भालुओं की तस्करी जारी है

– भारत में वन्यजीव शिकारी और तस्कर भालुओं और उनके अंगों की कर रहे तस्करी!

इंट्रो- भालुओं, ख़ासकर आलसी भालुओं का भारत में अवैध शिकार लगातार हो रहा है। शिकारी और वन्यजीव तस्कर सरकारों और वन विभाग की आँखों में धूल झोंककर भालुओं और उनके अंगों की तस्करी करते हैं। ये शिकारी और तस्कर भालुओं का शिकार करके उनके अंगों और भालुओं के बच्चों को पकड़कर दुनिया के कई देशों में भेजते हैं। भालुओं के शरीर के अंगों से कुछ देशों में पारंपरिक दवाएँ और सूप जैसी चीज़ें बनती हैं, जिनकी विदेशों में माँग बढ़ रही है। यह सरकारों, वन्यजीव संरक्षकों और पर्यावरणविदों के लिए ही नहीं आम समाज के लिए भी गहन चिन्ता का विषय है। पढ़िए, भारत में भालुओं के शिकार और तस्करी का ख़ुलासा करने वाली तहलका एसआईटी की यह ख़ास रिपोर्ट :-

‘वियतनाम में बीयर बाइल (भालू पित्त रस) नाम का एक फार्म है, जहाँ 1,000 भालुओं को छोटे-छोटे पिंजरों में रखा जाता है और उनके पित्ताशय से पित्त निकाला जाता है। पित्त का उपयोग दवा बनाने में किया जाता है, दावा किया जाता है कि यह यौन क्षमता को बढ़ाता है। धनी और नि:संतान दम्पति इन दवाओं के लिए 50,000 रुपये तक का भुगतान करते हैं। यह प्रथा चीन और वियतनाम दोनों में आम है।’ -यह बात ‘तहलका’ रिपोर्टर को वाइल्ड लाइफ एसओएस के संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजूराज एम.वी. ने बतायी।

‘अवैध शिकार और मादक पदार्थ एक विशाल उद्योग के रूप में विकसित हो गये हैं, जो बड़े धन से संचालित होते हैं। इसमें वन्यजीव व्यापार, वन्यजीव उत्पादों का व्यापार शामिल है। बाज़ार में हर चीज़ किसी-न-किसी उद्देश्य से बेची जाती है। हाल ही में चीन और इंडोनेशिया जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से भारत में अवैध वन्यजीव व्यापार में वृद्धि हुई है।’ -बैजूराज ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया।

‘आलसी भालू का अवैध शिकार आमतौर पर नवंबर और दिसंबर में होता है, जब मादा भालू शावकों को जन्म देती है। भालुओं के अपनी माँद से बाहर आने के बाद शिकारी उनके शावकों को चुरा लेते हैं और माँ को मार देते हैं, उसके शरीर के अंगों का व्यापार करते हैं और शावकों को बिचौलियों को बेच देते हैं।’ -बैजूराज ने आगे बताया।

‘ख़ाना-ब-दोश जनजाति कलंदर के लोग भालुओं का नृत्य लोगों को दिखाने के उद्देश्य से नर भालुओं की आक्रामकता को कम करने और उन्हें अधिक मिलनसार बनाने के लिए उनको बधिया (नंपुसक) कर देते थे, जिससे उन्हें नृत्य प्रदर्शनों में इस्तेमाल किया जा सके।’ -यह बात वाइल्ड लाइफ एसओएस के विजिटर एवं वालंटियर प्रोग्राम के प्रमुख समन्वयक हरेंद्र सिंह ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बतायी।

‘चीनी व्यापारी आलसी भालुओं के बच्चों के पंजों से जूस बनाते हैं और वयस्क आलसी भालुओं के पित्ताशय का उपयोग दवाइयाँ बनाने के लिए करते हैं।’ -हरेंद्र सिंह ने ख़ुलासा किया।

‘पहले अवैध शिकार कलंदरों के माध्यम से किया जाता था। शिकारी उनके पास आते, कुछ पैसे देते और भालुओं को ले जाते। हालाँकि अवैध शिकार की प्रणाली विकसित हो गयी है। अब यह राष्ट्रीय उद्यानों के माध्यम से हो रहा है, जहाँ आलसी भालू बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।’ -हरेंद्र ने बताया।

