वर्ष 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों (ग्लास्गो में आयोजित) के ट्रायल से एक दिन पहले जीतू राय बहुत उत्साहित थे. उनकी खुशी की वजह यह नहीं थी कि उन्हें अपनी पसंदीदा स्पर्धा 10 मीटर एयर पिस्टल में क्वालिफाई करने का यकीन था, बल्कि वह इसलिए खुश थे क्योंकि उनकी छुट्टी मंजूर कर ली गई थी. उनका दिमाग कहीं और था और यही वजह थी कि वे क्वालिफाई करने से चूक गए. हालांकि 27 साल का यह नौजवान निशानेबाज 50 मीटर पिस्टल में क्वालिफाई करने में सफल रहा. उन्होंने स्कॉटलैंड में डंडी स्थित बैरी बडॉन शूटिंग रेंज में इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक भी जीता.
नेपाली मूल के इस निशानेबाज के लिए पिछले कुछ महीने कठिनाई भरे रहे. एक सूटकेस के साथ शिविरों में जीवन बिता रहे राय का जीवन 10 मीटर अथवा 50 मीटर दूर स्थित लक्ष्य पर निशाना साधते बीत रहा था. इस बीच उन्हें जबरदस्त तरीके से ध्यान केंद्रित करना पड़ता था. एकाग्रता इतनी जरूरी कि दिल धड़कने तक से संतुलन बिगड़ा और निशाना चूका.
स्वर्ण पदक या कोई भी पदक उनके लिए बहुत मायने रखता है. हालांकि उनके मन का एक हिस्सा अभी भी आराम करने और जिंदगी की आम खुशियां हासिल करने के लिए तरसता है. मसलन पहाड़ों पर जाना और धान या आलू के खेतों पर नजर दौड़ाना जहां एक वक्त वे कड़ी मेहनत करते थे, या फिर अपनी मां के साथ नेपाल स्थित अपने जन्मस्थान संखूवसाभा में समय बिताना.
दक्षिण कोरिया के इंचियोन में आयोजित 17वें एशियाई खेलों में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतने के कुछ ही मिनट बाद उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘मैं घर जाकर आराम करना चाहता हूं.’ लेकिन इसके तत्काल बाद उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं आराम नहीं कर सकता. अभी विश्व कप फाइनल्स बाकी हैं.’ यह मुकाबला अक्टूबर में अजरबैजान के गबाला में होना है.
पदकों की बात की जाए तो राय काफी खुशकिस्मत रहे हैं लेकिन निशानेबाजी में जिस कदर कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है उसे देखते हुए यह तो सोचा भी नहीं जा सकता है कि उन्हें यह सब आसानी से हासिल हुआ होगा.
लेकिन इसके बावजूद जब आप उनसे बात करेंगे तो आपको लगेगा कि वह इस बात को समझते हैं यह उनके खेल के लिए जरूरी है. हालिया सफलता के बाद स्वदेश वापसी पर तो मीडिया उन पर टूट ही पड़ा. उनकी मुस्कान किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती है. उनकी सादगी का आलम यह है कि वे खेल जगत के सुपरस्टार की छवि में बेमेल नजर आते हैं.
राय कहते हैं कि उनकी मां उनकी उपलब्धियों की अहमियत नहीं समझती है. शायद वह खुद भी नहीं समझते लेकिन एक बात जिसे वह बखूबी समझते हैं वह यह कि अभी बहुत कुछ हासिल करना है. शायद यही उनका स्वभाव है और वह यह मानते भी हैं कि वह अपने भविष्य के निशानेबाजी कार्यक्रमों के अलावा बहुत कुछ नहीं सोचते.
वह अपने रूसी कोच पॉवेल स्मिरनोव का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उन्हें उनका साथ पसंद है. राय अपना ज्यादातर समय उन्हीं के साथ बिताते हैं. राय कहते हैं, ‘मैं उनसे बात करता हूं और मैंने उनसे काफी कुछ सीखा है… उनके पास बताने को काफी कुछ है. मैं उनका ऋणी हूं.’
निशानेबाजी ऐसी विधा है जिसमें मामूली सी चूक समस्या खड़ी कर सकती है. यहां चूक की गुंजाइश बहुत कम है क्योंकि निशानों का दायरा सीमित होता हैै
भारतीय टीम के सबसे सम्मानित कोच में से एक मोहिंदर पाल, राय के बारे में कहते हैं, ‘मानसिक रूप से वह बेहद मजबूत है, शायद हमारी टीम में सबसे ज्यादा लेकिन इसके बावजूद जीतू भीतर एक कोना ऐसा है जिसका ख्याल रखना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उसका पूरा ध्यान शूटिंग पर होता है. इसमें कोई दोराय नहीं कि वह बेहद प्रतिभाशाली है.’
राय तथा अन्य भारतीय खिलाड़ियों के साथ काम करने वाले खेल मनोविज्ञानी वैभव अगाशे कहते हैं, ‘यह सीजन बहुत लंबा खिंचा और यह स्वर्णपदक पूरी तरह शारीरिक स्थायित्व और मानसिक मजबूती की बदौलत है. वह हमारी टीम के सबसे मजबूत निशानेबाज हैं और उनके प्रशिक्षण में कार्डियो भी शामिल है जो उनको मजबूत बनाता है.’
