धधक रहा बलूच-विद्रोह

बलूचिस्तान में विद्रोह की ज्वाला धधक रही है। सवाल यह है कि क्या बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए दूसरा बांग्लादेश बनने जा रहा है? बलूचिस्तान के लोगों पर अत्याचार करने और वहाँ की सम्पदा को लूटने के पाकिस्तान हुक्मरानों और सेना पर आरोपों के बीच हाल में दो ऐसी बड़ी घटनाएँ हुई हैं, जो यह संकेत देती हैं कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए मुश्किल बन रहा है। पहली घटना में बलूच विद्रोहियों ने पाकिस्तान की एक ट्रेन को अगवा कर लिया, जबकि दूसरी घटना में पाक सैनिकों को ले जा रही बस को आत्मघाती हमले में उड़ा दिया। दोनों ही घटनाओं में पाक सेना के 200 से ज़्यादा जवानों के मरने का दावा बलूच विद्रोहियों ने किया है।

इस बीच कुछ और घटनाएँ हुई हैं, जो बताती हैं कि बलूचिस्तान में विद्रोह पाकिस्तान सरकार और सेना से सँभल नहीं रहा है। ट्रेन अपहरण और सेना के क़ाफ़िले पर आत्मघाती हमले के बाद पाक सेना ने बलूचिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता और बलूच यकजेहती समिति (बीवाईसी) की मुख्य आयोजक महरंग बलूच को गिरफ़्तार कर लिया। दिलचस्प यह है कि महरंग को 2025 के नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। पाकिस्तान ने उन पर आतंकी होने का आरोप लगातार उन्हें जेल में डाल दिया, जिसके बाद दक्षिण एशिया के एमनेस्टी इंटरनेशनल क्षेत्रीय कार्यालय ने पाकिस्तानी अधिकारियों से महरंग समेत हिरासत में लिये लोगों को तुरंत रिहा करने की माँग करके उस पर दबाव बना दिया है।

बलूचिस्तान का यह विद्रोह नया नहीं है। साल 1947 में भारत के विभाजन के समय ही बलूचिस्तान अलग राज्य (देश) बनना चाहता था; लेकिन पाकिस्तान ने उसे जबरदस्ती अपने साथ मिला लिया। अब जब बलूचिस्तान में विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी है, वहाँ के आज़ादी आन्दोलनकारी चाहते हैं कि भारत उनकी उसी तरह मदद करे, जैसे बांग्लादेश के स्वतंत्रता आन्दोलन की इंदिरा गाँधी ने मदद की थी। फ़िलहाल भारत सरकार तमाम घटनाओं पर नज़र रखे हुए है। भारत को बदली परिस्थितियों में बांग्लादेश की घटनाओं पर भी नज़र रखनी पड़ रही है, जहाँ शेख़ हसीना के तख़्तापलट के बाद स्थितियाँ भारत के लिए पेचीदा हुई हैं।

पाकिस्तान हर संभव कोशिश कर रहा है कि बांग्लादेश में उथल-पुथल जारी रखकर उसके फिर पाकिस्तान के साथ मिलने की परिस्थितियाँ बनायी जाएँ। पाकिस्तान के हर हुक्मरान और फ़ौजी जनरल के दिल में यह काँटा चुभता है कि इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान के टुकड़े करके पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से को बांग्लादेश के नाम से स्वतंत्र राष्ट्र बनवा दिया था। अब पाकिस्तान की सेना और सरकार चाहती है कि बांग्लादेश को फिर अपना हिस्सा बनाया जाए। लेकिन इस बीच उसके लिए बलूचिस्तान एक बड़ी समस्या बन गया है, जिसका विद्रोह उस से थम नहीं रहा। अफ़ग़ानिस्तान में कई ताक़तें पाकिस्तान के सरहदी इलाक़ों बलूचिस्तान से लेकर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा तक विद्रोहियों को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हवा दे रही हैं।

