जयपुर का जवाहर कला केंद्र पारंपरिक और इस गुलाबी शहर की मूल योजना से प्रेरित विशिष्ट वास्तुकला का नमूना है, जो अन्य शहरों के कला केंद्रों से काफ़ी अलग दिखायी देता है। यहाँ कलाकार, पत्रकार, शिक्षा शास्त्री और कला प्रेमी सब जुटते हैं। साल भर यहाँ कार्यक्रम चलते रहते हैं। बावड़ी प्रणाली पर आधारित ओपन एयर थिएटर सबको रोमांचित करता है। 9.5 एकड़ में फैले जवाहर कला केंद्र को राजस्थानी कला और शिल्प को संरक्षित रखने के उद्देश्य से सन् 1991 में बनाया गया था।
भारतीय वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा डिजाइन किया गया जवाहर कला केंद्र नौ ग्रहों पर आधारित है। प्रत्येक ग्रह की विशेषताओं का उपयोग प्रत्येक वर्ग की कार्य क्षमता और प्रत्येक वर्ग में लागू वास्तु शिल्प डिजाइन की शैली को निर्धारित करने के लिए किया गया है। इसमें मंगल लाल ग्रह है और शक्ति का प्रतीक है। इसलिए इस वर्ग में प्रशासनिक कार्यालय बनाया गया है। मंगल की दीवारों के साथ-साथ नवग्रहों की व्याख्या की गयी है। सूर्य चूँकि प्रत्यक्ष ग्रह है, जिसे हर कोई रोज़ देखता है। यह ऊर्जा का प्रतीक है। सूर्य मंडल में पारंपरिक कुएँ (कुंड) के आकार में ओपन एयर थिएटर है।
गुरु बृहस्पति बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। इस मंडल में लाइब्रेरी है, जिसमें 1,000 के क़रीब कला विषयों से सम्बन्धित पुस्तकें हैं। बुद्ध ख़ज़ाने का ग्रह है। इसलिए यहाँ कला प्रदर्शनियों के लिए पाँच गैलरियाँ- सुकृति, सुलेख, संदर्भ, सुदर्शन हैं और राहु मंडल में स्फटिक गैलरी है। यहाँ राजस्थानी समकालीन कला को डिस्प्ले किया गया है।
केतु मंडल में राजस्थानी जीवन शैली के वस्त्रों, फर्नीचर और अन्य वस्तुओं का संग्रह है। शनि एक धीरे-धीरे चलने वाला ग्रह है। इसलिए शनि मंगल में सृजन नाम से स्कल्पचर और डिजाइन स्टूडियो बनाये गये हैं। इसमें नाट्य उत्सव, कला प्रदर्शनियाँ, शिल्प मेले, कार्यशालाएँ, फ़िल्म स्क्रीनिंग, संवाद, संगोष्ठियाँ और संगीत के कार्यक्रम चलते रहते हैं।
राजस्थान, ख़ासकर जयपुर एक बड़ा सांस्कृतिक शहर रहा है। शहर के प्रसिद्ध रंगकर्मी साबिर ख़ान कहते हैं कि ऐतिहासिक दृष्टि से जयपुर कला प्रेमी शहर है। यहाँ कहीं भी कोई संगीत का या थिएटर का कार्यक्रम होता है, तो क़रीब-क़रीब हाउसफुल हो जाता है। जवाहर कला केंद्र में भी नाटक मंचन के दौरान हाउसफुल रहता है।
उन्होंने बताया कि अभी यहाँ दो साल से रामलीला हो रही है। उसमें भी काफ़ी लोगों की भीड़ जुटती है। लोकरंग यहाँ का ख़ास कार्यक्रम है, जिसमें देश के सभी लोक नृत्य के कलाकार 10-12 दिनों तक अपनी कला प्रदर्शित करते हैं। हर साल चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप होती है, जिससे बच्चे आने वाले समय में थिएटर से जुड़ें। इससे उनके पैरेंट्स भी दर्शक के रूप में जुड़ते हैं।
वर्ष 2008 से कार्यरत जवाहर कला केंद्र के सहायक निदेशक अब्दुल लतीफ़ का कहना है कि आर्ट और कल्चर ऐसे आयाम हैं, जो सभ्यता को दिशा देते हैं। ऐसी जगह बेमिसाल होती है, जहाँ हम कला-संस्कृति और साहित्य के माध्यम से सबको एक साथ जोड़ते हैं। आज का जयपुर काफ़ी बढ़ गया है। लेकिन पुराना जयपुर शहर चौपड़ प्रणाली पर आधारित था और इसी सोच को ध्यान में रखकर यह इमारत बनायी गयी थी।
अब्दुल बताते हैं कि लाइब्रेरी जुपिटर यानी बृहस्पति क्षेत्र में है। लर्निंग सोर्स यहाँ हैं। राजस्थान में बाबड़ी की परंपरा के चलते यहाँ ओपन थिएटर इसी विशेषता को लेकर बना है। यह सूर्य ग्रह क्षेत्र में है। प्रशासन मंगल, तो इंडियन कॉफी हाउस चंद्र क्षेत्र में है। यहाँ शिल्पग्राम है। यहाँ विजुअल आर्ट, म्यूजिक एंड डांस, थिएटर और साहित्य पर पूरे साल काम होता है।
लाल पत्थर और संगमरमर से बने इस कला केंद्र का निर्माण पाँच वर्ष में पूरा हुआ। इसका प्रत्येक वर्ग एक विशेष ग्रह से मेल खाता है। इस केंद्र की कल्पना जयपुर के संस्थापक महाराजा जयसिंह (द्वितीय) ने 17वीं शताब्दी में की थी, जो विद्वान, गणितज्ञ और खगोल शास्त्री भी थे।