रामसेतु और सबके अपने हेतु

जबर्दस्त राजनीतिक बवंडर के बावजूद सेतुसमुद्रम परियोजना को 2010 से पहले पूरा करने की सारी तैयारियां की जा रही हैं। सेतुसमुद्रम कॉर्पोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी तहलका को बताते हैं कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद परियोजना के लिए ऐसा वैकल्पिक मार्ग चुनने की संभावनाएं बढ़ गई हैं जो सभी दलों को स्वीकार्य हो।

इस परियोजना से भारत के पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच की दूरी काफी कम हो जाएगी। अभी ये दूरी तय करने के लिए जहाज़ों को श्रीलंका का चक्कर काटना पड़ता है। तमिलनाडु के नज़रिये से ये परियोजना पूरी होने के बाद समुद्री व्यापार में वृद्धि होगी, कोलाचेल और तूतीकोरिन बंदरगाहों का विकास होगा और उसके दक्षिणी ज़िलों की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होगा।

लेकिन फिलहाल परियोजना की राह में कई रुकावटें हैं। रामेश्वरम तट के पास खुदाई का काम सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश के बाद रुका हुआ है। कोर्ट ने ये आदेश रामसेतु (एडम्स ब्रिज) तोड़ने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर दिया था जिनमें दलील दी गई थी कि एडम्स ब्रिज का निर्माण भगवान राम ने किया था और इसे तोड़ने से हिंदुओं की भावनाएं आहत होंगी। लेकिन भू-विज्ञानियों का कहना है कि विवादित स्थल प्राकृतिक रूप से निर्मित हुई चूना पत्थर की चट्टाने हैं और इस तरह की चट्टाने अन्य जगहों पर भी मौजूद हैं। इस मुद्दे ने उस वक्त राजनीतिक रुख अख्तियार कर लिया जब भाजपा और संघ परिवार ने इस परियोजना के विरोध में प्रदर्शन कर इसे धार्मिक रंग दे दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम का अस्तित्व न होने संबंधी एक शपथपत्र दाखिल करने के बाद यूपीए की जमकर आलोचना हुई थी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के इस बयान ने कि राम कौन हैं और उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई कहां से की है, आग में और भी घी डालने का काम किया।

अनुमान है कि देश के पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच सेतुसमुद्रम परियोजना के रास्ते यात्रा करने पर एक जहाज को 54 लाख रूपए तक का फायदा होगा।

सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में कई दिलचस्प बहसें देखने को मिली। पूर्व एटॉर्नी जनरल के पारसरन ने हिंदू मन्नानी नेता रामा गोपालन का पक्ष रखते हुए कहा कि राम सेतु एक पवित्र स्थल है और इसे तोड़ने से हिदुओं की भावनाएं स्थाई रूप से आहत होंगी। इस पर न्यायमूर्ति रवींद्रन ने पूछा, “क्या विकास के वास्ते इस सेतु के एक छोटे से हिस्से को छुआ जा सकता है? हमारे देश में हिमालय, गोवर्धन, तिरुपति पहाड़, नदियां और ज़मीन सभी पूजनीय हैं। आपके कहने का अर्थ है कि ज़मीन को नहीं छुआ जा सकता, नदियों पर बांध नहीं बनाए जा सकते और पहाड़ों को पत्थरों के लिए नहीं छुआ जा सकता?”

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को परियोजना के लिए वैकल्पिक रास्ते की संभावना तलाशने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने जानना चाहा कि क्या परियोजना का मार्ग धनुषकोडि से होकर जाने की बजाय थोड़ा घुमाया जा सकता है ताकि पुल को बचाया जा सके। दिलचस्प बात ये है कि राज्य सरकार के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि वर्तमान प्रस्तावित मार्ग को पूर्ववर्ती भाजपा की सरकार ने ही हरी झंडी दी थी और ये रास्ता इस परियोजना के लिए सबसे उपयुक्त है। वर्तमान मार्ग की पुष्टि केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल इस परियोजना के पुनर्निरीक्षण के लिए बनाई गई एक विशेष समिति ने भी की थी।

इस बीच एक नाटकीय घटनाक्रम में केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता फाली एस नरीमन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सीता को वापस पाने के बाद भगवान राम ने अपने जादुई धनुष से रामसेतु को तोड़ दिया था। उन्होंने कंबन रामायण (रामायण का तमिल संस्करण) का हवाला देते हुए कहा, “भगवान राम ने पुल को तीन हिस्सों में तोड़ दिया था। जिस चीज़ को तोड़ दिया गया हो वो पुल तो कतई नहीं हो सकता। हम उस चीज़ की पूजा नहीं कर सकते जिसे तोड़ दिया गया हो।”

इससे पहले सेतुसमुद्रम परियोजना अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों के निशाने पर रही। जनवरी में जलसेना अध्यक्ष एडमिरल सुरेश मेहता ने एक विवादित बयान दिया, “इस परियोजना पर काम हो सकताहै पर पूरी होने पर ये सिर्फ छोटे जहाजों के काम आ सकेगी, बड़े जहाज इस रास्ते से नहीं गुजर सकेंगे।” दिलचस्प बात ये है कि इन्हीं सुरेश मेहता ने, 2005 में, जब वे पूर्वी नेवी कमान के मुखिया थे, इस परियोजना का समर्थन किया था। उनका कहना था, “ये परियोजना जहाजों दूरी को कम कर ईंधन की बचत करेगी। इन फायदों की वजह से ट्रैफिक में वृद्धि होगी जिससे लिट्टे की घुसपैठ भी नियंत्रित होगी।” केंद्रीय जहाजरानी मंत्री टीआर बालू उनके आरोपों को नकारते हुए कहते हैं कि 2006-07 के दौरान भारतीय बंदरगाहों पर आने वाले 79 फीसदी जहाज छोटे ही थे जिनका बोझ 50,000 टन से कम था।

