हर्षवर्धन नवाथे वह शख्स हैं जिनकी ‘जीवनी’ हमारे भौतिकवादी युवा और उनके माता-पिता इतिहास की सरकारी किताबों में अवश्य पढ़ना चाहेंगे. एक करोड़ तक पहुंचने की यात्रा की कहानी. लेकिन उस जीवनी को वहां पर खत्म होना जरूरी है जहां चौदह साल पहले एक करोड़ जीतने पर नवाथे अपने दोनों हाथ खुशी में ऊपर उठाते हैं. कैमरा लौंग शॉट लेकर वापस उन पर जमता है. चैक का आदान-प्रदान होता है. हर्ष के साथ एंकर खड़े हैं, ‘हर्षवर्धन नवाथे आपने इतिहास बना लिया है.’ वे उद्घोषणा करते हैं और सफलता के इस उत्सव के खत्म होने पर अमिताभ बच्चन 27 साल के नवाथे को एक कोने में ले जाकर कहते हैं, ‘तुम्हारी जिंदगी बदलने वाली है.’
करोड़पति बनने के बाद की हर्षवर्धन नवाथे की जिंदगी, अपने कुछ हिस्सों को छोड़कर, सफलता में सनी खुशनुमा जीवनी के तयशुदा नियमों से इतर है. वह बदलती है, लेकिन खुशनुमा जीवनी का विलोम है, कच्ची उम्र में मिली शोहरत का गर्म शरबत है. वह हमारी-आपकी जिंदगी जैसी ही है, जिसका संघर्ष एक महानायक द्वारा प्रस्तुत प्रतियोगिता कम नहीं कर पाती.
कौन बनेगा करोड़पति और उसकी टीम बड़ी मेहनत से छवि गढ़ती है, पिछले कुछ सालों से यह छवि सुशील कुमार हैं. लेकिन उनके उदय से पहले सालों तक हर्षवर्धन नवाथे उस करोड़पति छवि के इकलौते चेहरे थे. उनके बाद भले ही कुछ और लोगों ने एक करोड़ जीते, लेकिन वे शो के पहले करोड़पति थे, और कुछ उनके पूरे नाम का अलग होना वजह थी, कुछ बच्चन साहब का उस नाम को बोलने का अंदाज, कि आज भी हमें हर्षवर्धन नवाथे सबसे ज्यादा याद रहते हैं. वह दौर भी अलग था, जब एक करोड़ मिलना और सीबीएसई बोर्ड में 80 प्रतिशत आना भारतीय मध्यम वर्ग के अमीर बनने के सपने के करीब पहुंचने का आश्वासन था. अब तो, सीबीएसई में 99.6 प्रतिशत आने पर भी मुखमंडल आश्चर्य से सुरसा जितना बड़ा नहीं खुलता, और व्यंग्य इस बात पर ट्विटर-चौक पर होता है कि जो शून्य दशमलव चार प्रतिशत बच गए वे क्यों नहीं आ पाए. अंकों का चार्म चरमरा चुका है अब. ‘आजकल तो एक करोड़ सैलरी मिलना कॉमन है. तब एक करोड़ की बात अलग थी’ नवाथे कहते हैं.
2000 में, विजेता बनने के बाद, लेकिन घोषित होने से पहले, हर्षवर्धन को दुनिया की नजरों से बचाने के लिए एक होटल में रखा गया, नाम बदल कर. दस दिनों तक. ‘मुझे बिलकुल रॉकस्टार जैसा ट्रीटमेंट मिला, चौबीस घंटे सिक्योरिटी. लेकिन बहुत बोरिंग था वह वक्त. मैं बाहर निकलकर लोगों के साथ सेलिब्रेट करना चाहता था, मगर ढेर सारे नए कपड़ों के बीच उस होटल में बंद था.’ उन दस दिनों के लिए उनका नाम था तरुण प्रभाकर, जो केबीसी के सिद्धार्थ बसु के सहयोगी का नाम था. अगले एक साल तक हर्षवर्धन जिस दोहरी जिंदगी को जीते रहे, उसकी सांकेतिक शुरूआत उसी होटल से हुई थी.
जीते हुए एक करोड़ में से तकरीबन 34 लाख इनकम टैक्स वाले ले गए. बाकी बचे लाखों में से नवाथे ने अपनी पहली कार खरीदी, सिल्वर ग्रे मारुति एस्टीम वीएक्स, काफी सारा निवेश किया और अपनी आगे की पढ़ाई का खर्च निकाला.
