संकट में भालू

दशकों के सफल संरक्षण प्रयासों और लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद शिकारी एक बार फिर वन्यजीव आबादी के लिए ख़तरा बन रहे हैं। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में लाखों लोग अभी भी भालू के पित्त, गैंडे के सींग, बंदर के मांस और बाघ के अंगों के औषधीय गुणों के बारे में ग़लत धारणा रखते हैं। इन दावों के समर्थन में वैज्ञानिक साक्ष्यों के अभाव के बावजूद इन जीवों और उनके अंगों को पारंपरिक उपचारों या विलासितापूर्ण खाद्यों की आड़ लेकर बेचा जाना जारी है, जिससे दुनिया की कुछ सबसे कमज़ोर प्रजातियों के अवैध शिकार को बढ़ावा मिल रहा है।

भारत में लुप्तप्राय प्रजातियों, विशेषकर भालुओं की स्थिति विशेष रूप से गंभीर हो गयी है। भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी आलसी भालू अवैध शिकार, वन्यजीव तस्करी और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण बढ़ते ख़तरे का सामना कर रहा है। कई लुप्तप्राय प्रजातियों की तरह भालू भी अब अवैध व्यापार का शिकार हो रहे हैं; क्योंकि उनके शरीर के अंगों, जैसे- पित्त, पंजे और त्वचा की माँग बढ़ रही है। एशिया के कुछ भागों में इन उत्पादों की माँग पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग के लिए की जाती है। वहाँ माना जाता है कि भालू का पित्त कई प्रकार की बीमारियों का इलाज करता है, जिसमें यौन क्षमता को बढ़ाना भी शामिल है। चीन और वियतनाम जैसे देशों में धनी दंपति अक्सर इन कथित उपचारों के लिए बड़ी रक़म चुकाते हैं, जिससे शिकार का चक्र चलता रहता है।

अवैध वन्यजीव व्यापार, विशेषकर आलसी भालू के अंगों की तस्करी इस प्रजाति को विलुप्ति के क़रीब ले जा रही है। भारत में अवैध शिकार एक प्रमुख समस्या है। आवास की कमी और मनुष्यों के साथ बढ़ते वन्यजीव संघर्षों के कारण स्थिति और भी बदतर हो गयी है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के अनुसार, आलसी भालू को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। अनुमान है कि जंगल में इनकी संख्या 6,000 से 11,000 तक है। भारत में वैश्विक आबादी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा रहता है। नेपाल और श्रीलंका में भी कुछ कम संख्या में भालू पाये जाते हैं। हालाँकि भालू के शरीर के अंगों, विशेष रूप से पित्ताशय और पंजे की माँग सिर्फ़ एशिया तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यूनाइटेड किंगडम यूरोप में भालू के अवैध अंगों का सबसे बड़ा आयातक है, जो अंतरराष्ट्रीय अवैध शिकार नेटवर्क को और बढ़ावा देता है।

‘तहलका’ की इस बार की आवरण कथा- ‘भालुओं की तस्करी जारी है’ भारत में भालुओं के अवैध शिकार के फिर से शुरू होने की पुष्टि करती है, और यह उजागर करती है कि भालुओं का पित्त निकालना अब भी एक आकर्षक व्यवसाय बना हुआ है। वाइल्ड लाइफ एसओएस के संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजूराज एम.वी. के अनुसार, भालुओं के पित्ताशय की थैली चीनी पारंपरिक चिकित्सा (सीटीएम) में विशेष रूप से मूल्यवान है। वहाँ पित्त को विभिन्न बीमारियों का इलाज करने वाला माना जाता है। हालाँकि इसकी प्रभावशीलता का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। यह प्रथा आलसी भालुओं के लिए विनाशकारी है; क्योंकि शिकारी अक्सर प्रसव के मौसम में मादा भालुओं और उनके बच्चों को निशाना बनाते हैं। वे माँओं (मादा भालुओं) को मार देते हैं और उनके बच्चों को बिचौलियों को बेच देते हैं।

हाल की घटनाएँ आशा की एक किरण प्रस्तुत करती हैं। 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में पहली बार मोदी ने अपने कार्यकाल में बोर्ड की बैठक बुलायी थी और इसमें भारत में वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों की समीक्षा और उन्हें मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इस तरह की पहल आलसी भालू जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा की लड़ाई में आगे का रास्ता दिखा सकती है।