हमारे देश के कई हिस्सों में एक बेहद प्रचलित कहावत है, – ‘जब मेड़ ही खेत को खाने लगे तो बेचारे खेत का क्या होगा?’ इन दिनों यह कहावत देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी मानी जानेवाली सीबीआई पर अक्षरश: लागू होती जान पड़ती है. सत्ता प्रतिष्ठानों के इशारों पर काम करने के आरोपों से पहले ही अनेकों बार ‘अलंकृत’ होती रहनेवाली यह संस्था इस बार खुद अपने मुखिया के कारनामों के चलते ‘अभिभूत’ है. जब से इस बात का पता चला है कि देश में हुए अब तक के सबसे बड़े घोटालों – 2जी स्पैक्ट्रम और कोयला घोटाले – के कई आरोपी सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से पिछले एक साल में कई बार उनके घर पर जाकर मिले हैं, तब से यह एजेंसी बुरी तरह से सन्निपात में है. ऐसा होना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि जिन दागियों से उसके मुखिया की मुलाकातें उजागर हुई हैं, उनकी जांच वह खुद ही कर रही है. इन मुलाकातों के बाद उसकी अब तक की पूरी जांच प्रक्रिया पर तो प्रश्नवाचक चिन्ह लग ही चुका है साथ ही ‘सीबीआई प्रमुख’ पद की गरिमा भी सिर के बल खड़ी हो गई है. जानकारों का मानना है कि इससे पहले किसी भी अधिकारी के चलते सीबीआई की ऐसी दुर्गति नहीं हुई. ऐसे में कई तरह के सवाल उठना लाजमी है. मसलन, सीबीआई निदेशक का आरोपियों से मिलना सही था या गलत? इन मुलाकातों का उद्देश्य जांच प्रक्रिया को प्रभावित करना तो नहीं था? और, इन मुलाकातों के जरिए सीबीआई को साध तो नहीं लिया गया है? आदि आदि…
पिछले साल नौ मई को देश की सबसे बड़ी अदालत ने सीबीआई को जलालत के भारी-भरकम प्रशस्ति पत्र से नवाजते हुए उसे ‘सरकारी तोता’ तक कह दिया था. तब शायद ही किसी को अंदेशा होगा कि सालभर के अंदर ही यह तोता पिंजरे से बाहर निकल कर फिर से ऐसा और इतना कुछ कर देगा. इस पूरी कहानी को समझने के लिए इसी महीने की दो तारीख को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई एक याचिका से शुरुआत करते हैं.
दो सितंबर को नामी वकील और आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई प्रमुख पर टूजी स्पैक्ट्रम घोटाले में आरोपित रिलायंस कंपनी को बचाने का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की. गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की तरफ से दायर की गई इस याचिका में उन्होंने अदालत को बताया कि पिछले एक साल के दौरान अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले रिलायंस ग्रुप के दो अधिकारियों ने सिन्हा से तकरीबन पचास बार उन्हीं के घर पर मुलाकात की. याचिका में आरोप लगाया गया कि सिन्हा से मिलने वाले इन अधिकारियों का नाम 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले के उन आरोपितों में शामिल था जिनकी जांच खुद सीबीआई इस दौरान कर रही थी. अपने आरोपों के पक्ष में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के सामने रंजीत सिन्हा के दो जनपथ स्थित सरकारी आवास की एक विजिटर्स डायरी का बतौर सबूत हवाला दिया. उन्होंने अदालत को बताया कि इस डायरी में उन अधिकारियों के नाम, सिन्हा के घर आने की तारीख, आने-जाने का समय और यहां तक कि उन गाड़ियों के नंबर भी दर्ज हैं जिनमें बैठकर वे सीबीआई प्रमुख से मिलने पहुंचे थे. 2जी घोटाले में जांच का सामना कर रहे ऐसे अधिकारियों के साथ सीबीआई प्रमुख की मुलाकात को खतरनाक बताते हुए प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि सिन्हा को इस मामले की जांच से अलग कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने आशंका जताई कि ऐसा न करने से जांच प्रक्रिया के निष्पक्ष रहने पर संदेह हो सकता है.