04 मार्च, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के जामनगर ज़िले में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा स्थापित वन्यजीव केंद्र का उद्घाटन करने के बाद अद्वितीय वन्यजीव संरक्षण, बचाव और पुनर्वास केंद्र वनतारा की प्रशंसा की। यह पहल 30 वर्ष पहले कार्तिक सत्यनारायण द्वारा वन्य जीव संरक्षण के लिए शुरू की गयी पहल का अनुसरण है। कार्तिक सत्यनारायण ने सन् 1995 में गीता शेषमणि के साथ मिलकर ग़ैर-लाभकारी संगठन वाइल्ड लाइफ एसओएस की स्थापना की थी। आज वाइल्ड लाइफ एसओएस भारत में भालू संरक्षण के लिए कई परियोजनाएँ चला रहा है, जिसमें आगरा में भालुओं के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पुनर्वास केंद्र भी शामिल है। उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से सन् 1999 में आगरा में स्थापित वाइल्ड लाइफ एसओएस द्वारा भालू बचाव अभियान के तहत वर्तमान में बचाये गये 88 भालू हैं। यह परियोजना उन आलसी भालुओं का पुनर्वास सुनिश्चित करती है, जिन्हें कभी नृत्य करने वाले भालू के रूप में वश में किया गया था या वन्यजीव तस्करों से छुड़ाया गया था। यह कलंदर समुदाय के आदिवासी परिवारों को वैकल्पिक आजीविका सहायता भी प्रदान करता रहा है, जिनकी बस्तियों और सड़क किनारे लोगों और पर्यटकों को लुभाने की सदियों पुरानी भालुओं को नचाने की परंपरा थी, जिसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 के तहत अवैध घोषित कर दिया गया था। अब आलसी भालुओं को वन्यजीव क़ानूनों के तहत उच्च स्तर की सुरक्षा प्राप्त है। सन् 2009 में वन्यजीव एसओएस ने अंतिम नाचने वाले भालू आदित को बचाकर एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, जिसके साथ ही भारत में इस प्रथा का अंत हो गया।

आलसी भालू को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट (ख़तरा सूची) में असुरक्षित के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित किया गया है। ऐसा अनुमान है कि भारत के जंगलों में 6,000 से 11,000 तक भालू हैं। आज आलसी भालू केवल भारतीय उपमहाद्वीप नेपाल और श्रीलंका में एक उप-प्रजाति के रूप में पाये जाते हैं। वैश्विक आलसी भालू आबादी के लगभग 90 प्रतिशत भालू भारत में पाये जाते हैं। दुर्भाग्यवश आलसी भालुओं का उनके शरीर के अंगों के लिए अभी भी अवैध शिकार हो रहा है। नाचने वाले आलसी भालुओं की बरामदगी की बढ़ती संख्या भारत में अवैध वन्यजीव व्यापार के बारे में चिन्ता पैदा करती है। कड़े क़ानूनों, वन विभाग और वन्यजीव एसओएस के ठोस प्रयासों के बावजूद भालुओं का अवैध शिकार जारी है।

आलसी भालुओं का अवैध शिकार उनके शरीर के अंगों के लिए किया जाता है। चीन और वियतनाम में भालुओं के पित्ताशय की बहुत माँग है, जहाँ पारंपरिक दवाएँ बनाने के लिए पित्त निकाला जाता है। भालुओं के बच्चों के पंजे का उपयोग जूस (सूप) बनाने के लिए भी किया जाता है। अवैध शिकार की वास्तविकताओं को उजागर करने के लिए ‘तहलका’ एसआईटी ने दुनिया के सबसे बड़े भालू बचाव केंद्र की यात्रा की, जो आगरा से 17 किलोमीटर पश्चिम में सूर सरोवर पक्षी अभयारण्य में स्थित है। इस अभयारण्य को कीठम झील के नाम से भी जाना जाता है। बचाव केंद्र में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाक़ात वाइल्ड लाइफ एसओएस के आगंतुक एवं स्वयंसेवक कार्यक्रम के प्रमुख समन्वयक हरेंद्र प्रताप सिंह से हुई।

हरेंद्र, जो पिछले 10 वर्षों से भालू अभयारण्य से जुड़े हैं; ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत में आलसी भालुओं के अवैध व्यापार में शामिल वीभत्स प्रथाओं पर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार शिकारी और तस्कर उनके पित्ताशय को निकालते हैं तथा पित्त रस को चाइनीज दवाओं में उपयोग के लिए बेच देत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अवैध शिकार के दौरान नर और मादा भालुओं के आक्रमण को रोकने के लिए किस प्रकार युवा और नवजात भालुओं को निशाना बनाया जाता है; यहाँ तक कि उनकी माँओं के साथ ही उन्हें भी मार दिया जाता है।

रिपोर्टर : अच्छा, हरेंद्र जी! आप इल्लीगल ट्रेड (अवैध व्यापार) के बारे में बता रहे थे; ….स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) का इल्लीगल ट्रेड क्या है?

