पढ़ाई नहीं कमाई का जरिया बनते शिक्षण संस्थान

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बीते दिनों तमिलनाडु के एक निजी कॉलेज में प्रताड़ना से तंग आकर कथित रूप से तीन छात्राओं वी. प्रियंका, टी. मोनिशा और ईसरण्या ने खुदकुशी कर ली थी.

तमिलनाडु में शिक्षा के निजीकरण की शुरुआत 80 के दशक में तब हुई जब एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) राज्य के मुख्यमंत्री थे. यह देखते हुए कि ग्रामीण नशे के अभिशाप से व्यापक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं, एमजीआर ने ताड़ी के उत्पादन, खरीद तथा उपभोग पर पाबंदी लगा दी जबकि भारत निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफएल) के लिए अनुमति बनाए रखी. नतीजा यह हुआ कि राज्य के शराब व्यापारी एमजीआर के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके सरकार के खिलाफ हो गए. संयोग से ये लोग पहले सरकार के समर्थक हुआ करते थे और इन्होंने चुनाव लड़ने के लिए पार्टी को चंदा भी दिया था. शराब व्यापारियों को खुश करने के लिए एमजीआर ने कर्नाटक की तर्ज पर उनके लिए स्ववित्तपोषित शैक्षणिक संस्थानों का आवंटन किया. इस तरह तमिलनाडु में भी उच्च शिक्षा में निजीकरण का दौर शुरू हुआ.
सामाजिक कार्यकर्ता और मद्रास इंस्टिट्यूट आॅफ डेवलपमेंट स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर सी. लक्ष्मण कहते हैं, ‘पिछले कुछ दशकों से तमिलनाडु में अवैध शराब व्यापारी, दलाल और तस्कर आदि उच्च शिक्षा को संभाल रहे हैं. ये लोग तकनीकी शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों क्षेत्रों को संभाल रहे हैं. इन शैक्षणिक संस्थानों की शासकीय परिषदों में भी इन लोगों की पहुंच है. द्रविड़ पार्टियों के सत्ता में आने के बाद शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है और इसकी गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है. इसके अलावा इन लोगों द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों में उन विद्यार्थियों को राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं होने दिया जाता जिनका शोषण और दमन होता है.’

हाल ही में विल्लुपुरम जिले के कल्लाकुरिची स्थित एसवीएस योगा एेंड नेचुरोपैथी कॉलेज की तीन छात्राओं की आत्महत्या ने उच्च शिक्षा के निजीकरण के खतरों की ओर एक बार फिर ध्यान खींचा है. इन छात्राओं के सुसाइड नोट से यह स्पष्ट होता है कि कॉलेज प्रबंधन से मतभेद जाहिर करने पर उन्हें इस कॉलेज में काफी तंग और अपमानित किया गया. गौरतलब है कि वर्ष 2015-16 में डॉ. एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी से इस कॉलेज को प्राप्त मान्यता खत्म हो गई थी, इसके बावजूद कॉलेज ने अपनी वेबसाइट पर ‘मान्यता प्राप्त’ के उल्लेख को नहीं हटाया था. छात्राओं ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उन्हें कक्षाएं साफ करने के लिए कहा जाता था, खराब खाना देने के साथ अपमानित किया जाता था. जब कॉलेज प्रबंधन और मद्रास हाई कोर्ट से न्याय पाने की उनकी कोशिशें लगातार नाकाम होती गईं तो उन्होंने यह अतिवादी कदम उठाया.