2जी मामले में आरोपित महेंद्र नहाटा के अलावा कोयला घोटाले में जांच का सामने कर रहे कांग्रेस नेता विजय दर्डा भी सीबीआई प्रमुख से कई बार मिले हैं
प्रशांत भूषण के आरोपों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनसे उस विजिटर्स डायरी को कोर्ट में पेश करने को कहा और साथ ही सीबीआई निदेशक को भी नोटिस जारी कर दिया. इस बीच देशभर का मीडिया अपने कैमरों का रुख रंजीत सिन्हा के सरकारी आवास की तरफ करके चंद मिनटों में ही इस खबर को देश भर में पहुंचा चुकी था. लेकिन इस खबर की असली ‘यूएसपी’ का सामने आना अभी बाकी था. जिस विजिटर्स डायरी का जिक्र प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका में किया था उसके मीडिया के हाथ लगते ही यह कमी भी पूरी हो गई. इस डायरी में एक से बढ़कर एक और भी कई चौंकाने वाली बातें थी. डायरी से पता चला कि मई 2013 से अगस्त 2014 के बीच सिर्फ रिलायंस के ही अधिकारियों ने रंजीत सिन्हा से मुलाकात नहीं की, बल्कि उनसे मिलनेवाले लोगों का दायरा 2जी से लेकर कोयला आवंटन घोटाला, हवाला कांड और आयकर विभाग की जांच समेत कई अन्य जांचों का सामना करनेवाले संदिग्धों तक फैला है.
इन मुलाकातियों में रिलायंस के अधिकारियों के अलावा 2जी मामले के ही एक और आरोपित महेंद्र नहाटा भी शामिल हैं जो 71 बार सिन्हा के घर पहुंचे. इसके अलावा कोयला आवंटन घोटाले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे कांग्रेस नेता विजय दर्डा और नीरा राडिया फोन टेपिंग मामले से सुर्खियों में आए कॉरपोरेट लॉबीइस्ट दीपक तलवार का नाम भी इनमें शुमार था. लेकिन इस रजिस्टर में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम विवादास्पद मांस निर्यातक मोइन कुरैशी का था जिन्होंने सिन्हा के आवास पर तकरीबन 70 बार दस्तक दी. इनके अलावा और भी कई विवादित लोगों के नाम इस रजिस्टर में दर्ज थे.
इस खुलासे के बाद इन दुर्लभ मुलाकातों और मुलाकातियों के बारे में ठीक से स्पष्टीकरण देने के बजाय सिन्हा ने पहले तो विजिटर्स रजिस्टर को ही फर्जी बता दिया. फिर सुप्रीम कोर्ट से मांग कर दी कि इस मामले में मीडिया कवरेज पर रोक लगा दी जाए. अपनी निजता पर चोट की दुहाई देते हुए सिन्हा का कहना था कि उनके आवास पर दो और विजिटर्स रजिस्टर मौजूद हैं जिनमें ऐसा कोई भी नाम दर्ज नहीं है. लेकिन उन्होंने रिलायंस अधिकारियों के साथ ही अन्य विवादित लोगों के साथ अपनी मुलाकातों को स्वीकार भी कर लिया. उनका कहना था कि टूजी मामले में जांच के सिलसिले में उन्होंने नियमों के दायरे में रहकर ही रिलायंस के उन अधिकारियों से मुलाकात की थी. इसके अलावा उनकी दलील थी कि बाकी के कुछ लोगों ने उनके साथ मित्रता के नाते मुलाकात की तथा कुछ ने अन्य जरूरी कामों के सिलसिले में उनकी डोरबेल बजाई थी.
15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब देते हुए भी उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताया और प्रशांत भूषण को डायरी उपलब्ध करवाने वाले व्हिसिल ब्लोअर का नाम उजागर करने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से ऐसा करने को भी कह दिया है. लेकिन इस सबके बाद भी सवाल बंद नहीं हुए हैं.
नामी वकील और आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके एचएस फुलका कहते हैं, ‘किसी भी मामले की जांच को लेकर जांच अधिकारी का सबसे अहम काम यही होता है कि वह उस मामले की जांच के संबंध में होने वाली हर गतिविधि को लिखित रूप से संकलित करे. कानूनी भाषा में इसे रिकॉर्ड मेंटेन करना कहते हैं. इस लिहाज से कहा जाए तो सिन्हा को उन सभी लोगों के साथ हुई मुलाकातों का लेखा-जोखा रखना चाहिए था जिन्होंने उनसे टूजी या कोयला घोटाले की जांच के संबंध में मुलाकात की थीं. लेकिन वे खुद ही एक तरफ इस रजिस्टर को झूठा बता रहे हैं और दूसरी तरफ इस बात को भी स्वीकार कर रहे हैं कि उन्होंने रिलायंस के कुछ अधिकारियों से मुलाकात की. अगर उन्होंने उन अधिकारियों से नियमों के अधीन बातचीत की थी तो फिर इसका रिकॉर्ड उनके घर पर रखे बाकी के दो रजिस्टरों में भी क्यों नहीं है? शक की सुई तो यहीं से उठती है.’ राष्ट्रीय सहारा अखबार के समूह संपादक रणविजय सिंह कहते हैं, ‘होना तो यह चाहिए था कि अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर सिन्हा साफ तौर पर अपना पक्ष रखते और सच को सामने लाते, लेकिन उन्होंने ऐसा करना तो दूर उलटे मीडिया कवरेज पर ही रोक लगाने की मांग कर डाली. साफ है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके पास कोई जवाब था ही नहीं.’