सिंह : गाल ब्लैडर (पित्ताशय की थैली), …पित्ताशय निकालते हैं। …वो पूरा गाल ब्लैडर निकाल लेते हैं, उसके बाद उसका जो बिले जूस (पित्त रस) होता है, उसका जो जूस होता है, वो चाइनीज मेडिसिन्स (चीनी दवाओं) में यूज (इस्तेमाल) होता है।

रिपोर्टर : उसके बाद बीयर अलाइव (भालू ज़िन्दा) रहता है?

सिंह : कौन रहेगा? वो मार जाएगा। ऑपरेशन करके थोड़ी निकाल रहा है, जो मार रहा है, वो निकाल रहा है।

रिपोर्टर : तो वो यंग बीयर (जवान भालू) के साथ भी करते थे या जिनका लाइफ स्पैन (जीवन-काल) ख़त्म होने वाला होता है?

सिंह : नहीं-नहीं; यंग के साथ भी करते हैं। छोटे बच्चों को तस्करी करके वो वहाँ सूप बनाते हैं; …अब बच्चा जब माँ के साथ होगा, तो माँ छोड़ेगी नहीं उसको, तो इस वजह से वो माँ को भी मारेंगे।

हरेंद्र के अनुसार, पित्ताशय की मुख्य माँग चीन से आती है, शिकारी नेपाल, कंबोडिया वियतनाम के रास्ते चीन पहुँचते हैं।

रिपोर्टर : स्मगलिंग (तस्करी) सिर्फ़ चाइना में होती है?

सिंह : चाइना से डिमांड होता है, पर वो नेटवर्क कैसे फैला हुआ है, कि यहाँ से नेपाल जाना है, नेपाल से किस रूट से जाएँगे कंबोडिया, वियतनाम, जहाँ से भी।

अब हरेंद्र ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि चीन में पारंपरिक दवा बनाने के लिए स्लॉथ (आलसी) भालू के पित्ताशय का इस्तेमाल किया जाता है और भालू के बच्चे के पंजे का इस्तेमाल सूप बनाने के लिए किया जाता है।

रिपोर्टर : फाइनल डेस्टिनेशन चाइना था उनका?

सिंह : डिमांड चाइना से थी।

रिपोर्टर : गाल ब्लैडर का यूज या तो सूप या मेडिसिन…?

सिंह : सूप बनाते थे पॉ (पंजे) का, भालू के बच्चे के पॉ का। गाल ब्लैडर से वो चाइनीज मेडिसिन बनाते थे।

रिपोर्टर : वो मेडिसिन का यूज क्या होता था?

सिंह : डिफरेंट थिंग्स (अलग-अलग चीज़ें); …मोस्टली वुमन (ख़ासकर महिलाओं) के लिए बनाते हैं। …अगर बेबी (बच्चे) नहीं हो रहे हैं, तो उनके लिए अलग-अलग ह्यूमंस (इंसानों) के लिए भी बना रहे हैं; …अलग-अलग चीज़ों के लिए।

यह पूछे जाने पर कि क्या उत्तर प्रदेश वन विभाग और वन्यजीव एसओएस के कई प्रयासों के बावजूद स्लोथ भालुओं का अवैध शिकार अभी भी जारी है? हरेंद्र ने स्पष्ट रूप से हाँ कहा।

रिपोर्टर : और ये अभी भी हो रहा है?

