पाटीदार आरक्षण संघर्ष समिति (पीएएसएस) के राष्ट्रीय संयोजक अश्विन पटेल हैं. कथित तौर पर कहा जाता है कि हार्दिक पटेल ने इसी संगठन से अपनी पहचान बनाई है. हालांकि इस बात से हार्दिक साफ-साफ इंकार कर चुके हैं. उनका कहना है कि उनके आंदोलन को पीएएसएस से जोड़कर न देखा जाए. वहीं अश्विन पटेल की बातों पर भरोसा किया जाए तो हार्दिक उनके संगठन से बाकायदा जुड़े हुए थे, लेकिन उनकी दिलचस्पी पटेल समुदाय के कल्याण से ज्यादा राजनीति में थी, इसीलिए उन्हें संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
अश्विन कहते हैं, ‘ये 1992 की बात है, जब गुजरात के लोगों ने आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाई थी. यह एक छोटे स्तर का विरोध प्रदर्शन था, जो मेहसाणा के नजदीक शुरू किया गया था. लोग देश में आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ खड़े हुए थे. उस समय यह विरोध प्रशासन का ज्यादा ध्यान नहीं बटोर पाया और कहीं गुम हो गया. इतने दशक बाद पटेलों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर पाटीदार आरक्षण संघर्ष समिति तीन साल पहले उभरी.’ उन दिनों को याद करते हुए अश्विन कहते हैं, ‘शुरुआत में हमारे संगठन का उद्देश्य देश से आरक्षण खत्म करना था. करीब एक साल तक विरोध जारी रहा. उस समय संगठन में कुल पचास कार्यकर्ता थे. तब हमें ये लगा कि हमारी मांगें पूरी नहीं हो पाएंगी. अगर समाज का एक वर्ग हमारा समर्थन भी करेगा तब भी हम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे. इसीलिए हमने पटेलों के लिए ओबीसी कोटे की मांग की. ये मांग खासतौर से किसानों के लिए थी जिनकी हालत बहुत खराब थी. इसके बाद पटेलों को ओबीसी कोटा देने की मांग को लेकर दो साल पहले सूरत में आंदोलन शुरू हुआ. हमने रैलियां करने से पहले लोगों में जागरूकता फैलाने का निर्णय लिया था. हमारी योजना अगले दो सालों में गांवों तक पहुंचकर एक शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने की थी. हम नहीं चाहते थे कि ओबीसी में शामिल दूसरे समुदाय पटेलों के खिलाफ हिंसात्मक रुख अख्तियार कर लें और हमारे खिलाफ खड़े हो जाएं.’ अश्विन के अनुसार, ‘संगठन दिल्ली में जब आंदोलन के लिए खाका तैयार कर रहा था तब हार्दिक गुजरात की टीम देख रहे थे. वे ग्रामीण इलाकों में बहुत सक्रिय थे. उस समय सरदार पटेल समूह (एसपीजी) ने हमारा समर्थन किया था. साथ ही समूह का नजरिया इस बात को लेकर स्पष्ट था कि वे आंदोलन में सामने नहीं आएंगे.’ हार्दिक ने गुजरात में एसपीजी के साथ आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम किया और यह अभियान सबकी नजरों में आ गया.’
आंदोलन ने हिंसक रुख कैसे अख्तियार कर लिया, इसके जवाब में अश्विन ने कहा, ‘विसनगर की रैली हमारी दूसरी महत्वपूर्ण रैली थी जिसके इंचार्ज हार्दिक थे. हमारा उद्देश्य एकदम साफ था. हमें एक शांतिपूर्ण रैली कर पांच हजार पटेलों के हस्ताक्षर लेने थे. फिर इन हस्ताक्षरों के साथ एक ज्ञापन पुलिस कमिश्नर को देना था. लेकिन रैली के बाद झड़प हो गई. विसनगर के विधायक ऋषिकेश पटेल की गाड़ी जला दी गई और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया.’
