बांग्लादेश से लगी सीमा के आस-पास ये लेन-देन का नया तरीका बन चुका है। यहां चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों को उनके मालिक सिक्कों की जगह गत्ते से बने टोकनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। ये टोकन कई आकारों और कीमतों के होते हैं और मजदूर इनके जरिए कंपनी की कैंटीन में चाय-नाश्ते आदि की कीमतों का भुगतान करते हैं।
दरअसल चाय बागानों को इलाके में चल रही सिक्कों की भारी कमी के चलते ऐसा करना पड़ रहा है। और ये कमी भारतीय सिक्कों के पड़ोसी बांग्लादेश में तस्करी होने के कारण पैदा हुई है। वहां इन सिक्कों को पिघला कर इनसे ब्लेड और फाउंटेन पेनों के निब आदि सामान बनाए जा रहे हैं। ये भी एक कारण था कि पिछले साल रिजर्व बैंक को करीब 90 करोड़ नए सिक्के जारी करने पड़े थे।
मगर ऐसा होने की वजह क्या है? रिजर्व बैंक के कोलकाता ऑफिस के पास मौजूद मनी चेंजर्स उन वजहों का खुलासा करते हैं जिससे तस्करी का ये धंधा मुनाफे का सौदा बन गया है—एक रूपए के सिक्के से छह या सात ब्लेड तक बनाए जा सकते है जिनकी कीमत 35 बांग्लादेशी टका तक होती है। रूपए और टका के बीच विनिमय की दर 1:1.6 है, इस तरह से देखा जाये तो ये बीस गुना से भी ज्यादा मुनाफा देने वाला धंधा है।
भारत में एक रूपए, दो रूपए और पांच रूपए के सिक्कों के अलावा 25 और 50 पैसे के सिक्के भी चलते हैं। फिलहाल दो और पांच रूपए के सिक्कों में 75 प्रतिशत तांबा और 25 प्रतिशत निकिल होती है। जबकि एक रूपया, 50 और 25 पैसे का सिक्का स्टील से बनता है।
एक किलोग्राम सिक्के का बाज़ार मूल्य जहां अलग-अलग सिक्कों के लिए 333 रूपए से 555 रूपए तक होता है वहीं इन्हें पिघला कर बनाई गई धातु की कीमत 2,500 रूपए तक होती है।
यहां ये बात गौर करने लायक है कि सिक्कों की जो कीमत होती है उसके मुकाबले इनमें इस्तेमाल की गई धातु की कीमत कहीं ज्यादा होती है। सिक्कों की अवैध तस्करी में शामिल लोगों की माने तो एक किलोग्राम सिक्के का बाज़ार मूल्य जहां अलग-अलग सिक्कों के लिए 333 रूपए से 555 रूपए तक होता है वहीं इन्हें पिघला कर बनाई गई धातु की कीमत 2,500 रूपए तक होती है। “पिछले साल व्यापारियों द्वारा सिक्के गलाने की ख़बर मिलने के बाद हमने कुछ गिरफ्तारियां की थी। ये काफी मुनाफे का धंधा है”, कोलकाता पुलिस के मंडल उपायुक्त जावेद शमीम कहते हैं।
शमीम आगे बताते हैं, “पहले तस्कर, सिक्कों को सीमापार ले जाकर पिघला देते थे। लेकिन, अब कुछ दुकानदारों ने खुद ही ऐसा करना शुरू कर दिया है।” उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल पुलिस की एक टीम सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ मिलकर सिक्कों की तस्करी को रोकने का अभियान चला रही है।
असम के अलावा सिक्कों की सबसे विकट समस्या त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में देखने को मिल रही है। और इस कमी को पूरा करने की कोशिश में सिक्कों की जगह पुराने कटे-फटे नोटों ने ले ली है।
विशेषज्ञों की निगाह में ये कोई अकेले भारत की समस्या नहीं है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता निर्बेद रॉय कहते हैं कि 70 के दशक में इटली और 80 के दशक में मिस्र भी इसी तरह की समस्या से दो चार हो चुके हैं। रॉय के मुताबिक अमेरिका ने 2006 में सिक्कों को पिघलाना संघीय अपराध घोषित कर दिया था। वहां हाल ही में सिक्कों का प्रचलन बंद करने के हिमायती समूहों को तब सफलता की उम्मीद जगी जब डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बराक ओबामा ने उन्हें इस पर विचार करने का भरोसा दिया। “लेकिन भारत में समस्या अलग है, यहां आरबीआई ने चाय बगान मालिकों को सिक्कों का विकल्प तैयार करने की इजाजत नहीं दी है। अगर आरबीआई को पूर्वोत्तर में चल रही इस टोकन मुद्रा की भनक भी लग गई तो इस पर बड़ा विवाद पैदा हो जाएगा”, रॉय हंसते हुए कहते हैं। वो आगे जोड़ते हैं, “भारतीय टकसाल को सिक्कों के दूसरे इस्तेमाल को रोकने के लिए कुछ सुधार करने होंगे जैसे कि सिक्कों में धातुओं की मात्रा में बदलाव।”
शमीम, एक भिखारी, लक्ष्मी दास का वाकया बताते हैं जिसने स्थानीय बैंक कर्मियों को हैरत में डाल दिया था। वो हाथ में सिक्कों से भरी चार बाल्टियां लेकर बैंक में पहुंचा और वहां एक खाता खोलने या फिर सिक्कों के बदले काग़ज़ के नोट लेने की जिद करने लगा। दरअसल भिखारी को डर था कि नोटों की बजाय उसके सिक्कों के चोरी चले जाने का खतरा ज़्यादा था।
आरबीआई को भी इस संकट का अहसास है और वो इससे पार पाने के लिए एक बार फिर से नए सिक्के जारी करने जा रहा है मगर नए सिक्के बाज़ार में आते ही छू–मंतर हो जाते हैं और स्थिति फिर से पहले जैसी ही हो जाती है।
शांतनु गुहा रे