देश में कई सालों से सड़क निर्माण के लिए बड़ी कंपनियों को नियमों के विपरीत ठेके देने या सड़क निर्माण में घटिया किस्म की सामग्री इस्तेमाल करके भ्रष्टाचार करने के मामले सामने आते रहे हैं. पर इन दिनों छत्तीसगढ़ में सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार का एक ‘अभिनव’ मामला देखने को मिला है. यहां डेढ़ सौ किलोमीटर लंबी एक सड़क के चौड़ीकरण और कुछ हिस्सों में बायपास बनाने के लिए जो जमीन अधिगृहीत की गई है या की जानी है, उसका कई जगह भू-उपयोग बदल दिया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा मुआवजा हासिल किया जा सके.
आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय के अधीन कार्यरत नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने छत्तीसगढ़ के आरंग एवं सरायपाली मार्ग (डेढ़ सौ किलोमीटर) में चौड़ीकरण एवं बायपास के निर्माण का फैसला किया था. उसी समय 11 मई, 2011 को छत्तीसगढ़ शासन के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से एक राजपत्र प्रकाशित किया गया. इसमें उल्लेख था कि चौड़ीकरण एवं बायपास निर्माण के प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए उपखंड अधिकारी (अनुविभागीय अधिकारी) के स्थान पर सक्षम प्राधिकारी की तैनाती की जाएगी. राजपत्र का प्रकाशन होने के बाद नियमानुसार यह भी तय हो चुका था कि सक्षम प्राधिकारी की तैनाती के बिना भूमि का मूल स्वभाव यानी भू-उपयोग किसी भी प्रयोजन के लिए बदला नहीं जा सकेगा. यानी जमीन के अभिलेख में यदि कहीं यह उल्लिखित है कि अमुक खसरा नंबर पर चट्टान है या बड़े झाड़ का जंगल तो फिर वहां चट्टान और बड़े झाड़ के जंगल का होना अनिवार्य है.
इसी तरह जो खेती की जमीन है वह खेती की ही रहेगी और जो घर या व्यावसायिक भूमि है उसका भू-उपयोग भी जमीन अधिग्रहण से पहले बदला नहीं जा सकता. आरंग से सरायपाली मार्ग के चौड़ीकरण के मामले में उजागर होने वाली गड़बड़ी यही है कि शासन ने 11 मई, 2011 को सक्षम प्राधिकारी तैनात करने की सूचना प्रकाशित तो की लेकिन प्राधिकारी नियुक्त नहीं किया. वहीं 23 दिसंबर, 2011 को जारी किए गए एक दूसरे राजपत्र में भू-व्यपवर्तन (भू-उपयोग में परिवर्तन) के लिए अनुज्ञा (आदेश) जारी करने का अधिकार भू-अभिलेख अधीक्षक, तहसीलदार, अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व ) एवं कलेक्टर को सौंपा गया. इस तरह से 11 मई से 23 दिसंबर की अवधि भू-व्यपवर्तन के लिए प्रतिबंधित थी. इस मामले में भ्रष्टाचार का मामला इसी समयावधि का है. दरअसल इस दौरान महासमुंद जिले की पिथौरा तहसील में पदस्थ रहे अनुविभागीय अधिकारी बीबी पंचभाई ने 40 से ज्यादा लोगों की जमीन के भू-उपयोग को बदल दिया और सरकार को करोड़ों रुपये की चपत लगाने की पृष्ठभूमि तैयार कर दी.
सामान्य तौर पर नियम है कि यदि कोई आवेदक अपनी जमीन के भू-उपयोग में परिवर्तन करवाना चाहता है तो इसके लिए वह सबसे पहले भू-अभिलेख कार्यालय की डायवर्जन शाखा में आवेदन लगाएगा. शाखा में कार्यरत अधिकारी आवेदन की जांच-पड़ताल के बाद उसे अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के पास भेजेंगे, लेकिन यहां चालीस से ज्यादा आवेदन सीधे पिथौरा तहसील के तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी बीबी पंचभाई के समक्ष लगाए गए.