राज्य सरकार के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि वर्तमान प्रस्तावित मार्ग को पूर्ववर्ती भाजपा की सरकार ने ही हरी झंडी दी थी और ये रास्ता इस परियोजना के लिए सबसे उपयुक्त है।

विशेषज्ञ बालू का समर्थन करते हैं। कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल के प्रोफेसर एम सुब्रमण्यम मीडिया द्वारा इस परियोजना के सकारात्मक पहलुओं की अनदेखी की आलोचना करते हैं। उनका अनुमान है कि देश के पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच सेतुसमुद्रम परियोजना के रास्ते यात्रा करने पर एक जहाज को 54 लाख रूपए तक का फायदा होगा। ये अनुमान वर्तमान ईंधन मूल्यों पर आधारित है। परियोजना के तहत थोन्डी और रामेश्वरम में दो बहुउद्देश्यीय बंदरगाह और मूकियार, सेतुभयछत्रम और मुथुपेट में मछली पकड़ने के तीन बंदरगाह बनने थे। कन्याकुमारी के कोलाचेल बंदरगाह को एक मुख्य ट्रांस शिपमेंट कंटेनर केंद्र के रूप में विकसित करने की कोशिशें जारी हैं।

तमिलनाडु के दक्षिणी ज़िलों में परियोजना के प्रति जबर्दस्त समर्थन देखा जा सकता है। जून में तमिलनाडु चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (टीएनसीसीआई) ने इस मुद्दे पर मदुरै में एक गोष्ठी भी आयोजित की थी। ‘सेतुसमुद्रम परियोजना पूर्ण करने में दुविधा क्या है?’ इसमें अलग-अलग क्षेत्रों के वक्ताओं ने केंद्र से इस परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने का निवेदन किया था। “ये परियोजना दक्षिणी ज़िलों के आर्थिक विकास को तेज़ करेगी। इसे काफी पहले ही बन जाना चाहिए था। इसे सियासी या धार्मिक वजहों की भेंट नहीं चढाया जाना चाहिए,” टीएनसीसीआई के अध्यक्ष एस रेथिनावेलु तहलका से कहते हैं।

देश के सर्वाधिक पुराने मठों में से एक मदुरै अधीनम के आचार्य अरुणागिरिनाथ नानासम्बन्दा देसिका परमाचार्य इस परियोजना के कट्टर समर्थक हैं। वो कहते हैं कि इस परियोजना को हिंदुओं की भावनाओं को आहत किए बिना जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए।

थेवर स्थित संगठन ऑल इंडिया मूवेन्दर मुन्नानी कझगम के नेता एन सेतुरामन, भाजपा द्वारा अपने शासनकाल में इस परियोजना को अनुमति दिए जाने के बावजूद अब राजनीतिक फायदे के लिए इसकी राह में रोड़े अटकाने की निन्दा करते हैं। नादर और दलितों के अलावा थेवर तमिलनाडु के दक्षिणों ज़िलो में एक प्रभावशाली जाति हैं।

एमडीएमके मुख्यालय के सचिव के एस राधाकृष्णन के मुताबिक करुणानिधि ने भगवान राम के खिलाफ उल्टे-सीधे बयान देकर परियोजना की राह में रोड़ा अटका दिया। दूसरी तरफ डीएमके अपने बयान से पीछे हटने को तैयार नहीं है। पार्टी की सांसद और करुणानिधि की पुत्री कनिमोझी कहती हैं कि डीएमके विश्वासों पर सवाल करने की परंपरा वाली पार्टी है। “तमिलनाडु में शैव संतों ने सदियों पहले कहा था कि फूल चढ़ाकर और पत्थरों पर मंत्र लिखकर उसे ईश्वर नहीं कहा जा सकता। जबकि भगवान असल में आपके भीतर ही हैं।” वो कहती हैं कि डीएमके के राजनीतिक विरोधी जिनमें एआईएडीएमके भी शामिल है, पहले इस परियोजना के समर्थन में थे लेकिन अब वे इसका विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि डीएमके सत्ता में है।

पी सी विनोज कुमार

क्या है रामसेतु? 

1966 में मिहिर सेन ने दुनिया के 6 सबसे संकरे जलमार्गों को तैर कर पार करने का रिकॉर्ड बनाया था। इनमें श्रीलंकाई समुद्र तट तलाईमन्नार से भारतीय हिस्से धनुषकोडि के बीच का जलमार्ग भी था। हिंद महासागर के इस हिस्से से बड़े जहाज और नौकाएं नहीं गुजर सकते क्योंकि यहां पानी की गहराई मात्र डेढ़ से साढ़े तीन मीटर तक ही है। इसकी तलहटी मायोसीन युग के चूना पत्थर की मोटी तह से बनी है। अंग्रेजों ने इस उथले समुद्री हिस्से को एडम्स ब्रिज नाम दिया और भारतीय हिंदू इसे रामायण में वर्णित राम सेतु के नाम से जानते रहे । आज कोच्चि या पश्चिमी तट से चेन्नई या फिर पूर्वी तट के किसी अन्य बंदरगाह तक जाने के लिए जहाजों को इस उथले जलक्षेत्र की वजह से श्रीलंका का चक्कर काटना पड़ता है। 2,427 करोड़ रूपए की सेतु समुद्रम परियोजना का उद्देश्य पाक खाड़ी से मन्नार की खाड़ी के बीच 44.9 नॉटिकल मील की दूरी का रास्ता तैयार करना है। इससे पश्चिमी और पूर्वी तट के बीच की यात्रा 400 नॉटिकल मील या 21 घंटे तक कम हो जायेगी।