उत्तर प्रदेश में निर्धन बच्चों की शिक्षा पर कुठाराघात

देश की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में राम राज्य की परिकल्पना के मध्य धरातल की सच्चाई को समझ पाना हर किसी के लिए आसान नहीं है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उनके समर्थक जिस व्यवस्था को राम राज्य बता रहे हैं उस व्यवस्था में अपराध महँगाई, बेरोज़गारी, अराजकता, प्रशासनिक मनमानी बढ़ने के साथ साथ अब अशिक्षा भी बढ़ रही है। कहा जाता है कि शिक्षा एक ऐसा प्रकाश है, जिसमें कोई व्यक्ति नहा ले, तो उसका जीवन स्तर ऊँचा हो जाता है। मगर रोज़गार न मिलने पर पढ़े-लिखे लोग भी निर्धनता में जीवन व्यतीत करने को विवश होते हैं।

सेवानिवृत्त अध्यापक बलवंत सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में बेरोज़गारी तो बढ़ ही रही है, अशिक्षा भी बढ़ रही है। स्थानीय स्तर पर दृष्टि घुमाने पर देखने में आया कि कोरोना काल से अनेक निर्धन परिवारों के बच्चों की शिक्षा बाधित हुई है। इसके अतिरिक्त निर्धन परिवारों के अधिकांश बच्चों की शिक्षा का सामान्य स्तर भी प्राथमिक शिक्षा से लेकर माध्यमिक शिक्षा तक ही अधिक सीमित है। निजी विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने से ग्रामीण क्षेत्र के 60 प्रतिशत बच्चे वंचित हैं। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर अत्यधिक निम्न है एवं वर्ष में सरकारी विद्यालयों की छुट्टियाँ भी सबसे अधिक रहती हैं। इसके अतिरिक्त कभी अध्यापक तो कभी विद्यार्थी छुट्टियाँ लेते रहते हैं। सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों पर विद्यालय आने का पहले जैसा दबाव भी अब नहीं रहता है। पहले यदि कोई विद्यार्थी अकारण अनुपस्थित हो जाता था, तब कक्षा के कुछ बच्चे उसे घर से पकड़कर लाते थे। अध्यापकों का भय विद्यार्थियों में रहता था। अब अध्यापक बच्चों को न मार सकते हैं एवं न पढ़ने का उन पर अधिक दबाव बना सकते हैं। सरकार ने क़ानून ही ऐसा बना दिया है। निजी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ा पाना सबके वश की बात नहीं है।

बंद हो रहे सरकारी विद्यालय

उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग के सूत्रों से बीते दिनों मिली एक जानकारी ने शिक्षा की ज्योति जलाने वालों को झटका दिया था। जानकारी यह थी कि उत्तर प्रदेश सरकार स्वयं ही प्रदेश के 27,764 सरकारी विद्यालयों को बंद करेगी। सरकार का यह निर्णय उन बच्चों पर सबसे बड़ा कुठाराघात है, जो निर्धन परिवारों से आते हैं। ऐसा कहा गया है कि शिक्षा विभाग अगले शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने से पहले ही प्रदेश के 27,764 विद्यालयों में ताले जड़ देगा। इतनी बड़ी संख्या में सरकारी विद्यालयों में ताले लगाने के पीछे उत्तर प्रदेश सरकार का तर्क है कि विद्यार्थियों की घटती संख्या के कारण इन विद्यालयों को बंद किया जा रहा है। इसके लिए कुछ दिन पहले ही शिक्षा विभाग के महानिदेशक ने एक समीक्षा बैठक में इसके लिए सभी जनपदों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दे दिये हैं।

बेसिक शिक्षा विभाग के आधिकारिक सूत्र कहते हैं कि 50 से कम विद्यार्थियों की संख्या वाले विद्यालयों को बंद करके उन विद्यार्थियों को निकट के दूसरे विद्यालयों में प्रवेश दिया जाएगा। इस सम्बन्ध में 14 नवंबर तक बेसिक शिक्षा अधिकारियों को विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या एवं किन-किन विद्यालयों के विद्यार्थियों को स्थानांतरित करना है, इसकी पूरी विवरणी बनाकर उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपने का आदेश था; मगर कहा जा रहा है कि अभी सरकार ने इसकी जानकारी साझा नहीं की है कि शिक्षा अधिकारियों ने उसे विद्यालयों एवं उनमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों की विवरणी सौंपी है कि नहीं। इन विद्यालयों को बंद करने को लेकर कांग्रेस पार्टी से सांसद प्रियंका गाँधी एवं अन्य विपक्षी नेताओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उनकी शासन व्यवस्था पर निशाना साधा था। जन-सामान्य से लेकर राजनीतिक स्तर पर विद्यालयों के बंद करने प्रश्न पर सभी ने इसे अनुचित एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अज्ञानता का परिणाम ही बताया। मास्टर नंदराम कहते हैं कि योगी सरकार को विद्यालयों में घटती विद्यार्थियों की संख्या पर चिन्ता करते हुए उसे बढ़ाने के लिए प्रयास करने चाहिए थे। इसके लिए विद्यालयों में पढ़ाई का स्तर, विद्यालयों में प्राथमिक सुविधाओं एवं अध्यापकों की नियुक्ति पर कार्य किया जाना चाहिए था। मगर पहले शिक्षा का स्तर गिराकर विद्यालयों को बंद किया जा रहा है; क्योंकि निजी विद्यालयों से लाखों रुपये महीने की कमायी करने वाले उनके व्यापारी मालिक सरकार एवं शिक्षा अधिकारियों को रिश्वत देते हैं। बीते 10 वर्षों में निजी विद्यालयों की संख्या दोगुनी से अधिक हो चुकी है। इसके विपरीत सरकारी विद्यालयों की संख्या घट रही है। ऐसा करके सरकार निर्धनों से शिक्षा का अधिकार छीनने का कार्य ही कर रही है।