पाकिस्तान भारत पर इन विद्रोहियों का समर्थन करने का आरोप लगा रहा है; लेकिन भारत ने इन आरोपों को ग़लत बताया है। हाँ, वह बलूचिस्तान की जनता के हालात पर चिन्ता जता रहा है। लेकिन एक बात साफ़ है कि पाकिस्तान जिस तरह जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन करता है, उन्हें ट्रेनिंग, हथियार और पैसा देता है, उसे देखते हुए बलूचिस्तान का विद्रोह उसके लिए एक सबक़ है। वहाँ बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) लगातार ताक़त हासिल कर रही है और जनता का उसे जबरदस्त समर्थन है। बीएलए पाकिस्तान से अलग होकर एक अलग राष्ट्र का आन्दोलन कर रही है। पाकिस्तान ने शुरू में कोशिश की थी कि अफ़ग़ानिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंक करने वाले गुटों की ट्रेनिंग अपनी धरती पर करने दे; लेकिन इसमें उसे सफलता नहीं मिली। इसका काफ़ी श्रेय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल की रणनीति को दिया जाता है।

आज स्थिति यह है कि पाकिस्तान अपने ही राज्य बलूचिस्तान में विद्रोह का सामना कर रहा है, अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में बैठे अधिकतर तालिबान गुटों से उसकी कट्टर दुश्मनी हो चुकी है और भारत से उसकी दशकों पुरानी दुश्मनी है ही। उसके लिए एक और संकट की स्थिति यह बनी है कि अमेरिका में ट्रम्प के आने के बाद अपने प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार मिलने की संभावनाओं को झटका लगा है। जैसी आर्थिक स्थिति पाकिस्तान की है, उससे उसके चारों तरफ़ परेशानियों का घेरा पड़ गया है। जनता में पाक सरकार और ख़ासकर सेना के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ रहा है। सबसे मुश्किल घड़ी आर्मी चीफ आसिम मुनीर के लिए है, जो पाकिस्तान में सत्ता के बराबर इस्टैब्लिशमेंट वाली ताक़त रखते हैं।

हाल में पाकिस्तान में लाल टोपी के नाम से जाने जाने वाले कट्टरपंथी इस्लामी राजनीतिक कमेंटेटर ज़ैद हामिद ने जब बांग्लादेश को ऑफर दिया कि उसे 1971 के बँटवारे से पहले की स्थिति में लौटकर पाकिस्तान में फिर से शामिल हो जाना चाहिए, तो इसकी पीछे सेना और बदनाम ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ बताया गया। कट्टर भारत विरोधी माने जाने वाले ज़ैद ने बांग्लादेश के कट्टरपंथियों से कहा कि हम (पाकिस्तान) आपको दावत देते हैं कि पाकिस्तान में वापस आकर मिल जाएँ। ‘हम आपको दोनों हाथों से समेटकर अपने सीने से लगा लेंगे। हमारे दिल में आपके लिए अब कोई नफ़रत नहीं है, क्योंकि हम जानते हैं कि वो ग़लतियाँ आपके पहले वाली नस्ल से हुई थीं।’ पाक हुकूमत और मुनीर की सेना जनता में अपने ख़िलाफ़ पैदा हो रहे ग़ुस्से से ध्यान भटकाने के लिए बांग्लादेश को तुरुप के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है।

पाकिस्तान सरकार और सेना के घोषित भारत विरोधी रुख़ के विपरीत वहाँ की सेना के पूर्व अधिकारी कुछ और ही खेल देखते हैं। उनका आरोप है कि पाकिस्तान की वर्तमान सरकार और सेना के बड़े अधिकारी भारत से कारोबारी रिश्ते बनाने के रास्ते खोज रहे हैं। पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड अधिकारी आदिल रजा इसे ग्रेटर पंजाब मॉडल का नाम देते हैं। उनका दावा है कि इस मॉडल को पाक सेना के शीर्ष अधिकारियों और शरीफ़ सरकार के ताक़तवर नेताओं की लॉबी का समर्थन है और इसके पीछे रणनीति करतारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर एक कारोबारी कॉरिडोर तैयार करना है। लिहाज़ा यह लॉबी भारत के साथ दुश्मनी ख़त्म करके कारोबारी सम्बन्ध मज़बूत करने पर जोर दे रही है, क्योंकि वह दोनों देशों के बीच एक सॉफ्ट बॉर्डर बनाना चाहती है। इसका मक़सद मुक्त व्यापार और सीमा पार आवाजाही को सुविधाजनक बनाना है।

रज़ा का आरोप है कि इस मॉडल के तहत कराची सहित सिंध, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के साथ ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटीआर) और भारत के बीच सॉफ्ट बॉर्डर से व्यापार के रास्ते खोलना है। हालाँकि उनकी चेतावनी है कि दोनों देशों की अर्थ-व्यवस्थाओं में ज़मीन आसमान का अंतर है और पाकिस्तान इस मॉडल को अपनाता है, तो कुछ ही वर्षों में वह भारत का एक सैटेलाइट स्टेट मात्र बनकर रह जाएगा।

