दलित राजनीति में आकाश बनाम चंद्रशेखर

उत्तर प्रदेश की राजनीति दलितों और पिछड़ों के इर्द-गिर्द ही घूमती है, जिसकी वजह है उनकी संख्या। चाहे वो भाजपा हो, चाहे कांग्रेस हो, चाहे सपा हो, चाहे बसपा हो या फिर चाहे दूसरी कोई भी पार्टी हो, सबको पता है कि पिछड़ों का वोट तो मिल भी जाएगा। लेकिन दलितों, ख़ासतौर पर जाटव समाज का वोट किसी को आसानी से नहीं मिलेगा, जो उत्तर प्रदेश में दलितों में सबसे ज़्यादा हैं। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 20 फ़ीसदी दलित हैं, और अभी यह कहा जाता है कि 21 फ़ीसदी से ज़्यादा दलित वोटर हैं। इस वोटर में जाटव समाज 40 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हिस्सेदारी जनसंख्या के हिसाब से रखता है, जो पहले मायावती का और बाद में उसका कुछ हिस्सा चंद्रशेखर आज़ाद रावण का कोर वोट बैंक बन चुका है। उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए तक़रीबन हर पार्टी की कोशिश रहती है कि किसी भी प्रकार से उसे दलित वोटरों की सपोर्ट मिल जाए, जिससे चुनाव जीता जा सके। लेकिन अब इस दलित वोटर पर दो दलित नेताओं या कहें कि दो दलित पार्टियों के बीच घमासान मचा हुआ है।

दरअसल, आकाश आनंद को चौथी बार लॉन्च करने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती की आँख की किरकिरी बने चंद्रशेखर आज़ाद को क्या मायावती ने वास्तव में बरसाती मेंढक कह दिया? और इसी पर चंद्रशेखर ने पलटवार करते हुए पूछा कि बसपा प्रमुख मायावती की क्या मजबूरी है कि इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ रहा?

मायावती ने जबसे अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में अपने बाद के सबसे बड़े चेहरे के रूप में एक बार फिर एंट्री दी है, तबसे उन्हें न सिर्फ़ पार्टी के भविष्य की चिन्ता सताने लगी है, बल्कि आकाश आनंद के भविष्य की भी चिन्ता सताने लगी है और वह चाहती हैं कि जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश में दलित वोटों पर उनका एकछत्र राज रहा है, उसी प्रकार से आकाश आनंद को भी दलित वोटर अपना इकलौता नेता मानें और उन्हीं को सबसे ज़्यादा सपोर्ट करें। लेकिन इस मामले में ज़मीन से उठकर राजनीति में आये एडवोकेट चंद्रशेखर आज़ाद रावण एक रोड़े की तरह उनके आड़े आते दिख रहे हैं। क्योंकि चंद्रशेखर आज़ाद रावण न सिर्फ़ संघर्ष करके ज़मीन से उठे हुए नेता हैं, बल्कि वो अब नगीना से सांसद भी हैं।

दरअसल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोटरों पर प्रभाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) यानी चंद्रशेखर आज़ाद के बीच तल्ख़ियाँ बढ़ती जा रही हैं। अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर जब मायावती ने चंद्रशेखर आज़ाद का नाम लिये बिना ही बरसाती मेंढक जैसे शब्द का इस्तेमाल किया और भाजपा, कांग्रेस और सपा के इशारों पर चलने वाला बताया, तो चंद्रशेखर आज़ाद ने जवाब देते हुए कहा कि यह पोस्ट उनके लिए नहीं, बल्कि मीडिया के लिए थी। लेकिन लखनऊ में उन्होंने आकाश आनंद पर तंज़ कसते हुए यह भी कहा कि जितना मेरे ऊपर हमला होगा, मेरी पार्टी उतनी मज़बूत होगी। दरअसल, जिस प्रकार से मायावती ख़ुद को दलितों का मसीहा मानती हैं और यह दावा करती हैं कि उनकी पार्टी यानी बसपा ही दलितों के हितों में काम करने वाली पार्टी है और उनकी पार्टी कांशीराम तथा अंबेडकर के उसूलों पर चलने वाली पार्टी है।

मायावती और चंद्रशेखर आज़ाद भले ही तक़रीबन एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं और दोनों की नज़र दलितों पर है; लेकिन किसी ने भी अभी तक किसी का नाम नहीं लिया है। मायावती ने चंद्रशेखर पर हमला करते हुए तीन ट्वीट किये, तो सबसे पहले ट्वीट में उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को दलित समाज का सच्चा हितैषी बताते हुए उनकी तारीफ़ की और कहा है कि उन्हें दूसरे नेताओं की तरफ़ देखने की कोई ज़रूरत नहीं है। वहीं दूसरे ट्वीट में उन्होंने चंद्रशेखर का नाम लिये बिना कोसा है और तीसरे ट्वीट में मेंढक जैसे शब्द तक का इस्तेमाल किया है। सवाल यह है कि क्या आकाश आनंद को चौथी बार लॉन्च करने के बाद बसपा प्रमुख मायावती की आँख की किरकिरी बने चंद्रशेखर आज़ाद को मायावती ने वास्तव में बरसाती मेंढक कह दिया? और इसी पर चंद्रशेखर ने पलटवार करते हुए पूछा कि बसपा प्रमुख मायावती की क्या मजबूरी है कि इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है?