योगी-राज में घटे विद्यालय

उत्तर प्रदेश में शिक्षा की अलख जगाने एवं उत्तर प्रदेश में राम राज्य स्थापित करने का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन का विश्लेषण करने पर दृश्य अलग ही दिखेगा। नित्य सामने आने वाले समाचार अपराध की कई घटनाओं के गवाह होते हैं। बुलडोज़र का भय, महँगाई, बेरोज़गारी एवं असुरक्षा की भावना में बढ़ोतरी की भी गवाही ये समाचार देते दिखते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क्रांति लाने की जगह उसे ठप किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2001 में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 88,927 थी। अगले 13 वर्षों के उपरांत वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 1,54,982 थी। इसके अगले वर्ष 2015 में 774 प्राथमिक विद्यालय बढ़े एवं इनकी कुल संख्या 1,55,756 हो गयी। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में आ गयी। योगी आदित्यनाथ के शासन के पाँच वर्ष बाद वर्ष 2022 में प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या घटकर 1,37,024 रह गयी थी। अर्थात् मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पाँच वर्ष के शासनकाल में सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 18,732 कम हुई है। अब उन्होंने 27,764 विद्यालयों को बंद करने का निर्णय फिर ले लिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों की संख्या घटकर मात्र 1,09,260 रह जाएगी। इस प्रकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आठ वर्ष शासनकाल में कुल 46,496 प्राथमिक बंद हो जाएँगे।

बजट में ढिंढोरा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार शिक्षा का बजट जब-जब प्रस्तुत करती है, तो उनके शिक्षा मंत्रियों के भाषणों से ऐसा लगता है कि मानों दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा व्यवस्था उत्तर प्रदेश में ही है। मगर जब धरातल पर इसकी पड़ताल की जाती है तो दृश्य अलग ही दिखता है। स्नातकोत्तर की छात्रा सरिता (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि उन्होंने चार वर्ष पूर्व जब 12वीं की बोर्ड परीक्षा 72 प्रतिशत अंकों से पास की थी, तो उन्हें आशा थी कि प्रदेश की सरकार द्वारा 12वीं पास करने वाली छात्राओं को मिलने वाले नोटपैड में से एक मिलेगा; मगर उन्हें आज तक कोई नोटपैड नहीं मिला है।

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले कक्षा आठ तक के 2,00,00,000 से अधिक छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क स्वेटर एवं जूते-मोजे उपलब्ध कराने के लिए 650 करोड़ रुपये एवं किताबें रखने के लिए स्कूल बैग वितरित करने के लिए 350 करोड़ रुपये का बजट पारित किया था। सर्दियाँ भी आ गयीं; मगर सभी विद्यार्थियों पर न तो सरकारी बैग दिखते हैं एवं न ही सरकार की ओर से मिले हुए स्वेटर ही दिखते हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बजट में अलाभित समूहों एवं निर्धन वर्ग के 2,00,000 से अधिक बच्चों को वित्त वर्ष 2024-25 में विद्यालयों में प्रवेश दिलाने का लक्ष्य पूरा करने के लिए 255 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया था; मगर ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश सरकार ने कायाकल्प योजना के तहत भी इस वित्त वर्ष के लिए 1,000 करोड़ रुपये का बजट एवं ग्राम पंचायतों में डिजिटल पुस्तकालय स्थापित करने के लिए 300 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया था। मगर एकाध उदाहरण को छोड़ दें, तो दोनों में से एक भी कार्य धरातल पर फलीभूत होता दृष्टिगोचर नहीं हुआ। ऐसी अनेक घोषणाएँ शिक्षा क्षेत्र में उत्तर प्रदेश सरकार हर वर्ष करती रहती है; मगर दूसरी ओर वह शिक्षा के इन मंदिरों को बंद करती जा रही है, जिन्हें प्रदेश के नौनिहालों का जीवन प्रकाशित करने के लिए पिछली सरकारों ने बनाया है।

अच्छी नहीं विद्यालयों की स्थिति

उत्तर प्रदेश के अधिकांश विद्यालय दुर्दशाग्रस्त दिखायी देते हैं। अनेक विद्यालयों में कुछ वर्ष पूर्व बच्चों की कक्षाएँ सुसज्जित हुआ करती थीं। विद्यालयों के मैदान हरे-भरे हुआ करते थे, अब उन विद्यालयों की रंगत समाप्त होती जा रही है। कई विद्यालय जर्जर हो चुके हैं। इन विद्यालयों में बैठने की व्यवस्था तो दूर पेयजल एवं शौच की भी उचित व्यवस्था नहीं है। वर्षा में कई विद्यालय जलाशय बन जाते हैं। बीते दिनों सहारनपुर के वार्ड संख्या 66 के विद्यालय के सामने बिजली तारों का जाल विद्यार्थियों के प्राण संकट में डाले हुए हैं। कई विद्यालयों के बच्चे कीचड़ में होकर विद्यालयों तक का मार्ग तय करते हैं। कई विद्यालयों में मिलने वाले मिड-डे मील की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार हर वर्ष विद्यालयों का बजट प्रस्तुत तो करती है; मगर ऐसा लगता है कि यह बजट केवल सुनाने के लिए होता है अथवा बजट का अधिकांश भाग भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।