साल 2007 में एमटीवी रोडीज के पांचवें सीजन में सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के आशुतोष कौशिक ने अपनी बेबाकी और देसी ठसक से सबका दिल जीत लिया था. उन्होंने पांचवां सीजन जीतकर न सिर्फ तारीफें बटोरीं बल्कि लगे हाथ 2008 में आए बिग बॉस के दूसरे सीजन में भी जगह बना ली थी.
कह सकते हैं कि आशुतोष का वक्त अच्छा चल रहा था इसलिए उनके घर में बिग बॉस की ट्रॉफी भी सज गई. इतने नाम और शोहरत के बाद उनके फिल्मों में आने की खबरें भी आने लग गईं. बिग बॉस जीतने के कुछ महीनों बाद तक उन्हें किसी स्टार से कम नहीं समझा जाता रहा. कुछ लोगों ने इस उभरते हुए नाम से उम्मीदें बांध ली थीं तो कुछ की जबान पर यह जुमला था कि सब टाइम की बात है.
खैर शायद वक्त-वक्त की ही बात होती है. इसलिए महज सात साल पहले जिस शख्स ने तूफानी एंट्री ली थी वह अब सुर्खियों और मीडिया से आंधी की तरह गायब भी हो गया. दूध के उस उफान की तरह जिसके उठने और बैठने में एक जैसा वक्त लगता है.
कभी एक ढाबा चलाने वाले (वैसे ढाबा आज भी चालू है) और ब्याज पर पैसा चलाने वाले सहारनपुर से आए, एकदम देसी अंदाज वाले आशुतोष ने शायद ही सोचा था कि वह इतने कम समय में इस कदर ऊंचाई पर पहुंच पाएंगे और एक के बाद एक शोहरत की सीढ़ियां चढ़ते जाएंगे. लेकिन किस्मत ने उनका ऐसा साथ दिया कि वे अपने सुनहरे भविष्य के ख्वाब बुनने से खुद को रोक नहीं पाए . उनकी फिल्मों में एंट्री की बातें भी जोर पकड़ने लगी. कुल मिलाकर आशुतोष ने मीडिया मंडी से और मीडिया मंडी ने आशुतोष से सपनों का साझा कर लिया था. लेकिन अफसोस कि आशुतोष जितनी तेजी से अर्श पर पहुंचे उससे दोगुनी गति से उनकी यादें लोगों के जेहन से और खबरों की दुनिया से धुंधली होती गई. कल तक जिसमें एक भविष्य का स्टार देखा जा रहा था आज उसका नाम लेने पर लोगों के जेहन में उसकी तस्वीर बना पाना भी मुश्किल हो गया है.
यू ट्यूब पर रोडीज या बिग बॉस के पुराने सीजन खंगालने के दौरान आशुतोष के दिखाई देते ही यकायक मन में सवाल आता है – यह चेहरा अचानक कहां गायब हो गया?
एक वक्त आशुतोष को अपना आदर्श मानने वाले युवाओं में से पता नहीं कितने जानते हैं कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने ही शहर सहारनपुर से जय महाभारत नाम की पार्टी के लिए चुनाव भी लड़ा लेकिन वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जिस स्टारडम की बदौलत वे छाए रहते थे वह जादू भी कुछ कमाल नहीं कर सका. अक्सर कहा जाता है कि सफलता मिलने के बाद दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. जो सफलता पचा नहीं पाते हैं, उनका यही हश्र होता है लेकिन आशुतोष का मामला इससे बिलकुल अलग था. उनके लिए तो बस यही कहा जा सकता है कि उन्होंने अभी सफलता के पकवान को अपनी किस्मत की थाली में परोसा हुआ ही देखा था और अभी उसकी खुशबू ही ले रहे थे कि उन्हें खुद भी नहीं मालूम चल सका कि कब और कैसे उन्हें लगातार मिलने वाले ऑफर, उनके बारे में की जाने वाली चर्चा यकायक खत्म हो गई.
