अब तो चुनावी इंटरवल खत्म हो गया, क्या लगता है आपको?
लगना क्या है, हम बेहतर करेंगे, मुझे पूरा विश्वास है.
क्या इस बार वाकई में बिहार चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है?
चुनाव कभी एक मुद्दे पर नहीं लड़ा जाता. विकास के साथ ही मंडल इफेक्ट है. महंगाई है. सामाजिक विषमता है. भ्रष्टाचार है. केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट लगातार फटकार लगा रहा है भ्रष्टाचार के मसले पर. लेकिन यह पहली बार हो रहा है कि सरकार पर कोई असर नहीं हो रहा. कॉमनवेल्थ गेम्स में हम शुरू से कहते रहे कि इसमें घपले ही घपले हैं. अब बातें सामने आ रही हैं. हां, यह है कि इस बार बिहार चुनाव में विकास धुरी की तरह है.
इन मुद्दों से तो ऐसा लगता है कि आप इस चुनाव में केंद्र से राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं, कांग्रेस से मुकाबला कर रहे हैं.
बात मुकाबले की नहीं है. मैं समग्रता में मुद्दों की बात कर रहा हूं. देश की सीमा महफूज नहीं. पड़ोस में किसी भी देश से हमारे रिश्ते अच्छे नहीं हैं. क्या यह सब मसले नहीं हैं? आज हर जगह राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के स्वार्थों के लिए आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है. उनके जल, जंगल, जमीन को हड़पा जा रहा है जिससे तनाव की स्थिति है. मजबूरी में आदिवासी हथियार उठा रहे हैं. क्या यह सब मसले नहीं हैं!
अगर यह मसला है तो फिर आपकी सहयोगी भाजपा इसके लपेटे में आएगी, जिसने छत्तीसगढ़, झारखंड में ऐसे करार किए.
सवाल यह नहीं कि कौन दोषी है. सवाल मसलों का है. देश की समस्या का है.
क्या बिहार चुनाव में ये सब मुद्दे कारगर औजार साबित होंगे?
बिहार क्या देश के बाहर का राज्य है? गंगा का मैदानी इलाका है. हमेशा से अहम राज्य रहा है. और फिर हम चुनावी मैदान में तो मुख्य रूप से विकास के मुद्दों के साथ हैं ही. हम यह नहीं कह रहे कि हमने बिहार का कायाकल्प कर दिया लेकिन बुनियाद रख दी है. ऊसर जमीन से खर-पतवार निकाल दी है, उसमें हल जोत दिया है और उसे खेती योग्य बना दिया है.
इसके बावजूद जाति का सवाल ही सबसे अहम है इस चुनाव में!
जाति का सवाल आजादी के पहले भी इस देश में था, अब भी है और आगे भी हमेशा रहेगा. आर्थिक और सामाजिक विषमता जब तक है तब तक यह रहेगा ही. हां, समय-समय पर चुनावी मुद्दे बदलते जाएंगे.
आप जिस तरह कांग्रेस को बार-बार लपेटे में ले रहे हैं उससे लगता है कि कांग्रेस भी इस बार चुनाव में खेल बिगाड़ने की स्थिति में है.
कांग्रेस कहीं नहीं है. हमारा मुकाबला उनसे ही है, जिनको हमने बनाया, खड़ा किया. राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान से मुकाबला है.
पर लालू प्रसाद तो खुद को खुद के दम पर स्थापित हुए नेता बताते हैं…!
लालू प्रसाद के कहने से होगा या जो इतिहास में दर्ज है वह सच होगा. पूरा देश जानता है कि लालू प्रसाद ने किस मजबूरी में राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था. उनको हमने अध्यक्ष पद के चुनाव में हराया तो उन्होंने रास्ता तलाश लिया. लालू, रामविलास दोनों को जनता दल ने ही बनाया.
चर्चा है कि आपकी पार्टी चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ भी जा सकती है!
भाजपा के साथ हमारा गठबंधन है. हमने चुनाव में साथ कैंपेन किया है. ऐसी किसी स्थिति का सवाल ही नहीं.
आपने हाल ही में कहा कि राहुल गांधी को बांधकर गंगा में फेंक देना चाहिए तो बड़ा बवाल मचा. आप जैसे नेता की जबान फिसली या…
हमने ऐसा कभी नहीं कहा. मेरे पूरे वाक्य को सुनना होगा, संदर्भ को समझना होगा. मैंने यह कहा था कि देश की राजनीति में परिवारवाद हावी होता जा रहा है. पंजा पार्टी मां-बेटे की पार्टी है, लालटेन पार्टी पति-पत्नी की पार्टी है और बंगला छाप भाई-भाई की पार्टी है. तो पंजे में बंगले को लपेटकर, उसमें लालटेन को टांगकर, इन तीनों का भसान गंगाजी में कर देना चाहिए.
इस बार चुनाव में चार नेता केंद्र में हैं. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान और सुशील मोदी. चारों जेपी मूवमेंट से जुड़े रहे हैं. इस बीच समाजवाद कहां है?
सुशील मोदी सदा से भाजपा के अंग रहे हैं. कायदे से लालू की भी कभी समाजवादी राजनीति की स्कूलिंग नहीं हुई. रही बात जेपी आंदोलन की तो उसमें सभी पार्टियों से लोग आए थे. समाजवाद तो एक दर्शन है. उसके प्रणेता राममनोहर लोहिया जी थे. समाजवाद कहां है इसे जानने के लिए यह जानिए कि आज देश में गांधी से ज्यादा लोहिया के अनुगामी हैं.
बिहार के इस चुनाव में नया क्या है?
नया यही है कि आपस में कभी एक रहे लोग ही गुत्थम-गुत्थी कर रहे हैं.