आजकल एक तस्वीर काफ़ी चर्चा में है, जिसमें एक जहाज़ से उतरते हुए नरेंद्र मोदी विजय (वी) का चिह्न दिखा रहे हैं। दरअसल यह तस्वीर 23 मई, 2014 की है, जब भाजपा लोकसभा का चुनाव जीती थी। लेकिन इस तस्वीर में जो दिलचस्प बात है, वह यह है कि जिस जहाज़ पर मोदी खड़े हैं, वह देश के मशहूर व्यापारी अडानी का प्राइवेट जेट है। इस चुनाव के बाद भी मोदी को कई बार अडानी के जहाज़ में यात्रा करते देखा गया। हालाँकि एक बार अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने इस पर कहा था कि इसके बदले वह सरकार से कोई लाभ नहीं लेते, न ही उन्होंने कभी मुफ़्त में विमान की सेवा दी है।
हालाँकि पिछले 10 साल में अक्सर यह माना गया है कि प्रधानमंत्री मोदी और अडानी के बीच घनिष्ठता है। लेकिन तीसरे चरण के मतदान के बाद जब प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के लिए चुनाव प्रचार में अचानक कांग्रेस पर यह आरोप लगा दिया कि उसे अडानी से टेंपो में भर-भर कर काले धन के बोरे मिले हैं, तो सब चौंक गये। यहाँ तक कि भाजपा के ही कई लोग मोदी के आरोप सुनकर हैरान थे; क्योंकि मोदी ने यह भी कहा कि शहज़ादे (राहुल गाँधी) ने अब अडानी और अंबानी को गाली देना बन्द कर दिया है; जबकि सच्चाई यह है कि राहुल कमोवेश हरेक चुनावी-सभा में मोदी-अडानी के रिश्तों पर सवाल उठाते रहे हैं।
कांग्रेस पहले तो मोदी के आरोप से हैरानी में दिखी; लेकिन फिर पार्टी के नेता राहुल गाँधी के जवाब ने उलटे मोदी को ही उलझन फँसा दिया। राहुल ने बाक़ायदा एक वीडियो जारी कर कहा- ‘नमस्कार मोदी जी! थोड़ा-सा घबरा गये क्या? आमतौर पर आप बन्द कमरों में अडानी और अंबानी जी की बात करते हो। आपने पहली बार पब्लिक में अंबानी, अडानी बोला। आपको यह भी मालूम है कि ये टेम्पो में पैसा देते हैं। निजी अनुभव है क्या? एक काम कीजिए। सीबीआई और ईडी को इनके पास भेजिए। पूरी जानकारी करिये। जाँच करवाइए। जल्दी-से-जल्दी करवाइए। घबराइए मत मोदी जी! मैं देश को फिर दोहराकर कह रहा हूँ कि जितना पैसा नरेंद्र मोदी जी ने इनको दिया है न, …उतना ही पैसा हम हिंदुस्तान के ग़रीबों को देने जा रहे हैं। इन्होंने 22 अरबपति बनाये हैं। हम करोड़ों लखपति बनाएँगे।’
राहुल का यह जवाब मोदी पर भारी पड़ा और वह अपने ही बुने हुए जाल में उलझ गये। आख़िर मोदी को क्यों अडानी को कांग्रेस के ख़ेमे में खड़ा दिखाने की ज़रूरत पड़ी? जबकि दशकों से अडानी को उनका नज़दीकी माना जाता रहा है। बेशक इसे लेकर मोदी पर काफ़ी आरोप भी लगे हैं, ख़ासकर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने दोनों को लेकर हमेशा आक्रामक रुख़ दिखाया है। यह आरोप लगते रहे हैं कि जब राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता छीनी गयी थी, तो उसके पीछे मूल कारण वास्तव में राहुल गाँधी का लोकसभा का वह भाषण था, जिसमें उन्होंने अडानी को लेकर सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाये थे। अब यहाँ यह बड़ा सवाल है कि आख़िर कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए मोदी ने उन्हीं अडानी के इस पैसे को क्यों काला धन कह दिया? अभी तक के चार चरण के मतदान के बाद विपक्ष जिस तरह भरोसे से भरा दिखा रहा है और भाजपा के यह चुनाव हारने का ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहा है, क्या वह वास्तव में होने जा रहा है और क्या अडानी जैसे व्यापारी ने चुनाव की ज़मीनी हक़ीक़त देखते हुए कांग्रेस से नज़दीकियाँ बढ़ानी शुरू कर दी हैं? या क्या मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव के आधे चरणों का मतदान हो जाने के बाद निराशा में इतने भर गये हैं कि कुछ भी बोल रहे हैं? यह सच है कि तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार आने के बाद अडानी ने वहाँ अपने एक प्रोजेक्ट को लेकर समझौता किया था। क्या रेवंथ रेड्डी के ज़रिये अडानी कांग्रेस आलाकमान के साथ रिश्तों की डोर जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं? कहना कठिन है। लेकिन यह भी सच है कि ऐसा होता, तो राहुल गाँधी इस तरह हरेक जनसभा में मोदी-अडानी रिश्तों पर हमला नहीं कर रहे होते। तो भारतीय व्यापारी अडानी, जिन्हें पिछले 10 साल में प्रधानमंत्री मोदी से मित्रता की वजह से ज़्यादा चर्चा मिली है; का उन्हीं पर मोदी का हमला बोलना किस बात का संकेत है? मोदी ने मित्र कहलाये जाने वाले व्यापारी पर जिस तरह लांछन लगाकर कांग्रेस पर हमला बोलने की कोशिश की, उल्टा वह उन्हीं पर भारी पड़ गया है। कांग्रेस माँग कर रही है कि उनकी पार्टी को अडानी की तरफ़ से यदि पैसे दिये गये हैं, तो इसकी ईडी से जाँच होनी चाहिए। क्या इस चुनाव में भाजपा के नैरेटिव सेट करने में नाकाम रहने से ख़ुद मोदी ही प्रचार की दिशा में भटक गये हैं और वह कुछ भी बोलने लगे हैं? उनकी बात किसी के गले नहीं उतरी है। क्योंकि जनता में यह आम सोच है कि अडानी मोदी के दोस्त हैं और राहुल गाँधी देश में अकेले ऐसे नेता हैं, जो बेख़ौफ़ मोदी और अडानी के रिश्तों पर सवाल उठा रहे हैं।
दिलचस्प यह है कि मोदी ने अडानी को लेकर कांग्रेस पर जो आरोप लगाया, वह तेलंगाना के ही करीमनगर की एक जनसभा में लगाया। मोदी ने जनता के बीच दावा किया कि ‘साथियों! आपने देखा होगा कि कांग्रेस के शहज़ादे (राहुल गाँधी) पिछले पाँच साल से सुबह उठते ही माला जपना शुरू कर देते हैं। जबसे उनका राफेल वाला मामला ग्राउंडेड हो गया, तबसे उन्होंने एक नयी माला जपनी शुरू कर दी है। पाँच साल से एक ही माला जपते थे- पाँच उद्योगपति, फिर धीरे-धीरे कहने लगे अंबानी-अडानी। लेकिन जबसे चुनाव घोषित हुआ है, इन्होंने अंबानी-अडानी को गाली देना बन्द कर दिया। मैं आज तेलंगाना की धरती से पूछना चाहता हूँ कि शहज़ादे घोषित करें कि अंबानी और अडानी से कितना माल उठाया है? काले धन के कितने बोरे भरकर मारे हैं? क्या टेम्पो भरकर नोटें कांग्रेस के लिए पहुँची हैं? क्या सौदा हुआ है? आपने रातोंरात अडानी-अंबानी को गाली देना बन्द कर दिया। ज़रूर दाल में कुछ काला है।’