रोडीज के बाद भी वह अच्छा जा रहा था. लेकिन बिग बॉस जीतने के बाद राह भटक गया. शायद उसे जमाने की हवा लग गई
हालांकि इस बीच आशुतोष ने कुछ फिल्मों में अपनी किस्मत भी आजमाई. साल 2013 में संजय दत्त अभिनीत फिल्म ‘जिला गाजियाबाद’ के अलावा ‘भड़ास’ और ‘रघु रोमियो’ में आशुतोष नजर आए थे लेकिन इन फिल्मों में उनकी उपस्थिति की चर्चा न के बराबर ही रही. छोटे पर्दे पर आशुतोष, कॉमेडी सर्कस में जोर आजमाइश करते दिखाई दिए लेकिन दर्शकों के दिल को बहुत ज्यादा नहीं छू पाए.
वैसे एक बार जिसे सुर्खियों में बने रहने का चस्का लग जाता है, वह खबरों में बने रहने का इंतजाम भी कर ही लेता है. आशुतोष के बारे में भी गाहे-बगाहे मीडिया में कुछ ना कुछ पढ़ने और सुनने को मिल जाता है. हालांकि अब उनका जिक्र गलत वजहों से ज्यादा होता है. 2013 में कथित तौर पर मुंबई के एक रेस्त्रां के बाहर आशुतोष ने नशे की हालत में कुछ लोगों से झगड़ा मोल लिया था. आशुतोष का कहना था कि उन पर कुछ लोगों ने हमला किया था जिसके बाद यह हंगामा शुरू हुआ. इसके अलावा पिछले साल ही उन पर नशे की हालत में दिल्ली एयरपोर्ट पर शोर शराबा करने का आरोप भी लगा था.
एमटीवी रोडीज 5 के ऑडिशन के दौरान चैनल के वाइस प्रेजिडेंट (क्रिएटिव एंड कंटेंट) वैभव विशाल थे जिनकी नजर सबसे पहले आशुतोष पर पड़ी थी. तहलका से हुई बातचीत में वैभव बताते हैं, ‘आशुतोष को ऑडिशन में तीन जगह से रिजेक्ट कर दिया गया था लेकिन फिर ग्रुप डिस्कशन के दौरान मुझे आशु में कुछ बात नजर आई. रोडीज के बाद भी वह अच्छा जा रहा था. लेकिन बिग बॉस जीतने के बाद राह भटक गया. शायद उसे जमाने की हवा लग गई.’
टीवी इंडस्ट्री को बहुत करीब से जानने वाले वैभव मानते हैं कि रिएलटी शो में काम करने के बाद आशुतोष जैसी हालत कई प्रतिभागियों की हो जाती है. हालात ये हो जाते हैं कि शो खत्म होने के बाद ये प्रतियोगी अपनी जिंदगी को रिएलटी शो का ही एक ऐपिसोड समझने लगते हैं और इन्हें लगने लगता है कि अभी-भी चौबीस घंटे इनके ऊपर कैमरे लगे हुए हैं जो इनकी किसी न किसी हरकत को सुर्खियों में लाने का काम कर ही देंगे.
‘शो के बाहर निकलते ही जो समझ गया कि यह सब मिथ्या है वह तो टिक जाता है लेकिन जो बाहर की दुनिया के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता, वह पगलाने लग जाता है’
यही नहीं, रिएलटी शो में भाग लेने वाले इन ज्यादातर लोगों के पास टैलेंट के नाम पर कुछ नहीं होता. इन्हें तो बस अपना ही किरदार निभाना होता है और इनकी खूबियां, इनकी खामियां, इनका अनोखापन ही होता है जिसे टीवी शो पर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है. इसे दर्शक पसंद भी करते हैं और रिएलटी टीवी स्टार्स को नाम और शोहरत भी हासिल होती है लेकिन असली खेल, शो खत्म होने के बाद शुरू होता है.
वैभव मानते हैं, ‘शो के बाहर निकलते ही जो समझ गया कि ये सब मिथ्या है वह तो टिक जाता है लेकिन जो बाहर की दुनिया के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता, वह पगलाने लग जाता है. लगातार खबरों में बने रहने की चाहत में आशुतोष जैसे कई रिएलटी स्टार्स से मेहनत कम और गलतियां ज्यादा हो जाती हैं.’
खैर, इसे कहानी का अंत कहना सही नहीं होगा. दूसरी पारी नाम की भी चीज होती है. देखते हैं कि आशुतोष जितनी आसानी से ब्रेकिंग न्यूज का
हिस्सा बन गये थे, क्या वे उतनी ही सहजता से अपने करियर के ब्रेक को हटा पाएंगे ?