्षण से उन्होंने मास्को स्थित भारतीय दूतावास को फोन करके बचाव की मांग करनी शुरू कर दी।
रिपोर्टर : आपको कब पता चला आपके साथ धोखा हो गया?
सिराज : जब हम रूस-यूक्रेन बॉर्डर पर पहुंचे और आर्मी ट्रेनिंग हुई…वहां जा तो सकते हो अपनी मर्जी से, मगर आ नहीं सकते। वहां एक गुड़गांव का ट्रेनर था प्रिंस, जो रशियन आर्मी में ट्रेनिंग देता था। उसने कहा था, तुम अपना डेथ वारंट साइन करके आये हो। मैंने तो वहीं से कॉल लगाना शुरू कर दी थी भाई इंडियन एंबेसी को रशिया में; …यहां से निकल लो हमें भाई! हमें फंसा दिया गया है।
इसके बाद सिराज ने बताया कि धोखाधड़ी कैसे शुरू हुई। एजेंट ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह किसी भी तरह से युद्ध में शामिल नहीं होंगे। सिराज से केवल साधारण वितरण कार्य, जैसे कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक भोजन पहुंचाने का वादा किया। दो लाख रूबल प्रति माह का आकर्षक वेतन देने का वादा किया गया था और सब कुछ वास्तविक प्रतीत हुआ।
रिपोर्टर : ये एजेंट आपको ले गया था..उसने बताया था आपको यूक्रेन से लड़ना होगा?
सिराज : उसने बोला था, बस डिलीवरी का काम करना है; …जंग-वंग में नहीं जाना।
रिपोर्टर : किस टाइप की डिलीवरी?
सिराज : खाना देकर आना है बस।
रिपोर्टर : उसने पैसे कितने बताए थे, तनख्वा?
सिराज : तनख्वा बोला था 2 लाख मिलेगी, रशियन करेंसी में, …पर मंथ।
अब सिराज ने भोजन के लिए दैनिक संघर्ष के बारे में बताया। पूरे एक महीने तक उनका एकमात्र भोजन दिन में एक बार मिलने वाला चावल का पानीदार सूप था, यहां तक कि पीने का पानी भी सीमित था। राष्ट्रीयता चाहे जो भी हो – रूसी, अफगानी या अन्य सभी देशों के नागरिकों को समान अभाव का सामना करना पड़ा।
रिपोर्टर- खाना-पीना सब बढ़िया था?
सिराज- ये मान लो भाई महीने भर तो वो एक टाइम देते थे सूप; मतलब वो भी पानी होता था।
रिपोर्टर ; चिकन सूप?
सिराज : नहीं भाई, चावल का सूप।
रिपोर्टर : बाकी कुछ नहीं, सिर्फ सूप?
सिराज : बाकी कुछ नहीं। …पानी भी लिमिट में मिलेगा सबको।
रिपोर्टर : ऐसा क्यूं?
सिराज- रशियन हो या अफगानी हो.. क्योंकि भाई वॉर चल रही है…इतना खाना कहां से लाएंगे।
इस बातचीत में सिराज बताते हैं कि रूस की उनकी यात्रा कैसे शुरू हुई। इसकी शुरुआत एक लॉजिस्टिक्स नौकरी के वादे और एक ट्रैवल एजेंट के जरिए संपर्क के साथ हुई। उनके अनुसार, रूस में रहने वाले भारतीय मूल के एजेंट जितेंद्र सहरावत ने उन्हें फोन किया और एक अन्य एजेंट सुमित दहिया से मिलने के लिए कहा, जिसका दिल्ली के भीकाजी कामा प्लेस में कार्यालय है। सिराज ने कहा कि उन्होंने सुमित से मुलाकात की और अपना पासपोर्ट सौंप दिया। इसके तुरंत बाद उन्हें रूसी वीजा मिल गया और वे 16-17 अन्य भारतीयों के साथ रूस की यात्रा पर निकल पड़े। सिराज के अनुसार, सुमित और एक रूसी महिला उन सभी को भारत से सेंट पीटर्सबर्ग ले गए। दिल्ली हवाई अड्डे पर सिराज से कहा गया कि यदि कोई उनके बारे में पूछे तो उन्हें बताना होगा कि वह रूसी महिला उनकी बॉस है और वे रूस जा रहे हैं।
रिपोर्टर : आप कैसे रशिया पहुंचे?
