भगवान पर भारी पड़ती आस्था

कहते हैं आस्था पहाड़ों को हिला सकती है, शायद ये आस्था ही है जो श्रद्धालुओं को 4000 फीट की उंचाई पर ऊबड़-खाबड़ रास्तों और प्रतिकूल मौसम के बावजूद पवित्र अमरनाथ गुफा तक पहुंचने की ताकत देती है। लेकिन बहुत से श्रद्धालुओं के लिए इस साल की दुर्गम यात्रा का अंत काफी निराशा भरा साबित हो रहा है। दर्शन के लिए आने वाले बहुत से तीर्थयात्री इस साल गुफा के भीतर हिम शिवलिंग का दर्शन नहीं कर पा रहे हैं। “मैंने कई बार पवित्र शिवलिंग के दर्शन किए हैं, लेकिन इस साल शिवलिंग पिघल चुका है इसलिए मैं इसके दर्शन नहीं कर सका। ऐसा लगता है कि भोलेनाथ हम लोगों से नाराज़ हैं”, दिल्ली से आए शिव प्रसाद निराशा भरे स्वर में कहते हैं। 

हिम शिवलिंग जो अमूमन 8 फीट तक लंबा होता है, इस बार दो महीने तक चलने वाली अमरनाथ यात्रा के 28 दिनों के भीतर ही पिघल गया। अमरनाथ गुफा से लौटने वाले श्रद्धालुओं द्वारा शिवलिंग के पिघलने की पुष्टि के बावजूद श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) इससे इनकार कर रहा है। “शिवलिंग पूरी तरह से नहीं पिघला है। ये 2 से 2.5 फीट तक अभी भी बना हुआ है”, एसएएसबी के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसपी सिंह कहते हैं। हालांकि बोर्ड के ही दूसरे अधिकारी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर शिवलिंग के पूरी तरह से पिघल जाने की बात स्वीकार कर लेते हैं।

हिम शिवलिंग जो अमूमन 8 फीट तक लंबा होता है, इस बार दो महीने तक चलने वाली अमरनाथ यात्रा के 28 दिनों के भीतर ही पिघल गया।

तीर्थयात्रियों की बढ़ी हुई संख्या और 2 विशेषज्ञ समितियों द्वारा की गईं तमाम संतुस्तियों की अनदेखी को शिवलिंग के पिघल जाने की वजह ठहराया जा रहा है।

दोनों समितियों ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी थी कि तीर्थयात्रियों की संख्या को एक महीने में एक लाख तक ही सीमित रखा जाए। इसके अलावा एक समिति द्वारा गुफा के भीतर का तापमान नियंत्रित रखने की संतुस्ति को भी गंभीरता से नहीं लिया गया। बोर्ड के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि कुछ पुजारियों ने गुफा के अंदर शीतकारकों(कूलर्स) को लगाने का विरोध किया था। “फिलहाल तो जब तक मामला अदालत में है हम तापमान को नियंत्रित करने के लिए किसी कृत्रिम उपाय का सहारा नहीं ले सकते,” एसपी सिंह बताते हैं।

कुछ दिनों पहले जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने पवित्र गुफा में संगमरमर का शिवलिंग स्थापित करने के लिए एसएएसबी को एक नोटिस जारी किया था। ये नोटिस उस याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि एसएएसबी का ये क़दम श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ है।

इसके अलावा 2006 में बोर्ड के ऊपर ये आरोप भी लगे थे कि उसने शिवलिंग के जल्दी पिघल जाने के बाद कृत्रिम बर्फ से इसका निर्माण करने के प्रयास किए थे। उधर पिछली साल ये कहा गया कि यात्रा की आधिकारिक शुरूआत से पहले ही श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन कर इसे छू रहे थे।

इस साल 15 जून से यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक पांच लाख से ज़्यादा लोग अमरनाथ गुफा के दर्शन कर चुके हैं जबकि पिछले साल ये आंकड़ा महज़ 2.14 लाख ही था। पर्यावरणविद्, श्रद्धालुओं के जबर्दस्त प्रवाह को हिम शिवलिंग के पिघलने की वजह बता रहे हैं। पर्यावरण अभियंता मंज़ूर अहमद ईटू के मुताबिक यात्रियों की संख्या कम करके और इसका तापमान कृत्रिम तरीके से नियंत्रित करके ही शिवलिंग को संरक्षित किया जा सकता है।

“जब गुफा के अंदर बड़ी संख्या में लोग आएंगे तो उनके शरीर के तापमान से गुफा का तापमान बढ़ेगा। लाखों लोगों के अस्थाई आवासों में खाना पकाने से भी तापमान में वृद्दि होती है,” ईटू कहते हैं। इसके अलावा तीर्थयात्रियों को ढोने वाले हेलीकॉप्टर भी तापमान में वृद्धि करते हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक तीर्थयात्रा की अवधि एक महीने से बढ़ा कर दो महीने करने से भी पर्यावरण पर काफी दबाव बढ़ गया है। मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार 2004 में यात्रा की अवधि बढ़ाने के पक्ष में नहीं थी लेकिन तत्कालीन राज्यपाल एसके सिन्हा, जो बोर्ड के अध्यक्ष भी थे, ने उनके विरोध को दरकिनार कर दिया। 2007 में राज्यपाल ने तमाम पर्यावरणवादियों के विरोध के बावजूद पहले से ज्यादा तीर्थयात्रियों को लाने का इंतज़ाम कर हिम शिवलिंग को तेज़ी से पिघलाने वाले कारकों में और भी वृद्धि कर डाली।

पीरज़ादा अरशद हामिद