इमारतें जब रिश्तों की मजबूती को दिखाने लगें तो वे मिसाल बन जाती हैं . कौमी एकता की एक ऐसी ही मिसाल मध्य प्रदेश में सीहोर जिले के बडोदिया गडारी गांव में मौजूद है. यहां पिछली मई की दोपहरों में हिंदुओं ने फर्शियां ढोकर एक मस्जिद बनवाई. धार्मिक सौहार्द्र की यह अनूठी मिसाल भारत की रोशन तस्वीर सामने रखती है.
भोपाल से लगभग 90 किलोमीटर के फासले पर 1,500 की आबादी वाले इस गांव में कुल 150 परिवार रहते हैं. इनमें 35 घर मुसलमानों के हैं. गांव में हिंदुओं की धार्मिक गतिविधियों के लिए एक मंदिर तो था पर मुसलमानों के लिए कोई इबादतगाह नहीं थी. इस वजह से उन्हें नमाज पढ़ने दूसरे गांव जाना पड़ता था. फिर यहां एक अस्थायी मस्जिद बनी पर उसमें भी लोगों को खुले में नमाज पढनी पड़ती थी. मंदिर के अध्यक्ष रमेश चन्द्र आचार्य बताते हैं कि तलैया के पास मौजूद खाली जमीन में कुछ और जमीन मिलाकर मस्जिद बनाने का फैसला लिया गया. वे कहते हैं, ‘ हम चाहते थे कि हमारे मुसलमान भाइयों के पास भी अपनी इबादतगाह हो और वे भी चैन से रोज अपनी नमाज़ अदा कर सकें.’ 2005 के बीच में काम शुरू हुआ और अगले ही साल तक मस्जिद तैयार हो गई.
मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष बशीर भाई बताते हैं कि मस्जिद बनने के बाद मुसलमानों को बड़ी सहूलियत हो गई है. वे कहते हैं, ‘अब हमें नमाज पड़ने के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ता. उल्टा पास के भोपोड़ , हरराजखेडी तथा राम खेडा गांव के मुसलमान हमारे गांव की मस्जिद में नमाज पड़ने आते हैं. ईद को तो यहां मेला लग जाता है.
‘मस्जिद बनवाना या मंदिर निर्माण में सहयोग तो सिर्फ एक घटना है. गांव की हवा में भी भाईचारा बहता है’
बशीर आगे कहते हैं, ‘मस्जिद के निर्माण में गांव के हिंदुओं ने बड़ी अहम भूमिका निभाई. हिंदू परिवारों ने आसपास के इलाकों में जाकर हमारी मस्जिद के लिए चंदा इकठ्ठा किया. कुछ हिंदू भाई मई की गर्मियों में आष्टा से पत्थर की फर्शियां और सिल्लियां लेकर आए ताकि मस्जिद का काम तेजी से हो सके. मस्जिद तलैया के पास बन रही थी इसलिए जमीन को समतल बनाने के लिए लगभग 3०० ट्राली मिट्टी भी हिंदू भाइयों ने ही डलवाई. इनके सहयोग के बिना हमारी मस्जिद कभी पूरी नहीं हो पाती.’
गांव के पूर्व सरपंच माखनलाल वर्मा के कार्यकाल में ही मस्जिद निर्माण का कार्य संपन्न हुआ था. वे बताते हैं कि गांव में हमेशा से ही सांप्रदायिक सौहार्द्र का माहौल रहा है. वर्मा बताते हैं, ‘जब हिंदुओं के घर भागवत होती है तो मुसलमान भी उसमंे भाग लेते हैं. हिंदू भी रमजान तथा ईद के मौकों पर अपने मुसलमान भाइयों के घर आते जाते हैं. मस्जिद निर्माण हम सभी की जिम्मेदारी थी. मस्जिद की इमारत के बगल में मदन लाल वर्मा जी का घर है. मस्जिद की सिंचाई के लिए पूरा पानी उन्होंने ही अपने घर से दिया था. ‘ हालांकि उस साल बहुत गर्मी पड़ी थी पर हमने मस्जिद का काम किसी संसाधन की कमी से रुकने नहीं दिया.’ मदनलाल कहते हैं, ‘भाईचारा धर्म से ऊपर होता है. जैसे उनके लिए अल्लाह वैसे हमारे लिए राम. हमारे घर पानी था तो हमने मस्जिद की सिंचाई के लिए दे दिया. अगर मंदिर की सिंचाई में हम पानी दे सकते हैं तो मस्जिद की सिंचाई के लिए क्यों नहीं?’
बशीर भाई यह भी बताते हैं कि मस्जिद बनते वक्त ही मंदिर विस्तारीकरण का भी काम चल रहा था जिसके लिए हिंदुओं ने चंदा इकट्ठा किया था. मंदिर के चंदे में से 90,000 रुपए मस्जिद निर्माण के लिए दे दिए गए. उधर, मंदिर निर्माण में भी मुसलमानों ने खूब मदद की.
रमेश चंद्र बताते हैं कि बडोदिया गडारी गांव में कभी धर्मांधता नहीं देखी गई. वे कहते हैं, ‘गणेश चतुर्थी हो या मोहर्रम, नवरात्र हो या ईद , हम सारे त्योहार एक साथ मिल जुल कर मानते हैं. मुसलमान भी नवरात्र की आरती में भाग लेते हैं और हम भी ईद की सिवैयां खाने उनके घर जाते हैं. कई बार जब गणेश चतुर्थी और रमज़ान एक साथ पड़ जाता है तब तो पूरा गांव उत्सव में डूब जाता है. मस्जिद बनवाना या मंदिर निर्माण में सहयोग करना तो सिर्फ एक घटना है . हमारे गांव की तो हवा में ही सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा बहता है. सब एक साथ एक-दूसरे के त्योहारोंमें भाग लेते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं.’ बशीर बताते हैं िक इन दिनों गांव में भागवतकथा चल रही है और पिछले चार दिन से वे वहीं खाना खा रहे हैं. उनकी दुआ है कि इस गांव को किसी की नजर न लगे.
गांव से रवाना होने के बाद पीछे मुड़कर देखने पर लोग एक साथ खड़े मुस्कराते नजर आते हैं. उनकी यह एकजुटता और मुस्कराहट आने वाले कल के लिए आश्वस्त करती है.
प्रियंका दुबे