'आप इस समझौते की कीमत चुकाएंगे'

सरकार ने आएसआई को असैनिक नियंत्रण में लाने की कोशिश की थी। क्या वो ये संदेश देना चाहती थी कि अब और छद्म युद्ध नहीं होंगे?

नहीं। वो अमेरिका को एक सौगात देना चाह रहे थे क्योंकि उनके पास देने के लिए कुछ और नहीं था। सीमावर्ती कबायली इलाकों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, वो लड़ाका समूहों से समझौते की कोशिश कर रहे थे जो अमेरिका को पसंद नहीं। अमरीकियों के दबाव में अब उन्हें अपने क़दम पीछे खींचने पड़ रहे हैं जिससे संकट और भी गहरा हो गया है। आप सीमांत इलाके में कबायलियों के साथ इस तरह के खेल नहीं खेल सकते। आप या तो उनसे समझौता करो या फिर आपको कीमत चुकानी होगी। प्रधानमंत्री अमेरिका का भरोसा जीतना चाहते थे। मेरी तो ये समझ में नहीं आ रहा कि आप हिंदुस्तानी भी अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंध क्यों बना रहे हैं। मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं आपको इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

अगर वो अमेरिका को खुश करना चाहते थे तो फिर कुछ ही घंटों के भीतर उन्होंने अधिसूचना रद्द क्यों कर दी?

ये सरकार का हथकंडा था। आंतरिक दबाव बहुत ज्यादा था। सेना इसका कड़ा विरोध कर रही थी। यहां तक कि परवेज़ मुशर्रफ भी इसके खिलाफ थे और मुझे यकीन है कि आईएसआई के डीजी ने भी इस पर राष्ट्रपति से जरूर बात की होगी। आईएसआई का पूर्व मुखिया होने के आधार पर मैं आप को बता दूं कि ये एजेंसी पहले से ही असैनिक नियंत्रण में है। यहां पर काम करने वाले ज्यादातर लोग तीनों सेनाओं से आते हैं। ये बेहद अनूठा संगठन है। मुझे याद है कि 1989 में जब मैं इसका मुखिया था, भारत में तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने राजीव गांधी के पास जाकर एक आईएसआई जैसे संगठन की मांग की थी। आईएसआई के चार्टर में एक राजनीतिक प्रकोष्ठ की व्यवस्था है। इसे जुल्फिकार अली भुट्टों के आदेश पर शामिल किया गया था। आईएसआई हमेशा से ये कहती आ रही है कि इसे खत्म किया जाय। लेकिन बेनज़ीर ने इसे नकार दिया। अगर उन्होंने इस प्रकोष्ठ को समाप्त कर दिया होता तो कोई भी इसका विरोध नहीं करता। लेकिन उन्होंने इसे गृह मंत्रालय के मातहत लाने की कोशिश की, एक पुलिस बल की तरह और ये सीधे-सीधे आईएसआई का राजनीतिकरण करने जैसा होता। 

आईएसआई को अपने आप में क़ानून क्यों माना जाता है? इसे किसी लोकतांत्रिक सरकार से भी ज्यादा ताकतवर माना जाता है?

नहीं. सेना, सरकार से ज्यादा ताकतवर है। परेशानी तब शुरू होती है जब सरकार ग़लतियां करना शुरू कर देती है क्योंकि आप माने न माने सेना बेहद ताकतवर संस्था है औऱ आईएसआई सर्वाधिक अनुशासित संगठन है। 

आपकी आईएसआई के सर्वाधिक अनुशासित संगठन होने वाली बात से बहुत से लोग सहमत नहीं होंगे। ये अपने छद्म युद्धों के लिए कुख्यात है।

हां इसने छद्म युद्ध लड़े हैं लेकिन फिलहाल तो ये अमेरिका के लिए लड़ा जा रहा है। पहले ये सोवियत संघ के खिलाफ था जो कि एक महान उपलब्धि रही। मैं आपको बता दूं कि उस वक्त जो चल रहा था उसकी जानकारी सेनाप्रमुख को भी नहीं होती थी। मैं आईएसआई का प्रमुख था और ये पूरी तरह गुप्त रहता था क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि रूसी चौकन्ने हो जाएं। अब अमेरिका चाहता है कि आईएसआई उसके लिए एक बार फिर से अफगानिस्तान की लड़ाई जीते। लेकिन वो ये नहीं जानते कि अब स्थितियां पूरी तरह भिन्न हैं।

राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ अमेरिका की दया पर टिके हुए हैं। तो फिर उन्होंने आईएसआई को असैनिक नियंत्रण में रखने का विरोध क्यों किया?

सेना को खुफिया सामरिक जानकारियां देने वाली एक संस्था गृह मंत्रालय के अधीन कैसे रखी जा सकती है? आईएसआई अग्रिम पंक्ति की सुरक्षा मुहैया करवाती है, अगर आप इसे खत्म कर देंगे तो फिर इस तरह का दूसरा संगठन कहां खड़ा कर पाएंगे? सरकार को आईएसआई से पंगे नहीं लेने चाहिए। अति उत्साह और बचपने में उन्होंने अधिसूचना जारी कर दी और फिर कुछ घंटों के भीतर ही उसे रद्द कर दिया। ये तो थूक कर चाटने वाली बात हुई।

हरिंदर बवेजा