सिंह : ऑफकोर्स (बिलकुल), आप कह सकते हैं; क्यूँकि स्टिल बाइल फार्म्स (शान्त पित्त फार्म) चल रहे हैं। …जो मोस्टली वियतनाम में है। …सन बीयर्स (धूप में रहने वाला भालुओं) पर भी यही करते हैं। वहाँ तो प्रॉपर फार्म्स हैं। भालूओं को पिंजरे में रखा हुआ है और कोर्ड (तार) लगायी हुई है। उससे बाइल कलेक्ट (पित्त इकट्ठा) कर रहे हैं। उसको हैंड फीडिंग (हाथ से भोजन) कराएँगे और बाइल-वाइल (पित्त-वित्त) क्या है? खाना डाइजेस्ट करने के लिए वही तो कलेक्ट (इकट्ठा) कर रहे हैं वो।

हरेंद्र ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि सन् 2009 के बाद से आगरा भालू अभयारण्य में कलंदरों द्वारा पारंपरिक नृत्य में इस्तेमाल किया जाने वाला कोई भी भालू नहीं आया है। लेकिन हाँ, उन्हें वन विभाग द्वारा शिकारियों से बचाये गये भालू मिले।

रिपोर्टर : वैसे आपने काफ़ी बीयर्स (भालुओं) को रेस्क्यू किया (बचाया) है; पर अभी भी ट्रैफिकिंग (तस्करी) का तरीक़ा क्या है?

सिंह : अब तो एक्टिव (सक्रिय) हो गया है फॉरेस्ट डिपार्टमेंट (वन विभाग)। अभी तो इतना नहीं होता। पहले क्या हो रहा था, …डांसिंग बीयर ट्रेडिशन (भालू नचाने का चलन) था। इसलिए पर्चेज (ख़रीदारी) का नेटवर्क था। वट नाउ द गवर्नमेंट डिपार्टमेंट इज एक्टिव (लेकिन अब सरकारी महकमा सक्रिय है)। अभी 2009 के बाद हमारे पास कोई भी डांसिंग बीयर्स (नाचने वाले भालू) नहीं आये, इट मीन्स (इसका मतलब है कि) कोई भी भालू नाचने के लिए यूज नहीं हो रहे; बट ऐसा नहीं था कि 2009 के बाद कोई भालू नहीं आया हो। …वी गॉट सम बीयर, बट नॉट फ्रॉम डांसिंग बीयर ट्रेड (हमें कुछ भालू मिले; लेकिन नाचने वाले भालू के व्यापार से नहीं)। दोज विल बी सीज्ड वाई द फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ऐंड दोज विल बी गिव टू अस फॉर लाइफ टाइम केयर (उन्हें वन विभाग द्वारा ज़ब्त कर लिया जाएगा और उन्हें दिया जाएगा) बिकॉज (क्योंकि) उन बच्चों का तस्करी हो रहा था, तो उनको वो जंगल में दोबारा नहीं छोड़ सकते। अगर अडल्ट बीयर (वयस्क भालू) होता, तो शायद वो जंगल में छोड़ देते, अगर कोई 2-3 साल का भालू है, तो वो सर्वाइव कर (बच) जाएगा; मगर दो-तीन मंथ्स (महीने) का है, सो हाउ दे कैन सर्वाइव (तो वे कैसे जीवित रह सकते हैं)।

अब हरेंद्र ने ख़ुलासा किया कि आलसी भालू राष्ट्रीय उद्यानों में उपलब्ध हैं। लेकिन वे राष्ट्रीय उद्यानों में भी सुरक्षित नहीं हैं; क्योंकि शिकारी राष्ट्रीय उद्यानों से भी उनका शिकार कर रहे हैं।

रिपोर्टर : स्लॉथ बीयर डाइरेक्टली अवेलेबल (आलसी भालू सीधे उपलब्ध) हैं जंगलों में?

सिंह : जंगलों में तो अवेलेबल हैं ही, उसके लिए आप कैसे न कह सकते हैं। आप रणथंभोर चले जाइए, बेंगलूरु चले जाइए, दारोजी चले जाइए; मिल जाएँगे।

रिपोर्टर : सेंचुरीज (अभयारण्डों) से कैसे बीयर (भालू) स्मगलिंग (तस्करी) हो रहे हैं?

सिंह : इंडिया (भारत) में सब कुछ होता है।

अब हरेंद्र ने ‘तहलका’ संवाददाता को बताया कि भालुओं के आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए कलंदर उनको बधिया (नंपुसक) बना रहे हैं, ताकि वे आसानी से उनके इशारों पर नाच सकें।

रिपोर्टर : सुनने में आया था कि ये जो कलंदर थे, वो इनके अंडकोष निकाल लेते थे?

सिंह : हाँ; वो कैस्ट्रैशन (बधिया) करते थे। नॉट जस्ट फॉर ब्रीडिंग, बट टू अवॉइड एग्रेशन ऑल सो (न केवल प्रजनन के लिए, बल्कि आक्रामकता से बचने के लिए भी)।

रिपोर्टर : इसमें कलंदर का क्या फ़ायदा था?

