कभी-कभी उन ख्वाबों की भी ताबीर हो जाती है जिन्हें इंसान कभी देखता ही नहीं. किसी दौर में घर-घर जाकर यूरेका फोर्ब्स वैक्यूम क्लीनर बेचने वाले स्वानंद किरकिरे ने तब शायद ही सोचा होगा कि एक दिन उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जाएगा और वह भी दो-दो बार. 40 वर्षीय इस गीतकार को हाल ही में फिल्म ‘3 इडियट्स’ के गीत ‘बहती हवा-सा था वो’ के लिए दूसरी बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. इसी साल किरकिरे की एआर रहमान के साथ काम करने की एक बरसों पुरानी ख्वाहिश भी पूरी हुई है. उन्होंने रजनीकांत की फिल्म ‘एनधीरन’ के हिंदी संस्करण ‘रोबोट’ के लिए गाने लिखे हैं. अपना अनुभव हमसे बांटते हुए किरकिरे कहते हैं, ‘अधिकतर गानों की शूटिंग हो चुकी थी, इसलिए मुझे उनके साथ सिंक (होंठो की हरकत से शब्दों का तालमेल बैठाना) करते हुए ही गीत लिखने थे. अब मुझे रहमान के साथ किसी हिंदी फिल्म में काम करने का इंतजार है.’
‘ बहती हवा को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने की घोषणा पर मैं तो हैरत में पड़ गया, मुझे लगता है ऑल इज वेल ज्यादा योग्य था ’
इंदौर के एक मराठी परिवार में जन्मे किरकिरे का बचपन से ही झुकाव रंगमंच की तरफ था. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में दाखिला लेने वाले वे अपने शहर के पहले व्यक्ति थे. उनका गीतकार बनना कला के प्रति उनके झुकाव का ही एक स्वाभाविक हिस्सा है. किरकिरे बताते हैं “मैंने भगत सिंह पर आधारित एक नाटक बनाया था. उन्हीं दिनों मुंबई की मंजू सिंह ने दूरदर्शन के लिए भगत सिंह पर एक सीरीज लिखने की पेशकश की.’
मुंबई जाने के बाद किरकिरे ने सुधीर मिश्रा के साथ बतौर सहायक निर्देशक ‘कलकत्ता मेल’, ‘चमेली’ और ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ में काम किया. ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ में उन्होंने संगीतकार शांतानु मोइत्रा के लिए ‘बावरा मन’ गाया. इसके बाद उन्होंने मोइत्रा के साथ ‘परिणीता’ में काम किया. उसके बाद आई ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ और ‘थ्री इडियट्स’ ने तो उनकी सफलता के झंडे गाड़ दिए. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के गीत ‘बंदे में था दम’ ने किरकिरे को राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता गीतकार बना दिया.
वर्तमान में हिंदी फिल्मों में गीत लेखन की एक नई धारा बह रही है. इस धारा के प्रवाह में किरकिरे का विशेष योगदान है. गीतकारों के पितामह गुलजार और जावेद अख्तर ने हिंदी फिल्मी गीतों में एक नई ताजगी भरने के लिए जो रास्ता दिखाया है उस रास्ते से मंजिल का सफर गीतकारों की त्रिमूर्ति प्रसून जोशी, इरशाद कामिल और किरकिरे बड़े जोश और लगन से कर रहे हैं.
किरकिरे कहते हैं, ‘पुराने गीत जहां रूमानियत और शायरी से सराबोर होते थे वहीं गीतकारों की नई पौध का झुकाव वास्तविकता की ओर ज्यादा है. वेशायराना अंदाज के बिना सीधे अपनी बात कह देते हैं.’ किरकिरे ‘दबंग’ के गीत ‘मुन्नी बदनाम हुई’ का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘इसी तरह का बदलाव आपको डायलॉग में भी नजर आएगा. आज दर्शक स्मार्ट लाइनें पसंद करते हैं.’ अपने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित गीत ‘बहती हवा’ के चयन के बारे में किरकिरे कहते हैं, ‘मैं तो हैरत में पड़ गया, मुझे लगता है आॅल इज वेल ज्यादा योग्य था’.
अब शब्दों का यह जादूगर नए क्षितिज तलाश रहा है. इन दिनों किरकिरे एक फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं. उनके गुरु सुधीर मिश्रा को यकीन है कि वे अगले विशाल भारद्वाज बन सकते हैं. किरकिरे ने फिलहाल फिल्मों से ब्रेक लिया हुआ है ताकि वे अपने नाटक ‘आओ साथी सपना देखें’ पर ध्यान केंद्रित कर सकें. गहरी सांस लेते हुए किरकिरे कहते हैं, ‘रंगमंच मेरे लिए छुट्टियों पर जाने जैसा है. लोग सिंगापुर जाते हैं, मैं नाटक बनाता हूं.’