आरोपों और प्रत्यारोपों की काली बौछार से उत्तर प्रदेश की राजनीति का कीचड़ और भी गंदला होता जा रहा है. मुख्यमंत्री मायावती समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगा रही हैं. उधर, ये दोनों पार्टियां इससे इनकार करते हुए मायावती पर पलटवार कर रही हैं. शब्दों की इस लड़ाई से राज्य में राजनीतिक कड़वाहट का एक नया अध्याय शुरू हो गया है.
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई द्वारा मीडिया में जानकारी लीक करने को लेकर मायावती काफी गुस्से में हैं और ईंट का जवाब पत्थर से देने की तैयारी कर रही हैं. बसपा सरकार ने इस बारे में कानूनी सलाह मांगी है कि क्या कुख्यात यूपी पुलिस भर्ती घोटाले की जांच के लिए गठित की गई तीन सदस्यीय समिति के जांच निष्कर्षों के आधार पर मुलायम सिंह यादव, उनके भाई शिवपाल सिंह यादव और दूसरे लोगों के खिलाफ मामला शुरू किया जा सकता है.
गौरतलब है कि मायावती ने मुलायम सरकार के कार्यकाल में साढ़े तीन साल के दौरान हुई 18,884 कांस्टेबलों की नियुक्तियों को निरस्त कर दिया था. मुख्यमंत्री ने ये कदम अतिरिक्त महानिदेशक शैलजाकांत मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एक समिति की सिफारिशों के आधार पर उठाया था. समिति ने चयन प्रक्रिया में रिश्वत और शारीरिक शोषण जैसी अनियमितताएं पाईं थीं. हालांकि बाद में समाजवादी पार्टी और महिला उम्मीदवारों द्वारा शारीरिक शोषण के आरोपों पर बवाल मचाए जाने के बाद इस समिति को रद्द कर दिया गया था. मगर उससे पहले समिति की प्रारंभिक जांच के आधार पर एक आईजी, नौ डीआईजी सहित दर्जन भर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था. इसके अलावा घोटाले में नामित 58 दूसरे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी. आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई द्वारा मीडिया में जानकारी लीक करने को लेकर मायावती काफी गुस्से में हैं और ईंट का जवाब पत्थर से देने की तैयारी कर रही हैं.
चार अक्टूबर 2007 को इस समिति का स्थान तत्कालीन मुख्य सचिव पी के मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एक उच्च स्तरीय पैनल ने ले ली. डीजीपी विक्रम सिंह और लखनऊ के कमिश्नर वी एस पांडेय इसके सदस्य बनाए गए. चार महीनों तक घोटाले की जांच करने के बाद पैनल ने इस साल जनवरी के आखिरी हफ्ते में अपनी रिपोर्ट सौंपी.
पैनल की रिपोर्ट में पुलिस भर्ती घोटाले के लिए प्रथम दृष्टया पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव, दो पूर्व डीजीपी और कुछ दूसरे लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया है. रिपोर्ट की एक प्रति तहलका के पास भी है. इसके शब्दों में, “वित्त मंत्रालय द्वारा जताई गई गंभीर आपत्तियों के बावजूद बड़ी संख्या में कांस्टेबल के पदों को मंजूरी देने हेतु नौकरशाहों पर दबाव डालने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ प्रथम दृष्टया साक्ष्य पाए गए हैं.” रिपोर्ट के मुताबिक मुलायम का चयन प्रक्रिया में सीधा दखल था. जाली तरीके से पदों का सृजन किया गया और पूर्व मुख्यमंत्री ने कानून का उल्लंघन करते हुए इसे मंजूरी दी.
शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं. रिपोर्ट के शब्दों में, “प्रथम दृष्टया ये प्रतीत होता है कि तत्कालीन लोकनिर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने अवैध रूप से उम्मीदवारों से पैसे लिये.” रिपोर्ट आगे जोड़ती है कि दो पूर्व डीजीपी, यशपाल सिंह व बुआ सिंह और तत्कालीन विशेष सचिव चंद्र प्रसाद, शिवपाल के साथ मिले हुए थे. पैनल ने एस के मिश्रा समिति के निष्कर्षों की भी पुष्टि की. रिपोर्ट के शब्दों में, “पुलिस रेडियो विभाग में महिला कांस्टेबलों की चयन प्रक्रिया में कई उम्मीदवारों द्वारा शारीरिक शोषण का आरोप लगाया गया है.”
इन सभी खुलासों के आधार पर मायावती ने इस घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश की मगर केंद्र ने 21 अप्रैल 2008 को ये सिफारिश ठुकरा दी. हालांकि पांच जून 2008 को चयन प्रक्रिया में शामिल हुए उम्मीदवारों द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस घोटाले की सीबीआई जांच का आदेश दिया. इस आदेश के खिलाफ दाखिल अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ी है.
पी के मिश्रा पैनल के सामने कई शीर्ष आईएएस और आईपीएस अधिकारी पेश हुए थे. मायावती के करीबी एक अफसर बताते हैं, “हमारे पास भ्रष्टाचार, शारीरिक शोषण और नेताओं व अधिकारियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग के पक्के सबूत हैं.” कभी मुलायम के वफादार रहे कुछ अधिकारियों ने ही पैनल के सामने उनके और उनके भाई के खिलाफ बयान दिए. एक अफसर बताते हैं, “तकनीकी सबूत और अधिकारियों के दर्ज बयान पैनल के निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं.”