दरअसल पहले इन सभी मुलाकातों से मुकर जाने के बाद, सिन्हा ने जब बाद में इन्हें स्वीकार किया था तो एक तर्क यह भी दिया था कि उनके घर पर भी दफ्तर है और वे वहां से भी सीबीआई की गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं. लेकिन इस रजिस्टर से जितनी भी बातें सामने आ रही हैं उनसे इस बात का संकेत नहीं मिलता. इस रजिस्टर में सीबीआई अधिकारियों के सिन्हा के आवास पर आने-जाने का जिक्र नहीं है. कानूनी जानकारों की माने तो इससे यह पता चलता है कि सिन्हा अपने घर का प्रयोग दफ्तर के रूप में शायद ही करते होंगे, वरना उनके मातहत अधिकारियों का भी वहां पर आना-जाना होना चाहिए था.
ऐसे में इस रजिस्टर को यदि झूठा ही मान लिया जाए, जैसा कि सिन्हा ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा भी है, तब भी इतना तो साफ ही हो चुका है कि पिछले एक साल के दौरान वे किन-किन लोगों से मिल रहे थे. सवाल उठता है कि एक जांच अधिकारी का उन लोगों से मिलना जिनकी वह खुद जांच कर रहा हो, किस बात का संकेत देता है ?
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) के संपादक अभय कुमार दुबे कहते हैं, ‘सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब इन दोनों मामलों की निगरानी सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के हाथों में है, तब सीबीआई चीफ आरोपितों से क्यों मिले? इतनी अधिक बार हुई ये मुलाकातें अपने आप में कई तरह की आशंकाओं को जन्म देने के लिए पर्याप्त हैं. इन आशंकाओं को इस बात से और बल मिलता है कि ये मुलाकातें सिन्हा के घर पर हुई हैं. ऐसे में इन दोनों ही मामलों में जांच प्रक्रिया पर सवाल उठना स्वाभाविक है.’ रणविजय सिंह कहते हैं, ‘पहले से ही विवादित अफसर रहनेवाले सिन्हा ने सीबीआई का मुखिया बनने के बाद अपनी विवादित फितरत में कई और आयाम जोड़ दिए हैं’
दिसंबर, 2012 में सीबीआई प्रमुख के रूप में नियुक्त होने से लेकर अब तक रंजीत सिन्हा के कार्यकाल का गंभीरता से अध्ययन किया जाए तो रणविजय सिंह द्वारा उनको लेकर कही गई बातों में दम नजर आता है.
बात इसी साल अप्रैल के आखिरी दिनों की है. 2जी मामले में आरोपी पूर्व दूर संचार मंत्री दयानिधि मारन और उनके भाई के खिलाफ सीबीआई, एयरसेल-मैक्सिस सौदे में हुई गड़बड़ियों की जांच कर रही थी. उनके खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. इस बीच अचानक ही रंजीत सिन्हा ने मारन बंधुओं के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने की दलील देकर कहा कि सबूतों के अभाव में उनको आरोपी नहीं बनाया जाना चाहिए. इस मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का तर्क था कि मारन भाइयों के खिलाफ उनके पास काफी मजबूत सबूत हैं और उनको आरोपी बनाया ही जाना चाहिए. जांच अधिकारियों तथा सीबीआई मुखिया के बीच पैदा हुए इस टकराव को देखते हुए इस मामले को अटॉर्नी जनरल के पास भेज दिया गया. तब तक देश में आम चुनावों का परिणाम सामने आ चुका था और एनडीए को बहुमत मिल गया. ऐसे में पूर्व अटॉर्नी जनरल ने इस पर कोई राय देने से इंकार कर दिया. इसके बाद नई सरकार ने इस मामले में जब अटॉर्नी जनरल की राय मांगी तो, नये अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सीबीआई के जांच अधिकारियों की बात को सही माना. इसके बाद सीबीआई ने इस मामले में हाल ही में आरोप पत्र दायर कर दिया है. इसमें मारन बंधुओं को आरोपी बनाया गया है.