यदि रज़ा की बात सही है, तो यह देखना बहुत दिलचप होगा कि भारत की तरफ़ से कौन इस तरह के कारोबारी कॉरिडोर में दिलचस्पी ले रहा है। क्या भारत सरकार पर्दे के पीछे इस पर कुछ काम कर रही है और क्या भारत के कुछ बिजनेसमैन इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं? यहाँ यह भी सवाल है कि यदि सचमुच परदे के पीछे ऐसी किसी रणनीति को भारत सरकार का भी समर्थन है, तो क्या भारत बलूचिस्तान के मामले में फ़िलहाल तटस्थ भूमिका बनाकर रखेगा! हाल में पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी ने एक निजी चैनल में बताया था कि भारत सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 ख़त्म किया था, तो पाकिस्तानी सेना के कोर कमांडर्स की बैठक में इस पर सहमति बन गयी थी कि इस मामले को ज़्यादा न बढ़ाया जाये।

हालाँकि सेना की सोच के विपरीत पूर्व पाक पीएम इमरान ख़ान ने संसद में न सिर्फ़ भारत के ख़िलाफ़ बयान दे दिया, बल्कि भारत से राजदूत वापस बुलाने और व्यापार बंद करने की घोषणा भी कर दी।

पाकिस्तान के सामने अब मुश्किल घड़ी है। एक तरफ़ बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी उसके ख़िलाफ़ सशत्र विद्रोह कर रही है वहीं ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में टीटीपी के पाकितान सेना पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। अपुष्ट ख़बरों पर भरोसा करें, तो हाल के तीन हफ़्तों में इन सभी गुटों के हमलों में पाकिस्तान सेना के 300 से ज़्यादा जवान मरे गये हैं। इन घटनाओं से विचलित पाकिस्तानी सेना के प्रमुख आसिम मुनीर को कहना पड़ा कि पाकिस्तान को एक हार्ड स्टेट बनाने की ज़रूरत है। इतिहास देखें, तो बँटबारे के बाद से ही बलूचियों और पाकिस्तानी के बीच संघर्ष रहा है। जब 1947 में भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना तो कुछ ही महीने बाद 1948 में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर जबरन क़ब्ज़ा कर लिया। दरअसल बलूचिस्तान एक जनजातीय समाज है। वहाँ के लोग भाषा, जातीयता, इतिहास, भौगोलिक भेद, सांप्रदायिक असमानताओं, औपनिवेशिक कलंक और राजनीतिक अलगाव के आधार पर शुरू से ही पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हिंसक संघर्ष में संलिप्त हो गये थे।

पाकिस्तान की दिक़्क़त यह भी है कि बलूचिस्तान भौगोलिक रूप से उसका सबसे बड़ा राज्य है और कुल जनसंख्या का सिर्फ़ छ: फ़ीसदी होने के बावजूद उसका भू-भाग पूरे पाकिस्तान का 46 फ़ीसदी है। हाइड्रोकार्बन और खनिजों से समृद्ध होने के बावजूद बलूचिस्तान को कभी पाकिस्तान ने तरजीह नहीं दी। लिहाज़ा वह देश का सबसे पिछड़ा राज्य है और वहाँ के 1.5 करोड़ लोगों में से 70 ग़रीबी की रेखा से नीचे गुज़र-बसर करते हैं। उन्हें पाकिस्तान प्रशासन, पुलिस और दूसरे संस्थानों में ऊँचे पदों से महरूम रखा गया है। लेकिन इन तमाम समस्यायों और पाकिस्तानी सेना के ज़ुल्म के बावजूद बलूच आबादी में राष्ट्रवाद की जबरदस्त भावना रही है। उनमें विद्रोह का आधार वुद्धिजीवी और युवा, ख़ासकर माध्यम वर्ग का युवा है, जो आज़ाद राष्ट्र और अपने लिए तरक़्क़ी के बड़े सपने देखता है। ऐसे बहुत से युवा, वुद्धिजीवी देश से बाहर गये और नये तेवर के साथ अब बलूचिस्तान में आज़ादी की जंग शुरू कर चुके हैं।