कालिख पोत कर जीतो!

औघट घाट

घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।

औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।। 

हम तो गए नहीं थे साधो। लेकिन जो गए थे सिर झुकाए लौट आए। हजार हजार के नोटों की गड्डियां लहराईं तो भाजपा के सांसदों ने लेकिन मुख सबका काला हो गया। उनका भी जो हाथ से मुंह की कालिख पोंछ कर जीत की खुशी में चमचमाते नगाड़ा बजाते हुए निकले। वे मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी जीत खरीदी गई है। वे खरीद फरोख्त करने वाले सौदागर ही हैं। खरीदी बिक्री ही उनका काम है। वे इसे ही अपना धर्म और इसीलिए सबसे अधिक करने लायक कर्तव्य मानते हैं। वे कैसे मान लेंगे कि जिनने धन या दूसरे प्रलोभन ले कर वोट दिया और जिनने न देने के भी पैसे लिए वे लोकतंत्र को लजा रहे थे। उनकी दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है जो बिकाऊ नहीं हो। इसलिए जिस कीमत पर वोट बिक रहे थे उनने खरीद लिए। उनके लिए लोकतंत्र में बहुमत खरीदा जा सकता हो तो खरीदने में कोई खराबी नहीं है। सबसे बड़ी चीज़ जीत है। खरीद से मिले चाहे दलाली से। साधो सब के देखते देखते सौदागर तुम्हारी लोकसभा में भी पहुंच गए। वे वहां सेंध लगाने की कोशिश में तो बरसों से थे। राज्यसभा में तो चोर दरवाजे से हो या किसी भी दरार से वे पहुंच ही रहे थे।

साधो सब के देखते देखते सौदागर तुम्हारी लोकसभा में भी पहुंच गए। वे वहां सेंध लगाने की कोशिश में तो बरसों से थे। राज्यसभा में तो चोर दरवाजे से हो या किसी भी दरार से वे पहुंच ही रहे थे। सबको मालूम है कि वहां वे पैसे दे कर आए हैं। फिर भी सत्ता के गलियारों में वे घूम रहे थे तो घबराए हुए नहीं। वहां उनकी इज्जत थी क्योंकि उनकी जरूरत किसी को भी हो जाती है। वह चाहे लुंगी पहने अपने को साधू कहने वाला नरसिंह राव हो चाहे अपने चालीस साल के संसदीय जीवन की दुहाई देने वाला अटल बिहारी वाजपेयी। या फिर खादी के सफेद कुरते पजामें पर हल्की नीली पगड़ी पहनने वाला अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह। इन सबको सरकार चलाने के लिए उनकी तरफ से बिक्री करने वाला सौदागर चाहिए ताकि वे खुद कह सकें कि हम तो बाज़ार से गुजरे हैं खरीददार नहीं है। साधो ये सौदागर अब अपने धंधों के लिए गलियारों में घूमना नहीं चाहते। वे उस लोकसभा में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं जहां सरकार से मन चाहे फैसले करवा सकें।

कल उनने बहुमत खरीद कर मनमोहन सिंह को दे दिया और तभी से उन पर दबाव डाल रहे हैं कि अब वे सारे फैसले करो जो वामपंथी तुम्हें करने नहीं दे रहे थे। वे जानते हैं कि देर होगी तो काम बनेंगे नहीं। यह मनमोहन सिंह वापस प्रधानमंत्री नहीं बनेगा। लोकसभा में तो हम इसे जितवा सकते हैं चुनाव नहीं जिता सकते। इसलिए बचे हुए आठ महीनों में इससे आर्थिक सुधारों का काम इस तरह पूरा करवा लो कि अगली सरकार उसे उलट न सके। परमाणु बिजली घर बनाने में करोड़ो-करोड़ों का निवेश होना है। बड़ी अमेरिकी पूंजी और भारतीय पूंजी को कमाई के नए मौके मिलने हैं। मनमोहन सिंह के रहते सौदे हो जाएं तो बेहतर होगा नहीं तो नए लोगों से बात करनी पड़ेगी। इसलिए वे जल्दी में हैं। मनमोहन सिंह के चेहरे पर वामपंथियों को हराने की चमक है। जब तक यह चमक बनी हुई है उससे काम करवा लो। कल वह न हमारे काम का रहेगा न सोनिया गांधी के।

साधो तुम कह रहे हो कि इस सरकार का क्या तो नैतिक इकबाल और क्या राजनैतिक विश्वसनीयता। सबने लोकसभा की टेबल पर नोटों की गड्डियां देखी हैं। कौन कहेगा कि जिनने वोट दिए और जिनने नहीं दिए वे खरीदे नहीं गए थे। साधो तुम्हारे जैसे भोले लोगों से बाज़ार नहीं चलता। जो बाज़ार चलाते हैं वे शर्म और लिहाज से नहीं चलते। वे कालिख पोत कर सब के मुंह काले करते हैं। बेशरम धक्का दे कर ही वे दुनिया चलाते हैं।

प्रभाष जोशी

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