आगे की पढ़ाई यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी जिसको केबीसी में भी खूब प्रचारित किया गया था और जो हर्षवर्धन का सपना भी था, अधूरी रह गई. हर्षवर्धन के पिता एक ईमानदार सीबीआई अफसर थे और हर्षवर्धन की प्रेरणा भी. वे उन्हीं की तरह पुलिस या आर्मी में जाना चाहते थे और बचपन में अपना नाम पुलिस कमिश्नर हर्षवर्धन नवाथे लिखा करते थे. आईएएस बनने के अपने उसी सपने को पूरा करने के लिए हर्षवर्धन राजनीति से लेकर इतिहास तक वह सबकुछ पढ़ते थे जो उस सपने को यथार्थ बनाने में कारगर हो सके. इसी ज्ञान ने उन्हें केबीसी का पहला करोड़पति बनाया. और केबीसी ने उनके इसी सपने को उनसे हमेशा के लिए दूर कर दिया.
मुझे शुरू से पता था कि यह शोहरत हमेशा के लिए नहीं है. आश्चर्य है कि लोग मुझे आज भी पहचानते हैं. केबीसी के 23 मिनटों ने मेरा जीवन बदल दिया
केबीसी से मिली शोहरत के बाद वे अगले एक साल तक किताबों से दूर रहे. वे मुंबई की पार्टियों का नया हैपनिंग चेहरा थे. हर कोई उन्हें अपनी पार्टी में बुलाना चाहता था. वे पार्टियों में जाते रहे और जॉन अब्राहम से लेकर क्रिकेटर सलिल अंकोला जैसे सितारों के दोस्त बनते गए. ‘जान से काफी याराना था उन दिनों. हमनें एक-दो शो भी साथ में किए. फोन पर काफी बातें करते थे.’ विज्ञापनों और शोज के आफर की आ रही बाढ़ के बीच अपना काम संभालने के लिए उन्होंने फोटोग्राफर अतुल कस्बेकर की पीआर एजेंसी भी हायर कर ली थी, जिसमें अभी सलमान खान का काम देख रहीं रेश्मा शेट्टी कस्बेकर की सहयोगी थीं. उन दिनों वे रोज कस्बेकर से मिलते थे. अब ये सभी लोग नवाथे के लिए अंजान हंै. ‘इन सभी से दोस्ती एक साल के अंदर-अंदर खत्म हो गई. अब मैं किसी से टच में नहीं हूं. वैसे भी मैं अलग दुनिया से था, उन लोगों का जिंदगी जीने का तरीका अलग था.’ उस एक साल में नवाथे ने अनगिनत जगहों पर शिरकत की, रिबन काटे, राजनीतिक रैलियों में शामिल हुए, पेस्ट्री शॉप का उद्घाटन किया. ‘फीते काफी काटे हैं मैंने. एजूकेशनल इंस्टीट्यूट्स में तो मैं इतना गया हूं कि गिनती भूल गया हूं. गणपति उत्सव के दौरान भी मुझे ढेर सारे पंडालों में बुलाया जाता था, जो कुछ नए दोस्त बने थे उस दौरान, वे कहते थे चलने को और मैं चुपचाप चला जाता था. नारियल और प्रसाद मिलता था वहां. पांच-छह साल गुजर जाने के बाद मुझे पता चला कि वे नए दोस्त मुझे उन पंडालों में ले जाने के लिए पंद्रह-बीस हजार ले लेते थे आयोजकों से. उनमें से कई दोस्त, जिन्हें अब मैं नहीं जानता, (हंसते हुए) इसी तरह लखपति बन गए होंगे.’
ग्लैमर के इस उत्सव की भागदौड़ ने उन्हें जल्द ही 28 का कर दिया. उस दौर में आईएएस परीक्षा में शामिल होने की अपर एज लिमिट का. इस तरह हर्षवर्धन नवाथे उस परीक्षा में सफल नहीं हो पाए जिसकी तैयारियों ने उन्हें करोड़पति बनाया था. उनका सबसे पुराना सपना टूट चुका था. ‘साल भर मैंने कुछ नहीं किया. हर रोज पार्टियों में जाना, स्टार टीवी के कमिटमेंट पूरे करना, सब कुछ इतना तेजी से होता था कि रुक कर सोचने का मौका ही नहीं मिला. यूपीएससी के लिए जिस तरह की साधना चाहिए, उस तरह का वक्त मैं उसे दे ही नहीं पाया. आज पीछे मुड़कर देखता हूं तो बुरा लगता है. काफी कुछ अच्छा कर सकता था मैं उस वक्त, नहीं कर पाया.’