सिराज : पता लगा था कि लॉजिस्टिक्स में जॉब है। …XXXX होलीडे करके एक ट्रेवल एजेंट का फोन आया।
रिपोर्टर : आप ट्रेवल एजेंट के संपर्क में कैसे आए?
सिराज : एक दलाल था, रशिया में रहता था, …इंडियन था।
रिपोर्टर : आपके कॉन्टेक्ट में मेरठ में आया होगा?
सिराज : पता लग ही जाता है, जब आदमी परेशान होता है। …उसने बोला, भीकाजी कामा प्लेस चले जाना, पासपोर्ट दे आना। पासपोर्ट दे आए हम, …वीजा लग गया…ऑफिस वाला हमें लेकर गया, उसके साथ एक रशियन लेडी भी थी।
रिपोर्टर : XXXX वाला आपको कहां तक लेकर गया?
सिराज : रशिया तक लेकर गया, …सेंट पीटर्सबर्ग।
रिपोर्टर : आप अकेले गए या कोई और भी था?
सिराज : भाई मुझे तो पता लगा कि मैं अकेला जाऊंगा, पर वहां देल्ही एयरपोर्ट पहुंचा तो देखा 16-17 लोग हैं। …मुंबई से, पंजाब से भी थे, …पंजाब से ज्यादा थे। देल्ही से भी थे।
रिपोर्टर : वो सब इसी ट्रेवल एजेसी के थे या अलग-अलग?
सिराज : भाई ये नहीं पता, मगर मेन आदमी वही था, जो लेकर जा रहा था।
सिराज (आगे) : उसका नाम था सुमित दहिया।
रिपोर्टर : देल्ही का रहने वाला?
सिराज : शायद सोनीपत का।
रिपोर्टर : रशियन आदमी कहां चला गया आपको इससे मिलाकर?
सिराज : नहीं, उसने नंबर दिया था सुमित दहिया का। उसका नाम था जितेंदर सहरावत, जो रशिया में रहता था।
रिपोर्टर : फिर सुमित दहिया और रशियन लेडी आपको देल्ही एयरपोर्ट लेकर गए?
सिराज : हां, उन लोगों ने हमारे पेपर कर रखे थे और बोला था कि कोई पूछे तो बोल देना कि ये रशियन लेडी हमारी बॉस है। …हम इनके साथ जा रहे हैं।
रिपोर्टर : तो आप सेंट पीटर्सबर्ग कितने दिन में पहुँचे?
सिराज : राजस्थान में रुके 16 आवर्स, फिर 1-1.5 दिन में सेंट पीटर्सबर्ग पहुंच गए थे।
रिपोर्टर : वहां सेंट पीटर्सबर्ग में क्या हुआ?
सिराज : वहां वो हमको पिकअप करने आया था, जिसने हमें नंबर दिया था- जितेंद्र सहरावत। वो पिकअप करने आया।
रिपोर्टर : आप भाषा तो समझ नहीं पाते होंगे, उनकी लेंग्वेज है रशियन?
सिराज : नहीं भाई।
रिपोर्टर : कैसे कम्युनिकेशन करते थे?
सिराज : हम उनसे बातचीत ही कहां करते थे। …वही करते थे, एक होता था ट्रांसलेटर उनके साथ।
रिपोर्टर : वो रशियन लेडी भी नहीं मिली आपको?
