आजकल साइबर अपराधी और ग़लत सोच वाले लोग एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग से हर रोज़ हज़ारों लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। एआई का दुरुपयोग करके न सिर्फ़ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग ठगी कर रहे हैं, बल्कि लड़कियों और महिलाओं को फँसाकर उनका शोषण भी कर रहे हैं। एआई के दुरुपयोग को लेकर ज़्यादातर समाजसेवी और बुद्धिजीवी चिन्तित रहते हैं कि एआई का दुरुपयोग बढ़ने से अपराध बढ़ रहा है, जिसे रोकने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन इस बीच एक नयी चिन्ता पैदा हो गयी है। यह चिन्ता एआई के और संवेदनशील होने को लेकर है।
जानकारों का कहना है कि अगर एआई संवेदनशील हो गया, तो उसमें सिंगुलैरिटी जैसा कुछ घटित होगा और एआई अपने आप ही अन्य एआई बनाना शुरू कर देगा। इंटरनेट के ज़रिये लिखने-पढ़ने, जानकारी हासिल करने और ग्राफिक्स को आसान बनाने के लिए एआई का आविष्कार किया गया; लेकिन इसके दुरुपयोग ने सबको चिन्ता में डाल दिया। अब एआई से आगे बढ़कर नये लक्ष्य पोस्ट में एजीआई यानी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस का आविष्कार किया जा रहा है। ये एआई एक ऐसा और आधुनिक वर्जन है, जो एआई से ज़्यादा स्मार्ट होगा और दुरुपयोग करने पर उससे भी कई गुना ज़्यादा ख़तरनाक। वैज्ञानिकों और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का मानना है कि एजीआई के चलन से ऑनलाइन किये जाने वाले अपराध की गति कई गुना बढ़ जाएगी। हालाँकि एजीआई का सदुपयोग करने पर इसके परिणाम एआई से कहीं बेहतर होंगे और ये ऐप एआई से ज़्यादा उपयोगी साबित हो सकता है। एजीआई के सदुपयोग से बौद्धिक कार्य को पूरा करना सीखा जा सकता है।
एजीआई एक व्यापक बुद्धिमान और जागरूकता में एआई से कहीं ज़्यादा बेहतर है। यह ऐप चैटबॉट या मानव-रोबोट इंटरैक्शन के लिए ज़रूरी माना जा रहा है। लेकिन इस ऐप को बनाने वालों को भी पता है कि इसका दुरुपयोग काफ़ी ख़तरनाक साबित होगा, जो अपने कार्यों और डोमेन की एक विस्तृत शृंखला में ज्ञान देने, अत्याधुनिक नया बहुत कुछ सीखने और क्लोन आदि को बेहतर तरीक़े से लागू करने की क्षमता वाला होगा। हालाँकि एजीआई पर अभी काम चल रहा है और इसे जन सामान्य के लिए अभी उपलब्ध कराने में लंबा समय लगेगा। लेकिन इसे लेकर व्यापक स्तर पर काम चल रहा है। हालाँकि अभी एजीआई बनाने में लगे लोग इसमें संज्ञानात्मक लचीलापन, अनुकूलनशीलता और सामान्य समस्या-समाधान कौशल जैसे वर्जन शामिल करने के साथ-साथ इसे सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे इसका दुरुपयोग कम हो सके। लेकिन फिर भी एजीआई भविष्य की सुपर इंटेलिजेंट प्रणालियों में जितना स्मार्ट, उपयोगी और काम का साबित होगा, दुरुपयोग करने पर उससे ज़्यादा ख़तरनाक और असुरक्षित भी हो सकता है।