भू-उपयोग में परिवर्तन के दौरान कृषि भूमि को टिन नंबर, बैंक लोन के कागजात या उद्योग पंजीयन देखे बिना ही व्यावसायिक भूमि में बदलने के कई मामले हैं
हमने जब राजस्व विभाग की दायरा पंजी ( इसमें जमीन के व्यपवर्तन से संबंधित सूचना यथा मामले के प्रारंभ होने की तारीख, गांव का नाम, रकबा, खसरा, भूमि स्वामी का नाम, निराकरण की तारीख आदि दर्ज की जाती है) का अवलोकन किया तो कई चौंकाने वाले तथ्य मिले. दायरा पंजी के क्रमांक 43 में उल्लिखित है कि ग्राम लहरौद के चतुर्भुज अग्रवाल ने अपनी 0.20 हेक्टेयर कृषि भूमि को व्यावसायिक प्रयोजन में बदलने के लिए 28 मई, 2011 को आवेदन लगाया था (जबकि 11 मई, 2011 की प्रतिबंधित अवधि के बाद किसी भी आवेदन पर विचार नहीं हो सकता था), चतुर्भुज अग्रवाल के इस आवेदन पर कार्रवाई करते हुए महज 15 दिन में उनकी खेती की जमीन व्यावसायिक घोषित कर दी गई. ऐसे ही कई प्रकरण दायरा पंजी में दर्ज हैं. पिथौरा तहसील के ग्राम राजा सेवैया में खसरा क्रमांक 246 /1 एवं 246/2 पर सरकारी जमीन का होना दिखता है लेकिन अब यह मालती और दयामती के नाम पर चढ़ चुकी है. इसी तरह दायरा पंजी के क्रमांक 59 में 0.66 हेक्टेयर परती भूमि मोहनलाल अग्रवाल पिता रामअवतार अग्रवाल निवासी पिथौरा की बताई गई है. उल्लेखनीय है कि मोहन भाजपा के जिलाध्यक्ष शंकरलाल अग्रवाल के भाई हैं. उनका प्रकरण कब शुरू हुआ इसका जिक्र भी दायरा पंजी में नहीं है, अलबत्ता यह जरूर उल्लिखित है कि उनकी जमीन 22 जून, 2011 को व्यावसायिक कर दी गई.
इस क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता अमरजीत चावला तहलका से बातचीत में कहते हैं, ‘चौड़ीकरण एवं बायपास के निर्माण की जद में आने वाली जमीनों के प्रभावितों को उनकी जमीन के स्वभाव के हिसाब से मुआवजा मिलता सो आनन-फानन में पड़त और कृषि भूमि को आवासीय अथवा व्यावसायिक कर दिया गया वह भी यह जाने बगैर कि जहां की जमीन व्यावसायिक बताई जा रही है वहां पहुंच मार्ग अथवा बिजली-पानी की सुविधा है भी या नहीं.’ चावला आगे यह भी आरोप लगाते हैं कि इस पूरी कवायद में सरकार और भाजपा से जुड़े प्रभावशाली लोगों को फायदा पहुंचाया गया है.
वैसे तो दायरा पंजी में गड़बड़ी के अनेक बिंदु हैं लेकिन दो ऐसे हैं जो बताते हैं कि पिथौरा के अनुविभागीय अधिकारी बीबी पंचभाई ने आवेदनों के निराकरण की जल्दबाजी में कई गड़बड़ियां की हैं. अनुविभागीय अधिकारी ने यह जांचने-पखरने की कोशिश भी नहीं की कि जो लोग अपनी जमीन का व्यपवर्तन करवा रहे हैं वास्तव में जमीन का स्वभाव उस रूप में है अथवा नहीं. पड़त या कृषि भूमि को व्यावसायिक बनाने वालों ने अपने उद्योग के पंजीयन, टिन नंबर, बैंक से लिए गए ऋण आदि के दस्तावेज जमा किए हैं या नहीं. महासमुंद जिले के भू-अभिलेख शाखा के प्रभारी केआर देवांगन कहते हैं, ‘वैसे तो भू- व्यपवर्तन करवाने वाले आवेदकों को अपना पहला आवेदन भू-अभिलेख कार्यालय की डायवर्जन शाखा में ही देना था. नियमानुसार कुछ आवेदन तो डायवर्जन शाखा में लगे थे लेकिन वे आवेदन जो सीधे अनुविभागीय अधिकारी के समक्ष लगाए गए थे उन पर डायवर्जन शाखा की ओर से किसी तरह की जांच- पड़ताल नहीं की गई सो कृषि या आवासीय भूमि को व्यावसायिक किए जाने के संबंध में किसी भी तरह का दस्तावेज भू-अभिलेख कार्यालय में मौजूद नहीं है.’