सिराज : नहीं, उसका काम सिर्फ एयरपोर्ट तक का था, …सेंट पीटर्सबर्ग एयरपोर्ट। वो वहाँ से ही वापस चली गई थी।
सिराज ने आगे बताया कि किस प्रकार वह यूक्रेन सीमा के निकट रूसी प्रशिक्षण केंद्र में पहुंचा। उन्होंने बताया कि उन्हें दस्तावेज प्राप्त हुए, फिर उन्हें रोस्तोव ले जाया गया, जहां दस दिनों तक सैन्य प्रशिक्षण दिया गया। अभ्यास में गोली चलाना, घरों पर हमला करना और हथियार चलाना शामिल था। उन्होंने उन बंदूकों के नाम बताए, जिनसे उन्हें प्रशिक्षण दिया गया था। सिराज ने बताया कि उन्हें पहले से इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि उन्हें इस तरह के अभ्यास के लिए मजबूर किया जाएगा।
रिपोर्टर : तो आपने जंग लड़ी यूक्रेन में?
सिराज : हां जी लड़ी। हम वहां रहे पांच महीने।
रिपोर्टर : सात दिन वहां रहे, फिर क्या हुआ? डाक्यूमेंट्स बन गए आपके?
सिराज : डाक्यूमेंट बन गए, फिर बोला आपको आगे जाना पड़ेगा। तब तक नहीं मालूम था हम कहां जा रहे हैं। …रशियन-यूक्रेन बॉर्डर पर एक जगह है रोस्तोव, वहां हमारी 10 दिन ट्रेनिंग हुई, …आर्मी की।
रिपोर्टर : उन्होंने क्या-क्या सिखाया?
सिराज : गोली चलाना, घरों पर कब्जा करना, वो एक स्केच बना देते थे कि घरों पर कब्जा कैसे करना है, …फायरिंग करना, …ये सब सिखाया।
रिपोर्टर : ये रशियन आर्मी आपको ट्रेनिंग देती थी?
सिराज : वहीं पर उनका सेंटर था। सब वहीं जाते थे।
रिपोर्टर : हथियार कौन सा था, जिससे ट्रेनिंग मिली आपको?
सिराज : एके12, एके 72, एक और थी, …उसको खोलना, बंद करना, सफाई करना, सब सिखा दिया था हमको।
अब रिपोर्टर ने सिराज से रूस में उनकी कमाई के बारे में पूछा। सिराज ने बताया कि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि प्रत्येक भर्ती को वास्तव में कितना मिला, क्योंकि प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव था। जब उनसे सीधे पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि उन्हें 16 लाख रूबल मिले हैं, जो मोटे तौर पर 15 लाख रुपये के आसपास है।
रिपोर्टर : पांच महीने में कितना कितना पैसा कमा लिया?
सिराज : असल में वहां किसी को ज्यादा मिला, किसी को कम। …हमें ये ही नहीं पता क्या हिसाब था।
रिपोर्टर : आपको कितना मिला?
सिराज : 16 लाख रूबल, ऐसे कुछ थे।
रिपोर्टर : मोटा-मोटा 15 लाख इंडियन करेंसी में?
सिराज : हां।
निम्नलिखित बातचीत में सिराज ने उसी एजेंट के साथ हुई तीखी झड़प को याद किया, जिसने उसे झूठे आश्वासन देकर रूस ले जाने का प्रलोभन दिया था। सेंट पीटर्सबर्ग के एक रेस्तरां में हुई यह झड़प गहरे गुस्से और विश्वासघात से उपजी थी, जो बाद में हिंसक हो गई। सिराज ने एजेंट पर आरोप लगाया कि उसने रूस में उसके इंतजार में मौजूद चीजों के बारे में उसे धोखा दिया है।
रिपोर्टर : एजेंट से दोबारा कॉन्टेक्ट नहीं किया आपने?
सिराज : भाई एजेंट से हाथापाई हुई दोबारा। वही रशिया में, …सेंट पीटर्सबर्ग में।
रिपोर्टर : क्या बोला वो?
