लामबंदी पर बंद जबान

इस बार चर्चा एक ऐसे तमाशे की जो चैनलों के पर्दे पर नहीं बल्कि पर्दे के पीछे चल रहा है. चैनलों की स्टिंग ऑपरेशन और टेलीफोन टैपिंग में अतिरिक्त दिलचस्पी होती है. राजनेताओं, अफसरों, माफियाओं और हीरो-हीरोइनों आदि के स्टिंग ऑपरेशन या टेलीफोन टेप या प्राइवेट गोपनीय वीडियो दिखाते-सुनाते हुए चैनलों का उत्साह देखते ही बनता है.

लेकिन इन दिनों कुछ टेलीफोन टेपों के कारण चैनलों और कुछ अपवादों को छोड़कर लगभग समूचे मीडिया को सांप सूंघा हुआ है. कोई उसे हाथ लगाने को तैयार नहीं है. सुनाना और दिखाना तो दूर, अधिकांश चैनल उनका नोटिस लेने को भी तैयार नहीं हैं जबकि ये टेप न सिर्फ 2जी घोटाले से जुड़े हुए है. बल्कि उनमें राजनीति, बिजनेस और मीडिया जगत के कई जाने-माने नाम शामिल हैं.

मेरे छात्र अकसर यह सवाल उठा देते हैं कि जब मूल्यों का कहीं आदर और पालन नहीं होता तो यह पढ़ाए क्यों जाते हैं

इन टेलीफोन टेपों में कॉरपोरेट पीआर और लॉबीइंग की दुनिया की  खिलाड़ी नीरा राडिया की 2009 में पूर्व संचार मंत्री ए राजा, उद्योगपति रतन टाटा से लेकर वीर संघवी, बरखा दत्त, प्रभु चावला जैसे बड़े पत्रकारों से अंतरंग बातचीत रिकॉर्ड है. यह बातचीत आयकर विभाग के निर्देश पर रिकॉर्ड की गई थी और सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में इनकी सत्यता प्रमाणित की है. इनमें बहुतेरी बातें ऐसी हैं जो सार्वजनिक महत्व की हैं और जिनका संबंध जनहित से जुड़ता है.
कहने का मतलब यह कि चैनलों के लिए उसमें ‘खेलने और तानने’ के लिए बहुत ‘मसाला’ है. यही नहीं, इन टेपों का संबंध पत्रकारिता की नैतिकता और आचार संहिता से भी है क्योंकि इसमें कई पत्रकार नीरा राडिया जैसी कारपोरेट लाॅबीइस्ट के इशारों पर नाचते हुए दिखाई देते हैं. इसलिए चैनलों से यह अपेक्षा करना अनुचित नहीं है कि वे न सिर्फ इन्हें सुनाएंगे बल्कि इन पर अपने ‘विशेषज्ञों’ से चर्चा/बहस भी करेंगे. लेकिन ‘सच दिखाते हैं हम’ से लेकर ‘खबर हर कीमत पर’ तक सभी चैनलों पर एक ‘षड्यंत्र भरी चुप्पी’ छाई हुई है.

सभी से सवाल पूछने और सबको कटघरे में खड़ा करने वाले चैनल नीरा राडिया टेप पर न कोई सवाल पूछ रहे हैं और न किसी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. आखिर क्यों? चैनलों की यह चुप्पी अब बोल रही है. खासकर जब से अंग्रेजी साप्ताहिक ‘ओपन’, ‘आउटलुक’ और ‘मेल टुडे’ आदि पत्र-पत्रिकाओं ने टेपों की बातचीत न सिर्फ छाप दी है बल्कि उसे अपनी वेबसाइटों पर भी मुहैया करा दिया है. इसके बावजूद चैनलों और उनके संपादकों-पत्रकारों की चुप्पी खलनेवाली है. इससे इन आरोपों की पुष्टि होती है कि चैनल खुद अपने अंदर झांकने और अपने विचलनों पर खुलकर बात करने के लिए तैयार नहीं हैं.

लेकिन कुछ बड़े और स्टार पत्रकारों को बचाने के लिए इस मुद्दे को ब्लैकआउट करके चैनल न सिर्फ अपनी साख दांव पर लगा रहे हैं बल्कि दूसरे भ्रष्ट और अवैध-अनुचित काम करने वालों के खिलाफ बोलने की नैतिक शक्ति भी गंवा रहे हैं. इस मुद्दे पर खुली चर्चा इसलिए भी जरूरी है कि इस प्रकरण ने सत्ता, कारपोरेट लॉबी और पावर ब्रोकरों के निरंतर प्रभावी होते गठबंधन में बड़े पत्रकारों-संपादकों की बढ़ती भागीदारी की अब तक दबी-छिपी सच्चाई को सामने ला दिया है. यह भी कि हम-आप चैनलों पर जो देखते हैं वह काफी हद तक कारपोरेट पीआर और लाबीइंग कंपनियों द्वारा निर्मित-निर्देशित होता है.
इसके गहरे निहितार्थ हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि लोकतंत्र के चौथे खंभे के रूप में समाचार मीडिया खासकर चैनलों से दर्शकों-पाठकों की तथ्यपूर्ण, वस्तुनिष्ठ, निष्पक्ष और प्रासंगिक सूचनाओं की जो अपेक्षा रहती है, उसका अनादर किया जा रहा है. मीडिया की ताकत का फायदा उठाकर कुछ पत्रकार और चैनल नीतियों, फैसलों और यहां तक कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी तोड़ने-मरोड़ने के खेल में लग गए हैं. यह दर्शकों के विश्वास के साथ एक तरह का धोखा भी है.

इस पूरे प्रसंग में सबसे अधिक दुखद एनडीटीवी जैसे विश्वसनीय माने जाने वाले चैनल और उसकी पहचान बन चुकी बरखा दत्त जैसी प्रोफेशनल और मेहनती पत्रकार-संपादक का विचलन है. इस टेप से निश्चय ही बरखा के लाखों प्रशंसकों को धक्का लगा है. यह एक चमकते हुए सितारे के टूटने की तरह है. लेकिन यह एक सबक भी है. सबक यह कि चैनल यह न भूलें कि पत्रकारिता की आत्मा उन एथिक्स में है जो उसे साख और नैतिक प्रभामंडल देते हैं. लेकिन हाल के वर्षों में चैनलों में एथिक्स को ठेंगे पर रखने का रिवाज सा चल गया है.

हालत यह हो गई है कि जिस संस्थान में मैं पत्रकारिता खासकर एथिक्स पढ़ाता हूं, वहां मेरे विद्यार्थी अकसर यह सवाल उठा देते हैं कि जब इनका कहीं आदर और पालन नहीं होता तो यह पढ़ाया क्यों जाता है. यह सवाल मुझे बहुत परेशान करता है. जाहिर है कि मेरे विद्यार्थियों की तरह बहुतेरे युवा पत्रकारों को यह सवाल और भी परेशान करता होगा. इसलिए समय आ गया है जब चैनल न सिर्फ अपने अंदर झांकें बल्कि ऐसी प्रभावी व्यवस्था विकसित करें कि कोई और नीरा राडिया किसी और बरखा को विचलित न कर सके. इसकी शुरुआत इन टेपों पर चुप्पी से नहीं, बात करके ही हो सकती है.