गड़बड़ी का दूसरा बिंदु मामलों के प्रारंभ होने की तारीख से जुड़ा हुआ है. दायरा पंजी के प्रकरण क्रमांक 44 से लेकर 70 तक में किसी भी मामले के प्रारंभ होने की तारीख ही नहीं डाली गई है. अर्थात यह स्पष्ट नहीं है कि जमीनों के व्यपवर्तन के लिए आवेदकों ने किस तारीख को आवेदन लगाया.
पिथौरा के तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी (वर्तमान में महासमुंद ) बीबी पंचभाई से जब तहलका ने दायरा पंजी में अंकित किए गए विवरणों में गड़बड़ी की सच्चाई जानने की कोशिश की तो उन्होंने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार करते हुए कहा, ‘लिपकीय त्रुटियों के चलते विवरण को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया कभी-कभी गड़बड़ा जाती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि भू-व्यपवर्तन के लिए रिकार्डों में हेराफेरी हुई है.’ क्या राजपत्र के प्रकाशन के बाद प्रतिबंधित अवधि में भू-व्यपवर्तन की कार्रवाई की जा सकती है, इस सवाल पर पंचभाई सिर्फ इतना कहते हैं, ‘यदि शासन चाहे तो क्या नहीं हो सकता.’ जबकि नई दिल्ली स्थित नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चीफ जनरल मैनेजर एवं भू- अधिग्रहण समन्वयक वीके शर्मा तहलका से बातचीत में साफ कहते हैं, ‘यदि राजपत्र के प्रकाशन से पहले कोई आवेदक राज्य के राजस्व महकमे के अधिकारियों को इस बात की ताकीद करता है कि उसकी भूमि को गलती से पड़त या कृषि भूमि बताया जा रहा है तो वह अपनी भूमि को अन्य प्रयोजन के लिए परिवर्तित करवा सकता है, लेकिन इस परिवर्तन के लिए भी आवेदक को आवश्यक दस्तावेजों के जरिए यह साबित करना होता है कि व्यावसायिक भूमि किस लिहाज से व्यावसायिक है.’ पिथौरा के वर्तमान अनुविभागीय अधिकारी कृष्णदास वैष्णव राजपत्र प्रकाशन के बाद भू-उपयोग में बदलाव पर प्रतिबंध की बात का समर्थन करते हुए कहते हैं, ‘यदि राजपत्र में प्रकाशन की प्रक्रिया के बाद भू-व्यपवर्तन की कार्रवाई को प्रतिबंधित नहीं माना जाएगा तो हर कोई अपनी जमीन के स्वभाव को बदलने की जुगत में लगा रहेगा और सरकारी पैसों को चूना लगाता रहेगा.’
वैसे मार्ग के चौड़ीकरण एवं बायपास निर्माण के लिए आरंग-सरायपाली और बसना इलाके के कुल 96 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया जाना है. अधिग्रहण के लिए फिलहाल 71 करोड़ 40 लाख 38 हजार 73 रुपये जारी किए जा चुके हैं. जिला प्रशासन ने लगभग 900 प्रभावितों को इस रकम में से करबी 28 करोड़ रुपये बांट भी दिए हैं. अभी 43 करोड़ से भी ज्यादा रकम का वितरण शेष है. मुआवजे के लिए फर्जीवाड़ा किए जाने की भनक लगने के बाद जिला कलेक्टर आर संगीता ने मामले की छानबीन के आदेश दे दिए हैं. लेकिन अभी तक यह साफ नहीं है कि बाकी रकम असली प्रभावितों को मिल पाएगी या नहीं.