सिराज : भाई उसको देखते ही गुस्सा आया, उसने हमें क्या बोला था और कहां भेज दिया। इसलिए हाथापाई हुई। एक रेस्टोरेंट में बैठा हुआ मिल गया था…।
निम्नलिखित बातचीत में सिराज ने बताया कि किस प्रकार एजेंटों ने रूस भेजने के बाद भी रंगरूटों का शोषण जारी रखा। उनका कहना है कि एजेंटों ने दो एटीएम कार्ड बनाकर उसमें से एक कार्ड पैसे निकालने के लिए अपने पास रख लिया था। उनके अनुसार, उनके अपने समेत कई लोगों के खातों से धोखाधड़ी करके बड़ी रकम निकाली गई। सिराज ने युद्ध में घायल या मारे गए लोगों के लिए मुआवजे की संरचना का भी उल्लेख किया है, तथा इस बात का चित्रण किया है कि किस प्रकार मानव जीवन को एक ठंडे लेन-देन में बदल दिया गया है।
रिपोर्टर : एजेंट का क्या फायदा अगर इन्होंने आपसे पैसे नहीं लिए तो?
सिराज : इन्होंने एटीएम कार्ड्स से पैसे निकाल लिए। इन लोगों ने 2 एटीएम कार्ड बनवाए, …एक हमें दे दिया, …एक अपने पास रख लिया। फिर इन्होंने लोगों के पैसे चोरी किए, …मेरे 50 हजार निकाले, किसी के 13 लाख, किसी के 14 लाख….।
सिराज (आगे) : रशिया में अगर किसी के पैर में गोली लगी है ना भाई, …या अगर वो जख्मी भी हो गया, तो उसको 30 लाख रूबल मिलते हैं। सेलरी से अलग। अगर शहीद हुआ तो 2 करोड़ रूबल्स देते हैं। भाई उन लोगों ने लोगों के सारे पैसे निकाल लिए।
रिपोर्टर : ये एटीएम कार्ड दो बनवाते थे, …आपको नहीं पता होता था?
सिराज : भाई उस वक्त दिमाग काम नहीं करता।
इस आदान-प्रदान से पता चलता है कि किस प्रकार भारतीय लोग रूसी अनुबंधों में फंस गए थे, जिन्हें वे समझ नहीं पा रहे थे, क्योंकि वे विदेशी भाषा में थे। सिराज बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद ही रिहाई सुनिश्चित हुई, अन्यथा उन्हें रिहा नहीं किया जाता। उन्होंने पूरी तरह से एजेंट के शब्दों पर भरोसा करके एक साल तक का कॉन्टेक्ट पूरी तरह से रूसी भाषा में लिखे गए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करके किया था।
रिपोर्टर : घर कैसे आए, उन्होंने छोड़ा कैसे?
सिराज : यहां से मोदी जी गए थे, वहां कॉन्टेक्ट हुआ था कि इनको रिलीज करो।
रिपोर्टर : नहीं, तो वो छोड़े नहीं?
सिराज : वो नहीं छोड़ते, वो बिलकुल नहीं छोड़ते।
रिपोर्टर म: कितने महीने का कॉन्टेक्ट था आपका?
