किसानों को सीधा लाभ पहुँचाने वाला नहीं है बजट

योगेश

किसानों को केंद्र सरकार उनकी फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य अभी तक नहीं दे रही है, दूसरी तरफ़ वो पूँजीपतियों का अरबों रुपये का क़र्ज़ माफ़ कर चुकी है और यह सिलसिला अभी रुका नहीं है। अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, जिन्दल और जयप्रकाश जैसे उद्योगपति क़र्ज़ की रक़म नहीं चुकाते हैं, तो उनका क़र्ज़ माफ़ कर दिया जाता है और दूसरी तरफ़ किसानों को 10-15 हज़ार के क़र्ज़ के लिए भी जलील किया जाता है। इन दोनों स्थितियों से किसानों पर तो क़र्ज़ का बोझ लगातार बढ़ ही रहा है, बैंकों पर भी बोझ लगातार बढ़ रहा है। बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है, जिसका बोझ आम खातेदारों पर तरह-तरह के चार्ज लगाकर बैंक डालते हैं। पिछले 10 साल में बैंकों ने पूँजीपतियों के 12 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का क़र्ज़ माफ़ कर दिया। लेकिन किसानों का एक रुपया भी माफ़ नहीं किया है। पूँजीपतियों का सबसे ज़्यादा क़र्ज़ माफ़ करने वाली बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया है। स्टेट बैंक आफ इंडिया ने ही शॉर्ट बैलेंस के लिए सबसे ज़्यादा ग़रीबों से ज़ुर्माना वसूला है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार टॉप 100 डिफॉल्टरों के पास बैंकों के कुल एनपीए का 43 प्रतिशत क़र्ज़ बकाया है।

2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की गारंटी देने वाली केंद्र की मोदी सरकार ने इसी 01 फरवरी को अपना 11वाँ आम बजट और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने कार्यकाल का आठवाँ बजट प्रस्तुत किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए कई घोषणाएँ कीं; लेकिन इन घोषणाओं में एक भी ऐसी नहीं थी जिसमें किसानों को कोई बड़ी राहत मिलती नज़र आये। कृषि की कुल छ: नयी योजनाओं के ऐलान में वित्त मंत्री तो कह रही हैं कि किसानों को इससे फ़ायदा मिलेगा; लेकिन ऐसा लगता है कि किसानों पर क़र्ज़ ही बढ़ेगा। क्योंकि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट तीन लाख रुपये से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये की है। क्रेडिट कार्ड मतलब क़र्ज़ के लिए एक आसान सुविधा, जिसकी लिमिट हर किसान के लिए बराबर नहीं है और न ही हर किसान को क्रेडिट कार्ड मिला हुआ है। जब कुछ किसानों से किसान क्रेडिट कार्ड के बारे में पूछा गया, तो रंजीत नाम के एक किसान ने बताया कि उन्हें कोई क्रेडिट कार्ड नहीं मिला है। एक-दूसरे किसान ने कहा कि क्रेडिट कार्ड तो तब लेकर फ़ायदा हो, जब उन्हें उसका पैसा बिना ब्याज के भरना पड़े। ये तो बेवक़ूफ़ बना रहे हैं।

इस बार के कृषि बजट में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना लॉन्च की गयी है, जिसके तहत कम फ़सलें उगाने वाले 100 कृषि ज़िलों को विकसित करने की बात सरकार ने कही है। इस योजना के तहत इन ज़िलों के कम क़र्ज़ लेने वाले किसानों को क़र्ज़ लेने के लिए उत्साहित किया जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि इससे फ़सल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा; लेकिन कृषि जानकारों का मानना है कि इससे किसानों को क़ज़र्दार बनाया जाएगा। सरकार कह रही है कि इससे 1.7 करोड़ किसानों को फ़ायदा होगा; लेकिन कृषि जानकार कह रहे हैं कि इससे लाखों किसान क़र्ज़ के जाल में फंस जाएँगे।