लेकिन वास्तव में मोदी का यह दावा आरोप से ज़्यादा मज़ाक़ का विषय बन गया। किसी ने भी इस पर भरोसा नहीं किया। उलटे कई लोग यह कहने लगे कि लगता है कि अडानी को भी ज़मीनी हक़ीक़त पता चल गयी है कि मोदी चुनाव हार रहे हैं। इसलिए वह कांग्रेस के पाले में जा रहे हैं। राहुल गाँधी ने इस पर कहा कि ‘मोदी जी को कैसे पता कि अडानी-अंबानी के यहाँ से टेम्पो में पैसा आता है। क्या उनका निजी अनुभव है। आख़िर आपको भी 10 साल बाद अडानी याद आ गयी।’
इंडिया गठबंधन के सभी सहयोगी इस मुद्दे पर राहुल गाँधी के साथ खड़े दिखे। कुछ राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ख़ुद अपनी पार्टी के इस चुनाव में नैरेटिव बनाने में नाकाम रहने के कारण अब मोदी विपक्ष, ख़ासकर राहुल गाँधी के रोज़गार, किसान, महिला, युवा आदि के मुद्दों को दबाने के लिए ऐसे मुद्दे उछाल रहे हैं, जिससे जनता का ध्यान भटके। हालाँकि भाजपा के नेताओं को भरोसा है कि मोदी सोच-समझकर ही मुद्दे उठाते हैं और वह किसी भी तरह भाजपा को चुनाव जिता ही देंगे। लेकिन आज़ादी के बाद हुए चुनावों के नतीजे देखें, तो पाएँगे कि जनता कई बार पिछले चुनावों के आधार पर बनाये गये अनुमानों को ग़लत साबित करते हुए सत्ता को बदल देती है। यह भी देखा गया है कि जब भी कोई बड़ी पार्टी चुनाव के मुद्दों में बिखर जाती है, तो जनता उसे समर्थन देने से हिचकती है। भाजपा आज ऐसी ही स्थिति में खड़ी दिख रही है, जबकि कांग्रेस और राहुल गाँधी (इण्डिया गठबंधन) अपने मुद्दों पर शुरू से ही डटा हुआ है।
इसके विपरीत भाजपा के सबसे बड़े नेता मोदी बार-बार मुद्दे बदल रहे हैं। कभी विपक्षी नेताओं के भाषणों से कुछ उठाकर उन पर हमला कर रहे हैं, तो कभी ध्रुवीकरण वाले मुद्दे उठा रहे हैं। यदि ये मुद्दे चलते, तो मोदी को इन्हें बदलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। यह इस बात से भी साबित होता है कि चुनाव के बीच में ही सरकार प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् की एक रिपोर्ट सामने ले आयी, जिसमें दावा किया गया है कि सन् 1950 से 2015 के बीच देश में हिन्दुओं की तादाद 7.8 फ़ीसदी घट गयी है, जबकि मुसलमान आबादी 43.15 फ़ीसदी बढ़ी है। ज़ाहिर है चुनाव के बीच इस तरह की रिपोर्ट के आँकड़े सामने लाने, वह भी 2015 तक ही; यह ज़ाहिर करता है कि इसके राजनीतिक मायने हैं। हालाँकि इसका भी कुछ फ़$र्क चुनाव पर पड़ता नहीं दिख रहा।
यह चुनाव मंगलसूत्र और शहज़ादे से होता हुआ अडानी तक जा पहुँचा है। हो सकता है आने वाले समय में कुछ और आश्चर्यर्जनक देखने को मिले। अभी तो तीन बड़े चरण चुनाव के बाक़ी हैं। मतदान प्रतिशत और जनता ने इस चुनाव को रहस्य बना दिया है। नेता जितना इस रहस्य को खोलने की कोशिश कर रहे हैं, इसमें और उलझते जा रहे हैं। सचमुच 04 जून देश की राजनीति में बहुत बड़ा दिन होगा।