किसानों को बहलाने की कोशिश

– रबी की सिर्फ़ छ: फ़सलों के नये न्यूनतम समर्थन मूल्य से ख़ुश नहीं किसान

योगेश

केंद्र सरकार ने रबी की छ: फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में मामूली भाव बढ़ाकर किसानों को ख़ुश करने की कोशिश की है; लेकिन किसान इससे ख़ुश नहीं हैं। रबी की फ़सलों के बड़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर जब कुछ किसानों से बात की गयी, तो उन्होंने बिना सोचे कहा कि अभी तो धान ही बहुत सस्ता बिक रहा है। लागत भी नहीं निकल पा रही है।

खेती-बाड़ी में पाई-पाई का हिसाब रखने वाले सुरेश नाम के एक किसान ने कहा कि उनकी 16 बीघा धान की फ़सल में कुल 57,890 रुपये की लागत आयी है। उन्हें 16 बीघा खेत से 42 कुंतल धान मिले हैं। इसमें से आठ कुंतल उन्होंने अपने लिए रखे हैं और बाक़ी 34 कुंतल व्यापारी को एक महीने की उधारी पर 2,100 रुपये प्रति कुंतल के भाव में बेच दिये हैं। उनके कुल 42 कुंतल धान 2,100 के हिसाब से 88,200 रुपये के हुए, जिसमें से 30,310 रुपये की बचत हुई। इसमें भी घर के पाँच लोग लगातार मेहनत करते रहे। अगर उनकी मज़दूरी घर में खाने के लिए बचाये गये आठ कुंतल धान ही मान लें, तो 16,800 रुपये के होते हैं। तब 13,510 रुपये बचे। सुरेश ने कहा कि अगर इसमें अपनी और अपने परिवार की हर दिन की मेहनत जोड़ दूँ, तो मुझे घाटा ही होगा। रामपाल नाम के एक किसान ने कहा कि उन्हें धानों में इस साल कुछ ख़ास नहीं बचा है। उनकी धान की फ़सल में लागत के हिसाब से पैदावार ही नहीं मिली है। आवारा पशुओं ने उनका काफ़ी नुक़सान किया है। इस बार समय पर बारिश भी ठीक से नहीं हुई। तीन बीघा धान की फ़सल थी, जिसमें उनकी क़रीब 7,000 रुपये की लागत आयी और परिवार के खाने लायक भी धान नहीं मिले।

दीपावली से ठीक पहले रबी की छ: फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में थोड़ी-सी बढ़ोतरी से किसानों को कोई बड़ा लाभ नहीं होने वाला है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदी जाने वाली सभी फ़सलों का भाव बढ़ाने की किसानों की माँग किसान आन्दोलन के समय से है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई और केंद्र सरकार ने हमारे किसानों से उनकी खेती छीनकर पूँजीपतियों को देने के लिए भूमि अधिग्रहण क़ानून को सरल किया है। किसानों पर दर्ज मुक़दमों को भी केंद्र सरकार ने वापस नहीं लिया है। आन्दोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिजनों को मुआवज़ा नहीं मिला है। आय दोगुनी करने के नाम पर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 500 रुपये देने में भी केंद्र सरकार बहुत सफल नहीं दिखती है। कई किसानों की शिकायत है कि उन्हें सरकार से कोई पैसा नहीं मिलता है। कई किसानों की शिकायत है कि उनके खाते में सम्मान राशि आनी बंद हो गयी है। कई किसानों का कहना है कि 500 रुपये महीने से उनका कोई भला नहीं होता। अभी 05 अक्टूबर को ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की इस साल की तीसरी $िकस्त 9.5 करोड़ किसानों के खातों में भेजने के केंद्र सरकार के दावे पर कई किसानों ने कहा कि उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली सभी 23 फ़सलों पर भाव न बढ़ने से किसानों में कोई ख़ुशी नहीं है। बड़े किसानों में गिने जाने वाले भमोरा के किसान विष्णु ने कहा कि महँगाई और लागत के हिसाब से किसानों को हर फ़सल पर लागत मूल्य और उस पर 50 प्रतिशत लाभ जोड़कर सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य देना चाहिए, जो कि किसानों की माँग है। यह फॉर्मूला स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तय सी2+50 वाला है, जिसे किसान एमएसपी का गारंटी क़ानून कहकर माँग कर रहे हैं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए किसानों से लिखित में वादा भी कर चुके हैं। तहमारे देश में फ़सलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदने वाली प्रमुख एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) है। लेकिन 23 फ़सलों की ख़रीद की जगह भारतीय खाद्य निगम ज़्यादातर धान और गेहूँ ही ख़रीदता है, जिसकी ख़रीद 100 प्रतिशत भी नहीं है। किसानों की माँग है कि केंद्र सरकार ऐसा क़ानून बनाए, जिसमें किसानों की सभी 23 फ़सलों की 100 प्रतिशत ख़रीदारी सी-2+50 के फॉर्मूले पर तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हो। लेकिन केंद्र सरकार किसानों की इस माँग पर ध्यान न देकर उन्हें कहीं 500 रुपये महीना देकर बहला रही है और अब रबी मौसम की छ:  फ़सलों का थोड़ा-थोड़ा भाव बढ़ाकर उनका अपमान कर रही है।