दरअसल इंसानी ऑपरेटर की जानकारी के बाहर काम करने में स्मार्ट एजीआई एक अभूतपूर्व नवाचार है, जिसे ओपेन एआई और उसके प्रतिद्वंद्वी नये और आधुनिक रूप में हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। एजीआई इंसानों का बनाया हुआ अब तक का सबसे आधुनिक ऑनलाइन सॉफ्टवेयर होगा, जिसका मक़सद इंसानी दिमाग़ की तरह या उससे भी आगे की सोच रखकर काम करना होगा। एजीआई एआई से ज़्यादा संवेदनशील और भविष्य की सुपर इंटेलिजेंट प्रणालियों को बढ़ावा देगा। एजीआई उन प्रणालियों को संदर्भित करेगा, जो इंसानों की बौद्धिक क्षमता के बराबर या उससे भी आगे जाकर काम करने में सक्षम हो सकता है। कहा जा रहा है कि एजीआई जब बनकर तैयार होगा, तो इसका उपयोग न सिर्फ़ इंसान की बौद्धिक उलझनों को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि कैंसर जैसी बीमारियों की दवा के यौगिकों के नये संयोजन खोजने में मदद करेगा।
अगर एजीआई का सदुपयोग हुआ, तो इससे कई फ़ायदे हो सकते हैं। क्योंकि इसका उपयोग मशीनों के स्वत: संचालन में भी किया जा सकेगा। ड्राइवर रहित ड्राइविंग में भी इसका उपयोग करने की उम्मीदें जगी हैं, जिसके लिए कई साल से वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस तरह से एजीआई के आने से कई फ़ायदे हो सकते हैं; लेकिन दूसरी तरफ़ कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर्स और ऐप्स का दुरुपयोग करके अपराध करने वाले इसका दुरुपयोग करके आपराधिक आतंक मचा सकते हैं। हालाँकि अभी तक एजीआई का निर्माण करने वाले इसके उस स्तर तक नहीं पहुँच सके हैं, जिसकी उन्हें तलाश है। लेकिन एआई के जानकारों और बनाने वाले ज़्यादातर लोगों का मानना है कि एजीआई जैसी इंटेलिजेंसी के ईजाद होने और जीपीटी-4 जैसे बड़े भाषा मॉडल के बनने से कम्प्यूटर के एक सबसे आधुनिक लक्ष्य तक पहुँचने की समय-सीमा को काफ़ी छोटा कर दिया है और वह दिन दूर नहीं, जब इंसान कम्प्यूटर इंटेलिजेंसी की सोच वाली आज तक की सबसे ऊँची चोटी पर खड़ा होगा, जो पूरी दुनिया को हैरान कर देगी।
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि एजीआई स्वाभाविक रूप से अत्यधिक ख़तरनाक है, क्योंकि इसका सामान्यीकृत ज्ञान और संज्ञानात्मक कौशल इसे चलाने के किसी भी जानकार को उस व्यक्ति की ख़तरनाक योजनाओं और उद्देश्यों का आविष्कार करने में मदद करेगा और उसका दुरुपयोग करने की अनुमति देगा। लेकिन कई शोधकर्ताओं का मानना है कि एजीआई तक पहुँचना एक क्रमिक, पुनरावृत्तीय प्रक्रिया होगी, जिसमें हर क़दम पर विचारशील सुरक्षा रेलिंग होगी, जिससे इसका दुरुपयोग आसान भी नहीं होगा। हालाँकि अभी तक एजीआई के समर्थकों और विरोधियों में इस बात पर भी काफ़ी बहस जारी है कि इस अत्याधुनिक कृत्रिम सामान्य बुद्धिमत्ता को लेकर क्या अच्छा है और क्या ख़राब? दोनों तरफ़ से सवालो-जवाबों और समस्याओं-सुगमताओं को लेकर वाद-विवाद जारी है।
एजीआई में 49 प्रतिशत हिस्सा रखने वाली माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने जीपीटी-4 में एजीआई की चिंगारी पहले ही देख ली है। एजीआई को बनाने में लगी कम्पनी एंथ्रोपिक के सीईओ डारियो अमोदेई ने पिछले दिनों कहा था कि दो-तीन साल के अंदर एजीआई को लॉन्च कर दिया जाएगा। लेकिन डीपमाइंड के सह-संस्थापक शेन लेग का कहना है कि साल 2028 तक एजीआई के आने की संभावना 50 प्रतिशत है। वहीं गूगल ब्रेन के सह-संस्थापक और वर्तमान लैंडिंग एआई के सीईओ एंड्रयू एनजी ने कहा है कि एजीआई जैसी तकनीक लाने के लिए पहले पर्याप्त स्मार्ट सिस्टम होना चाहिए, जिसे प्राप्त करना बहुत दूर की बात है। एंड्रयू एनजी का कहना है कि एजीआई के