बनारस अथवा वाराणसी अब पहले जैसा नहीं रहा। हालत बहुत बदल गये हैं। ढाँचागत विकास के साथ-साथ इस प्राचीन शहर की दशा और दिशा में भी परिवर्तन हुआ है। हैदराबाद से बनारस घूमने पहुँचे श्रीनिवास और बसंता, दिल्ली से पहुँचे ललिता और शशि बंसल तो ऐसा ही बताते हैं। अस्सी घाट से लेकर दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती देखने के लिए मेरे साथ वे भी क्रूज पर सवार थे। इसके अलावा जिन लोगों ने ख़ासकर महिलाओं ने इस शहर में ही अपनी आँखें खोलीं और काशी में ही अपनी पूरी ज़िन्दगी बितायी, उनकी मानें तो बनारस का ऐसा कायाकल्प हो जाएगा, इसकी कल्पना भी नहीं की थी।
नया विकास बहुत ख़ूबसूरत है। मेरी तो आँख यही खुली और शहर में ही सारी ज़िन्दगी काटी है। श्रीमती शोभा नूर अवस्थी कहती हैं कि लड़कियों के लिए शाम के समय चलना बहुत मुश्किल था। रात में तो सोच भी नहीं सकते थे। सड़कें बहुत ख़राब थीं। गलियों में चलने पर लड़के बहुत परेशान करते थे। गलियों में लाइट तक नहीं होती थी। पानी का कोई भरोसा नहीं था। यानी कि बहुत-ही ख़राब हालत में था यह शहर। बनारस इतना सुंदर हो जाएगा, यह सोचा भी नहीं था। इतनी सफ़ाई हो गयी। गलियों में हर जगह बल्ब दिखायी देते हैं। अब पानी भी आता है, लाइट भी आती है। पहले एसी चलाकर छोड़ देते थे कि जब लाइट आएगी, कमरा ठंडा हो जाएगा। लेकिन अब पता है कि लाइट है। हमारी मिक्सी चलेगी, हमारा ओवन चलेगा और गीजर चलेगा। अब आप आधी रात में भी घूमने निकल सकती हैं। इस शहर में महिलाओं ने बहुत अव्यथाएँ झेली हैं। शहर के इस कायाकल्प के लिए बहुत सारी महिलाएँ प्रधानमंत्री का विजन तो मानती ही हैं; लेकिन उनका कहना है कि योगी आदित्यनाथ ने इसे बहुत अच्छे-से निभाया है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर उर्मिला रानी श्रीवास्तव बनारस की पहचान के लिए इसकी गलियाँ, लज़ीज़ व्यंजन, हो रही तरक़्क़ी को बनारस की पहचान मानती हैं। उनका कहना है कि मेरा जन्म तो बनारस में ही हुआ। इसलिए इस शहर से काफ़ी गहरा रिश्ता है। बनारस शंकर भगवान के त्रिशूल पर स्थित है। उनका कहना है कि देश विदेश में कहीं भी चले जाओ, बनारसी अंदाज़ आपको कहीं नहीं मिलेगा। बनारस में लोग सहयोगी हैं, बहुत प्यार से बोलते हैं। बनारसी अंदाज़ जैसे कंधे पर हाथ रखकर बात करना, गले लगा लेना। विकास तो इतनी तेज़ी से हुआ है कि जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। ख़ासतौर पर अपराध बहुत कम हुआ है। रात को भी हम लोग निकल पाते हैं। अब आबादी बहुत है। कहीं-न-कहीं अपराध तो हो भी रहा है; लेकिन उसका प्रतिशत काफ़ी कम हुआ है। प्रशासन मज़बूत हुआ है। पुलिस सक्रिय हुई है। यही वजह है कि जो कोई अपराध करता भी है, वह जल्दी पकड़ा भी जाता है। उर्मिला रानी बताती हैं कि पिछले कुछ वर्षों से जातिगत विभेद देखने को मिल रहा है। लेकिन कई समूह ऐसे हैं, जैसे पढ़े-लिखे लोगों के यहाँ कोई जातिगत विभेदन नहीं है। बचपन में तो हम कुछ जाति वग़ैरह जानते ही नहीं थे। हम तो गुरुद्वारा भी गये, चर्च भी गये। हर मज़हब की जो अच्छाइयाँ हैं, उनकी तह-ए-दिल से इज़्ज़त करते हैं। ईश्वर तो एक ही है।
बनारस के लोगों की मानें, तो शहर में काफ़ी बदलाव देखने को मिल रहा है। लेकिन बनारस कैंट से जब बाबा विश्वनाथ मंदिर की ओर जाते हैं, तो सड़कों पर ट्रैफिक जाम की समस्या बहुत परेशान करने वाली है। भीड़ में चलना बहुत मुश्किल है। काल भैरव मंदिर के बाहर लोगों की भीड़ परेशान करने वाली है और मंदिर के अंदर तो ऐसी अव्यवस्था थी कि धक्का-मुक्की वाली नौबत देखी गयी, बल्कि कई महिलाएँ और वृद्ध गिरते देखे गये।
(ग्राउंड ज़ीरो रिपोर्ट)