सिराज : भाई वहां कॉन्टेक्ट हुआ था साल भर का, जो बताया गया था। सारे डाक्यूमेंट्स रशियन में थे। …हमको नहीं पता उसमें क्या लिखा है या नहीं। जो एजेंट था, उसने कहा यहां साइन कर दो, यहां कर दो।
सिराज के बाद तहलका रिपोर्टर ने दिल्ली के एक अन्य भारतीय जतिन आहुजा से बात की, जो यूक्रेन-रूस युद्ध में भाग लेने के बाद रूस से लौटे थे। जतिन के अनुसार, उसने 10-12 यूक्रेनी सैनिकों को मार डाला। हालांकि उसने कहा कि उसे नहीं पता कि यह दुर्घटनावश हुआ या गोली लगने से। उन्होंने तहलका को बताया कि ड्रोन हमले में उनके पैर में चोट लग गई थी, जिसका इलाज उन्होंने भारत में कराया। जतिन ने बताया कि कुल मिलाकर उन्होंने 23 अक्टूबर 2024 को भारत लौटने से पहले यूक्रेन-रूस युद्ध क्षेत्र और रूस में छह महीने से अधिक समय बिताया। उन्होंने दावा किया कि वह रूसी सरकार से बीमा राशि के रूप में 30 लाख रूबल पाने के हकदार हैं, क्योंकि रूसी कानून के अनुसार यह राशि ड्रोन के कारण पैर में चोट लगने पर किसी भी व्यक्ति को दी जाती है।
इस बातचीत में जतिन ने यूक्रेन में प्रत्यक्ष युद्ध में मजबूर किये जाने की बात कही है, जहां उसने दस से अधिक लोगों की हत्या करने की बात स्वीकार की है। उन्होंने बताया कि ड्रोन हमले में वे घायल हो गए थे, जिससे उनका पैर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और महीनों तक उसका इलाज नहीं हो सका। यहां तक कि वादा किया गया बीमा भुगतान भी कभी नहीं मिला। युद्ध की स्थिति में लगभग छह महीने बिताने के बाद वह अंततः दूतावास की मदद से भारत लौट आए।
रिपोर्टर : आपने कितने यूक्रेन के लोगों को मारा?
जतिन : मेरे हाथ से कम से कम 10-12, ….पहले दिन तो 4-5 ही गए थे। …उसके बाद उन्होंने मुझे 1 मंथ ड्यूटी नहीं दी, मुझे टांग पर लगी थी।
रिपोर्टर : मतलब 10-12 यूक्रेन के लोगों को आपने मार दिया, ….मतलब गोली चलाकर मारा?
जतिन : हां जी, वो भी फ्रंट पर नहीं, …फ्रंट पर तो पहले ही दिन हुई थी..12 ठीक को…., वो तुक्के से मरे हैं या कैसे, मुझे नहीं पता।
रिपोर्टर : अच्छा आपके पैर में भी लगा ड्रोन?
जतिन : वो मुझे बाद में लगा, …उसके बाद 2 महीने हम कमरे से ही नहीं निकले…।
रिपोर्टर : उसका इलाज आपने इंडिया में आकर कराया?
जतिन : हां, मेरे पैर की हालत खराब हो गई थी, खाल निकल गई थी, जिसमें मेरे ड्रोन का मैटल निकला है..।
जतिन (आगे) : मेरे पैर में, हाथ में ड्रोन लगा हुआ है। …इंश्योरेंस वाले मेरे पैसे भी नहीं दे रहे हैं, जो 30 लाख रूबल बनता है।
रिपोर्टर : टोटल कितने महीने रहे आप वहां पर?
जतिन : मेरे हिसाब से अगर वॉर जोन में लगा लोगे तो 4-5 मंथ्स रहा हूं मैं, … उसके बाद 1-1.5 मंथ्स रशिया में।
रिपोर्टर : 6 महीना मानकर चलो?
जतिन : 6 महीना प्लस लगाकर चलो।
रिपोर्टर : आप इंडिया कब आए?
