देश आजाद हुआ और मध्य रात्रि को रोशनी निकल पड़ी गांव की ओर. अभी कुछ दूर पहुंची थी कि एक खद्दरधारी ने उसे टोका, ‘इत्ती रात को कहां भागी जा रही है?’ रोशनी ने बताया कि वह गांव जा रही है. खद्दरधारी हंसा. बोला, ‘पागल! इधर से कहां जा रही है, अगर सही-सलामत पहुंचना है तो हाई-वे पकड़.’ यह सुनकर रोशनी दिग्भ्रमित हो गई. खद्दरधारी बोला, ‘मेरे घर चल. इतनी रात को चोर-उचक्के मिल गए तो! सुबह अपने ड्राइवर से कहकर तुझे गांव छुड़वा दूंगा.’ रोशनी आश्वस्त होकर खद्दरधारी के साथ चल पड़ी. घर पहुंचने पर उसकी खूब आवभगत हुई. वह थकी थी, सो गहरी नींद में सो गई. जगने पर खद्दरधारी को ढूंढ़ा तो वह नहीं मिला. घरवालों ने बताया कि वह इस वक्त कैबिनेट मीटिंग में है. रोशनी भारी मन से अपने गंतव्य के लिए चली. उसने खद्दरधारी के घर को मुड़कर देखा. उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ. वह घर नहीं बंगला था और वहां रोशनी इतनी थी कि रोशनी की आंखें भी चौंधिया गईं.
वह आगे चली. अभी कुछ दूर ही चली होगी कि फर्राटा भरती, हूटर बजाती एक कार ने उसे ओवर टेक किया. कुछ दूर जाकर कार रुकी. सूट-बूट पहने व्यक्ति ने उससे पूछा, ‘कहां जाना है आपको?’ रोशनी ने कार में बैठे व्यक्ति को गौर से देखा. वह पढ़ा-लिखा, रौबदार दिखता था, जैसे- लाटसाहब. रोशनी बोली, ‘गांव जा रही हूं सर.’ वह बोला, ‘आई सी, ऐसे तो आपको वहां पहुंचने में काफी समय लगेगा. चलिए मैं आपको ड्रॉप कर देता हूं.’ रोशनी उसकी गाड़ी में बैठ गई. कुछ देर के बाद कार एक जगह रुकी. रोशनी ने झांककर देखा. उसकी बेचैनी को समझ कार सवार बोला, ‘आप घबराइए नहीं. यह मेरा ऑफिस है. एक जरूरी फाइल निपटाकर आता हूं.’ रोशनी वहीं बैठकर काम खत्म होने को इंतजार करने लगी. सारा दिन बीत गया. रोशनी जब उन्हें ढूंढ़ने अंदर गई तो साहब के मातहतों ने उसे मिलने नहीं दिया. अंततः रोशनी बिन बताए ही वहां से निकल पड़ी.
रोशनी ने फिर अपनी राह पकड़ी. इस बार उसने मुख्य मार्ग छोड़कर पगडंडी से जाने का इरादा बनाया. कुछ दूर बाद ही गांव दिखने लगा. उसकी गति बढ़ गई. तभी उसकी नजर वीराने में बने एक बड़े फार्म हाउस पर पड़ी. जहां से जोर-जोर से आवाजें आ रही थीं जिनमें ‘कमीशन’, ‘ठेका’ शब्दों की भरमार थी. रोशनी जैसे ही फार्म हाउस के पास से गुजरी कि एक कड़क अवाज आई,’कौन है वहां?’ ‘मैं… मैं रोशनी’, रोशनी ने कांपते हुए कहा. आवाज देने वाला रोशनी के पास आ चुका था. उसने रोशनी को घूरा. रोशनी ने अपने को जितना समेट सकती थी, समेटा. वह हंसते हुए बोला, ‘इतनी रात को कहां चली छमकछल्लो.’ ‘गांव…’ रोशनी बस इतना ही कह पाई थी कि उसने रोशनी का हाथ पकड़ा और अंदर खींच लिया. रोशनी चिल्लाई मगर उसकी आवाज घुटकर रह गई. सुबह उन्होंने रोशनी को छोड़ दिया. रोशनी लड़खड़ाते हुए गांव पहुंची. गांववाले उसका जबरदस्त स्वागत करेंगे, रोशनी यह सोचकर पुलकित थी. मगर ऐसा कुछ न हुआ. वहां पहुंचने पर गांववाले उसे एकटक देखते रहे. गांव वालों ने उससे पूछा, ‘तुम कौन हो?’ रोशनी भौंचक हुई. इस सवाल का क्या मतलब! इन्हें मेरा ही तो इंतजार था, फिर ऐसी बातें क्यों! असल में वह बूढ़ी लग रही थी. गांव पहुंचने के क्रम में उसका नूर कितना छीज चुका है, उसे खुद नहीं मालूम था. अब वह थी तो रोशनी, मगर फीकी. आज भी देश के बहुतेरे गांव उसी फीकी रोशनी की कहानी सुनाते हैं.
– अनूप मणि त्रिपाठी