सत्ता के गणित से मिली जीत
अनुराग हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. बीसीसीआई सचिव पद के लिए उन्हें शरद पवार खेमे से भी समर्थन मिला. पवार खुद बीसीसीआई अध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन पूर्वी क्षेत्र से पर्याप्त समर्थन नहीं होने के कारण उन्होंने कदम खींच लिए. श्रीनिवासन खेमे ने डालमिया का नाम अध्यक्ष के लिए आगे बढ़ा दिया और डालमिया निर्विरोध चुन भी लिए गए. सत्ता के समीकरणों को अपने अनुकूल करने में माहिर पवार भी हार माननेवालों में से नहीं हैं. बीसीसीआई में पैठ बनाने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी लंबे समय से बेकरार रहे हैं. अनुराग ठाकुर क्रिकेट बोर्ड से लंबे समय से जुड़े रहे हैं और क्रिकेट प्रशासक के रूप में काम करने का उनके पास अनुभव भी है. यह िस्थति राजनीति के दो छोरों पर खड़े दो चाणक्यों पवार और शाह के मिलन का कारण बन गई. इतना ही नहीं अमित शाह के बेटे जय शाह ने भी ठाकुर को जिताने में भूमिका अदा की. बोर्ड में सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को ठाकुर के पक्ष में मतदान करने की खास ताकीद की गई. नतीजा भी उनके पक्ष में आया, विश्व के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड के महत्वपूर्ण पद पर भाजपा के युवा नेता काबिज हो गये.
सचिव पद के लिए संजय पटेल का नाम पहले ही तय माना जा रहा था. लेकिन रातों-रात समीकरण ऐसे बदले कि श्रीनिवासन खेमा हतप्रभ रह गया. संजय पटेल को 14 वोट और अनुराग ठाकुर को 15 वोट मिले और सचिव के पद पर शरद पवार खेमे के ठाकुर जीत गए.
संजय पटेल की हार एन श्रीनिवासन के लिए बहुत बड़ा झटका है क्योंकि पटेल हर मौके पर, हर विवाद में श्रीनिवासन के साथ खड़े रहे थे. पिछले कुछ समय में बोर्ड में उनका प्रभाव लगातार बढ़ रहा था. ऐसे में उन्हें सचिव पद के लिए चुना जाना लगभग तय माना जा रहा था.
श्रीनिवासन कैंप के लिए मनमानी आसान नहीं है
अब बीसीसीआई में श्रीनिवासन कैंप का एकछत्र राज्य नहीं चलेगा. अनुराग ठाकुर की तरफ से उनके एकाधिकार को चुनौती मिलना तय है क्योंकि वे विपक्षी गुट से जीतकर पहुंचनेवाले एकमात्र सदस्य हैं. सचिव का पद महत्वपूर्ण होता है साथ ही ठाकुर के पास पवार खेमे का समर्थन भी है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लगातार हार के बाद शरद पवार इन दिनों राजनीतिक वनवास झेल रहे हैं. बीसीसीआई वह जगह है जहां से पवार सत्ता के गलियारों में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रख सकते हैं. इसलिए उन्होंने अनुराग ठाकुर को समर्थन दिया. बोर्ड की निर्णय प्रक्रिया में सचिव की स्थिति महत्वपूर्ण होती है और श्रीनि खेमे के धुर विरोधी पवार गुट के समर्थन के कारण ठाकुर मजबूत स्थिति में है. उठापटक के दौर से गुजर रही बीसीसीआई की दुर्दशा की एक वजह लंबे समय से यहां एक खेमे का एकाधिकार भी है.
पद संभालते ही अनुराग ठाकुर ने अपनी आगामी योजनाओं की एक झलक सबके सामने रख दी है. नए सचिव का कहना है कि बीसीसीआई की छवि को साफ करना उनकी प्राथमिकता है. छवि मजबूत करने के साथ ही बोर्ड की कोशिश होगी कि क्रिकेट को नए स्थानों पर ले जाया जाए, इसे और ज्यादा लोकप्रिय बनाया जाय और टीम इंडिया ज्यादा से ज्यादा टेस्ट मैच खेले. फिक्सिंग और आईपीएल विवादों से जूझ रही भारतीय क्रिकेट के लिए जरूरी है कि ‘जेंटलमैन’ खेल एक बार फिर से अपनी उस पुरानी प्रतिष्ठा को पा सके. बोर्ड अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने भी संकेत दे दिए हैं कि फिलहाल बोर्ड में उनकी सबसे पहली प्राथमिकता सत्ता के टकराव से दूर रहने की होगी. उन्होंने सचिव पद पर अनुराग के नाम की घोषणा के साथ ही उम्मीद जतायी कि सचिव अनुराग ठाकुर के डेढ़ दशक के प्रशासनिक अनुभवों का उपयोग कर भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई तक ले जाएंगे. बोर्ड में किसी भी तरह के टकराव की स्थिति नहीं बनेगी.
ठाकुर के तेवर हैं आक्रामक
सचिव बनते ही अनुराग ठाकुर ने स्पष्ट कर दिया कि गुटबाजी से अलग उन्हें क्रिकेट के बेहतर भविष्य के लिए काम करना है. बीसीसीआई ‘वनमैन शो’ नहीं है यह कहकर एक तरह से उन्होंने श्रीनिवासन गुट पर परोक्ष हमला भी किया. पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में अनुराग कहते हैं कि पिछले दिनों बीसीसीआई को लेकर कई विवाद रहे. इन विवादों को देखकर सुप्रीम कोर्ट ने भी बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार की बात कही थी. वक्त आ गया है कि इन सबको ठीक किया जाए. बोर्ड के अंदर के कामकाज के तरीके को दुरुस्त करना, बोर्ड की छवि ठीक करना और जवाबदेही बढ़ाना ये तीन चीजें मेरी प्राथमिकता हैं. इसके साथ ही खेल की लोकप्रियता बढ़ाने और क्रिकेट के प्रति लोगों का विश्वास फिर से बहाल करने पर भी जोर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि पद मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन बीसीसीआई से जुड़े विवादों का निपटारा कर फिर से इसकी छवि दुरुस्त करना उनकी प्राथमिकता है. बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार के साथ ही उन्होंने आईपीएल फ्रैंचाइजी और उससे जुड़े विवादों को खत्म करना अपनी प्राथमिकता में बताया.
श्रीनिवासन की विदाई और उन्हीं के समर्थन से डालमिया की वापसी परिकथाओं सी है. भले ही डालमिया बीसीसीआई में श्रीनि के समर्थन से आए हों लेकिन आगे वे श्रीनिवासन के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं. भारतीय क्रिकेट को विवादमुक्त रखते हुए उसकी छवि को दुरुस्त करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती होगी.