जतिन : इंडिया में आया 23 अक्टूबर 2024 को, जो फ्लाइट मेरी इंडियन एंबेसी ने कराई।
जतिन के अनुसार, वो तहलका को जो कुछ भी बता रहे हैं, वह विशेष जानकारी है, जो भारत में किसी के पास नहीं है। उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया को केवल इस बात में रुचि है कि भारतीय एजेंटों ने उन्हें कैसे धोखा दिया, न कि इस बात में कि यूक्रेन-रूस युद्ध क्षेत्र में उन्हें किन अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। जतिन ने बताया कि एक पाकिस्तानी और एक अफगान नागरिक ने अपना मूत्र एक बोतल में भरकर रख लिया था, ताकि अगर उन्हें पानी न मिले तो वे उसे पी सकें। उन्होंने आगे बताया कि एक पाकिस्तानी ने भोजन के अभाव में भूख से व्याकुल होकर पेड़ के पत्ते खाए।
‘रात में ड्रोन हमलों के कारण हमें शाम 6 बजे के बाद शौचालय जाने की अनुमति नहीं थी। चूंकि पानी नहीं था, इसलिए मैं सप्ताह में केवल एक बार ही नहाता था।’ -जतिन ने कहा।
जतिन : मेरे पास बहुत चीजें हैं जो किसी को पता ही नहीं है।
रिपोर्टर : हां मुझे ऐसी ही चीजें चाहिए।
जतिन : जो रशियन आर्मी के अंदर के हाल हैं…, मतलब बहुत चीजें हैं आप सुनकर दंग रह जाओगे। अफगानिस्तान, पाकिस्तान सब जगह के बंदे हैं। एक अफगानी मुसलमान था, वो कह रहा था चार दिन मैंने खाना नहीं खाया, बाथरूम होता है वो मैंने अपनी बोतल में रखा था…कि पानी न मिले तो मैं ये पी जाऊंगा। वो खुलासा है जो किसी के पास न हो। रशियन आर्मी ने हमको बताया था कि आर्मी में काम नहीं करना लेकिन वेयरहाउस में करना है। …होल्डर का काम है रशियन आर्मी के वेयरहाउस में…, मेरे पास बहुत किस्से हैं।
रिपोर्टर : मीडिया वालों को इंटरव्यू नहीं दिया आपने?
जतिन : मीडिया वाले बोलते हैं कि बोलो हमको एजेंटों ने फंसा दिया। भाई मैं तो पूरी बात बताऊंगा….।
जतिन : एक जगह तो इंडियन नहीं लिए थे बाकी पाकिस्तान, अफगानिस्तान वाले की बात कर रहा था। …एक पाकिस्तान का था उसको खाना नहीं मिला था, वो पत्ते खा रहा था। उसने अपना बाथरूम भी पिया, …कई बंदों ने तो मक्खी वाला पानी पिया था अपने हाथों से उठाकर, …इंडियंस ने।
रिपोर्टर : पानी की दिक्कत है वहां?
जतिन : पानी की दिक्कत है। खाने की दिक्कत है…।
रिपोर्टर : खाना ठीक मिलता था?
जतिन : शुरू के दो महीने तो दोनों टाइम मिलता था, उसके बाद जैसे हाफ प्लेट राजमा चावल नहीं मिलता, बाजार में बस उतना ही मिलता था, …2 टाइम और वो भी एक हफ्ते बाद जाने के, …शुरू में 2-3 दिन तो खाना मिला ही नहीं, सिर्फ पानी या जूस या टमाटर खाते थे।
रिपोर्टर : इसका मतलब आपको झूठ बोलकर ले गए?
जतिन : हां, उसके बाद एक-डेढ़ महीने तो ठीक रहा, जैसे ही…समझ लो तीन महीने तो मैं नहाया ही नहीं, ….पोटी छुप-छुपकर करते थे।
रिपोर्टर : क्यूं?
जतिन : छुपकर करते थे कोई ड्रोन मार जाए, …रात में पोटी कर नहीं सकते थे, …6 बजे के बाद पोटी जाना अलाउड नहीं था।
रिपोर्टर : किसी का पेट खराब हो जाए तो?