चारा घोटाले के बाद लालू प्रसाद यादव के पक्ष में रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में पटना हाई कोर्ट ने रंजीत सिन्हा को जांच से हटाने का आदेश दिया था
इसी तरह का एक और मामला लोकसभा चुनावों से पहले का भी है. तब चुनाव के ठीक पहले रंजीत सिन्हा चारा घोटाले से जुड़े तीन और मामलों में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोप समाप्त करवाना चाहते थे. उनका तर्क था कि इन तीनों मामलों में भी लालू के खिलाफ वही सब सबूत हैं जिनके चलते वे एक मामले में पहले ही पांच साल की सजा पा चुके हैं. तब भी सीबीआई के ही एक अधिकारी, (निदेशक अभियोजन) के अलावा सॉलिसिटर जनरल का विरोध उनके आड़े आ गया. बिहार में इस घोटाले की जांच के दौरान भी वे लालू यादव की मदद के आरोपों में घिर गए थे. डेढ़ दशक पहले इस घोटाले की जांच के दौरान वे पटना में सीबीआई के डीआईजी थे. लालू के पक्ष में रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में तब पटना हाईकोर्ट ने सिन्हा को जांच से हटाने का आदेश दे दिया था.
रंजीत सिन्हा के कार्यकाल में उठनेवाले विवादों की यह कथा पिछले साल अप्रैल में हुए कोयला घोटाले की स्थिति रिपोर्ट के लीक होने का जिक्र किए बगैर अधूरी ही कही जाएगी. यही वह मामला है जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था. तब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई कोयला आवंटन घोटाले की जांच कर रही थी. इसी दौरान कोर्ट ने सीबीआई से इस मामले की स्टेटस रिपोर्ट जमा करने को कहा. कायदे के मुताबिक सीबीआई को यह रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को दिखानी चाहिए थी, लेकिन उसने इस रिपोर्ट को पहले कानून मंत्री अश्विनी कुमार के साथ ही कोयला मंत्रालय के अधिकारियों को भी दिखा दिया. यह बात खुद रंजीत सिन्हा ने अदालत में स्वीकार की, साथ ही यह भी माना कि सरकार के निर्देश पर इनमें बदलाव भी किए गए. रंजीत सिन्हा का यह कदम हर लिहाज से गलत था. उस वक्त प्रशांत भूषण का कहना था कि, ‘हवाला मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को साफ तौर पर कहा था कि अदालत की निगरानी में होने वाले मामलों की जांच के संबंध में उसे सिर्फ और सिर्फ अदालत के प्रति ही जवाबदेह होनी चाहिए.’ इसके अलावा सीबीआई के पूर्व निदेशक त्रिनाथ मिश्रा ने भी तब सीबीआई द्वारा स्टेटस रिपोर्ट सरकार को दिखाए जाने को गलत बताया था. सीबीआई की इस हरकत को सुप्रीम कोर्ट ने अपने भरोसे के साथ खिलवाड़ बताया था. और उसे जम कर लताड़ लगाई थी.
इनके अलावा और भी कई विवाद ऐसे ढूंढे जा सकते हैं जिनका कालखंड भी रंजीत सिन्हा का अब तक का कार्यकाल ही रहा है. फिलहाल वापस उसी मूल कथा पर आते हैं.
इस मूल कथा को लेकर केंद्र सरकार के रुख की बात की जाए तो माना जा रहा है कि इस मामले में उसकी निगाहें भी न्यायपालिका की तरफ ही जमी हैं. छह सितंबर को प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिख कर इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए सिन्हा को हटाने की मांग की थी. अभय कुमार दुबे कहते हैं, ‘बेशक मामला कोर्ट के संज्ञान में है और बहुत संभव है कि कोर्ट इस पर फैसला भी करेगा लेकिन बेहतर होता कि सरकार अपने स्तर पर कम से कम ऐसा कोई संकेत तो देती जिससे आम जनता को लगता कि पिछली सरकार के मुकाबले यह सरकार भ्रष्टाचार को मिटाने को लेकर ज्यादा गंभीर है. सरकार के पास गठबंधन जैसी मजबूरी भी नहीं है, और कार्रवाई करने का पर्याप्त आधार भी है.’
बहरहाल, सरकार अथवा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से इतर बात की जाए तो सबसे सरल और सबसे अहम सवाल अब भी वही है कि, 1974 बैच के इस आईपीएस अधिकारी ने एक बेहद गरिमामयी पद पर रहते हुए 2जी स्पैक्ट्रम, और कोयला घोटाले के आरोपितों के साथ बीसियों बार अपने घर पर मुलाकात करके क्या सीबीआई की निष्पक्षता को लेकर आम जनता के मन में पहले से ही गहरी बैठी हुई शंकाओं को यकीन की तरफ ले जाने का काम नहीं किया है? दिल्ली में पिछले सात-आठ साल से ऑटो चला रहे सिन्हा के ही गृहराज्य के एक मेहनतकश युवा दिनेश कहते हैं, ‘सब जानते हैं कि बड़ा अधिकारी लोगों से अपने घर पर मिलने को किस लिए कहता है.’