सभी जानते हैं कि मायावती को कांशीराम से बसपा की बाग़डोर विरासत में मिली है और चंद्रशेखर आज़ाद रावण को किसी की विरासत नहीं मिली है, बल्कि उन्होंने अपने दम पर लोगों का विश्वास जीता है और वह सिर्फ़ दलितों की ही नहीं, बल्कि सभी वर्ग के पीड़ितों के साथ खड़े दिखते हैं, जिसके चलते उन्हें नगीना में न सिर्फ़ दलितों ने, बल्कि दूसरी जातियों के वोटरों ने भी समर्थन देकर भारी वोटों से 2024 के लोकसभा चुनाव में जिताकर संसद तक पहुँचाया। वहीं मायावती की पार्टी बसपा को पिछले 30 साल में सबसे बुरे दौर से गुज़रना पड़ रहा है, जिसके पास एक विधायक के अलावा कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है।

हैरत की बात है कि साल 1989 में जब बसपा ने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब भी उसके चार सांसद चुने गये थे। लेकिन साल 2014 के बाद से बसपा की संसद में एंट्री नहीं हो सकी है और न ही उसकी स्थिति उत्तर प्रदेश में विपक्ष जितनी रह पायी है। कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की छोटी-छोटी पार्टियों, मसलन रालोद, सुभाषपा, निषाद पार्टी, अपना दल और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) से भी कम चुने हुए प्रतिनिधियों वाली स्थिति बसपा की रह गयी है। साल 2007 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने वाली बसपा और तीन बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती के राजनीतिक करियर का क्रमिक पतन कैसे हुआ? क्यों हुआ? और किसके चलते हुआ? ये सब बताने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि मायावती अब एक बार फिर से अपना सहारा देकर अपने भतीजे को मज़बूत करना चाहती हैं और पार्टी को फिर से मज़बूती देकर अपने भतीजे आकाश आनंद के हाथ में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश भर के दलितों की बाग़डोर सौंपना चाहती हैं। क्योंकि साल 2007 में उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी ने 206 सीटें जीती थीं और 30.5 फ़ीसदी वोट हासिल किये थे। लेकिन साल 2012 में उन्हें अखिलेश ने हरा दिया और साल 2017 में भाजपा ने दोनों को हरा दिया और इस बार उनकी सीटें महज़ 19 ही रह गयीं, जो कि 2012 में 80 थीं। 2012 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद बसपा का ग्राफ लगातार नीचे गिरता जा रहा है और पिछले 2024 के लोकसभा चुनावों में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी।

वहीं चंद्रशेखर आज़ाद ने नगीना की बसपा की लोकसभा सीट छीन ली; जबकि चुनाव प्रचार में भी आकाश आनंद ने चंद्रशेखर को लेकर तीखे बयान दिये थे। लेकिन अब यह लड़ाई और तेज़ हो गयी है। अब आगामी 2027 के विधानसभा चुनावी संग्राम में देखना होगा कि उत्तर प्रदेश के दलित वोटर किसकी तरफ़ ज़्यादा झुकाव रखते हैं?

हालाँकि अब मायावती को समझ आ चुका है कि दलित वोटरों को वापस से मनाना होगा, जिसमें चंद्रशेखर आज़ाद एक मज़बूत चुनौती बने हुए हैं। क्योंकि एक तो उन्होंने अपनी पार्टी में कांशीराम का नाम जोड़ दिया है और दूसरा वह अब खुलकर कहने लगे हैं कि सिर्फ़ उन्हीं की पार्टी है, जो दलितों के साथ खड़ी है और अंबेडकर और कांशीराम के विचारों पर चलती है। उन्होंने मायावती के ख़िलाफ़ पहले कभी नहीं बोला था और अब भी नहीं बोलते हैं; लेकिन मायावती को घेरना शुरू ज़रूर कर दिया है। मायावती भी उनका घेराव ज़ोरदार तरीक़े से कर रही हैं।

मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद के राजनीतिक करियर को इस तरह सुरक्षित करना चाहती हैं, जिससे वह पार्टी को न सिर्फ़ दोबारा से मज़बूत कर सकें, बल्कि अपने दम पर एक ऐसी पहचान बन जाएँ, जिससे उन्हें देश में हर दलित पहचाने और उनका समर्थन करे। हालाँकि यह मुमकिन नहीं है; क्योंकि आकाश आनंद को ऐसे समय मायावती राजनीति में वापस लेकर आयी हैं, जब उत्तर प्रदेश में दलित शासन नहीं है और न ही दलितों का वो विश्वास अब बसपा पर क़ायम है, जो विश्वास कांशीराम ने जीता था और मायावती ने भी एक टाइम पर जीता था।

बहरहाल, उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित वोटरों पर प्रभाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) यानी चंद्रशेखर आज़ाद के बीच तल्ख़ियाँ बढ़ती जा रहीं हैं। और इन तल्ख़ियों के साथ-साथ चंद्रशेखर आज़ाद का क़द भी बढ़ता जा रहा है। नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद अपना ख़ुद का राजनीतिक मैदान तैयार कर रहे हैं, जहाँ वह दलितों के सहारे अपना राजनीतिक क़द बड़ा कर सकें और दलितों की इकलौती आवाज़ बन सकें। मायावती को पहले से ही चंद्रशेखर आज़ाद रावण कहीं-न-कहीं खटक ही रहे थे; लेकिन अब और खटकने लगे हैं। अब उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव साल 2027 में होने हैं, जिसकी तैयारी उत्तर प्रदेश में हर पार्टी अभी से कर रही है। देखना होगा कि मायावती के भतीजे आकाश आनंद और चंद्रशेखर आज़ाद में से कौन-सा दलित नेता किस पर भारी पड़ने वाला है और उत्तर प्रदेश के दलित वोटरों की रेल के इंजन का असली ड्राइवर कौन होगा?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)