' राम तेरे बंदों से कांपते हुए '

गीतिका

राम तेरे बंदों से कांपते हुए,

जिया किए राम-राम जापते हुए.

जीवन के बोझ तले दबे-कुटे हम,

दुनिया भर रंज-ग़म अलापते हुए.

दूर खड़ी खुशियों की टोह-टोहकर,

हासिल का इंच-इंच नापते हुए.

फिरा किए इज्जत का ताज लिए हम,

आर्टनुमा तिगड़ों से ढांपते हुए.

भगवे या नीले या लाल देश में,

रंग जा रे सत्ता को छापते हुए.

शोहरत के चार-चांद ढल गए हुजूर,

राजा को जब-तब संतापते हुए.

गालिब के हम ही तो चचा हैं हुजूर,

करते हैं उस्तादी हांफते हुए.

ग़ज़ल

सर में सौदा और कुछ था, मुंह से निकला और कुछ

गालियों ने कर दिया कोताह किस्सा और कुछ

कौन से कमरे में इज्जत, जा के चेहरा ढांप ले

अनबिके संसार के भीतर लजाया और कुछ

आपने बेची खबर, खबरों ने बेचा आपको

मीडिया ने आप-हम-सबको परोसा और कुछ

लूट इनकी, राज उनका, वोट ही तो आपका

और आगे मोहतरम देखें तमाशा और कुछ

छा गया पश्चिम का बादल, नाम है वैश्वीकरण

इस खुले हाथों लुटी दौलत का तोहफा और कुछ

वाकया था और कुछ, अफवाह फैली और कुछ

फिर दलालों की दलाली ने दलेला और कुछ

कर चुके जो कुछ महाजन, क्यूं न हम भी वह करें

देश-पूजा, भेंट-पूजा, पेट-पूजा और कुछ

धन्य गुरुघंटाल! ‘औरत-मुक्ति’ का दर्शन तेरा

स्वर्ग था कुछ और ही, तूने दिखाया और कुछ

-राम मेश्राम 

                                       

 

 

 

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