सुसाइड नोट में यह भी लिखा है कि योगा एंड नेचुरोपैथी पाठ्यक्रम के दूसरे साल में हर छात्रा से छह लाख रुपये वसूले गए और रसीद देने से मना कर दिया गया. दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन तीन छात्राओं के बाद तमिलनाडु में दो और विद्यार्थियों ने आत्महत्या की लेकिन यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर किसी का ध्यान खींचने में नाकाम रही. राष्ट्रीय पार्टियों का कोई नेता इन छात्राओं के घर नहीं गया. यहां तक कि राज्य के नेता भी इस घटना को लेकर चुप्पी साधे रहे. हालांकि ये तथ्य न केवल निजी कॉलेजों के मालिकों, राज्य के शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और नेताओं के बीच मिलीभगत की को उजागर करते हैं बल्कि वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार की ओर भी इशारा करते हैं. नाम न बताने की शर्त पर कोयंबटूर की एक डीम्ड यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर बताते हैं, ‘जहां तक तमिलनाडु का सवाल है, नेताओं और निजी संस्थाओं के बीच का गठजोड़ काफी स्पष्ट और मजबूत है. बहुत-से कॉलेज हैं जो बिना मान्यता और बुनियादी ढांचे के ही चल रहे हैं. इन संस्थानों की मान्यता खत्म किए जाने के बाद भी इन्हें बदस्तूर चलाया जा रहा है.’
जब शिक्षा व्यापार बन जाती है तो इसकी गुणवत्ता गिरने लगती है. पैसा कमाने और खर्च कम करने के लिहाज से इन शैक्षणिक संस्थानों के मालिक शिक्षकों की योग्यता और क्षमता से भी समझौता करने लगते हैं. कुछ कॉलेजों में उच्च स्तर का आधारभूत ढांचा और आधुनिक सुविधाएं तो हैं लेकिन योग्य शिक्षक नहीं हैं. कोयंबटूर के ही एक इंजीनियरिंग कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘ऐसे भी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं जहां असिस्टेंट प्रोफेसरों को 5000-7000 रुपये मासिक की तनख्वाह दी जाती है. यह केवल शिक्षक की क्षमता और गुणवत्ता की ही बात नहीं है, बल्कि प्रबंधन के लोग यह कोशिश करते हैं कि कर्मचारियों को कम से कम खर्च पर रखा जाए.’

‘निजी स्कूलों और कॉलेजों पर सामाजिक नियंत्रण बिलकुल नामुमकिन हो गया है, बल्कि हालात ऐसे हैं कि निजी संस्थान सरकार को भी नियंत्रित कर रहे हैं. ऐसी स्थितियां किसी भी हाल में उच्च शिक्षा के लिए ठीक नहीं’

तमिलनाडु के लिए शर्मिंदा हाेने वाली बात यह भी है कि छात्रों को रोजगार दिलाने के मामले में यह राज्य सबसे आखिरी पायदान पर खड़ा है. रोजगारपरकता का मूल्यांकन करने वाली और प्रमाणपत्र देने वाली कंपनी ‘एस्पायरिंग माइंड’ द्वारा जारी की गई राष्ट्रीय रोजगारपरकता रिपाेर्ट (2015-16) से इस तथ्य की जानकारी मिलती है. यह रिपोर्ट भारत के 650 कॉलेजों के इंजीनियरिंग के 1,50,000 से ज्यादा छात्र-छात्राओं के बीच हुए सर्वे के आधार पर तैयार की गई. त्रासदी यहीं खत्म नहीं होती. एक तमिल चैनल पर बहस के दौरान एक चौंकाने वाली बात सामने आई. कार्यक्रम में आए कुछ विद्यार्थियों ने बताया कि कॉलेज के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को पीटने के लिए कुछ संस्थान गुंडों को काम पर रखते हैं. चेन्नई में श्री साईं राम कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग के पूर्व छात्र गौतम वलावन बताते हैं, ‘हाल ही में प्रबंधन के मत से राजी न होने पर श्री साईं राम कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग में हड़ताल कर रहे कुछ छात्रों को हत्या की धमकी दी गई थी.’ पिछले दिनों यह कॉलेज लड़कियों के लिए ड्रेस कोड लागू करने के लिए भी चर्चा में रहा है.
तमिलनाडु में निजी शिक्षण संस्थान पिछले कुछ समय में तेजी से बढ़े हैं. इस समय ये कुल इंजीनियरिंग और प्रबंधन कॉलेजों का 90 प्रतिशत हैं. तीन साल पहले चेन्नई के नजदीक मेलमारुवथुर में आयकर विभाग की ओेर से एक संत के घर में मारे गए छापे में प्रतिबंधित कैपिटेशन फीस की वसूली से जमा किए गए कई करोड़ रुपये जब्त किए गए. यह संत कई इंजीनियरिंग कॉलेजों का अध्यक्ष था. साथ ही राज्य के प्रशासनिक हलकों में भी अच्छा-खासा दखल रखता था. इस तरह की पृष्ठभूमि के बाद जैसी उम्मीद थी, केस को बीच में ही खत्म कर दिया गया.
तमिलनाडु में 60 प्रतिशत सामान्य कला और विज्ञान कॉलेज स्ववित्तपोषित हैं. उच्च शिक्षा के शैक्षणिक संस्थानों में तीन चौथाई स्ववित्तपोषित हैं. सीपीएम के राज्य सचिव जी. रामकृष्णन बताते हैं, ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने अपनी वेबसाइट पर 9 राज्यों के 21 फर्जी संस्थानों के नाम दिए हैं जिन्हें मान्यता प्राप्त नहीं है और जो यूजीसी अधिनियम 1956 के विरुद्ध संचालित हैं. इनमें तमिलनाडु के संस्थान भी शामिल हैं. शिक्षा के निजीकरण से इसी तरह समाज में असमानता बढ़ेगी और वंचित तबकों को शिक्षा नहीं मिल पाएगी.’

