लौट मुसाफिर रेल को आए ?

रेल का सफर हममें से कई लोगों के बचपन की खूबसूरत यादों का हिस्सा होगा. किसी हिलस्टेशन पर जाना हो या दादी-दादा या नानी-नाना के घर, हर छुट्टी में रेल यात्रा की एक अहम भूमिका हुआ करती थी.

फिर कुछ साल पहले बजट एयरलाइंस का दौर शुरू हुआ और एयर डेक्कन, स्पाइसजेट और उनके जैसी दूसरी एयरलाइंस ने सस्ती हवाई यात्रा का विकल्प पेश कर दिया. एक समय सपना रही हवाई यात्रा अब मध्यवर्ग की पहुंच में आ गई थी और ये वर्ग रेल से दूर होता चला गया.

मगर जल्द ही स्थितियां फिर से बदल सकती हैं. हवाई ईँधन की कीमतें आसमान छू रही हैं और तीन महीनों के दौरान ही इनमें करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है. इससे हवाई किराया बढ़ रहा है और देश भर में लोगों का रुझान एक बार फिर से रेलयात्रा की तरफ बढ़ा है. नतीजतन, पिछले सालों में 30-40 फीसदी रही उड्डयन क्षेत्र की वृद्धि दर अब घटकर एक अंक तक आ गई है.

वैसे तो छुट्टियों का सीजन हमेशा ही रेलवे के लिए सबसे ज्यादा भीड़-भाड़ भरा होता है मगर इस साल यात्रियों की संख्या में 10 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. पिछले साल एसी I, II और III की बुकिंग 85 फीसदी थी जो इस साल बढ़कर 95 फीसदी हो गई. भारतीय रेलवे के निदेशक(यात्री सुविधाएं) राकेश टंडन कहते हैं, कई ट्रेनों के लिए तो महीनों पहले से ही क्षमता से ज्यादा बुकिंग हो चुकी है. हालांकि ये कहना कठिन है कि क्या ये बढ़ोतरी पूरी तरह से हवाई किरायों में वृद्धि का नतीजा है, मगर इसमें कोई शक नहीं कि रेलयात्रियों में बढ़ोतरी का एक कारण बढ़ता हवाई किराया भी है.

इस साल यात्रियों की संख्या में 10 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. पिछले साल एसी I, II और III की बुकिंग 85 फीसदी थी जो इस साल बढ़कर 95 फीसदी हो गई.

मगर आने वाले समय में रेलयात्रियों की संख्या मे वृद्धि अवश्यंभावी है और इसके अपने कारण हैं. लागत कम करने के लिए कई एयरलाइंस ने बड़ी संख्या में छोटे शहरों की उड़ानें रद्द करनी शुरू कर दी हैं. साथ ही महानगरों के बीच उड़ानों की संख्या में भी कमी की गई है. ट्रेवेल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (टीएआईआई) के उपाध्यक्ष राजिंदर राय कहते हैं, ट्रेन का रुख करने वाले ज्यादातर छोटे शहरों के हवाई यात्री होंगे क्योंकि उनके लिए विकल्पों में कमी हो रही है.

विकल्पों से राय का मतलब ये है कि सीमित हवाई उड़ानों का भारी-भरकम किराया इन यात्रियों की जेब से बाहर हो जाएगा और इसकी बजाय उनके लिए रेल से यात्रा करना ज्यादा आसान होगा. मेकमाईट्रिपडॉटकाम के सहसंस्थापक और सीओओ केयुर जोशी इससे सहमति जताते हैं, स्पाइस जेट ने अपनी उड़ानों में 15 फीसदी की कमी कर दी है और कुछ दूसरी एयरलाइंस भी कुछ ऐसा ही कर रही हैं इसलिए छोटे शहरों के यात्रियों के पास ज्यादा विकल्प नहीं रह गए हैं. उन्हें या तो अब रेल से यात्रा करनी पड़ेगी या सड़क मार्ग द्वारा, और इनमें पहला विकल्प ज्यादा आरामदायक है.,”