उस एक साल में नवाथे ने अनगिनत जगहों पर शिरकत की, रिबन काटे, राजनीतिक रैलियों में शामिल हुए, पेस्ट्री शॉप का उद्घाटन किया
एक बीएससी ग्रेजुएट जो सिविल सर्विसिज नहीं निकाल पाया फिर एमबीए की तरफ रुख करता है. नवाथे ने केबीसी जीतने के एक साल बाद मुंबई छोड़ दी और सिंबायसिस पुणे एमबीए करने चले गए. लेकिन शोहरत वहां भी साथ रही और लोग कालेज कैंपस में अपनी दुकानों के उद्घाटन की दरख्वास्त लेकर आने लगे. ‘प्रेस के काफी लोग आते थे. फीता कटवाने के लिए आते थे, राजनैतिक पहुंच साथ लेकर लोग आते थे. इन सब से क्लास डिस्टर्ब होती थी, प्रोफेसर बहुत नाराज होते थे. मैं मैनेज नहीं कर पा रहा था. परेशान हो जाता था.’ परेशान नवाथे एमबीए बीच में ही छोड़ कर वापस मुंबई आ गए. वह दौर निराशा वाला था, लेकिन एमबीए करना भी जरूरी था. इसलिए थोड़ा संभलने के बाद नवाथे यूके पहुंचे नेपियर यूनिवर्सिटी से एमबीए करने. वह वक्त शांति से गुजरा और काफी वक्त बाद नवाथे को सामान्य रहने का मौका मिला. इसी वक्त ने उनको संभाला और कुछ साल बाद जब नवाथे ने मुंबई वापस लौटने का फैसला किया तो पहले अपना घर बदला, कुछ पुराने लोग छोड़े और सामान्य जीवन जीने की कोशिश करने लगे. 2007 में उनकी शादी सारिका नीलत्कर से हुई जो मराठी नाटकों, टीवी और फिल्मों में अभिनय करती थीं और तभी से उनकी जिंदगी में स्थायित्व आना शुरू हुआ. ‘आप अगला सवाल करें उससे पहले ही बता दूं कि यह एक अरेंज्ड मैरिज थी, हम किसी फिल्मी पार्टी में नहीं मिले थे. मेरी वाइफ को फिल्मी पार्टियों में जाने का शौक नहीं है इसलिए ग्लैमर की दुनिया से मेरा नाता अब न के बराबर है.’ नवाथे आजकल महिंद्रा एंड महिंद्रा में डेप्यूटी जनरल मैनेजर हैं और नई जिंदगी में पूरी तरह मशगूल भी. लेकिन लोग उनकी करोड़पति छवि को अब भी नहीं भूलते. ‘आज भी जब सैलरी डिस्कशन होता है तो लोग कहते हैं यार तुम्हें पैसे की क्या जरूरत, क्या करोगे इंक्रीमेंट लेकर. मेरी पत्नी से उनके प्रोड्यूसर कहते रहते हैं कि तुम्हें पैसे की क्या जरूरत, तुम्हारा पति तो करोड़पति है.’
हर्षवर्धन नवाथे की जीवनी को थोड़ा और नाटकीय बनाना है तो सायन, मुंबई स्थित उनके दो बेडरूम हाल के फ्लैट के लिविंग रूम में टंगी सबसे बड़ी तस्वीर की तफ्सील लिखना जीवनी का एक बढ़िया अंत रहेगा. सफेद कुर्ता पहने अमिताभ बच्चन के साथ मुस्कुराते 27 साल के नवाथे की तस्वीर, जो एक करोड़ जीतने के कुछ दिन बाद खींची गई थी. लेकिन वह जीवनी नकली होगी. असली वह है जिसमें नवाथे का कहा यह हिस्सा आएगा.’ मुझे शुरू से पता था कि यह शोहरत हमेशा के लिए नहीं है. क्षणिक है. इसलिए मुझे खुद आश्चर्य है कि लोग मुझे आज भी पहचानते हैं. केबीसी के वे 23 मिनट थे जिसने मेरा जीवन बदला था. लेकिन उन 23 मिनट से आप मेरी पूरी जिंदगी को नहीं देख सकते. केबीसी नहीं भी जीतता, पैसे नहीं भी मिलते तब भी कुछ न कुछ हो ही जाता.’ सबसे अच्छी बात है कि हर्षवर्धन जिंदादिल बने हुए हैं. वे खुश हैं. वैसे खुश जैसे हम लोग रहते हैं. वैसे नहीं जैसा केबीसी अपने विजेताओं को हमें दिखाता है. छूट गई चीजों ने उनकी बातों में कड़वाहट नहीं भरी. वे पुरानी गलतियों को भी मस्ती में मुस्कुराते हुए सुनाते हैं. अभी भी बहुत कुछ करना चाहते हैं. राजनीति में जाना चाहते हैं लेकिन अपनी पुरानी शोहरत की वजह से नहीं. ‘मैं प्रेस वालों से अक्सर कहता हूं कि मैं राजनीति में एक
दिन जरूर जाऊंगा, लेकिन वे लोग मेरी यह बात छापते ही नहीं. आप छापिएगा.’ जरूर.