समझदार और पढ़े-लिखे किसान कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने सभी फ़सलों पर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करके सी2+50 वाला एमएसपी का गारंटी क़ानून बनाने की जगह रबी की छ: फ़सलों के लिए ए2+एफएल फॉर्मूले का इस्तेमाल किया है। ए2+एफएल फॉर्मूले में खेती में लगने वाली लागत और परिवार के परिश्रम के मूल्य को एक निश्चित लागत से जोड़कर दिया जाता है। लेकिन फ़सलों की लागत और परिवार की मेहनत को केंद्र सरकार मनमाने तरीक़े से कम लगा रही है।

अगर केंद्र सरकार सभी 23 फ़सलों की ख़रीदी सी-2+50 के फॉर्मूले से न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके किसानों से करे, तो अनुमानित रूप से केंद्र सरकार को 10 लाख करोड़ रुपये से 12 लाख करोड़ रुपये इसके लिए हर साल लगाने होंगे। केंद्र सरकार ने पूँजीगत निवेश के लिए वित्त वर्ष 2024-25 का अंतरिम बजट लक्ष्य 11.11 लाख करोड़ रुपये रखा है। इसी बजट में से सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को वेतन मिलता है। पूँजीपतियों का क़ज़र् सरकार ने 10 लाख करोड़ से ज़्यादा माफ़ कर दिया है; लेकिन किसानों के लिए उसके पास 500 रुपये महीने से ज़्यादा कुछ नहीं है। रबी की जिन छ: फ़सलों पर केंद्र सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में मामूली भाव बढ़ाया है, उन फ़सलों की ख़रीद अगले साल अप्रैल में शुरू होगी। इन छ: फ़सलों में गेहूँ पर 150 रुपये प्रति कुंतल, चने पर 210 रुपये प्रति कुंतल, सरसों पर 300 रुपये प्रति कुंतल, मसूर दाल पर 275 रुपये प्रति कुंतल, जौ पर 130 रुपये प्रति कुंतल और कुसुम पर 140 रुपये प्रति कुंतल का भाव बढ़ाया है। इसके हिसाब से रबी की इन छ: फ़सलों में गेहूँ का नया भाव 2,275 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 2,425 रुपये, चने का नया भाव 5,440 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 5,650 रुपये, सरसों का नया भाव 5,650 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 5,950 रुपये, जौ का नया भाव 1,850 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 1,980 रुपये, मसूर का नया भाव 6,425 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 6,700 और कुसुम का नया भाव 5,800 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 5,940 रुपये प्रति कुंतल किसानों को मिलेगा।

इस समय किसानों की ख़रीफ़ की फ़सल बिकने को तैयार है, जिसमें धान की फ़सल प्रमुख है। लेकिन किसानों की धान की फ़सल का सही भाव नहीं मिल रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सामान्य धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,300 रुपये प्रति कुंतल और ग्रेड-ए वाले धान के लिए 2,320 रुपये प्रति कुंतल मिल रहा है। लेकिन ख़रीद केंद्रों पर धान में गीलेपन और पराली होने के आरोप लगाकर किसानों से मोलभाव करने की कोशिश दलाल और ख़रीद केंद्रों के लालची कर्मचारी कर रहे हैं। धान की लागत लगभग 2,600 रुपये प्रति बीघा से लेकर 4,100 रुपये प्रति बीघा तक आती है। एक बीघा में दो से तीन कुंतल की उपज होती है। अगर भूमि में जान कम है, तो पैदावार कम ही मिलती है। इस तरह धानों में किसानों को कुछ ख़ास नहीं मिलता है। अगर केंद्र सरकार सी2+50 के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली सभी फ़सलों को ख़रीदेगी, तो उन्हें लागत मूल्य से अलग उसका 50 प्रतिशत लाभ मिलेगा, जिसके हिसाब से सिर्फ़ धान का ही भाव कम-से-कम 3,600 रुपये प्रति कुंतल से 5.400 रुपये प्रति कुंतल हो जाएगा। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने पर किसानों को न प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि देने की ज़रूरत पड़ेगी और न ही उन्हें हर महीने पाँच किलो अनाज देने की ज़रूरत पड़ेगी। किसी किसान पर क़ज़र् नहीं रहेगा और न ही किसान आत्महत्या करेंगे। किसानों के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ सकेंगे और किसानों को बीमार होने पर इलाज कराने में आसानी होगी। किसी बुरे वक़्त में और बच्चों की शादी आदि में उन्हें क़ज़र् भी नहीं लेना पड़ेगा। लेकिन हमारे देश की सरकार किसानों के हित में काम न करके उन्हें बहलाने की कोशिश कर रही है।