तो क्या इसका अर्थ ये है कि भारतीय रेलवे अब अपने खोये हुए गौरव को फिर हासिल कर लेगा? विशेषज्ञों की मानें तो वो वक्त अभी दूर है. यद्यपि जोशी को उम्मीद है कि कम से कम अगले आठ-दस महीनों तक रेलयात्रियों की संख्या के बढ़ने का मौजूदा रुझान जारी रहेगा मगर उसके बाद लोग हवाई किरायों में बढ़ोतरी के झटके से उबर जाएंगे. टीएएआई के मुखिया अनिल कालसी भी मानते हैं कि हालांकि किराये में वृद्धि हवाई यात्रियों पर असर डाल रही है मगर कोई जरूरी नहीं कि इसका सबसे ज्यादा फायदा रेलवे को ही हो. कालसी के मुताबिक यात्रा के तनाव और कीमत से बचने के लिए कॉरपोरेट कंपनियों के प्रोफेशनल्स वीडियो कांफ्रेंसिग जैसी तकनीकों का सहारा ले सकते हैं. और अगर शारीरिक उपस्थिति अपरिहार्य ही हो तो बढ़ते किराए के बावजूद उनकी प्राथमिकता फिर भी हवाई यात्रा ही होगी. वो कहते हैं, कॉरपोरेट कंपनियों के लिए समय, किराये में थोड़ी बढ़ोतरी से ज्यादा अहम है.

भारत में घरेलू उड़ानों के यात्रियों का एक बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स से आता है. अगर वे हवाई यात्रा से मुंह नहीं मोड़ते तो रेलवे को उतना फायदा नहीं होने वाला. राय मानते हैं कि ये कॉरपोरेट यात्री तब तक रेलवे का रुख नहीं करेंगे जब तक हवाई किराये में असाधारण बढ़ोतरी न हो जाए.

मगर फिर ये बात भी अपनी जगह है कि रेल की रफ्तार और इसका आकर्षण परंपरागत रूप से इन लोगों के मतलब की चीज है भी नहीं. रेल तो उनकी पहली पसंद रही है जो छुट्टियां बिताने कहीं जा रहे हों. सस्ती हवाई यात्रा के दौर ने इन यात्रियों की एक बड़ी संख्या को रेलवे से छीन लिया था. अब रेलवे इन यात्रियों को वापस अपनी तरफ लुभा सकता है. भेल में कार्यरत राजीव माथुर मानते हैं कि रेल और हवाई यात्रा के बीच किसी भी व्यक्ति का चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों विकल्पों के किराये का फर्क कितना ज्यादा है. मगर राजीव भी मानते हैं कि अगर रेल यात्रा एक रात से ज्यादा लंबी हो और समय की मारामारी हो तो वे हवाई यात्रा को तरजीह देंगे.

गौरतलब है कि रेल से सफर करने वाले यात्रियों में सबसे ज्यादा वृद्धि उस यात्री वर्ग में देखी गई है जो वातानुकूलित डिब्बों में सफर करते हैं. राय के शब्दों में एक बार जब बड़े शहरों के लोग हवाई यात्रा की सुविधाओं के आदी हो जाते हैं तो उन्हें वापस खींचना तब तक बहुत मुश्किल है जब तक ट्रेनों में भी वैसी ही सुविधाएं न दी जाएं.कई यात्री इस बात से सहमत दिखते हैं. दिल्ली में अपना व्यवसाय चलाने वाले करण कुमारिया कहते हैं कि अगर बहुत जल्दी न हो तो वे रेल यात्रा को प्राथमिकता देंगे मगर वे एसी फर्स्ट या सेकेंड क्लास से ही जाएंगे. कुमारिया कहते हैं, अभी किरायों में अंतर काफी ज्यादा है. इसलिए हवाई यात्रा की बजाय किसी एसी ट्रेन का टिकट लेने से मेरा काफी पैसा बच जाएगा.”

मगर दूसरी ओर बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो ट्रेन से सिर्फ इसलिए सफर करते हैं क्योंकि ये उन्हें भाता है. एमिटी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर कल्याण चटर्जी कहते हैं, लंबी दूरी के लिए मैं एक तरफ की रेल यात्रा को तरजीह दूंगा क्योंकि मुझे सफर के नजारे बहुत अच्छे लगते हैं. गृहणी गीता भार्गव को लगता है कि रेलयात्रा बच्चों के लिए एक सीख भरा अनुभव होती है. वे बताती हैं कि उन्होंने अपनी बहनों के साथ ट्रेनों में कई यादगार यात्राएं की हैं और यही यादें उन्हें रेल की तरफ खींचती हैं.

लगता है कि रेलवे भी इस बदलाव को भांपकर उसे भुनाने के प्रति गंभीर है. रेलवे बोर्ड वर्तमान ट्रेनों में बेहतर सुविधाओं वाली वातानुकूलित बोगियां बढ़ाने की सोच रहा है और यात्रियों की अतिरिक्त संख्या को देखते हुए कुछ और ट्रेनें भी चलाने की योजना है. टंडन कहते हैं, कुछ समय पहले हमने 800 नई बोगियां जोड़ी थीं और अगर मांग बहुत ज्यादा रहती है तो हम इसमें और भी बढ़ोतरी कर सकते हैं.

कृष्ण कौशिक