सिंह : भालू अग्रेसिव (आक्रामक) नहीं होगा, तो उनके (कलंदर और देखने वालों के) लिए थ्रीट (ख़तरा) नहीं होगा।

रिपोर्टर : लेकिन उससे पॉपुलेशन भी तो नहीं बचेगी।

सिंह : पॉपुलेशन बढ़ाकर उनको क्या करना है? जंगल से और भालू ले आएँगे; …दे जस्ट हैव टू थिंक हाउ टू कंट्रोल अ बीयर (उन्हें बस यह सोचना है कि भालू को कैसे नियंत्रित किया जाए)।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने आगरा के आलसी भालू पुनर्वास केंद्र का दौरा किया, तो वाइल्ड लाइफ एसओएस की संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजूराज एम.वी. बचाव केंद्र में नहीं थे; वह असम में थे। इसलिए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उनसे फोन पर बात करने का फ़ैसला किया। आलसी भालू के अवैध शिकार के बारे में पूछे जाने पर बैजूराज ने कहा कि आज की दुनिया में अवैध शिकार और नारकोटिक्स एक बहुत बड़ा उद्योग बन गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे विदेशी जानवर का नाम बताइए, जिसकी तस्करी भारत में नहीं होती हो।

बैजूराज : पोचिंग (अवैध शिकार) का पर्पज इज टुडे द पोचिंग ऑर वाइल्ड लाइफ ट्रेड इज गोइंग इन हैंड विद् नारकोटिक्स इज इज अ बिग बिलियन इंडस्ट्री (उद्देश्य यह है कि आज अवैध शिकार या वन्यजीव व्यापार नशीले पदार्थों के साथ-साथ चल रहा है, यह एक बड़ा और अरबों का उद्योग है)। वाइल्ड लाइफ इट इंक्लूड्स वाइल्ड लाइफ ट्रेड (वन्य जीवन में वन्यजीव व्यापार शामिल है), वाइल्ड लाइफ आर्टिकल्स ट्रेड (वन्य जीव, मतलब व्यापार), एवरीथिंग इज सोल्ड इन द मार्केट (बाज़ार में सब कुछ बिकता है)। फॉर वन ऑर द अदर पर्पज टुडे द एंट्री स्केनारियो इज वाइल्ड लाइफ एक्जोटिक एनिमल ट्रेड (किसी-न-किसी उद्देश्य से आज पूरा परिदृश्य वन्यजीव विदेशी पशु व्यापार का है)। एव्री वेयर यू गेट वाइल्ड लाइफ ट्रेड एक्सोटिक एनिमल्स (हर जगह आपको वन्यजीव व्यापार विदेशी पशु मिलते हैं। मैनहूज (बिल्ली की तरह एक जंगली जानवर) को लेकर हर चीज़ आपको इंडिया में ख़रीदने को मिलेगा। ये इतना अमेंस (बड़ा) है ट्रेड (व्यापार) कि कोई अमेजिन (कल्पना) ही नहीं कर पाएँगे। थाउजेंड्स ऑफ ग्वांस आर कमिंग टू इंडिया ऐज वाइल्ड लाइफ ट्रेड (हज़ारों गुयाना -एक प्रकार की बड़ी छिपकली- वन्यजीव व्यापार के रूप में भारत आ रहे हैं)। इट इज गोइंग ऑन फ्रॉम सो मैनी ईयर्स बट फ्रॉम सम ईयर्स इट हैज इंक्रीज्ड (यह कई वर्षों से चल रहा है; लेकिन कुछ वर्षों से इसमें वृद्धि हुई है)। अभी बहुत ज़्यादा इंक्रीज्ड (विस्तार) हो गया है वाइल्ड लाइफ ट्रेड (वन्यजीव व्यापार)। पोचिंग (अवैध शिकार) क्या होता है, वो अलग-अलग चीज़ों के लिए होता है। अभी आपको बीयर पोच (भालू का अवैध शिकार) कर दिया किसी ने, वो कलंदर को बेचेंगे या किसी थर्ड पार्टी को बेचेंगे। वो उसको नेपाल बॉर्डर पर कर देंगे। चाइना बॉर्डर पर कर देंगे। उनको कुछ पैसा मिलेगा, बीयर सर्वाइव कर (भालू जीवित रह) सकता है, तो उसको बड़ा कर देंगे। …वाइल्ड ट्रेड (वन्य व्यापार) के लिए उसे करेंगे। सर्वाइव नहीं करेगा, तो उसको बॉडी पार्ट्स के लिए यूज (उपयोग) करेंगे। गाल ब्लैडर ट्रेड (पित्ताशय व्यापार) और दवाई के लिए; एव्री थिंग इज सोल्ड इन द मार्केट ट्रेड (आज बाज़ार में हर चीज़ बिकती है)।