जांच के दौरान सरकार ने एक स्टिंग ऑपरेशन की स्वीकृति भी दी थी मगर चूंकि पैनल ने पर्याप्त सबूत इकट्ठा कर लिए थे इसलिए इसका इरादा छोड़ दिया गया. पैनल की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना था मगर मायावती की जिद के बाद इसे टाल दिया गया क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि उन पर राजनीतिक दुश्मनी से प्रेरित होने का आरोप लगे. हालांकि पैनल के सदस्य विक्रम सिंह और वी एस पांडे इस संबंध में टिप्पणी करने से इनकार करते हैं.
उधर, शिवपाल सिंह यादव इन आरोपों से इनकार करते हैं. तहलका से बात करते हुए वो कहते हैं, “हमने कुछ भी गलत नहीं किया है. अगर राज्य के 20,000 लोगों को नौकरी देना गुनाह है तो सत्ता में आने पर हम ये गुनाह फिर से करेंगे. वे (मुख्यमंत्री) सिर्फ अपने वफादार अधिकारियों वाले पैनल के निष्कर्षों के आधार पर हमारे खिलाफ कोई मामला नहीं बना सकतीं. अगर आरोपों में थोड़ी सी भी सच्चाई है तो पैनल की रिपोर्ट में दोषी पाए गए पुलिस अधिकारियों को बहाल क्यों किया गया?” पिछले पांच महीनों से एक कोने में पड़े पैनल के जांच परिणामों को मायावती सरकार आसानी से सीबीआई का मुकाबला करने और मुलायम को फंदे में कसने के लिए इस्तेमाल कर सकती है.
पिछले पांच महीनों से एक कोने में पड़े पैनल के जांच परिणामों को मायावती सरकार आसानी से सीबीआई का मुकाबला करने और मुलायम को फंदे में कसने के लिए इस्तेमाल कर सकती है. बसपा प्रवक्ता स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं,“ बसपा कार्यकर्ता सीबीआई के आरोपों पर चुप नहीं रहेंगे. मुलायम के खिलाफ दो मामलों में सीबीआई जांच चल रही है जिनमें से एक आय से अधिक संपत्ति का मामला भी है. इसके बावजूद बहनजी को निशाना बनाया जा रहा है. सीबीआई इन मामलों में मुलायम के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल क्यों नहीं कर रही?”
मगर क्या वजह है कि मायावती को पांच साल बाद इस मामले की याद आ रही है? इस सवाल पर शिवपाल यादव कहते हैं, ‘आय से अधिक संपत्ति के मामले में मायावती सीबीआई जांच का सामना कर रही हैं. जांच के परिणाम उन्हें जेल में डालने के लिए काफी हैं. हमारे खिलाफ मामले दर्ज करने का मकसद ये है कि उनके खिलाफ दर्ज मामलों से वोटरों का ध्यान हट जाए.’’
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई से निपटने के लिए मायावती के सिपाहसलार उनके करीबी विश्वासपात्र सतीश चंद्र मिश्र की अगुवाई में दिन रात एक कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के महाअधिवक्ता ज्योतिंद्र मिश्र कहते हैं, “आय से अधिक संपत्ति का मामला शुरू करने के लिए हमने सीबीआई को चुनौती दी है. जब ये मामला सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने आएगा तो हम फिर से इसे चुनौती देंगे.”
मायावती के वकीलों का दावा है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले को शुरू करने के लिए किसी ने सिफारिश नहीं की बल्कि सीबीआई ने ताज कॉरीडोर घोटाले की जांच के दौरान ये मामला खुद ही शुरू कर दिया. वकीलों के मुताबिक जांच एजेंसी इस तरह अपनी मर्जी से कोई मामला शुरू नहीं कर सकती. उनका ये भी कहना है कि आयकर विभाग मायावती की संपत्तियों की जांच कर चुका है और उसे इनमें कुछ भी गलत नहीं मिला.
अतिरिक्त महाअधिवक्ता एस के द्विवेदी गुस्से में कहते हैं, “सीबीआई ताज कॉरीडोर घोटाले की जांच कर रही थी. ये मामला अब बंद हो चुका है. जांच के दौरान सीबीआई ने कोर्ट को बताया था कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में आरोपपत्र दाखिल करने का इसका कोई विचार नहीं है. फिर ये अब क्यों ऐसा करने की इजाजत मांग रही है और शपथपत्र को हम तक पहुंचने से पहले ही मीडिया में लीक क्यों किया गया?”
मगर देखा जाए तो सीबीआई द्वारा इस मामले में आरोपपत्र दाखिल करने की इजाजत मांगने का कारण मायावती के कानूनी सलाहकारों की चूक लगती है. नौ मई 2008 को मायावती के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर इस मामले को रद्द करने की मांग की थी. अदालत ने सीबीआई को इस संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. इसका फायदा उठाते हुए जांच एजेंसी ने तुरंत एक प्रतिशपथपत्र दाखिल कर और कथित रूप से मीडिया में जानकारियां लीक कर मायावती के लिए ही मुसीबत खड़ी कर दी.
बसपा के एक नेता कहते हैं, “सीबीआई के इस कदम का मकसद बहनजी पर दबाव बनाना था ताकि वे परमाणु करार पर विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित रहें और केंद्र में कांग्रेस की सरकार बच जाए. हम संसद औऱ कोर्ट, दोनों जगह से ये लड़ाई लड़ेंगे.”
सीबीआई की निष्पक्षता एक बार फिर सवालों के घेरे में है. एक तरफ मायावती का आय से अधिक संपत्ति का मामला है और दूसरी ओर मुलायम के खिलाफ दो मामलों में हो रही जांच. मायावती के खिलाफ तो जांच ने रफ्तार पकड़ ली है. मगर मुलायम के खिलाफ इसकी गति धीमी पड़ गई है. ऐसे में लग यही रहा है कि मायावती के आरोपों में दम है.
श्रवण शुक्ल