बिहार में भाजपा ने दिखाई ताकत

वैश्विक तनावों से अप्रभावित, भारत की राजनीतिक सुर्खियां घरेलू मैदान पर मजबूती से टिकी हैं और भाजपा अक्तूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए के भीतर प्रभुत्व कायम करने में कोई समय बर्बाद नहीं कर रही है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपने आत्मविश्वास से उत्साहित भाजपा सीट बंटवारे के मोलभाव में अपनी ताकत दिखा रही है, खासकर जद(यू) के साथ। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में जद(यू) के निराशाजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए भाजपा इस बार उसे केवल 90-95 सीटें ही दे सकती है, क्योंकि तब उसने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल 43 पर जीत हासिल कर पाई थी। इसके विपरीत, भाजपा ने 2020 में 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 74 सीटें जीत ली थीं।

हालांकि भाजपा की योजना लगभग 102-105 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की है, पार्टी ने नीतीश कुमार को भरोसा दिलाया है कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा वे ही बने रहेंगे, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस गारंटी का मतलब यह नहीं है कि जद(यू) को ज्यादा सीटें मिलेंगी। निर्वाचन क्षेत्रवार जीत की संभावना वाले आंतरिक सर्वेक्षण भाजपा की रणनीति का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

लोक जनश​क्ति पार्टी (रामविलास), जिसने 2020 में 134 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई, एनडीए में वापस आ गई है और 30 सीटों पर नजर गड़ाए हुए है। हालांकि भाजपा से उसे केवल 20-25 सीटों की पेशकश की उम्मीद है। एलजेपी का 2020 का मिशन – नीतीश कुमार को कमतर आंकना – पूरा हो गया है, और अब इसे गठबंधन अंकगणित के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है।

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) अब एनडीए का हिस्सा नहीं है, इसलिए उसने पहले जिन 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उन्हें अन्य सहयोगियों के बीच फिर से बांटा जाएगा, जिसमें जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम), उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम और संभावित नए प्रवेशकर्ता शामिल हैं। ऐसा लगता है कि रूपरेखा भाजपा ही बना रही है – और शर्तें भी तय कर रही है।