अब बैजूराज ने बताया कि आलसी भालू का अवैध शिकार किस समय किया जाता है; ख़ासकर नवंबर और दिसंबर के महीनों में।

रिपोर्टर : पोचिंग होती कैसे है?

बैजूराज : नवंबर-दिसंबर मंथ्स में भालू बच्चा देता है और पोचर्स (शिकारियों) को अच्छे से पता होता है, कौन-से जंगल में भालू आता है। ये क्या करता है, जंगल में जाता है और जैसे ही भालू डेन (माँद) से निकलता है, तुरंत ये लोग अंदर गुफा में जाकर बच्चे को लेकर आएँगे और बाइ चांस मदर (संयोगवश माँ) आ गया, तो इनको मारना पड़ता है मदर को। तो मदर को मार दिया, तो उसकी बॉडी पार्ट्स (शारीरिक अंगों) को सेल कर (बेच) दिया; और बच्चे को मार्केट (बाज़ार) में सेल करेंगे (बेचेंगे)। वैसे तो कम हो गया भालू का ट्रेड (व्यापार); झारखण्ड और राजस्थान में कुछ कलंदर रह गया, वैसे कलंदर मुश्किल है मिलना। इसलिए अब बीयर कब (भालू के बच्चे) का पोचिंग (अवैध शिकार) ज़्यादा नहीं होता। पोच (शिकार) होता है; क्यूँकि वो इंडोनेशिया बॉर्डर पार करके चाइना निकल जाएगा, क्यूँकि वो बीयर पॉ सूप एट्च (भालू के पंजों का सूप इत्यादि) के लिए ट्रेड करता है। अब एक होता है पैट (पालतू) ट्रेड (व्यापार); कोई भी अपने घर में पैट (पालतू पशु) पालने के लिए तैयार है, आपको सन बीयर (धूप में रहने वाला भालू) मिलेगा रेस्टोरेंट में भी केज (पिंजरे) में डाल के। रेस्टोरेंट को अट्रैक्ट करने (रेस्तरां को आकर्षित बनाने) के लिए।

अब बैजूराज ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि अवैध मार्गों से बड़ी संख्या में जानवर भारत में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आलसी भालुओं की तरह भारत के अधिकतर बाघों का भी अवैध शिकार करके उन्हें चीन भेजा जाता है। उन्होंने ख़ुलासा किया कि बिचौलिये ही अवैध शिकार से पैसा कमा रहे हैं। वे शिकारियों को एक भालू या एक बाघ की खाल के लिए 5 से 10 हज़ार रुपये देते हैं; लेकिन ये बिचौलिये उन्हें 5 से 10 लाख रुपये में बेच देते हैं।

बैजूराज : देखिए, हमारा मैक्सिमम टाइगर (ज़्यादातर बाघ) तो चाइना (चीन) ही गया है अभी तक। वो लोग कुछ भी खा लेंगे। उसका कोई लिमिट नहीं है। अभी इंडिया में भी बहुत जानवर आ रहे हैं। आप स्टडी (अध्ययन) करोगे, तो हैरान हो जाएँगे, इतना सारा जानवर तस्करी होकर इंडिया में आता है बाई ट्रेड (व्यापार के द्वारा)। बहुत मगरमच्छ, मकाऊ (एक प्रकार का जंगली तोता), कंगारू आता है। बर्ड्स (चिड़ियाँ) आता है। वलाबीज (छोटा कंगारू, जिसे धानी प्राणी और मारसूपियल कहते हैं) आता है। साउथ-ईस्ट एशियन कंट्रीज (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों) से चाइना, इंडोनेशिया से आता है और इंडिया में सब लोग पिंजरा में डालने के लिए ख़रीद रहे हैं। एक्जोटिक एनिमल (विदेशी जानवर)। …देखो इजीली (आसानी से) तो टाइगर (बाघ) भी अवेलेबल (उपलब्ध) नहीं है; बट (लेकिन) हमने लास्ट ईयर (पिछले साल) पकड़ा था तमिलनाडु से। हम और आपके लिए स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) देखने को भी नहीं मिलेगा; लेकिन पोचिंग (अवैध शिकार) के लिए सब कुछ अवेलेबल (उपलब्ध) है। इसमें मैक्सिमम पोचिंग (ज्यादातर शिकारी) जंगल में ही रहने वाला है। पैसा जो कमाता है मिडिल मैन (बीच का आदमी – पशुओं और उनके अंगों की तस्करी करके बाज़ार में बेचने वाला) है। वो तो पोचर्स (शिकारी) को पैसे पकड़ाएगा, बोलेगा एक टाइगर स्किन (बाघ की खाल) चाहिए या स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) चाहिए हमको; …उनको (शिकारी को) तो 5-10 हज़ार से मतलब है। वो टाइगर का स्किन (खाल) दे देंगे और मिडिल मैन (बीच का आदमी) उसको 5-10 लाख में बचेंगे मार्केट में। मिडिल मैन ज़्यादा पैसा कमाता है। …अब किसान भी तो ज़्यादा नहीं कमाता, दुकानदार कमाता है।

