विद्यार्थियों के कल्याण के बारे में चिन्तित शिक्षा मंत्रालय ने देश भर में तेज़ी से बढ़ते डमी स्कूलों के लिए कई दिशा-निर्देशों की घोषणा की है। ये निर्देश तब आये, जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट आयी कि देश भर में हर 42 मिनट में एक विद्यार्थी ने अपनी जान ले ली। या दूसरे शब्दों में, हर दिन 34 विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं। इसका कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा और डमी स्कूलों में प्रवेश की आसान उपलब्धता है। इसके लिए कई कोचिंग सेंटर्स भी ज़िम्मेदार हैं, जो बिचौलिये के रूप में काम करते हैं। शिक्षा प्राप्त करने की यह दुर्भावना इतनी व्यापक है कि इंजीनियरिंग के लिए मेडिकल कॉलेजों में दाख़िला लेने के मक़सद से जेईई और एनईईटी जैसी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए हर साल दो लाख से अधिक विद्यार्थी राजस्थान के कोटा में पहुँचते हैं, जिनमें अधिकांश बिना आवश्यक उपस्थिति वाले डमी स्कूलों में प्रवेश लेते हैं और इन स्कूलों के प्रबंधकों का धन्यवाद करते हैं। सीयूईटी में सफलता पाने के लिए भी विद्यार्थी स्कूल छोड़कर कोचिंग सेंटर्स में दाख़िला लेकर पढ़ाई करते हैं। नये दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि कोचिंग सेंटर अब केवल कम-से-कम 16 वर्ष से ज़्यादा उम्र के विद्यार्थियों को ही दाख़िला दे सकते हैं। हालाँकि देश भर के कई कोचिंग सेंटर्स ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कक्षा आठ से लेकर 12वीं तक के बच्चों को दाख़िला दे रखा है।
‘तहलका’ की आवरण कथा ‘डमी स्कूलों का जाल’ कोचिंग सेंटर्स और डमी स्कूलों के बीच अनैतिक साँठगाँठ को उजागर करती है। हमारी एसआईटी ने गुप्त कैमरे में रिकॉर्ड किया कि कैसे पूरे भारत में कोचिंग सेंटर्स की मिलीभगत से डमी स्कूल फल-फूल रहे हैं। ‘तहलका’ एसआईटी ने कोचिंग सेंटर्स के साथ मिलकर संचालित होने वाले डमी स्कूलों की उत्सुकता की गहन पड़ताल की। कई कोचिंग सेंटर चलाने वालों ने डमी व्यवसाय में अपनी विशेषज्ञता का दावा करते हुए एनईईटी / जेईई परीक्षा की तैयारी के लिए हमारी टीम के अनुरोध पर प्रस्तावित (काल्पनिक) बच्चे को कोचिंग में इस तरह का दाख़िला दिलानेके लिए सहमति व्यक्त की और आश्वासन दिया कि बच्चे की सुविधा के लिए वे बिना पाठ्यक्रम और बिना उपस्थिति वाले सीबीएसई-संबद्ध डमी स्कूल में बच्चे का दाख़िला भी कराएँगे। एक गुप्त नेटवर्क के तहत ये कोचिंग सेंटर इस संदिग्ध गठजोड़ से लाभ के लिए विद्यार्थियों और डमी स्कूलों के बीच दलाली वाले समझौते की व्यवस्था करते हैं, जिससे बेईमान स्कूल और कोचिंग संचालकों को लाभ पहुँचता है। ये डमी स्कूल, जो अपेक्षित संख्या में शिक्षकों या स्कूल के लिए पर्याप्त जगह के बिना ही जमकर पैसा कमाते हैं; कोचिंग सेंटर्स को कमीशन भी देते हैं। जबकि इन स्कूलों में दाख़िला दिलाकर कोचिंग सेंटर विद्यार्थियों को ट्यूशन देने की सुविधाओं से अतिरिक्त लाभ उठाते हैं। विडंबना यह है कि यह सब हाल ही में देश भर में- दिल्ली, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड, असम और मध्य प्रदेश के कई असंबद्ध और डाउनग्रेड स्कूलों में सीबीएसई द्वारा औचक निरीक्षण करने के बावजूद हो रहा है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस बात से सहमत हैं कि डमी स्कूलों के मुद्दे को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और इस विषय पर गंभीर चर्चा करते हुए विचार-विमर्श करने का समय आ गया है। विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि नियमित स्कूलों से दूर रहने वाले विद्यार्थी अक्सर प्रतिबंधित व्यक्तित्व के होते हैं, जिससे वे उन्नति और वृद्धि के लिए संघर्ष करते हैं। यह रहस्योद्घाटन शिक्षा प्रणाली की अखण्डता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक बदलाव और कड़े नियमों की माँग करता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति और एयरोस्पेस वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने एक बार कहा था- ‘शिक्षण एक बहुत ही महान् पेशा है, जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है।’ आइए, हम उस ऊँचे आदर्श पर खरा उतरने का प्रयास करें!