कृषि जानकारों का मानना है कि अगर सरकार को किसानों की आय बढ़ानी है तो वो न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी क़ानून बनाकर स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले से किसानों की फ़सलें ख़रीदे और बीज, खाद, डीजल आदि उचित मूल्य पर बिना किसी समस्या और बाधा के समय पर उपलब्ध कराये। वित्त मंत्री ने इस बजट में अरहर, मसूर, उड़द जैसी दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए मिशन लॉन्च किया है, जिसके तहत छ: साल तक नेफेड और एनसीसीएफ जैसी सरकारी संस्थाएँ अगले चार साल तक दालें ख़रीदेंगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार में मखना बोर्ड बनाने की घोषणा की है। कहा जा रहा है कि इससे मखाना किसानों की दशा सुधरेगी और मखाने का बाज़ार बढ़ेगा। कृषि में नयी तकनीक के तहत रिसर्च पारिस्थितिकी तंत्र मिशन शुरू किया जाएगा, जिसके तहत फ़सलों की ज़्यादा पैदावार के लिए कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-सहिष्णु 100 से ज़्यादा क़िस्मों के बीजों को विकसित करने के लिए वित्त मंत्री ने पाँच साल का विशेष मिशन लॉन्च किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने असम के नामरूप में 12.7 लाख टन क्षमता वाला नया यूरिया संयंत्र लगाने को कहा है। इसके अलावा सरकार ने 60,000 करोड़ रुपये के समुद्री खाद्य निर्यात की योजना बनायी है, जिससे मछली उत्पादन को बढ़ावा मिल सके।

कृषि जानकार कह रहे हैं कि इस कृषि बजट से भी पिछली बार के सभी कृषि बजटों की तरह ही किसानों को कोई भी सीधा लाभ नहीं होने वाला। किसानों की दशा सुधारने के लिए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य तो देना ही चाहिए उनके पुराने कम-से-कम पाँच लाख तक के क़र्ज़े माफ़ होने चाहिए। इसके अलावा जिन किसानों की आय एक लाख रुपये प्रति माह से कम है, उन्हें बिना ब्याज के क़र्ज़ देना चाहिए। मेक इन इंडिया के तहत ग्रामीण कृषि सम्बन्धी उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। गाँवों में फूड प्रोसेसिंग और जैविक खेती को प्रोत्साहन देना चाहिए। किसानों के बच्चों की कम-से-कम 12वीं तक की शिक्षा बिलकुल मुफ़्त होनी चाहिए। कृषि यंत्रों पर से जीएसटी हटानी चाहिए और किसानों को बिना ब्याज के कृषि यंत्र उपलब्ध कराये जाने चाहिए। हालाँकि कृषि यंत्रों को क़र्ज़ पर लेने वाले किसानों की आय का भी ज़रिया देखा जाना चाहिए और बिना क़र्ज़ चुकाए उन यंत्रों के किसानों द्वारा बेचने पर पाबंदी होनी चाहिए।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजटीय भाषण में ग़रीबी से मुक्ति की बात कही, जिसके लिए उन्होंने कई अलग-अलग घोषणाएँ कीं। लेकिन कृषि क्षेत्र को जब तक किसानों के लिए एक लाभकारी उद्योग के रूप में नहीं बदला जाएगा, तब तक ग़रीबी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। 80 करोड़ से ज़्यादा लोगों को 5 किलो महीने का राशन और लगभग 9.5 करोड़ किसानों को 500 रुपये महीने की सम्मान राशि देने से ग़रीबी समाप्त नहीं हो सकेगी। केंद्र सरकार को अगर देश को सोने की चिड़िया बनाना है, तो कृषि क्षेत्र में वो सभी क्रांतिकारी क़दम उठाने होंगे, जिनकी किसान पिछले चार साल से माँग कर रहे हैं।

