बदबू मारते घाट, निराश व्यापारी और बुनियादी सेवाओं की बदहाल हालत यह बताने के लिए काफी है कि राम की नगरी वास्तव में रामभरोसे ही है. जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट
जिस अयोध्या को मुद्दा बनाकर कुछ सियासी पार्टियों ने सालों उत्तर प्रदेश व दिल्ली की सत्ता पर शासन किया, जिस शहर के नाम पर कई सियासी पार्टियों के लोग देश के दिग्गज नेताओं की जमात में शामिल होकर अपने भविष्य का सितारा चमकाने में सफल रहे, उस अयोध्या की हालत पर वहां के निवासी ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने से आने वाले पर्यटक और तीर्थयात्री भी आंसू बहा सकते हैं. मंदिर-मस्जिद मुद्दे को लेकर देश की आस्था और सियासत के केंद्र में रहने वाला अयोध्या एक तीर्थ स्थल के रूप में और बतौर शहर भी, विकास की दौड़ में काशी-मथुरा तो छोड़ दीजिए, देश के अन्य छोटे-छोटे तीर्थ स्थलों से भी कोसों दूर है. बजबजाती नालियां, सरयू के पानी से आती जानवरों की लाशों की बदबू और टूट चुके व्यापारी…तीर्थ नगरी की मानो यही नियति बन गई है. राम के नाम पर सालों से अयोध्या विधानसभा सीट से जीत रहे भाजपा विधायक हों या वर्तमान कांग्रेसी सांसद, सभी इन अव्यवस्थाओं से आंखें मूंदे बैठे हैं.
आस्था के नाम पर भगवान राम की नगरी में आने वालों के लिए हरिद्वार में बनी हर की पौड़ी की तर्ज पर 24 साल पहले करोड़ों रु खर्च करके सरयू नदी के किनारे राम की पौड़ी का निर्माण कराया गया था. इसके एक ओर घाट बनाए गए और दूसरी ओर सुंदर पार्क, जहां से तीर्थयात्री घाटों के दूसरी ओर बने मंदिरों का विहंगम नजारा देख सकते थे. लेकिन अब देश-विदेश से यहां आने वाले सैलानियों को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने के लिए नाक पर कपड़ा रखकर गुजरना पड़ता है. घाट की सीढ़ियों पर मरे हुए बंदर व कुत्तों के कंकाल और पानी में बजबजाते कूड़े-करकट के ढेर बताते हैं कि व्यवस्था यहां से किस कदर नदारद है.
साफ-सफाई की व्यवस्था ऐसी हुई तो लोगों ने घाट की सीढ़ियों व पार्क में ही मल-मूत्र करना शुरू कर दिया है. जो पार्क तीर्थयात्रियों के लिए बनाए गए वहां आवारा जानवरों का कब्जा हो गया है. लोगों की आस्था ही है कि वे फिर भी अपने आराध्य के नाम पर बने घाट को देखने के लिए चले ही आते हैं. भीषण बदबू व गंदगी के बीच में ही करीब आधा दर्जन छोटे दुकानदार घाट के किनारे माला, कंगन, सिंदूर आदि बेचकर परिवार का पेट पाल रहे हैं. घाट की दुर्दशा के बारे में पूछते ही दुकानदार रामकेवल का चेहरा तमतमा उठता है. वे कहते हैं, ‘इसे अजुध्या (स्थानीय दुकानदार अयोध्या को यही कहते हैं) में राम की पौड़ी नहीं साहब नरक की पौड़ी कहिए.’ रामकेवल बताते हैं कि आसपास के क्षेत्र में मरने वाले जानवरों को सफाई कर्मचारी उठाकर यहीं डाल जाते हैं. लोग आते तो हैं लेकिन बदबू व गंदगी के कारण तेजी से आगे बढ़ते जाते हैं जिसके कारण दुकानदारी भी नहीं हो पाती. लोगों की प्यास बुझाने के लिए लगे नल सूखे और जंग खाए हुए हैं.
