फिल्म समीक्षा
फिल्म ए फ्लैट
निर्देशक हेमंत मधुकर
कलाकार जिमी शेरगिल, संजय सूरी, कावेरी झा, हेजल
अगर भूत-वूत या आत्मा जैसी कोई चीज होती होगी तो अपनी फिल्मों को देखकर रोती बहुत होगी. बॉलीवुड में एक खास किस्म के भूत होते हैं. जब बरसों पहले किसी मेकअपमैन ने पहली बार सफेद कपड़ों वाली, चेहरे पर गिरे खुले लंबे बालों वाली आत्मा की रचना की होगी तो वह भी नहीं जानता होगा कि उसकी यह कृति अमर हो जाने वाली है. मजेदार बात यह है कि सब भूत अपना प्रोफेशनल काम यानी डराना भी एक ही तरह से करते हैं. ‘ए फ्लैट’ या ऐसी ही कोई भी फिल्म देखते हुए फिल्म लिखने और बनाने वाली टीम पर तरस बाद में आता है, पहले भूत नगरी की क्रिएटिव टीम पर तरस आता है जो इतने सालों से डराने का एक नया तरीका तक नहीं खोज पा रही. वे बस हमारे बेचारे हैंडसम नायक को ज्यादा से ज्यादा किसी हवेली या यहां फ्लैट में बंद कर देंगे (जिसका कोई काला अतीत होगा, जैसे कोई मासूम मारा गया होगा), फिर लाइटें जलाएंगे-बुझाएंगे, खूब आवाज के साथ दरवाजे खोलेंगे-बन्द करेंगे, कभी-कभी तूफान ला देंगे और जब हैंडहेल्ड कैमरे से फिल्माए गए किसी शॉट में डरा हुआ नायक आगे किसी आत्मा को खोज रहा होगा तब वह अचानक उसके ठीक पीछे खड़ी दिखेगी.
हेमंत मधुकर क्या यह नहीं जानते कि इससे तो अब बच्चे भी नहीं डरते? भले ही वह पीछे कितना भी तेज संगीत बजा लें और डरावनी या रहस्यमयी आवाजें सुनवाएं.
लेकिन आत्मा तो आत्मा है. बदला लेना उसका सनातन धर्म है. आप जानते ही हैं कि उन्हें आसानी से शांति नहीं मिलती और शांति पाने के लिए वे हमारे हीरो को इस्तेमाल करती हैं.
जिमी शेरगिल बढ़िया एेक्टर हैं लेकिन इतनी प्रत्याशित कहानी में उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता. वे अमेरिका से लौटे हैं और अपने फ्लैट में ठहरे हैं जिसमें पहले उनके दोस्त संजय सूरी रहते थे. यहीं सारा ‘आहट’नुमा खेल शुरु होता है. हम जानते हैं कि आपने ऐसे बहुत-से सीरियल और फिल्में देखी हैं, इसलिए समझ गए होंगे कि यह कोई पुरानी मौत का चक्कर है और संजय सूरी ने ही कोई गुल खिलाया होगा. उनकी मनाली की एक गांव की गौरी हेजल से लंबी-सी धोखे वाली लवस्टोरी है. लेकिन संजय सूरी का चेहरा ही ऐसा है कि हम उन्हें धोखेबाज प्रेमी कैसे मान लें?
अब यह कहानी है प्रतिशोध के लिए तड़पती आत्मा की जिसके चक्कर में बेचारे जिमी शेरगिल को डर से बहुत सारा कांपना है और साथ ही पसीना-पसीना हो जाना है. लेकिन हेमंत मधुकर को यह याद नहीं रहता कि उनका उद्देश्य तो दर्शकों की घिग्घी बंधवाना और उनका पसीना बहाना था.
हालांकि ‘ए फ्लैट’ के पास कुछ अच्छे एेक्टर, अतीत को वर्तमान और भविष्य से जोड़ने का थोड़ा दिलचस्प तरीका और ठीक-ठाक खूबसूरत सिनेमेटोग्राफी तो है, लेकिन यह वह समय है जब हमारी ज्यादातर भूत कहानियों के डरावने हिस्से कॉमेडी फिल्म बनने के कगार पर हैं.
गौरव सोलंकी