केंद्रीय आम बजट 2025-26 में कृषि क्षेत्र और किसानों के लिए ऐसा कुछ ख़ास नहीं दिखा, जिससे किसानों को कोई राहत सीधे तौर पर मिल सके। इस बजट में राज्यों की भागीदारी के साथ प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना नाम की न रह जाए, इसके लिए केंद्र सरकार को धरातल पर 100 नहीं, बल्कि देश के सभी 792 ज़िलों में कृषि कल्याण की योजनाएँ चलानी होंगी, जिससे कृषि और किसानों का समुचित विकास हो सके। किसानों के लिए बीज, खाद, कीटनाशक, डीजल, खुली बाज़ार व्यवस्था, न्यूनतम समर्थन मूल्य और बीज व फ़सल भंडारण की समुचित व्यवस्था करनी होगी। कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी क़दम उठाने के लिए केंद्र सरकार को कृषि बजट का एक-एक पैसा किसानों के हितों के लिए उनके लिए बनायी योजनाओं पर ख़र्च करना होगा। खाद आदि की सब्सिडी कम्पनियों को न देकर सीधे किसानों को देनी होगी और किसानों के परिवार के अलावा फ़सलों का बीमा मामूली प्रीमियम राशि पर अधिभार ख़ुद उठाकर कराना होगा। बीमा कम्पनियों को निर्देश देने होंगे कि उन्हें हर किसान की ख़राब फ़सल का मुआवज़ा बिना देरी किये पूरी फ़सल अनुमानित क़ीमत के साथ देना होगा।

असिंचित क्षेत्रों में नहरों की व्यवस्था दुरुस्त करके सिंचाई की व्यवस्था 50 से 60 रुपये बीघा के हिसाब से करनी होगी। किसानों पर बिना सिंचाई के सिंचाई बिलों का बोझ हटाना होगा। किसानों को क्रेडिट कार्ड देने की जगह बिना ब्याज के सीधे क़र्ज़ की योजना बनायी जानी चाहिए, जो बिना किसी गारंटी के किसानों के खाते में सीधे आना चाहिए। बिचौलियों के माध्यम से और रिश्वत लेकर कृषि ऋण देने वाले बैंकों के कर्मचारियों को निलंबित किया जाना चाहिए। किसानों की खतौनियों को गिरवी रखने वाले बैंकों को आदेश देना चाहिए कि वो किसानों की खतौनियाँ वापस करें। खुले बाज़ारों में जिन खाद्य पदार्थों का जो भी भाव हो, किसानों तक उसका कम-से-कम 50 प्रतिशत मिलना चाहिए। कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए इतनी सहूलियत करने के बाद किसानों को किसी तरह की मदद, सम्मान राशि और पाँच किलो महीने के राशन की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

आज देश के लगभग 16 लाख किसानों पर लगभग 21 लाख करोड़ से ज़्यादा क़र्ज़ है। ये क़र्ज़ देश में पूँजीपतियों के माफ़ किये गये क़र्ज़ से लगभग छ: लाख करोड़ ज़्यादा है। इस क़र्ज़ और फ़सलों का सही भाव न मिलने के चलते देश में हर साल लगभग 13,000 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं और हर साल लगभग 20,000 किसान खेती छोड़ रहे हैं। शहरीकरण और भूमि अधिग्रहण क़ानून के तहत पूँजीपतियों के कृषि योग्य भूमि पर क़ब्ज़ा करने की साज़िश के चलते कृषि का रक़बा घटता जा रहा है। इसके साथ ही देश में बंजर भूमि भी बढ़ती जा रही है। पेड़ों की संख्या भी कम हो रही है, जिससे बेमौसम बारिश, कम बारिश, ज़रूरत से ज़्यादा बारिश और सूखा समेत बाढ़ की समस्याएँ आज भी ख़त्म नहीं हुई हैं। कृषि क्षेत्र के कमज़ोर होने से कृषि और कृषि अधारित उद्योंगों में निरंतर ह्रास हो रहा है।

केंद्र सरकार को चाहिए कि कृषि बजट बढ़ाकर दोगुना करे और किसानों के हितों वाली योजनाएँ लाकर उनकी ग़रीबी दूर करने के उपाय करे। पिछला केंद्रीय कृषि बजट 1,52 लाख करोड़ था, जो कि हमारे कृषि प्रधान देश के कृषि क्षेत्रफल के हिसाब से काफ़ी कम था। इस बार का भी कृषि बजट खुलकर नहीं रखा गया। बजट का स्वरूप क्या है, इसकी जानकारी किसानों को होनी चाहिए, जिससे उन्हें पता चल सके कि सरकार ने उनके लिए क्या किया है और क्या सोचा है।