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वे आगे कहते हैं, ‘249 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के साथ तमिलनाडु देश का दूसरा सबसे ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेजों वाला राज्य है. सरकार द्वारा सहायता प्राप्त कॉलेज केवल 13 हैं जो कुल इंजीनियरिंग कॉलेजों का महज पांच प्रतिशत है. इसके बावजूद ऐसा नहीं माना जा सकता कि स्ववित्तपोषित इंजीनियरिंग कॉलेजों की अपेक्षा सरकारी कॉलेजों में बेहतर शिक्षा आैर सुविधाएं मिलती हैं.’
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ता निजीकरण किस प्रकार सकारात्मक परिवर्तनों को बाधित कर रहा है, इस बारे में सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा कहते हैं, ‘निजी स्कूलों और कॉलेजों पर सामाजिक नियंत्रण बिलकुल नामुमकिन हो गया है, बल्कि हालात ऐसे हैं कि निजी संस्थान सरकार को भी नियंत्रित कर रहे हैं. ऐसी स्थितियां किसी भी हाल में उच्च शिक्षा के लिए ठीक नहीं.’ अधिवक्ता और कोयंबटूर में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के कार्यकर्ता मुहम्मद शफीक कहते हैं, ‘शिक्षा लाभ कमाने का जरिया बन गई है. अब विद्यार्थी भी शिक्षा सिर्फ धन कमाने का माध्यम मानकर ही ग्रहण करते हैं. अधिकांश निजी संस्थान अध्ययन शाखाओं के रूप में बहुत कम विकल्प देते हैं. इंजीनियरिंग, औषधि विज्ञान और प्रबंधन अधिक लोकप्रिय शाखाएं हैं. लगभग 80 प्रतिशत सीटें इंजीनियरिंग और 50 प्रतिशत से ज्यादा मेडिकल के लिए रखी जाती हैं. ये पाठ्यक्रम ज्यादा रोजगारपरक होते हैं इसलिए निजी संस्थानों की प्राथमिकता में यही होते हैं.’
बहरहाल, अब केरल में भी स्ववित्तपोषित संस्थान शुरू हो रहे हैं और देखने में आ रहा है कि इस राज्य से तमिलनाडु जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट आ रही है. इसके कारण पिछले कुछ सालों से तमिलनाडु के शैक्षणिक संस्थानों में अधिकांश इंजीनियरिंग सीटें खाली पड़ी रहती हैं और इसी कारण बहुत-से संस्थान अपनी मान्यता भी खो रहे हैं. यहां तक कि विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए इन संस्थानों के प्रोफेसर पड़ोसी राज्यों में भी जा रहे हैं. दिलचस्प है कि विद्यार्थियों को फीस में छूट, फ्री बस सर्विस और लैपटॉप जैसी अन्य मुफ्त सुविधाओं से भी आकर्षित करने की कोशिश की जाती है. आने वाले समय में तमिलनाडु में स्ववित्तपोषित संस्थानों की संख्या और बढ़ेगी, ऐसे में यहां शिक्षा की स्थिति और भी खराब होगी. राज्य में हाल ही में हुई विद्यार्थियों की आत्महत्याएं शिक्षा की बिगड़ती स्थिति की ओर साफ इशारा करती हैं. आखिर, सरकार को शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के लिए और कितनी मौतों का इंतजार है!