जतिन : पहले ही कह देते थे सिस्टम बनाओ अपना…, खाओ मत। …रात में क्या होता था- हमारा कमांडर थोड़ा समझदार था। ढाई महीने मैं उसकी वजह से ही बचा हूं। …वो तो मर गया बेचारा।
जतिन ने खुलासा किया कि एजेंट जितेंद्र सहरावत उर्फ जीतू ने उन्हें रूस में जान से मारने की धमकी दी थी। उन्होंने कहा कि एजेंटों ने धोखाधड़ी से प्रत्येक भारतीय भर्ती के नाम पर दो एटीएम कार्ड बनाए और उनके बैंक खातों से पैसे निकाल लिए। जतिन ने बताया कि चूंकि वह अपना कार्ड ब्लॉक कराने में कामयाब रहे, इसलिए वे उनके खाते से पैसे निकालने में असफल रहे। उनके अनुसार, एजेंटों ने रूसी गोदाम में नियमित नौकरी के साथ-साथ जनसंपर्क, आवास और अन्य प्रोत्साहनों का वादा किया था, जो प्रस्ताव बाद में फर्जी साबित हुए। संक्षेप में जतिन ने कहा कि एजेंटों ने प्रभावी रूप से भारतीयों को रूसी सेना को बेच दिया था।
रिपोर्टर : आपके अकाउंट में पैसे आ रहे थे?
जतिन : पैसे आ रहे थे पर मैंने अपना अकाउंट ब्लॉक कर दिया था। मेरी घर में ही तीन महीने बाद बात हुई है। …मेरे घर वालों को तो पता ही नहीं था।
रिपोर्टर : तो कितने टोटल पैसे आपके अकाउंट में आ गए 5-6 महीने में?
जतिन : सर, मेरे अकाउंट में 14 लाख आए हैं टोटल.., 14 लाख रूबल थे तो उस टाइम इंडिया का रेट था 12.5 लाख, जिसमें से मेरा एजेंट निकालनहीं पाया, …क्यूंकि मेरा अकाउंट ब्लॉक था। कार्ड ब्लॉक किया था, …मैंने देव (फालो विक्टिम) से कहा ब्लॉक कर दे, बोला दिक्कत हो जाएगी। जो बंदा यहां ला सकता है, वो मरवा भी सकता है। …उस एजेंट ने हमें रास्ते में धमकी भी दी थी।
रिपोर्टर : कौन से एजेंट ने धमकी दी थी आपको?
जतिन : जीतू ने कहा था कि मैं सबको मरवा दूंगा।
रिपोर्टर : कहां? रशिया में?
जतिन : हां, रशिया में। जब हम जा रहे थे तो एक फोन मिला था, ..हम कैंप में जा रहे थे, एक बंदे का नेटवर्क था तो उसको फोन किया। जीतू ने फोन किया चाचा को कि मैं सबको मरवा दूंगा। …कोई जिंदा नहीं बचेगा, और यहां तक कि हमारा कोई लोन भी नहीं बनाया इंश्योरेंस का। मान लो हम मर जाते तो हमारा पैसा ये खुद खा जाते। …कार्ड मैंने ब्लॉक कर दिए। जीतू ने भारत के निकाले 13 लाख रूबल, देव भूषण के निकाले हैं…7 लाख रूबल निकाले हैं, ….राहुल के, जिसकी उंगलियां कट गईं, उसके निकाले हैं और श्रीकांत के सारे निकाल लिए, जो मर गया बेचारा। (हेयर, जतिन नेम्ड सम ऑफ हिज फालो इंडियंस- चाचा, भारत, देव भूषण एंड श्रीकांत- हू, लाइक हिम, हेड बीन टैकेन टू रशिया। श्रीकांत, ही सैड, हैड डैड इन वॉर।) यहां, जतिन ने अपने कुछ भारतीय साथियों- चाचा, भार, देव भूषण, राहुल और श्रीकांत के नाम बताए, जिन्हें भी उनकी तरह रूस ले जाया गया था। जतिनने बताया कि श्रीकांतयुद्धमें मारे गएथे।)
रिपोर्टर : एजेंट ने आपको रशियन आर्मी के हाथों बेच दिया। रशियन आर्मी ने आपको वॉर फ्रंट पर भेज दिया?
