पत्रकारिता करने की एकमात्र प्रेरणा आपको इस काम के प्रति अपने जज्बे से मिलती है. तहलका के फोटो जर्नलिस्ट तरुण सहरावत की जिंदगी इसी जज्बे की बानगी है. महज 23 साल की उम्र में यह नौजवान अपने तीन साल के करिअर में इतना काम कर गया जो बड़े-बड़े लोग अपने कई सालों के करिअर में भी नहीं कर पाते. 2012 में छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के गढ़ अबूझमाड़ गए तरुण को वहां सेरेब्रल मलेरिया हो गया था, जिसके बाद कई दिनों तक अस्पताल में इससे जूझने के बाद वे जिंदगी की जंग हार गए. बीते 15 जून को तरुण की चौथी पुण्यतिथि थी.
यूं तो तरुण फोटोग्राफर था पर रिपोर्टिंग के लिए उसका जुनून उसके काम में दिखता था. रिपोर्टर और फोटोग्राफर का काम सुर-ताल जैसा ही होता है, ट्यूनिंग बिगड़ी तो काम भी बिगड़ा, पर तरुण हर रिपोर्टर का चहेता था. हर समय काम के लिए तैयार. आदिवासी क्षेत्रों में जाने के लिए कई बार वरिष्ठ भी झिझकते हैं पर तरुण इसके लिए उत्साहित रहता था. शायद यही कारण था कि अपने तीन साल के छोटे-से करिअर में वो 10-12 बार छत्तीसगढ़ गया था. अपने आखिरी असाइनमेंट पर भी वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ गया था.
अबूझमाड़ से लौटने के बाद बुखार होने के बावजूद वह रात में ही ऑफिस आ गया था और रात भर अपनी तस्वीरों पर काम करता रहा. उस असाइनमेंट के लिए उसे नई कैमरा किट भी मिली थी तो वह अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहता था. वो रिपोर्ट उस हफ्ते के अंक की आवरण कथा थी. इसलिए बीमार होते हुए भी तरुण रोज ऑफिस आकर काम करता रहा. उसने कभी फोटोग्राफी की कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं ली पर काम को लेकर इतना गंभीर था कि आजकल ट्रेनिंग लेकर आ रहे बच्चे भी उतने गंभीर नहीं होते. अगर आज वह होता तो अपने काम के साथ कई कीर्तिमान गढ़ चुका होता. तरुण में गजब की कल्पनाशीलता थी. शायद उसे पता भी नहीं था कि वह फोटोग्राफर बनेगा. जब वह तहलका से जुड़ा तब वह अकाउंट विभाग में बैठता था. फोटोग्राफी के प्रति उसमें एक स्वाभाविक रुझान पहले से था. फिर परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उसने फोटोग्राफी करना शुरू किया. इसके बाद फोटोग्राफी उसका जुनून बन गया. तरुण की याद में हम उनकी खींची कुछ तस्वीरें साझा कर रहे हैं.
इसमें से एक तस्वीर की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा. जिसमें एक बच्चा रेडियो के साथ नजर आ रहा है. यह साल 2012 की तस्वीर है. इसके तकरीबन दो साल बाद दिसंबर, 2014 में आई फिल्म पीके में आमिर खान लगभग इसी अंदाज में नजर आते हैं. ये फोटोग्राफी के प्रति उसकी ललक और बेजोड़ कल्पनाशीलता को दर्शाती है. तरुण आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी तस्वीरें हमेशा इस बात की गवाही देंगी कि वह अब भी हमारे बीच है. इसके अलावा उसका काम हमेशा प्रेरणा देता रहेगा.
(लेखक तहलका के डिप्टी फोटो एडिटर हैं)