राम की पौड़ी पर इतनी बदबू है कि तीर्थयात्रियों को नाक पर कपड़ा रखकर चलना पड़ता है
मंदिर-मस्जिद के नाम पर समय-समय पर जो तनावपूर्ण स्थिति तीर्थनगरी में बनती है उससे यहां के व्यापारी वर्ग की कमर भी पूरी तरह टूट चुकी है. श्रीराम होटल के मालिक अनूप कुमार गुप्ता का पूरा कारोबार इस समय अस्त व्यस्त है. लाखों रुपए खर्च करके होटल बनवाया, लेकिन उनके होटल पर उनसे अधिक अधिकार जिला प्रशासन का रहता है. अनूप बताते हैं कि 15 सितंबर को अचानक जिला प्रशासन की ओर से एक नोटिस आया जिसमें लिखा गया था कि 16 सितंबर से होटल खाली करा लिया जाए, उसमें फोर्स रुकेगी. 16 सितंबर से लेकर 4 अक्टूबर तक होटल पर फोर्स का ही कब्जा रहा. जिला प्रशासन ने महज एक पत्र भेजकर चंद घंटों में ही होटल तो ले लिया लेकिन 15 दिन गुजरने के बाद भी उसका कोई भुगतान नहीं किया है. 2002 में भी होटल 22 दिनों के लिए लिया गया था जिसका पूरा पैसा अब तक नहीं दिया गया. जब भी जरूरत होती है जिला प्रशासन मनमर्जी से होटल को अपना मान लेता है. अनूप कहते हैं, ‘अयोध्या को लेकर बात हमेशा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होती है, लेकिन यहां सुविधाएं किसी विकसित गांव से भी कम हैं.’
अयोध्या आने वाले तीर्थयात्रियों में दक्षिण भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या होती है, इसके बावजूद यहां से दक्षिण भारत के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है. लिहाजा यहां आने वाले तीर्थयात्री 225 किमी दूर बनारस या 170 किमी दूर इलाहाबाद या फिर 135 किमी दूर लखनऊ उतरकर अयोध्या पहुंचते हैं. वे जिस शहर में उतरते हैं वहीं होटल लेकर रुक जाते हैं और कार या किसी अन्य साधन से दिन में अयोध्या पहुंचकर दर्शन करके शाम को वापस चले जाते है, जिससे यहां के कारोबारियों को इन पर्यटकों का पूरा फायदा नहीं मिल पाता.
विकास की दौड़ में पिछड़ने से लोगों का गुस्सा उफान पर है. अयोध्या नगर पालिका से अवकाशप्राप्त कर्मचारी प्रेम शंकर पांडे कहते हैं, ‘नेता लोग मंदिर-मस्जिद मुद्दे को लेकर विधानसभा से लेकर संसद तक हंगामा करते हैं, लेकिन कभी यहां के विकास को लेकर उन्होंने संसद या विधानसभा में कोई आंदोलन किया हो ऐसा कभी देखने को नहीं मिला.’ पांडे कहते हैं कि यह अयोध्या की उपेक्षा ही है कि 1978 में बनी नगर पालिका का कार्यालय आज भी 250 रुपए महीने के किराए के भवन से संचालित हो रहा है. नगर के बीच में स्थित ऐतिहासिक छोटी देवकली के आसपास के मोहल्लों की स्थिति गांव से भी बदतर है. वहां रहने वाले 70 वर्षीय सरजू प्रसाद प्रजापति दिखाते हैं कि बिजली विभाग के पास लोगों के घरों तक तार पहुंचाने के लिए खंभे तक उपलब्ध नहीं हैं. मजबूरी में लोगों ने लकड़ी के डंडे खड़े करके जैसे-तैसे तारों को अपने घरों तक पहुंचाया है. पक्की सड़क न होने के कारण लोग कच्चे रास्तों से होकर घर तक पहुंचने को मजबूर हैं. शिक्षा का हाल यह है कि करीब 50 हजार की आबादी वाले अयोध्या के लिए महज दो इंटर कॉलेज हैं, एक लड़कियों का व एक लड़कों का.