जतिन : हां जी, वॉर फ्रंट पर भेजने के बाद भी इन्होंने हमको नहीं छोड़ा, कई बंदों के कार्ड देकर पैसे भी निकलवाए हैं।
रिपोर्टर : अच्छा, एजेंट्स ने बहुत पैसा निकाल लिया होगा आपका?
जतिन : भाई एजेंट्स ने बहुत पैसा निकाला है। एक बंदे के 20 लाख रुपीज, …मैं वीडियो भेजूंगा कोई यादव था, …एक दिन मैं गया था रशियन एंबेसी में। वो कह रहे थे, तुम निकल रहे हो वही बहुत है, …तुम्हें पैसे कि पड़ी है।
रिपोर्टर : अच्छा आपने जो कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, उसमें ये था कि आप अपने देश जा सकते हैं?
जतिन : हमें पता ही नहीं, …हमने पढ़ा ही नहीं। उसमें कहा था तुमको पीआर मिल जाएगी देश तो तुम अपने जा सकते हो। प्लस आपको रशिया में क्वार्टर मिलेगा और आपने सिर्फ हेल्प करनी है। आपने लड़ने के लिए नहीं जाना। …अगर जिस हिसाब से लड़ने के लिए बुलाया था ना, उस हिसाब से 50 हजार सेलरी भी खम थी।
सिराज, जतिन और अन्य भारतीयों को रूस ले जाने में शामिल दो एजेंट जितेंद्र सहरावत और सुमित दहिया लापता हैं और उनके फोन नंबर भी बंद हैं। सिराज और जतिन के अनुसार, दोनों एजेंटों ने उन्हें रूसी सेना को बेच दिया और उनके खातों से बड़ी रकम भी निकाल ली। सिराज ने आगे आरोप लगाया है कि एक रूसी महिला, जो उन्हें दिल्ली से सेंट पीटर्सबर्ग ले गई थी, भी इस रैकेट का हिस्सा थी। तहलका रिपोर्टर ने सिराज और जतिन से बात की, जो 13 अन्य भारतीयों के साथ यूक्रेन-रूस युद्ध में लड़े थे और रूस द्वारा नियंत्रित डोनेट्स्क क्षेत्र के क्रास्नोहोरिवका शहर में तैनात थे।
रूस में इस तरह के वॉर जाल में फंसे अन्य लोगों ने भी तहलका रिपोर्टर से बात करने का वादा किया था, लेकिन रिपोर्ट लिखनै के समय तक उन्होंने हमारे रिपोर्टर से संपर्क नहीं किया। सिराज और जतिन के अनुसार, जब वे रूस छोड़कर भारत आने की तैयारी कर रहे थे, तो एक रूसी अधिकारी ने उनमें से सिराज और जतिन समेत चार को रूसी सरकार की ओर से स्वीकृति के रूप में कार्ड दिए, जो भविष्य में नागरिकता के लिए संभावित पात्रता का संकेत था। इतनी मुसीबतों से गुजरने के बाद भी दोनों व्यक्तियों का कहना है कि वे अभी भी रूसी पासपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं। इस बीच जतिन, जो ड्रोन हमले में घायल होने का दावा करते हैं, रूस से 30 लाख रूबल की बीमा राशि की उम्मीद कर रहा है।
वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि यूक्रेन-रूस युद्ध क्षेत्र विदेशियों से भरा हुआ है। उनका कहना है कि श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और अन्य स्थानों के नागरिकों को एजेंटों द्वारा रूसी सेना को बेचा जा रहा है, जो उन्हें सहायक, डिलीवरी बॉय या गोदाम कर्मचारी के रूप में काम दिलाने का झूठा वादा करते हैं। इसकी जगह उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध एक क्रूर युद्ध में धकेल दिया गया। कुछ लौट आए हैं, कुछ मर गए हैं और कुछ का कोई पता नहीं चल पाया है। लापता लोगों की तलाश जारी है और हर गुजरते दिन के साथ इस मानवीय त्रासदी का पैमाना और भी गहरा होता जा रहा है।