हिन्दुस्तान में धर्म का व्यापार क्यों फलता-फूलता है और किसकी शह पर फलता-फूलता है? इससे भी बड़ा सवाल है कि धर्म की आड़ में अवैध व्यापार किसकी शह पर फलता-फूलता है? क्योंकि पिछले 10-11 वर्षों से जिस प्रकार से न सिर्फ़ अवैध व्यापार फले-फूले हैं, बल्कि अवैध व्यापारी भी तेज़ी से हिन्दुस्तान में पनपे हैं, जो कि दूसरों के नाम से अपने काले धंधे करके अनाप-शनाप पैसा कमाने वाले ख़ूँख़्वार लोग कौन हैं? ऐसे लोगों का जब मीडिया में पर्दाफ़ाश होता है, तो उनकी ख़बरों को दबाने के लिए गोदी मीडिया से लेकर सत्ताएँ और उनका फालोवर एक बड़ा तबक़ा सामने आ जाता है। मसलन, गोतस्करी और गोमांस की तस्करी करने वालों में आज के तथाकथित संस्कारी वर्ग से आने वाले जैन, धनपति और कथित ब्राह्मणों में ही अनेक व्यापारी-बनियों के चेहरे ही अब तक सामने आये हैं। इन लोगों ने मुसलमानों की आड़ लेकर अपने क़त्लख़ानों के नाम अरबी और उर्दू में रखकर किसानों द्वारा सबसे ज़्यादा पाले जाने वाले पूज्य पशु गाय को टारगेट किया है। गोरक्षा के नाम पर पिछले कुछ वर्षों से जो ड्रामेबाज़ी इस देश में हुई, उससे पूरा देश वाक़िफ़ है।
आँकड़ों की मानें, तो गोमांस और गोवंश की तस्करी में दुनिया में जितने गोमांस का निर्यात होता है, उसका 27.5 फ़ीसदी से ज़्यादा हर साल क़रीब 24 लाख मीट्रिक टन गोमांस निर्यात अकेले हिन्दुस्तान करता है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, हिन्दुस्तान ने साल 2016 में कुल 1.09 करोड़ टन गोमांस का निर्यात किया था, और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2026 तक हिन्दुस्तान क़रीब 1.24 करोड़ टन गोमांस बढ़ाकर निर्यात करने की तरफ़ बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी के सत्ता में आने के बाद गोमांस की तस्करी और निर्यात दूसरे पशु-पक्षियों के मांस की तस्करी और निर्यात के अनुपात में सबसे तेज़ी से बढ़ा है। एक तरफ़ मोदी सरकार गोरक्षा का ड्रामा करती है, तो दूसरी तरफ़ वो बूचड़ख़ाने खोलने और उनके आधुनिकीकरण के लिए 15 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही है।
देश में सत्ता सँभालने से पहले नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वहाँ भी गोमांस निर्यात में गुजरात ने रिकॉर्ड तोड़ा था। मसलन, मोदी के गुजरात की सत्ता में आने से पहले साल 2001-02 में गुजरात का गोमांस निर्यात 10,600 टन था; लेकिन अगले ही 10 वर्षों में मोदी के वहाँ की सत्ता सँभालने के बाद 2011-12 में गोमांस का निर्यात 22,000 टन गुजरात में हो गया था। हाल यह है कि साल 2013 तक हिन्दुस्तान मांस निर्यात में ब्राजील से भी पीछे था, लेकिन साल 2014 में ही मोदी के सत्ता में आने के बाद ब्राजील से ज़्यादा मांस निर्यात हिन्दुस्तान करने लगा था। आज हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बन गया है। आँकड़े बताते हैं कि हिन्दुस्तान में गोमांस निर्यात हर साल तक़रीबन 12 फ़ीसदी बढ़ोतरी हो रही है। यानी केंद्र की मोदी सरकार ने गोमांस की तस्करी से गोरक्षा का ड्रामा करके बढ़ायी है। इतना ही नहीं, गोवंश की दुर्दशा भी गोरक्षा अभियान के बाद ही ज़्यादा होती दिख रही है। आज सड़कों पर मारी-मारी गायें भूखी-प्यासी गंदगी खाते हुए हर जगह दिख जाती हैं। दरअसल, आज़ाद हिन्दुस्तान में किसानों को गाय में 36 करोड़ देवी-देवता होने की धार्मिक किताब छापकर और ब्राह्मणों को गोदान की बात लिखकर गाँवों में युद्ध स्तर पर बँटवाकर ग्रामीणों में गायों के प्रति जो आस्था जगाने का ड्रामा किया गया, उससे गोमांस के निर्यात और तस्करी, गोवंश की तस्करी करने वालों को शह दी गयी। भाजपा ने सत्ता में आते ही इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया। हिन्दुओं में गाय को पूजने के साथ कई और भी बनावटी और झूठे प्रचार पहले ही थे। इससे किसान परिवार ख़ुद ग़रीबी में जीते हुए और क़ज़र्दार होते हुए भी अपने पशुधन, ख़ासतौर पर गायों को खिला-पिलाकर बढ़ा करके उनसे दूध-दही-घी-छाछ, खाद के लिए ज़्यादा गोबर और बछड़े मिलने के समय हाथ जोड़कर उन नयी दुधारू गायों को दान करते थे। इसी धार्मिक भावना का फ़ायदा कांग्रेस के बाद भाजपा ने ख़ूब उठाया और कांग्रेस की केंद्र सरकारों से भी 10 क़दम आगे बढ़कर गोमांस और गोवंश की तस्करी में अपने हाथ रंग लिये; लेकिन बड़ी चालाकी के साथ। अभी हाल ही में नोएडा में एक एसपीजी कोल्ड स्टोरेज से 185 टन से ज़्यादा गोमांस बरामद हुआ था, जिसका मालिक कोई पूरन जोशी निकला। इसी प्रकार से केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) द्वारा पंजीकृत 74 बूचड़ख़ानों में से कम-से-कम 9 बूचड़ख़ानों के मालिक हिन्दू हैं। जानकारी करने पर पता चला है कि यह सारी क़सरत सरकारी अनुदान लेने के लिए की जाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)