शहर होने के बावजूद यहां की कॉलोनियों में ग्राम प्रधान के चुनाव हो रहे हैं
राम की नगरी की स्वास्थ्य सेवाएं भी राम के भरोसे ही हैं. श्रीराम अस्पताल के एक डॉक्टर बताते हैं कि उनके यहां रोज करीब 600-700 मरीज इलाज के लिए आते हैं. इसके बावजूद डॉक्टरों के 19 पद सालों से रिक्त चल रहे हैं. कोई महिला प्रसव के चलते या किसी अन्य गंभीर बीमारी का इलाज कराने श्रीराम अस्पताल पहुंचे तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी, क्योंकि यहां महिला रोग विशेषज्ञ का पद भी खाली है. फैजाबाद के सीएमओ डॉ आरए राय बताते हैं कि महिला अस्पताल बनकर तैयार है. वे कहते हैं, ‘बस डॉक्टरों की तैनाती होनी बाकी है, प्रस्ताव शासन को भेजा गया है.’ लेकिन तैनाती कब तक होगी, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं. यातायात की सुविधा का आलम यह है कि अयोध्या के पास अपना रोडवेज बस अड्डा तक नहीं है.
फैजाबाद के दवा व्यापारी व उत्तर प्रदेश युवा उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष सुशील जायसवाल कहते हैं, ‘अयोध्या व फैजाबाद दोनों ही शहर एक-दूसरे से सटे हुए हैं और दोनों नगर पालिकाएं हैं. दोनों शहरों को मिलाकर एक नगर निगम जब तक नहीं बनाया जाएगा तब तक विकास नहीं होगा. चार किलोमीटर में ही दो नगर पालिकाओं का होना राजनीतिक खेल है.’ जायसवाल बताते हैं कि फैजाबाद नगर पालिका की सीमा इतनी छोटी है कि रेलवे स्टेशन के बाहर निकलते ही ग्रामीण क्षेत्र शुरू हो जाता है जबकि हकीकत में आज यहां कई किलोमीटर दूर तक रिहाइशी कॉलोनियां विकसित हो चुकी हैं. वे बताते हैं कि शहर के भीतर ही 50 के करीब गांव हैं. यह शहर का दुर्भाग्य ही है कि शहर होने के बावजूद यहां की कॉलोनियों में ग्राम प्रधान के चुनाव हो रहे हैं. नगर पालिका की सीमा छोटी होने के कारण विश्वविद्यालय, आरटीओ, नगर टांसपोर्ट कार्यालय सहित कई कार्यालयों का अस्तित्व शहर में होने के बाजवूद ग्राम सभाओं में है. शहर के बीचोबीच स्थित कौशलपुरी कॉलोनी अयोध्या-फैजाबाद के पॉश रिहाइशी इलाकों में से है, लेकिन पंचायत चुनाव की लहर यहां भी खूब देखी जा सकती है. यहां रहने वाली हनी श्रीवास्तव बताती हैं कि फैजाबाद विकास प्राधिकरण ने पार्क के सामने मकान होने के कारण उनसे 27 हजार रुपए अतिरिक्त चार्ज लिया था, लेकिन घर के बाहर बना पार्क, पार्क नहीं बल्कि तालाब नजर आता है. यहां फूल पौधों की बजाय जलकुंभी व बड़ी-बड़ी घास लोगों के लिए समस्या बनी है. यहीं रहने वाले राम जन्म यादव बताते हैं कि बिजली कब आएगी और कब जाएगी इसका कोई समय नहीं है.
पूरी अयोध्या और सटे हुए फैजाबाद, जो अयोध्या का जिला भी है, में फैली इस तरह की दुश्वारियां तीर्थयात्रियों और वहां के लोगों को भले ही कांटों के समान चुभती हों लेकिन अयोध्या विधानसभा सीट से पिछले कई सालों से चुने जा रहे भाजपा विधायक लल्लू सिंह की नजर में यह सब सियासी कारणों से हो रहा है. वे कहते हैं, ‘राम की पौड़ी कांग्रेस के शासन में बनी, उसका नक्शा इस तरह बनाया गया कि नदी का पानी पौड़ी तक पहुंच ही नहीं पाता जिससे इसमें गंदा पानी भरा रहता है. भाजपा शासन काल में इसे दुरुस्त कराने का प्रयास हुआ लेकिन इंजीनियरों ने कहा कि इसे तैयार करने वालों ने प्लान ही गलत बना दिया है लिहाजा अब कुछ नहीं हो सकता.’ साफ-सफाई का ठीकरा वे नगर पालिका पर फोड़ते हुए कहते हैं कि जिला प्रशासन ही रुचि नहीं लेता. फैजाबाद के सांसद निर्मल खत्री से फोन पर संपर्क किया गया तो कई प्रयासों के बावजूद उनका मोबाइल स्विच ऑफ बताता रहा.