अब बैजूराज ने बताया कि वियतनाम में स्लोथ भालू के पित्ताशय का उपयोग किसलिए किया जाता है।

रिपोर्टर : स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) के ब्लैडर (पित्त) का क्या यूज (इस्तेमाल) हो रहा है?

बैजूराज : वियतनाम में बीयर बाइल करके एक फार्म है, तो उसमें न कम-से-कम 1,000 भालू पिंजरे में रखा हुआ है। उसमें तीन फिट का पिंजरा में भालू लेटा हुआ है और उसका बाइल (पित्त) कलेक्ट (इकट्ठा) हो रहा है। कभी-कभी उस ल्यूकिड (तरल) के साथ पस (पीव) भी आता है, वो दवाई करके बेच देता है। …तो आपको हम बोलेंगे आप यूज कर लो, आपके सेक्सुअल बहुत ये हो जाएगा, …तो क्या होता है, बड़ा-बड़ा लोग, जिसको बच्चा नहीं हो रहा है, ट्राई करेंगे; …50 हज़ार (रुपये) देकर। ये है मार्केटिंग। ये सब चाइना में हो रहा है और अमीर लोग ख़रीदते हैं, …ग़रीब लोग को ज़रूरत नहीं है।

बैजूराज, जिन्होंने वाइल्ड लाइफ एसओएस (वन्य जीवों के बचाव के लिए चलाया जा रहा एक ग़ैर-लाभकारी वन्यजीव संगठन) के साथ कुल 20 वर्ष बिताये हैं; जिनमें से 16 वर्ष सिर्फ़ आगरा भालू बचाव केंद्र में बिताये हैं; बताते हैं कि वाइल्ड लाइफ एसओएस भारत में अवैध शिकार को समाप्त करने के लिए किस प्रकार काम कर रहा है।

बैजूराज : मुझको 20 ईयर्स (20 साल) हुआ वाइल्ड लाइफ एसओएस के साथ, दिल्ली फोर ईयर्स नाउ सेटल्ड इन आगरा फ्रॉम 16 ईयर्स (पहले चार साल दिल्ली में रहा, अब 16 साल से आगरा में हूँ)।

रिपोर्टर : वाइल्ड लाइफ एसओएस ने पोचिंग (शिकार) में कितना बड़ा रोल (भूमिका) दे हैव प्लेयड (जो उन्होंने निभायी)।

बैजूराज : वी हैव इनफॉर्मर नेटवर्क (हमारे पास मुखबिर नेटवर्क है)। हमारा हर जगह इनफॉर्मर है, वो हमको ख़बर देता है, कोई भी, कुछ हो रहा है। फॉर ऑल एनिमल्स कैंडोलिज्म (हर क्षेत्र में हर जानवर के लिए), टाइगर (बाघ), …एनी वेयर एनीथिंग इज हैपनिंग दे विल लेट अस नाउ (कहीं भी कुछ भी हो रहा हो, तो हमें बता देते हैं)। वी आर पेइंग देम (हम उन्हें भुगतान करते हैं)। उनकी इंफॉर्मेशन (सूचना) से हम वाइल्ड लाइफ (वन्य जीवों) को अवेयर (जागरूक) करते हैं। ये सब नेटवर्क के थ्रू (ज़रिये) पता चलता है। हम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को इन्फॉर्म करता है, बिकॉज वी आर नॉट लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी (क्योंकि हम क़ानून प्रवर्तन संस्था नहीं हैं)। हम वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (वन्य जीव अपराध नियंत्रण केंद्र) या फॉरेस्टर डिपार्टमेंट (वन विभाग) को बोलेंगे। हम को-ऑर्डिनेट (समायोजन) करते हैं। हम पिक्चर (सामने) में नहीं आते कहीं। आई एम आलसो अ वालंटियर ऑफ वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (मैं वन्यजीव अपराध नियंत्रण केंद्र का स्वयंसेवक भी हूँ)। हम ओनली इंफॉर्मेशन (सिर्फ़ जानकारी) देता है।