अश्विन ने बताया, ‘इसके बाद मामला दिल्ली पहुंच गया. दिल्ली में पटेल मंत्रियों ने मुझसे पूछताछ की. जब मैंने हार्दिक से पूरे मामले की जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया कि रैली खत्म होने के बाद हिंसा हुई थी. जबकि पूरी जानकारी लेने के बाद पता चला कि हार्दिक ने ज्ञापन के लिए सिर्फ 10 हस्ताक्षर लिए थे. हमारे संगठन ने हार्दिक के क्रियाकलापों पर सख्त रुख अपनाया. ये सामने आया कि पांच हजार पटेलों द्वारा हस्ताक्षर किए गए ज्ञापन की 15-20 प्रतियां अलग-अलग शहरों में भेजने की बजाय हार्दिक ने 42 ज्ञापन अलग-अलग मांगों के साथ भेज दिए थे. कुछ में उन्होंने लिखा कि हम पटेलों के लिए एससी/एसटी कोटा चाहते हैं. किसी में उन्होंने सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत कोटे की मांग की तो कहीं पर ओबीसी में 30 प्रतिशत का कोटा मांगा. अलग-अलग ज्ञापनों में कोटे का प्रतिशत 25 से लेकर 50 प्रतिशत तक था. हार्दिक ने पाटीदारों के लिए अलग कोटे की मांग भी की थी.’
अश्विन के अनुसार, ‘हार्दिक को किसानों और युवाओं से समर्थन मिला जो नहीं जानते थे कि उनका नेता कर क्या रहा था. इसीलिए हमें उन्हें अपने संगठन से हटाना पड़ा. हार्दिक ने हमें ऐसे हालात में पहुंचा दिया कि ओबीसी समुदाय के दूसरे लोग हमारे खिलाफ हो गए और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन को आगे ले जाने का उद्देश्य कहीं खो गया.’
32 वर्षीय अश्विन दोहराते हैं, ‘अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हार्दिक ने पाटीदार आरक्षण संघर्ष समिति के साथ धोखा किया. हमारा ज्ञापन राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ले जाने की बजाय हार्दिक कलेक्ट्रेट ऑफिस ले गए. इस तरह से इस आंदोलन को आगे नहीं ले जाना चाहिए था. इन सबके बावजूद 17 अगस्त को सूरत की रैली में हमारा संगठन उनके साथ खड़ा था. उस समय हिंसा का कोई मामला नहीं था क्योंकि हम ऐसा नहीं चाहते थे.’ अश्विन कहते हैं, ‘25 अगस्त की रैली से पहले मैंने गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल से मुलाकात की थी. सरकार हमसे मिलकर पटेल आरक्षण मामले का कोई हल निकालना चाहती थी. हार्दिक हमारे साथ नहीं आए क्योंकि कोई समाधान निकले वो इसके इच्छुक नहीं थे, बल्कि वे इस मुद्दे से राजनीतिक लाभ लेना चाहते थे.’
25 अगस्त को अहमदाबाद में हुई रैली को समर्थन न देने के सवाल पर अश्विन ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘ये पहले से तय था कि वे पुलिस से भिड़ेंगे. हार्दिक ने ये स्पष्ट कर दिया था वे ही आगे की कार्रवाई को निर्देशित करेंगे इसीलिए हम उनसे अलग हो गए.’ अश्विन कहते हैं, ‘हार्दिक के पास उस एजेंडे का ड्राफ्ट नहीं है जो हमने गुजरात सरकार को दिया था. हमारी आठ मांगे हैं- गरीबी रेखा के नीचे आने वाले भूमिहीन पाटीदार किसानों को विशेष पिछड़ा वर्ग का कोटा दिलवाना, समुदाय के विकास के लिए पटेल बोर्ड की स्थापना करवाना आदि. इसके अलावा बोर्ड के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट दिलवाने की भी मांग थी ताकि उससे छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति और कॉलेज जाने वाली छात्राओं को दो पहिया वाहन दिए जा सकें. साथ ही दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी करने वालों के लिए सरदार पटेल भवन का निर्माण कराना था ताकि छात्र वहां रहकर आराम से परीक्षा की तैयारी कर पाएं.’ अश्विन के अनुसार, पटेलों के कल्याण के लिए मांगों की सूची काफी लंबी है जिसे अब लाखों पटेलों की आशाओं का समर्थन मिला हुआ है और उनका आंदोलन आगे भी चलता रहेगा.