ये 10 साल उत्तराखंड के लिए कैसे रहे?
शहीदों के सपने थे कि अपनी सरकार होगी, अपना राज होगा, सरकार तक सीधी पहुंच होगी. राज्य बनने से पहले सभी ने समग्र विकास की भी कल्पना की थी. लोगों को लगा था कि सीमांत क्षेत्र के उन लोगों तक भी बुनियादी सुविधाएं पहुंचेंगी जो उत्तर प्रदेश के जमाने में उपेक्षित रहे. मगर ये सपने पूरे होते नहीं दिख रहे हैं.
क्या इसके लिए इस राज्य के राजनेता दोषी नहीं हैं?
10 साल का विश्लेषण करें तो साफ है कि वर्ष 2000 से लेकर 2007 तक राज्य सही दिशा में जा रहा था. राज्य बीस सूत्री कार्यक्रम में लगातार पहले स्थान पर रहा. तब आर्थिक और ढांचागत विकास में हम पहले पायदान पर आ गए थे, पर उसके बाद विकास की दिशा में विचलन आ गए. कई दीर्घकालीन योजनाओं के नतीजे कभी-कभी सालों बाद भी मिलते हैं, इसलिए विकास की समग्र और सतत सोच होनी चाहिए जो अब नहीं दिख रही है. इसलिए हम अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ते जा रहे हैं.
विकास तो छोड़िए, कई गांव अभी भी पानी,बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.
दरअसल विकास के लिए जो सोच होनी चाहिए है, वह है ही नहीं. अब मौजूदा सरकार की प्राथमिकताओं में दूरदराज के गांव नहीं रह गए हैं.पहले प्रदेश के दूरदराज में भी चौबीसों घंटे बिजली रहती थी. अब राजधानी में भी 10-10 घंटे गायब रहती है. पिछले दो साल से पेयजल का संकट बढ़ गया है. पिछले साल की गर्मियों में तो समस्या और भी विकराल हो गई थी. जब तक गरीबों के लिए दर्द नहीं होगा तब तक इन समस्याओं को सुलझाने की पहल नहीं हो सकती. विकास कार्यों को सिर्फ नौकरशाही के भरोसे पर नहीं छोड़ा जा सकता है. राजनीतिक नेतृत्व को भी इनमें दिशानिर्देश देना चाहिए.
राज्य में महत्वपूर्ण नीतियां नहीं बन पाई हैं. आप लोग भी पांच साल सत्ता में रहे थे.
नीतियों का सीधा संबंध सोच से होता है. राज्य को किस दिशा में जाना है यह नीति तय करती है. नीतियां बनाने की प्रक्रिया हमने शरू कर दी थी. परंतु बाद में उन पर कुछ हुआ ही नहीं.
तो ऐसे में क्या उम्मीद की जा सकती है ?
सरकार गंभीर मुद्दों से भटक रही है. बेरोजगार सड़कों पर उतर आए हैं. जनता से किए गए वादे पूरे नहीं हो रहे हैं. उम्मीद की जा सकती है कि आने वाला समय अच्छा होगा. हम शहीदों के सपनों का उत्तराखंड बना पाएंगे.
तो अब प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?
हमें बुनियादी ढांचे को मजबूत करते हुए रोजगार के अधिक से अधिक अवसर पैदा करने होंगे. कुछ क्षेत्रों की पहचान करके तेजी से उन पर कार्य करना होगा तभी हम लक्ष्यों तक पहुंच पाएंगे. राज्य सरकारों को अपने संसाधनों को बढ़ाना होगा. हर काम के लिए केंद्र की ओर देखने की मानसिकता त्यागनी होगी.
पर मुख्यमंत्री तो कहते हैं कि उत्तराखंड देश का पहले नंबर का राज्य है.
फिलहाल विकास और रोजगार देने के मामले में तो नंबर एक नहीं है. बीस सूत्री कार्यक्रम में अब हम पिछड़ गए हैं. शायद भ्रष्टाचार और बिगड़ती कानून-व्यवस्था के मामले में हम नंबर एक होंगे.