उनके कोच स्मिरनोव इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं कि वह लगातार मेहनत किए जा रहे हैं और अब उनको पूरी तरह आराम की आवश्यकता है.
राय के लिए यह सत्र बहुत लंबा साबित हुआ है. जून में उन्होंने विश्व कप में नौ दिन के भीतर तीन पदक जीते. उसके बाद राष्ट्रमंडल खेल और विश्व चैंपियनशिप का आगमन हुआ और उसके बाद एशियाई खेल. निश्चित तौर पर ये पदक उनके लिए आर्थिक समृद्धि लाएंगे लेकिन जो बात उनको कष्ट पहुंचाती है वह है उत्तर प्रदेश के निवासी के रूप में उनकी मान्यता को लेकर राज्य सरकार की संवेदनहीनता. तमाम दस्तावेजों की मौजूदगी के बावजूद राज्य में उनको बाहरी समझा जाता है और यह बात उनको बहुत व्यथित करती है. उन्होंने अन्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के बारे में भी चर्चा की लेकिन ऐसा प्राय: तात्कालिक क्रोध में हुआ. अब जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनके लिए 50 लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा कर दी है तो कहा जा सकता है कि पैसा और मान्यता दोनों उनकी ओर बढ़ रहे हैं.
हाल के दिनों में राय 10 मीटर एयर पिस्टल में दुनिया के पहले जबकि 50 मीटर एयर पिस्टल में पांचवे नंबर के खिलाड़ी रह चुके हैं. हालात हमेशा से ऐसे नहीं थे.
वह 11 साल पहले सेना में शामिल हुए और वहीं उनका परिचय निशानेबाजी से हुआ. वह निशानेबाजी के बजाय अन्य विधाओं में अधिक रुचि दिखा रहे थे लेकिन आखिरकार उनको लगा कि वह इस विधा में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. सन 2007 में लगातार खराब प्रदर्शन ने उन्हें सेना के निशानेबाजी शिविर से बाहर कर दिया लेकिन 2009 में वे वापस लौटे.
जुलाई, 2011 में जब उन्होंने तीन पदक जीते तो यह उनके लिए एक नई शुरुआत थी. उनको सेना की मार्क्समैन इकाई में बुलाया गया और वर्ष 2012 उनके लिए सबक से भरा वर्ष बन गया. फिर उन्हें देश की राष्ट्रीय टीम के लिए चुन लिया गया.
एयर पिस्टल और फ्री पिस्टल प्रतियोगिताओं में निरंतरता के साथ ही उन्होंने गत वर्ष दक्षिण कोरिया में अपनी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए भारतीय टीम में जगह सुनिश्चित कर ली. वहां वह अंतिम दौर तक पहुंचे और सातवें स्थान पर रहे. उसके बाद कुवैत में एशियाई एयर गन प्रतियोगिता में उन्होंने तीन रजत पदक हासिल किए. फोर्ट बेनिंग में आयोजित विश्व कप के बाद वह भारतीय टीम के स्थायी सदस्य बन गए. उस दौर को याद करते हुए राय कहते हैं, ‘उसी वक्त मुझे लगा कि मैं बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी पदक जीत सकता हूं.’
शारीरिक और मानसिक शक्ति का तालमेल एक विश्वस्तरीय निशानेबाज के लिए बेहद जरूरी होता है. यही वह जगह है जहां प्रतिभागी की मजबूती और हर चीज से निजात पाने की उसकी क्षमता काम आती है. राय ने अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत की. उनकी सहायता करने वालों में फिर चाहे वह कोच मोहिंदर और स्मिरनोव हों या मानसिक प्रशिक्षक अगाशे, सभी उनकी बहुत तारीफ करते हैं. निशानेबाजी एक ऐसी विधा है जिसमें मामूली सी चूक समस्या खड़ी कर सकती है. गले और कंधों को इसमें काफी दबाव झेलना पड़ता है. इस खेल में चूक की गुंजाइश बहुत कम है क्योंकि इन निशानों का दायरा बहुत सीमित होता है. 10 मीटर की प्रतियोगिता में बुल्स आई 11.5 मिमी जबकि 50 मीटर में 50 मिमी की होती है.
राय 11 गोरखा रेजिमेंट के जवान हैं और मानसिक रूप से मजबूत होने के बावजूद हर सफलता के बाद उन पर उम्मीदों का बोझ जरूर बढ़ता होगा. आश्चर्य नहीं कि उनके कोच आसपास मौजूद सभी लोगों से यह कहते नजर आते हैं कि इन निशानेबाजों पर और बोझ न डाला जाए. उन पर पहले ही उम्मीदों का भारी बोझ है. अब जबकि 2016 का ओलंपिक करीब है, उम्मीद की जानी चाहिए कि राय ब्राजील में बिना किसी दबाव के शानदार प्रदर्शन करेंगे.