बैजूराज के अनुसार, सभी राष्ट्रीय उद्यानों में अवैध शिकार निरोधक शाखा है; जो इस बात का संकेत है कि वहाँ से भी अवैध शिकार किया जाता है। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि जानवर कहाँ है। शिकारी हर जगह जाते हैं।

रिपोर्टर : क्या नेशनल पार्क से भी स्मगलिंग (तस्करी) होता है?

बैजूराज : जुगाड़ नहीं कर सकते। मैक्सिमम तो नेशनल पार्क और सेंचुरी (दोनों ही बड़े जंगल हैं;) में ही मिलता है; आपके और हमारे गाँव में तो मिलेगा नहीं। पकड़ना तो उधर ही होगा। अभी छत्तीसगढ़ गया था, वहाँ नेशनल पार्क बाउंड्री के बाहर भी स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) रहता है। …एम.पी. (मध्य प्रदेश) में ज़्यादा स्लॉथ बीयर होता है। ..तो परचेजर्स (ख़रीदारों) के लिए नेशनल पार्क, …उनको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अभी राइनो (गैंडा) की पोचिंग (शिकार) में होगा ना! उसके लिए फ़र्क़ नहीं होता; …पोचर्स (शिकारी) कहीं भी जा सकते हैं। हर नेशनल पार्क में एंटी पोचिंग विंग (अवैध शिकार विरोधी दस्ता) होता है। कैंप्स होता है। …हमारा बर्ड सेंचुरी में भी पोचर्स (शिकारी) आता था, मछली पोच करने (मछलियों का शिकार करने) के लिए। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट कितना पोचर्स (शिकारियों) को पकड़ता है; …हर टाइम जेल भेजता है।

वाइल्ड लाइफ एसओएस वर्तमान में बेंगलूरु (कर्नाटक), भोपाल (मध्य प्रदेश), पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) और आगरा (उत्तर प्रदेश) में चार भालू बचाव केंद्र चला रहा है, जिसमें आगरा दुनिया का सबसे बड़ा भालू बचाव केंद्र है। बैजूराज के अनुसार, जब सन् 1999 में आगरा भालू बचाव केंद्र खोला गया था, तब वहाँ 270 भालू थे। आज इनकी संख्या केवल 88 रह गयी है। अधिकांश भालू क्षय रोग के शिकार हो गये हैं। यह रोग उन्हें मदारियों (कलंदरों) से हुआ था, जो उन्हें पर्यटकों के सामने नाचने के लिए मजबूर करते थे। इससे पहले कि वे भालुओं के लिए और घातक सिद्ध होते, इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बैजूराज बताते हैं कि आगरा केंद्र भालुओं के लिए प्रजनन स्थल नहीं है। मदारियों ने भालुओं के प्रजनन-काल के दौरान उनके आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए क्रूर तरीक़ों का इस्तेमाल किया था, जिसमें उनके अंडकोषों को कुचलकर उनको बधिया (नपुंसक) बनाना भी शामिल था; ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नृत्य प्रदर्शन के दौरान भालू शान्त बने रहें।

यद्यपि भारत में भालुओं के नृत्य की परंपरा लगभग लुप्त हो चुकी है, फिर भी अवैध शिकार एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। आलसी भालुओं का शिकार अभी भी उनके पित्ताशय और पंजों के लिए किया जा रहा है, जिनकी चीन और वियतनाम में पारंपरिक दवाओं के लिए माँग है। यह अवैध व्यापार पहले से ही संकटग्रस्त प्रजातियों पर और भी अधिक दबाव डाल रहा है, जिससे बेहतर संरक्षण और अवैध शिकार के ख़िलाफ़ सख़्त अमल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।