दुरुपयोग के बारे में कई तर्कों से वह ख़ुद चिन्तित हैं। उनका कहना है कि एजीआई का दुरुपयोग और सदुपयोग तो दूसरी चिन्ता है। पहले तो एजीआई के क़रीब पहुँचने का सवाल परेशान कर रहा है, जिसका जवाब है हमारे पास नहीं है। क्योंकि एजीआई की परिभाषा नहीं बदली जा सकती। एजीआई को उपयोगी बनाने में ही अभी क़रीब तीन साल लगेंगे, भले ही हम 30 साल पहले ही वहाँ पहुँच सकते हैं। एनजी का कहना है कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए एजीआई की परिभाषा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और ज़्यादा अच्छा या ज़्यादा ख़राब प्रचार कर रहे हैं। इसीलिए एजीआई शब्द से जुड़ी उम्मीदें और डर दोनों सामने आ रहे हैं।
ओपेन एआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने हाल ही में एजीआई को एआई सिस्टम के आधुनिक रूप में परिभाषित किया है, जिसका प्रचार निश्चित तौर पर इस नयी और हैरान करने वाली नयी तकनीक में लोगों की रुचि बढ़ाने के साथ-साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा निवेश को बढ़ावा दे सकता है। लेकिन यह उम्मीदों का एक बुलबुला भी बन सकता है, जो पूरा न होने पर अंतत: फट सकता है और कई लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है। इन बयानों से लगता है कि कई लोगों को बड़े घाटे में ले जा सकता है और कई लोगों का दिमाग़ी संतुलन बिगाड़ सकता है। क्योंकि जिस तन्मयता से एजीआई के आविष्कारक पैसा और समय ख़राब करके इसे ईजाद करने में लगे हैं, उनका इस ऐप के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा है।
इस दिशा में काम करने वाले मोटे तौर पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के तीन प्रकारों को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसे हम इसके संकीर्ण या कमज़ोर रूप कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई (एएनआई), सामान्य या कृत्रिम सामान्य बुद्धिमत्ता यानी एजीआई और असामान्य या कृत्रिम सुपर इंटेलिजेंस यानी एएसआई के रूप में जान सकते हैं। इससे पता चलता है कि एआई को ईजाद करने वाले आज जिस एजीआई के आविष्कार में लगे हैं, वे या उनके फॉलोअर्स एजीआई के बाद भी रुकेंगे नहीं और इससे आगे भी कुछ नया बनाएँगे, जिसे एएसआई या इससे अलग कुछ और कहा जाएगा। हालाँकि इस तरह के नये कम्प्यूटरीकृत ऐप इनके उपयोगकर्ताओं को ही फ़ायदा पहुँचाने वाले होते हैं। ये लोग कम्प्यूटर की भाषा नहीं समझने वालों या ऐप के उपयोग न करने वालों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।
आज साइबर अपराध तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके ज़रिये सामान्य लोगों की बात तो दूर, बड़े-बड़े इंटेलिजेंस और यहाँ तक कि सरकारें भी ठगी का शिकार हो रही हैं। साइबर अपराधी के निशाने पर दुनिया के बड़े-बड़े लोग तक हैं। हैरानी की बात है कि जो लोग इन आधुनिक ऐप्स को ईजाद कर रहे हैं, साइबर अपराधी उन्हें भी नहीं छोड़ रहे हैं। इसी के चलते वैज्ञानिक और कुछ शोधकर्ता इस सवाल में उलझे हुए हैं कि ऐप स्मार्ट होना चाहिए या उनसे भी ज़्यादा सुपर स्मार्ट? और इस बात को लेकर चिन्तित हैं कि आधुनिक ऐप्स की बढ़ती शृंखला कहीं उनके सामने बहुत बड़ी चुनौतियाँ खड़ी न कर दें।